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भाग)
बांितकार क कथा
प'वऽता का दौरा
पुिलस-मंऽी का पुतला
वह जो आदमी है न
नया साल
घायल बसंत
संःकृ ित
बारात क वापसी
मीटं ग काड7 और राशन काड7
हरशंकर परसाई के लेखन के उ;रण
उखड़े खंभे
भोलाराम का जीव
शम7 क बात पर ताली पीटना
'पटने-'पटने म> फक7
यस सर
बदचलन
एक अशु; बेवकूफ
भारत को चाहए जादगर
ू और साधु
भगत क गत
मुBडन
दो नाक वाले लोग
बांितकार क कथा
‘बांितकार’ उसने उपनाम रखा था। खूब पढ़ा-िलखा युवक। ःवःथ, सुंदर। नौकर भी
अFछG। 'विोह। माIस7-लेिनन के उ;रण दे ता, चे-वेवारा का खास भIत।
कॉफ हाउस म> काफ दे र तक बैठता। खूब बात> करता। हमेशा बांितकारता के तनाव म>
रहता। सब उलट-पुलट दे ना है । सब बदल दे ना है । बाल बड़े , दाड़ करने से बढ़ाई हई।
ु
'विोह क घोषणा करता। कुछ करने का मौका ढंू ढ़ता। कहता- “मेरे 'पता क पीढ़ को
जNद मरना चाहए। मेरे 'पता घोर दकयानूस, जाितवाद, ूितबयावाद हP । ठे ठ बुजआ
ु7 ।
जब वे मर> गे तब मP न मुंडन कराऊंगा, न उनका ौा; कSंगा। मP सब परं पराओं का नाश
कर दं ग
ू ा। चे-वेवारा Tजंदाबाद।”
साथी ने कहा, “अगर तुUहारा Vयार कसी लड़क से हो जाए और संयोग से वह ॄाZण
हो तो तुम शाद करोगे न?”
एक दन उसने कायःथ लड़क से कोट7 म> शाद कर ली। उसे लेकर अपने शहर आया
और दोःत के घर पर ठहर गया।
बड़े शहदाना मूड म> था। कह रहा था, “आई ॄोक दे अर नेक। मेरा बाप इस समय िसर
धुन रहा होगा, मां रो रह होगी। मुहNले-पड़ोस के लोग\ को इक]ठा करके मेरा बाप कह
रहा होगा ‘हमारे िलए लड़का मर चुका’। वह मुझे ^याग दे गा। मुझे ूापट_ से वंिचत कर
दे गा। आई ड\ट केअर। मP कोई भी बिलदान करने को तैयार हंू । वह घर मेरे िलए दँु मन
का घर हो गया। बट आई 'वल फाइट टू द एंड-टू द एंड।”
उसका एक दोःत आया। बोला, “तुUहारे फादर कह रहे थे क तुम प^नी को लेकर सीधे
घर Iय\ नहं आए। वे तो काफ शांत थे। कह रहे थे, लड़के और बहू को घर ले आओ।”
बांितकार कNपनाओं म> था। हिथयार पैने कर रहा था। बाSद सुखा रहा था। बांित का
िनणा7यक cण आने वाला है । मP वीरता से लडू ं गा। बिलदान हो जाऊंगा।
तीसरे दन उसका एक खास दोःत आया। उसने कहा, “तुUहारे माता-'पता टै Iसी लेकर
तुUह> लेने आ रहे हP । इतवार को तुUहार शाद के उपलआय म> भोज है । यह िनमंऽण-पऽ
बांटा जा रहा है ।”
बांितकार ने सर ठ\क िलया। पसीना बहने लगा। पीला हो गया। बोला, “हाय, सब ख^म
हो गया। Tजंदगी भर क संघष7-साधना ख^म हो गयी। नो ःशगल। नो रे वोNयूशन। मP हार
गया। वे मुझे लेने आ रहे है । मP लड़ना चाहता था। मेर बांितकारता! मेर बांितकारता!
दे वी, तू मेरे बाप से मेरा ितरःकार करवा। चे-वेवारा! डयर चे!”
उसक प^नी चतुर थी। वह दो-तीन दन\ से बांितकारता दे ख रह थी और हं स रह थी।
उसने कहा, “डयर एक बात कहंू । तुम बांितकार नहं हो।”
प'वऽता का दौरा
सुबह क डाक से िच]ठG िमली, उसने मुझे इस अहं कार म> दन-भर उड़ाया क मP प'वऽ
आदमी हंू Iय\क साह^य का काम एक प'वऽ काम है । दन-भर मPने हर िमलने वाले
को तुFछ समझा। मP हर आदमी को अप'वऽ मानकर उससे अपने को बचाता रहा।
प'वऽता ऐसी कायर चीज है क सबसे डरती है और सबसे अपनी रcा के िलए सचेत
रहती है । अपने प'वऽ होने का एहसास आदमी को ऐसा मदमाता है क वह उठे हए
ु सांड
क तरह लोग\ को सींग मारता है , ठे ले उलटाता है , बFच\ को रगेदता है । प'वऽता क
भावना से भरा लेखक उस मोर जैसा होता है Tजसके पांव म> घुंघS बांध दए गए ह\। वह
इऽ क ऐसी शीशी है जो गंद नाली के कनारे क दकान
ु पर रखी है । यह इऽ गंदगी के
डर से शीशी म> ह बंद रहता है ।
इतने साल साह^य के cेऽ म> हो गए। मP कई बार प'वऽ होने क दघ7
ु टना म> फंसा, पर
हर बार बच गया। मुझे िलखते जब कुछ ह समय हआ
ु था, तभी बुजुग7 साह^यकार
मुझसे कहते थे- आपने साह^य रचना का काय7 अपने हाथ म> िलया है । माता वीण-पाTण
के मंदर क प'वऽता बनाए रTखए। मP थोड़ा फूलता था। सोचता था, िसगरे ट पीना छोड़
दं ू Iय\क इस धुए
ं से दे वी के मंदर के धूप क सुगंध दबती होगी। पर मP उबर आया। वे
बुजुग7 कहते- मां भारती ने आपके सामने आंचल फैलाया है । उसे मTणय\ से भर दTजए।
(वैसे क'व ‘अंचल’ उस दन कह रहे थे क हम तो अब ‘रजाई’ हो गए)। जी हां, मां
भारती के अंचल म> आप कचरा डालते जाएं और उसी म> मP मTण छोड़ता जाऊं। ये प'वऽ
लोग और प'वऽ ह िलखने वाले लोग बड़े दलचःप होते हP । एक मुझसे बार-बार कहते-
आप अब कुछ शाँवत साह^य िलTखए। मP तो शाँवत साह^य ह िलखता हंू । वे स]टे
का फगर रोज नया लगाते थे, मगर साह^य शाँवत िलखते थे। वे मुझे बाNमीक क
तरह दमक\ के बमीठे म> दबे हए
ु लगते थे। शाँवत साह^य िलखने का संकNप लेकर
बैठने वाले मPने तुरंत मरते दे खे हP । एक शाँवत साह^य िलखने वाले ने कई साल पहले
मुझसे कहा था- अरे , आप ःकूल माःटर होकर भी इतना अFछा िलखते हP । मP तो सोचता
था, आप ूोफेसर ह\गे। उbह\ने ःकूल-माःटर लेखक क हमेशा उपेcा क। वे खुद
ूोफेसर रहे । पर आगे उनक यह दग7
ु ित हई
ु क उbह> कोस7 म> लगी मेर ह रचनाएं कcा
म> पढ़ानी पड़ं। उनका शाँवत साह^य कोस7 म> नहं लगा।
सोचता हंू , हम कहां के प'वऽ हP । हमम> से अिधकांश ने अपनी लेखनी को रं ड बना दया
है , जो पैसे के िलए कसी के भी साथ सो जाती है । स^ता इस लेखनी से बला^कार कर
लेती है और हम रपोट7 तक नहं करते। कतने नीच\ क तारफ मPने नहं िलखी। कतने
िमlया का ूचार मPने नहं कया। अखबार\ के मािलक\ का [ख दे खकर मेरे स^य ने Sप
बदले हP । मुझसे िसनेमा के चाहे जैसे डायलाग कोई िलखा ले। मP इसी कलम से
बला^कार क ूशंसा म> भी फNमी गीत िलख सकता हंू और भगवm भजन भी िलख
सकता हंू । मुझसे आज पैसे दे कर मजदरू 'वरोधी अखबार का संपादन करा लो और कल
मP उससे nयादा पैसे लेकर शे ड-यूिनयन के अखबार का संपादन कर दं ।ू इसी कलम से
मPने पहले ‘इं दरा गांधी Tजंदाबाद’ िलखा था, फर ‘इं दरा गांधी मुदा7बाद’ िलखा था, और
अब फर ‘इं दरा भारत है ’ िलख रहा हंू ।
Iया हमार प'वऽता है ? साह^य भवन क प'वऽता को िसनेमा भवन Iया नंट कर
दे गा? पर होता तो है प'वऽता, शराफत, चरऽ का एक गुमान। इधर ह एक मुहNले म>
िसनेमा बनने वाला था, तो शरफ\ ने बड़ा हNला मचाया- यह शरफ\ का मोहNला है ।
यहां शरफ Toयां रहती हP और यहां िसनेमा बन रहा है । गोया िसनेमा गुंड\ के मोहNले
म> बनना चाहए ताक इनके घर\ क शरफ औरते िसनेमा दे खने गुंड\ के बीच जाएं।
मुहNले म> एक आदमी रहता है । उससे िमलने एक ःऽी आती है । एक सnजन कहने लगे-
यह शरफ\ का मुहNला है । यहां यह सब नहं होना चाहए। दे Tखए, फलां के पास एक
ःऽी आती है । मPने कहा- साहब, शरफ\ का मुहNला है , तभी तो वह ःऽी अपने पु[ष
िमऽ से िमलने बेखटके आती है । Iया वह गुंड\ के मुहNले म> उससे िमलने जाती?
मP शाम वाले पऽ से हNका हो गया। प'वऽता का मेरा नशा उतर गया। मPने सोचा,
साह^य भवन के सिचव को िलखू-ं मुझे दसरे
ू पc का पऽ भी िमल गया है Tजसम>
बताया गया है क अपनी संःथा म> कतना ॅंटाचार है । अब तो िसनेमा-मािलक को ह
मांग करनी चाहए क यह साह^य क संःथा यहां से हटाई जाए, Tजससे दश7क\ क
नैितकता पर बुरा असर न पड़े । इसम> बड़ा ॅंटाचार है ।
पुिलस-
लस-मंऽी का पुतला
अफसर\ ने कहा, “गजब करते हो। मंऽी का पुतला है । उसे हम कैसे जलाएंगे? नौकर
खोना है Iया?”
इतने म> रामलीला का मौसम आ गया। एक बड़े पुिलस अफसर को ‘ॄेनवेव’ आ गई।
उसने रामलीला वाल\ को बुलाकर कहा, “तुUह> दशहरे पर जलाने के िलए रावण का पुतला
चाहए न? इसे ले जाओ। इसम> िसफ7 नौ िसर कम हP , सो लगा लेना।”
वह जो आदमी है न
िनंदा म> 'वटािमन और ूोटन होते हP । िनंदा खून साफ करती है , पाचन-बया ठGक करती
है , बल और ःफूित7 दे ती है । िनंदा से मांसपेिशयां पुंट होती हP । िनंदा पायरया का तो
शित7या इलाज है । संत\ को परिनंदा क मनाह होती है , इसिलए वे ःविनंदा करके
ःवाःlय अFछा रखते हP । ‘मौसम कौन कुटल खल कामी’- यह संत क 'वनय और
आ^मलािन नहं है , टॉिनक है । संत बड़ा कांइया होता है । हम समझते हP , वह
आ^मःवीकृ ित कर रहा है , पर वाःतव म> वह 'वटािमन और ूोटन खा रहा है ।
ःवाःlय 'वhान क एक मूल ःथापना तो मPने कर द। अब डॉIटर\ का कुल इतना काम
बचा क वे शोध कर> क कस तरह क िनंदा म> कौन से और कतने 'वटािमन होते हP ,
कतना ूोटन होता है । मेरा अंदाज है , ःऽी संबंधी िनंदा म> ूोटन बड़ माऽा म> होता है
और शराब संबंधी िनंदा म> 'वटािमन बहत
ु होते हP ।
मेरे सामने जो ःवःथ सnजन बैठे थे, वे कह रहे थे- आपको मालूम है , वह आदमी शराब
पीता है ?
मPने uयान नहं दया। उbह\ने फर कहा- वह शराब पीता है ।
िनंदा म> अगर उ^साह न दखाओ तो करने वाल\ को जूता-सा लगता है । वे तीन बार
बात कह चुके और मP चुप रहा, तीन जूते उbह> लग गए। अब मुझे दया आ गई। उनका
चेहरा उतर गया था।
वे चकत हए।
ु बोले- पीने दो, आप कहते हP पीने दो?
मPने कहा- हां, हम लोग न उसके बाप हP , न शुभिचंतक। उसके पीने से अपना कोई
नुकसान भी नहं है ।
तब मPने लगातार उनसे कुछ सवाल कर डाले- आप चावल nयादा खाते हP या रोट? कस
करवट सोते हP ? जूते म> पहले दाहना पांव डालते हP या बायां? ःऽी के साथ रोज संभोग
करते हP या कुछ अंतर दे कर?
अब वे ‘हं-हं’ पर उतर आए। कहने लगे- ये तो ूाईवेट बात> हP , इनसे Iया मतलब।
मPने कहा- वह Iया खाता-पीता है , यह उसक ूाईवेट बात है । मगर इससे आपको जSर
मतलब है । कसी दन आप उसके रसोईघर म> घुसकर पता लगा ल>गे क कौन-सी दाल
बनी है और सड़क पर खड़े होकर िचNलाएंगे- वह बड़ा दराचा
ु र है । वह उड़द क दाल
खाता है ।
तनाव आ गया। मP पोलाइट हो गया- छोड़ो यार, इस बात को। वेद म> सोमरस क ःतुित
म> 60-62 मंऽ हP । सोमरस को 'पता और ईँवर तक कहा गया है । कहते हP - तुमने मुझे
अमर बना दया। यहां तक कहा है क अब मP पृlवी को अपनी हथेिलय\ म> लेकर मसल
सकता हंू ।(ऋ'ष को nयादा चढ़ गई होगी।) चेतन को दबाकर राहत पाने या चेतना का
'वःतार करने के िलए सब जाितय\ के ऋ'ष कसी मादक िय का उपयोग करते थे।
फर राजनीित आ गई। छोT़डए। बात शराब क हो रह थी। इस संबंध म> जो िशcाूद
बात> ऊपर कहं हP , उन पर कोई अमल करे गा, तो अपनी ‘रःक’ पर। नुकसान क
TजUमेदार कंपनी क नहं होगी। मगर बात शराब क भी नहं, उस प'वऽ आदमी क हो
रह थी, जो मेरे सामने बैठा कसी के दराचार
ु पर िचंितत था।
मP िचंितत नहं था, इसिलए वह नाराज और दखी
ु था।
वह मुझसे 'बNकुल िनराश हो गया। सोचता होगा, कैसा प^थर आदमी है यह क इतने
ऊंचे दज के ‘ःकPडल’ म> भी दलचःपी नहं ले रहा। वह उठ गया। और मP सोचता रहा
क लोग समझते हP क हम Tखड़क हवा और रोशनी के िलए बनवाते हP , मगर वाःतव
म> Tखड़क अंदर झांकने के िलए होती है ।
कतने लोग हP जो ‘चरऽहन’ होने क इFछा मन म> पाले रहते हP , मगर हो नहं सकते
और िनरे ‘चरऽवान’ होकर मर जाते हP । आ^मा को परलोक म> भी चैन नहं िमलता
होगा और वह पृlवी पर लोग\ के घर\ म> झांककर दे खती होगी क कसका संबंध कससे
चल रहा है ।
कसी ःऽी और पु[ष के संबंध म> जो बात अखरती है , वह अनैितकता नहं है , बTNक यह
है क हाय उसक जगह हम नहं हए।
ु ऐसे लोग मुझे चुग
ं ी के दरोगा मालूम होते हP । हर
आते-जाते ठे ले को रोककर झांककर पूछते हP - तेरे भीतर Iया िछपा है ?
वे बेचारे वाःतव म> िशकायत करते हP क 'पताजी, आपक बेट हम> ‘चरऽहन’ होने का
चांस नहं दे रह है । उसे डांटए न क हम> भी थोड़ा चरऽहन हो लेने दे ।
Tजस आदमी क ःऽी-संबंधी कलंक कथा वह कह रहा था, वह भला आदमी है - ईमानदार,
सFचा, दयालु, ^यागी। वह धोखा नहं करता, कालाबाजार नहं करता, कसी को ठगता
नहं है , घूस नहं खाता, कसी का बुरा नहं करता।
एक ःऽी से उसक िमऽता है । इससे वह आदमी बुरा और अनैितक हो गया।
बड़ा सरल हसाब है अपने यहां आदमी के बारे म> िनण7य लेने का। कभी सवाल उठा होगा
समाज के नीितवान\ के बीच के नैितक-अनैितक, अFछे -बुरे आदमी का िनण7य कैसे कया
जाए। वे परे शान ह\गे। बहत
ु सी बात\ पर आदमी के बारे म> 'वचार करना पड़ता है , तब
िनण7य होता है । तब उbह\ने कहा होगा- nयादा झंझट म> मत पड़ो। मामला सरल कर
लो। सार नैितकता को समेटकर टांग\ के बीच म> रख लो।
ÙØæ âæÜ
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¿æðÚ-ÃØæÂæÚ ·ÚÙð Ü»æð»ðÐ ¥æŸæ× ×ð´ »æ¢Áæ çÂÜæ¥æð»ð ¥æñÚ Áé¥æ ç¹Üæ¥æð»ðÐ ÜǸç·Øæ¢ Ö»æ·Ú Õð¿æð»ðÐ
Ìé× ¿æðÚè ·ÚÙð Ü»æð»ðÐ Ìé× ·æð§ü â¢SÍæ ¹æðÜ·Ú ¿¢Îæ ¹æÙð Ü»æð»ðÐ âæÏæð, âèÏð ÚæSÌð âð §â ÃØßSÍæ ×ð´
·æð§ü âé¹è Ùãè¢ ãæðÌæÐ Ìé× Åðɸð ÚæSÌð ¥ÂÙæ·Ú âé¹è ãæðÙð Ü»æð»ðÐ âæÏæð, §âè ÇÚ âð ×ñ´ Ìé{ãð´ Ù° ßáü ·ð
çÜ° ·æð§ü àæéÖ·æ×Ùæ Ùãè´ ÎðÌæÐ ·ãè¢ Ìé× âé¹è ãæðÙð ·è ·æðçàæàæ ×Ì ·ÚÙð Ü»ÙæÐ
घायल बसंत
मPने सोचा, Tजसे बसbत के आने का बोध भी अपनी तरफ से काराना पड़े , उस 'ूय से तो
शऽु अFछा। ऐसे नासमझ को ूकृ ित - 'वhान पढ़ाय>गे या उससे Vयार कर> गे। मगर क'व
को न जाने Iय\ ऐसा बेवकूफ पसbद आता है ।
पहली पं'p सुनते ह मP समझ गया क इस क'वता का अbत ‘हा हbत’ से होगा, और
हआ।
ु अbत, सbत, दगbत आद के बाद िसवा 'हा हbत' के कौन पद पूरा करता ? तुक क
यह मजबूर है । लीक के छोर पर यह गहरा गढ़ा होता है । तुक क गुलामी करोगे तो
आरUभ चाहे 'बसbत ' से कर लो, अbत जSर ' हा हbत ' से होगा। िसफ7 क'व ऐसा नहं
करता। और लोग भी, सयाने लोग भी , इस चIकर म> होते है । य'pगत और सामाTजक
जीवन म> तुक पर तुक 'बठाते चलते है । और 'वसbत ' से शुS करके 'हा हbत' पर पहंु चते
हP । तुक> बराबर फ़ट बैठती हP , पर जीवन का आवेग िनकल भागता है । तुक> हमारा पीछा
छोड़ ह नहं रह हP । हाल ह म> हमार समाजवाद सरकार के अथ7मbऽी ने दबा सोना
िनकालने क जो अपील क , उसक तुक शुuद सव
दय से िमलायी -- 'सोना दबाने वालो
, दे श के िलए ःवेFछा से सोना दे दो।' तुक उाम ूकार क थी; साँप तक का दल नहं
दखा।
ु पर सोना चार हाथ और नीचे चला गया। आTखर कब हम तुक को ितलांजिल द> गे
? कब बेतुका चलने क हUमत कर> गे ?
क'व ने क'वता समा कर द थी। उसका 'हा हbत' आ गया था। मPने कहा, 'धोरे क !' 7
तुक\ म> ह ट> बोल गया। राक'व इस पर कम -कम-कम 51 तुक> बॉधते। 9 तुक> तो
उbह\ने 'चब' पर बांधी हP । ( दे खो 'यशोधरा ' पृ 13 ) पर तू मुझे Iया बतायेगा क बसbत
आ गया। मुझे तो सुबह से ह मालूम है । सबेरे वसbत ने मेरा दरवाजा भी खटखटाया
था। मP रजाई ओढ़े सो रहा था। मPने पूछा – “कौन?” जवाब आया-- '' मP वसbत। '' मP
घबड़ा उठा। Tजस दकान
ू से सामान उधार लेता हँू , उसके नौकर का नाम भी वसbतलाल
है । वह उधार वसूल करने आया था। कैसा नाम है , और कैसा काम करना पड़ता है इसे !
इसका नाम पतझड़दास या तुषारपात होना था। वसbत अगर उधार वसूल करता फरता
है , तो कसी दन आनbदकर थानेदार मुझे िगरqतार करके ले जायेगा और अमृतलाल
जNलाद फॉसी पर टांग दे गा !
वसbतलाल ने मेरा मुहू त7 'बगाड़ दया। इधर से कहं ऋतुराज वसbत िनकलता होगा, तो
वह सोचेगा क ऐसे के पास Iया जाना Tजसके दरवाजे पर सबेरे से उधारवाले खड़े रहते
हP ! इस वसbतलाल ने मेरा मौसम ह खराब कर दया।
मPने उसे टाला और फर ओढ़कर सो गया। ऑख> झंप गयीं । मुझे लगा, दरवाजे पर फर
दःतक हई।
ु मPने पूछा --कौन? जवाब आया—“मP वसbत !” मP खीझ उठा - '' कह तो दया
क फर आना।'' उधर से जवाब आया—“मै। बार-बार कब तक आता रहंू गा ? मP। कसी
बिनये का नौकर नहं हंू ; ऋतुराज वसbत हंू । आज तुUहारे ार पर फर आया हंू और
तुम फर सोते िमले हो। अलाल , अभागे, उठकर बाहर तो दे ख। ठंू ठ\ ने भी नव पNलव
पहन रखे हP । तुUहारे सामने क ूौढ़ा नीम तक नवोढ़ा से हाव -भाव कर रह है -- और
बहत
ु भr लग रह है ।''
मैने मुंह उधाड़कर कहा-, '' भई, माफ़ करना , मPने तुUह> पहचाना नहं। अपनी यह 'वडUबना
है क ऋतुराज वसbत भी आये, तो लगता है , उधार के तगादे वाला आया। उमंग> तो मेरे
मन म> भी हP , पर यार, ठBड बहत
ु लगती है ।'' वह जाने के िलए मुड़ा। मPने कहा, '' जाते -
जाते एक छोटा-सा काम मेरा करते जाना। सुना है तुम ऊबड़ -खाबड़ चेहर\ को िचकना
कर दे ते हो ; 'फेसिलTqटं ग' के अFछे कारगर हो तुम। तो जरा यार, मेर सीढ़ ठGक करते
जाना, उखड़ गयी है । ''
उसे बुरा लगा। बुरा लगने क बात है । जो सुbदरय\ के चेहरे सुधारने का कारगर है , उससे
मPने सीढ़ सुधारने के िलए कहा। वह चला गया।
मP उठा और शाल लपेटकर बाहर बरामदे म> आया। हज़ार\ साल\ के संिचत संःकार मेरे
मन पर लदे हP ; टन\ क'व - कNपनाएं जमी हP । सोचा, वसbत है तो कोयल होगी ह ।
पर न कहं कोयल दखी न उसक कूक सुनायी द। सामने क हवेली के कंगूरे पर बैठा
कौआ 'कांव-कांव' कर उठा। काला, कुSप, कक7श कौटा-- मेर सौदय7-भावना को ठे स
लगी। मPने उसे भगाने के िलए कंकड़ उठाया। तभी खयाल आया क एक परUपरा ने कौढ
को भी ूिता दे द है । यह 'वरहणी को 'ूयतम के आगमन का सbदे सा दे ने वाला
माना जाता है । सोचा , कहं यह आसपास क कसी 'वरहणी को 'ूय के आने का सगुन
न बता रहा हो। मै। 'वरहTणय\ के राःते म> कभी नहं आता ; पितोताओं से तो बहत
ु
डरता हंू । मPने कंकड़ डाल दया। कौआ फर बोला। नाियका ने सोने से उसक च\च मढ़ाने
का वायदा कर दया होगा। शाम क गाड़ से अगर नायक दौरे से वा'पस आ गया , तो
कल नाियका बाजार से आनेवाले सामान क जो सूची उसके हाथ म> दे गी, उसम> दो तोले
सोना भी िलखा होगा। नायक पूछेगा , '''ूये, सोना तो अब काला बाजार म> िमलता है ।
लेकन अब तुम सोने का करोगी Iया?'' नाियका लजाकर कहे गी , '' उस कौए क च\च
मढ़ाना है , जो कल सेबेरे तुUहारे आने का सगुन बता गया था।'' तब नायक कहे गा, '' 'ूय,
तुम बहत
ु भोली हो। मेरे दौरे का काय7बम यह कौआ थेड़े ह बनाता है ; वह कौआ बनाता
है Tजसे हम 'बड़ा साहब' कहते हP । इस कलूटे क च\च सोने से Iय\ मढ़ाती हो? हमार
दद7ु शा का यह तो कारण है क तमाम कौए सोने से च\च मढ़ाये हP , और इधर हमारे पास
हिथयार खरदने को सोना नहं हP । हम> तो कौओं क च\च से सोना खर\च लेना है । जो
आनाकानी कर> गे, उनक च\च काटकर सोना िनकाल ल>गे। 'ूये, वह बड़ ग़लत परUपरा है ,
Tजसम> हं स और मोर क च\च तो नंगी रहे , पर कौए क च\च सुbदर खुद सोना मढ़े ।''
नाियका चुप हो जायेगी। ःवण7 - िनयbऽण कानून से सबसे nयादा नुकसान कौओं और
'वरहTणय\ का हआ
ु है । अगर कौए ने 14 केरे ट के सोने से च\च मढ़ाना ःवीकार नहं
कया, तो 'वरहणी को 'ूय के आगमन क सूचना कौन दे गा? कौआ फर बोला। मP इससे
युग\ से घृणा करता हंू ; तब से, जब इसने सीता के पांव म> च\च मार थी। राम ने अपने
हाथ से फूल चुनकर, उनके आभूषण बनाकर सीता को पहनाये। इसी समय इbि का
'बगडै ़ल बेटा जयbत आवारागद_ करता वहां आया और कौआ बनकर सीता के पांव म>
च\च मारने लगा। ये बड़े आदमी के 'बगडै ल लड़के हमेशा दसर\
ू का ूेम 'बगाड़ते हP । यह
कौआ भी मुझसे नाराज हP , Iय\क मPने अपने घर के झरोख\ म> गौरै य\ को घ\सले बना
लेने दये हP । पर इस मौसम म> कोयल कहां है ? वह अमराई म> होगी। कोयल से अमराई
ू
छटती नहं है , इसिलए इस वसbत म> कौए क बन आयी है । वह तो मौक़ापरःत है ;
घुसने के िलए पोल ढंू ढता है । कोयल ने उसे जगह दे द है । वह अमराई क छाया म>
आराम से बैठG है । और इधर हर ऊंचाई पर कौआ बैठा 'कॉव-कॉव' कर रहा है । मुझे
कोयल के पc म> उदास पुरातन ूेिमय\ क आह भी सुनायी दे ती है , ' हाय, अब वे
अमराइयां यहां कहां है क कोयल> बोल>। यहां तो ये शहर बस गये हP , और कारखाने बन
गये है ।' मP कहता हंू क सव7ऽ अमराइयां नहं है , तो ठGक ह नहं हP । आTखर हम कब
तक जंगली बने रहते? मगर अमराई और कुंज और बगीचे भी हम> Vयारे हP । हम कारखाने
को अमराई से घेर द> गे और हर मुहNले म> बगीचा लगा द> गे। अभी थोड़ दे र है । पर
कोयल को धीरज के साथ हमारा साथ तो दे ना था। कुछ दन धूप तो हमारे साथ सहना
था। Tजसने धूप म> साथ नह दया , वह छाया कैसे बंटायेगी ? जब हम अमराई बना ल>गे
, तब Iया वह उसम> रह सकेगी? नहं, तब तक तो कौए अमराई पर क़kजा कर ल>गे।
कोयल को अभी आना चाहए। अभी जब हम िम]ट खोद> , पानी सींचे और खाद द> , तभी
से उसे गाना चाहए। मP बाहर िनकल पड़ता हंू । चौराहे पर पहली बसbती साड़ दखी। मP
उसे जानता हंू । यौवन क एड़ दख रह है -- वह जा रहा है -- वह जा रहा है । अभी
कुछ महने पहले ह शाद हई
ु है । मP तो कहता आ रहा था क चाहे कभी ले, 'Sखी र यह
डाल वसन वासbती लेगी' - (िनराला )। उसने वसन वासbती ले िलया। कुछ हजार म> उसे
यह बूढ़ा हो रहा पित िमल गया। वह भी उसके साथ है । वसbत का अTbतम चरण और
पतझड़ साथ जा रहे हP । उसने मांग म> बहत
ु -सा िसbदरू चुपड़ रखा है । Tजसक Tजतनी
मुTँकल से शाद होती है , वह बेचार उतनी ह बड़ मांग भरती है । उसने बड़े अिभमान से
मेर तरफ दे खा। फर पित को दे खा। उसक नजर म> ठसक और ताना है , जैसे अंगूठा
दखा रह है क ले, मुझे तो यह िमल ह गया। मगर यह Iया? वह ठBड से कांप रह है
ू रह है ।
और 'सीसी' कर रहं है । वसbत म> वासbती साड़ को कंपकंपी छट
यह कैसा वसbत है जो शीत के डर से कांप रहा है ? Iया कहा था 'वापित ने-- ' सरस
वसbत समय भल पाओिल दिछन पवन बहु धीरे ! नहं मेरे क'व, दTcण से मलय पवन
नहं बह रहा। यह उार से बफ़ली हवा आ रह है । हमालय के उस पार से आकर इस
बफ़ली हवा ने हमारे वसbत का गला दबा दया है । हमालय के पार बहत
ु - सा बफ7
बनाया जा रहा है Tजसम> सार मनुंय जाित को मछली क तरह जमा कर रखा जायेगा।
यह बड़ भार साTजश है बफ7 क साTजश ! इसी बफ7 क़ हवा ने हमारे आते वसbत को
दबा रखा है । य\ हम> 'वास है क वसbत आयेगा। शेली ने कहा है , 'अगर शीत आ गयी
है , तो Iया वसbत बहत
ु पीछे होगा? वसbत तो शीत के पीछे लगा हआ
ु ह आ रहा है । पर
उसके पीछे गरमी भी तो लगी है । अभी उार से शीत -लहर आ रह है तो फर पTम
से लू भी तो चल सकती है । बफ7 और आग के बीच म> हमारा वसbत फॅसा है । इधर शीत
उसे दबा रह है और उधर से गरमी। और वसbत िसकुड़ता जा रहा है ।
मौसम क मेहरबानी पर भरोसा कर> गे, तो शीत से िनपटते-िनपटते लू तंग करने लगेगी।
मौसम के इbतजार से कुछ नहं होगा। वसbत अपने आप नहं आता ; उसे लाया जाता
है । सहज आनेवाला तो पतझड़ होता है , वसbत नहं। अपने आप तो पे झड़ते हP । नये
पे तो वृc का ूाण-रस पीकर पैदा होते हP । वसbत य\ नहं आता। शीत और गरमी के
बीच से जो Tजतना वसbत िनकाल सके, िनकाल ल>। दो पाट\ के बीच म> फंसा है , दे श का
वसbत। पाट और आगे Tखसक रहे हP । वसbत को बचाना है तो ज़ोर लगाकर इन दोन\
पाट\ को पीछे ढकेलो - इधर शीत को, उधर गरमी को। तब बीच म> से िनकलेगा हमारा
घायल वसbत।
संःकृ ित
भूखा आदमी सड़क कनारे कराह रहा था । एक दयालु आदमी रोट लेकर उसके
पास पहँ चा और उसे दे ह रहा था क एक-दसरे
ू आदमी ने उसका हाथ खींच
िलया । वह आदमी बड़ा रं गीन था ।
पहले आदमी ने पूछा, "Iय\ भाई, भूखे को भोजन Iय\ नहं दे ने दे ते ?"
रं गीन आदमी बोला, "ठहरो, तुम इस ूकार उसका हत नहं कर सकते । तुम
केवल उसके तन क भूख समझ पाते हो, मP उसक आ^मा क भूख जानता हँू ।
दे खते नहं हो, मनुंय-शरर म> पेट नीचे है और दय ऊपर । दय क अिधक
महा है ।"
पहला आदमी बोला, "लेकन उसका दय पेट पर ह टका हआ
ु है । अगर पेट
म> भोजन नहं गया तो दय क टक-टक बंद नहं हो जायेगी !"
रं गीन आदमी हँ सा, फर बोला, "दे खो, मP बतलाता हँू क उसक भूख कैसे
बुझेगी !"
यह कहकर वह उस भूखे के सामने बाँसुर बजाने लगा । दसरे
ू ने पूछा, "यह
तुम Iया कर रहे हो, इससे Iया होगा ?"
रं गीन आदमी बोला, "मP उसे संःकृ ित का राग सुना रहा हँू । तुUहार रोट से
तो एक दन के िलए ह उसक भूख भागेगी, संःकृ ित के राम से उसक जनम-
जनम क भूख भागेगी ।"
वह फर बाँसूर बजाने लगा ।
और तब वह भूखा उठा और बाँसूर झपटकर पास क नाली म> फ>क द ।
बारात क वापसी
बारात म> जाना कई कारण से टालता हँू । मंगल काय म> हम जैसी चढ़ उॆ के कुँवार\ का जाना
अपशकुन है । महे श बाबू का कहना है , हम> मंगल काय से 'वधवाओं क तरह ह दरू रहना चाहये।
कसी का अमंगल अपने कारण Iय\ हो ! उbह> पछतावा है क तीन साल पहले Tजनक शाद म>
वह गये थे, उनक तलाक क Tःथित पैदा हो गयी है । उनका यह शोध है क महाभारत का यु; न
होता, अगर भींम क शाद हो गयी होती। और अगर कृ ंणमेनन क शाद हो गयी होती, तो चीन
हमला न करता।
सारे यु; ूौढ़ कुंवार\ के अहं क तु' के िलए होते हP । 1948 म> तेलंगाना म> कसान\ का
जागा था। कहने लगे, " बस, अब तुमलोग\ क बारात म> जाने क इFछा है । " हम लोग\ ने कहा - '
अब कशोर\ जैसी बारात तो होगी नह। अब तो ऐसी बारात ऐसी होगी- कसी को भगा कर लाने
के कारण हथकड़ पहने हम ह\गे और पीछे चलोगे तुम जमानत दे ने वाले। ऐसी बारात होगी।
ताकत लड़कय\ क शाद करने मे जा रह है । पाव ताकत िछपाने मे जा रह है - शराब पीकर
िछपाने म>, ूेम करके िछपाने म>, घूस लेकर िछपाने म> ... बची पाव ताकत से दे श का िनमा7ण हो
यह बात मPने उस दन एक 'वँव'वालय के छाऽसंघ के वा'ष7को^सव म> कह थी। कहा
था, “तुम लोग बांितकार त[ण-त[Tणयां बनते हो। तुम इस दे श क आधी ताकत को
बचा सकते हो। ऐसा करो Tजतनी लड़कयां 'वँव'वालय म> हP , उनसे 'ववाह कर डालो।
अपने बाप को मत बताना। वह दहे ज मांगने लगेगा। इसके बाद Tजतने लड़के बच>, वे
एक-दसरे
ू क बहन से शाद कर ल>। ऐसा बुिनयाद बांितकार काम कर डालो और फर
Tजस िसगड़ को जमीन पर रखकर तुUहार मां रोट बनाती है , उसे टे 'बल पर रख दो,
Tजससे तुUहार प^नी सीधी खड़ होकर रोट बना सके। बीस-बाईस साल\ म> िसगड़ ऊपर
नहं रखी जा सक और न झाडू म> चार फुट का डं डा बांधा जा सका। अब तक तुम लोग\
छाऽ थोड़े चके। कुछ ह-ह करते भी पाये गये। मगर कुछ नहं।
एक त[ण के साथ साल\ मेहनत करके मPने उसके खयालात संवारे थे। वह शाद के मंडप
म> बैठा तो ससुर से बFचे क तरह मचलकर बोला, “बाबूजी, हम तो वेःपा ल>गे, वेःपा के
ने साल भर म> वेःपा दे ने का वादा कया, नेग के िलए बाजार से वेःपा का Tखलौना
मंगाकर थाली म> रखा, फर सबा [पया रखा और दामाद को भ>ट कया। सबा [पया तो
मरते वIत गोदान के िनिम^त दया जाता है न। हां, मेरे उस त[ण दोःत क
हँू क बारात क 'वदा के पहले ह कुछ बहाना करके कराया लेकर लौट पड़ता हँू ।
हम पांच िमऽ\ ने तय कया क शाम ४ बजे क बस से वापस चल>। पbना से इसी कUपनी क बस
सतना के िलये घBटे -भर बाद िमलती है , जो जबलपुर क शे न िमला दे ती है । सुबह घर पहंु च
जाय>गे। हमम> से दो को सुबह काम पर हाTज़र होना था, इसिलये वापसी का यह राःता अपनाना
ज़Sर था। लोग\ ने सलाह द क समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफ़र नहं करते। Iया
बस को दे खा तो ौ;ा उभर पड़। खूब वयोवृmध थी। सदय\ के अनुभव के िनशान िलये हए
ु थी।
लोग इसिलए सफ़र नहं करना चाहते क वृ;ावःथा म> इसे क होगा। यह बस पूजा के योय थी।
उस पर सवार कैसे हआ
ु जा सकता है !
बोले-चलती Iय\ नहं है जी! अभी चलेगी। हमन> कहा-वह तो हम दे खना चाहते हP । अपने-आप
हम आगा-पीछा करने लगे। पर डाIटर िमऽ ने कहा-डरो मत, चलो! बस अनुभवी है । नई-नवेली
बस\ से एयादा 'वशवनीय है । हम> बेट\ क तरह Vयार से गोद म> लेकर चलेगी। हम बैठ गये। जो
छोड़ने आए थे, वे इस तरह दे ख रहे थे, जैसे अंितम 'वदा दे रहे हP । उनक आख> कह रह थी -
आना-जाना तो लगा ह रहता है । आया है सो जायेगा - राजा, रं क, फ़कर। आदमी को कूच करने
हP । कांच बहत
ु कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हम> बचना था। हम फौरन Tखड़क से दरू सरक गये।
इं जन चल रहा था। हम> लग रहा था हमार सीट के नीचे इं जन है ।
वp अवँय जवान रह होगी। उसे शे िनंग िमल चुक थी। हर हःसा दसरे
ु से असहयोग कर रहा
था। पूर बस स'वनय अवhा आंदोलन के दौर से गुज़र रह थी। सीट का बॉड से असहयोग चल
रहा था। कभी लगता, सीट बॉड को छोड़ कर आगे िनकल गयी। कभी लगता क सीट को छोड़
कर बॉड आगे भागे जा रह है । आठ-दस मील चलने पर सारे भेद-भाव िमट गए। यह समझ म>
रहा था क थोड़ दे र बाद बस कUपनी के हःसेदार इं जन को िनकालकर गोद म> रख ल>गे और उसे
बस क रqतार अब पbिह-बीस मील हो गयी थी। मुझे उसके कसी हःसे पर भरोसा नहं था।
एकाएक फर बस Sक। साइवर ने तरह-तरह क तरकब> कं, पर वह चली नहं। स'वनय अवhा
आbदोलन शुS हो गया था। कUपनी के हःसेदार कह रहे थे - बस तो फःट7 Iलास है जी! ये तो
इफाक क बात है । cीण चांदनी म> वृc\ क छाया के नीचे वह बस बड़ दयनीय लग रह थी।
लगता, जैसे कोई वृ;ा थककर बैठ गयी हो। हम> लानी हो रह थी क इस बेचार पर लदकर हम
चले आ रहे हP । अगर इसका ूाणांत हो गया तो इस 'बयाबान म> हम> इसक अb^येी करनी
पड़े गी।
हःसेदार साहब ने इं जन खोला और कुछ सुधारा। बस आगे चली। उसक चाल और कम हो गयी
थी।
धीरे -धीरे वृ;ा क आख\ क nयोित जाने लगी। चांदनी म> राःता टटोलकर वह र> ग रह थी। आगे
या पीछे से कोई गाड़ आती दखती तो वह एकदम कनारे खड़ हो जाती और कहती - िनकल
क तरफ ौ;ा भाव से दे खा। वह टायर\ क हाल जानते हP , फर भी जान हथेली पर ले कर इसी बस
अगर बस नाले म> िगर पड़ती और हम सब मर जाते, तो दे वता बांह> पसारे उसका इbतज़ार करते।
कहते - वह महान आदमी आ रहा है Tजसने एक टायर के िलए ूाण दे दए। मर गया, पर टायर
नहं बदला।
दसरा
ू िघसा टायर लगाकर बस फर चली। अब हमने वp पर पbना पहंु चने क उUमीद छोड़ द
थी। पbना कभी भी पहंु चने क उUमीद छोड़ द थी - पbना, Iया, कहं भी, कभी भी पहंु चने क
उUमीद छोड़ द थी। लगता था, Tज़bदगी इसी बस म> गुज़ारनी है और इससे सीधे उस लोक क
ओर ूयाण कर जाना है । इस पृlवी पर उसक कोई मंTज़ल नहं है । हमार बेताबी, तनाव ख^म
हो गये। हम बड़े इ^मीनान से घर क तरह बैठ गये। िचbता जाती रह। हं सी मज़ाक चालू हो
गया।
ठBड बढ़ रह थी । Tखड़कयाँ खुली ह थीं। डाIटर ने कहा - ' गलती हो गयी। 'कुछ' पीने को ले
आता तो ठGक रहता । ' एक गाँव पर बस [क तो डाIटर फौरन उतरा । साइवर से बोला - 'जरा
रोकना ! नारयल ले आऊँ । आगे मढ़या पर फोड़ना है । डाIटर झोपड़य\ के पीछे गया और
कUपनी के हःसेदार शहर के बाहर ह अपने घर पर उतर गये। बस शहर मे अपने ठकाने पर
तीन िमऽ बस-मािलक\ पर झपटे । उनक गम7 डाँट हम सुन रहे थे। पर वे िनराश लौटे । बस-
मािलक\ ने कह दया था, सतना क बस तो चार- पाँच घBटे पहले जा चुक थी। अब लौटती होगी।
अब तो बस सवेरे ह िमलेगी।
डाIटर बस-मािलक\ के पास गया। पाँचेक िमनट मे उनके साथ लौटा तो बदला हआ
ु था। बड़े
अदब से मुझसे कहने लगा," सर, नाराज़ मत होइए। सरदार जी कुछ इं तजाम कर> गे। सर,सर उbह>
अभी डाIटर बेतकुNलफ से बात कर रहा था और अब मुझे 'सर' कह रहा है । बात Iया है ? कह
ठरा7 nयादा असर तो नहं कर गया। मैने कहा, "यह तुमने Iया 'सर-सर' लगा रखी है ? "
उसने वैसे ह झुक कर कहा, " सर, नाराज़ मत होइए ! सर, कुछ इं तजाम हआ
ु जाता है । "
मुझे तब भी कुछ समझ म> नह आया। डाIटर भी परे शान था क मP कुछ समझ Iय\ नह रहा हँू ।
वह मुझे अलग ले गया और समझाया, " मैने इन लोग\ से कहा है क तुम संसद सदःय हो। इधर
जांच करने आए हो।मP एक Iलक7 हँू , Tजसे साहब ने एम. पी. को सतना पहँु चाने के िलए भेजा है ।
मैने इनसे कहा क सरदारजी, मुझ गरब क तो गद7 न कटे गी ह, आपक भी लेवा-दे ई हो जायेगी।
वह ःपेशल बस से सतना भेजने का इं तजाम कर दे गा। ज़रा थोड़ा एम. पी. पन तो दखाओ। उNलू
कोई [प दे दे ते हP । नेता भी दखता हँू , शायर भी और अगर बाल सूखे -'बखरे ह\ तो जुUमन
मैने िमlयाचार का आ^मबल बटोरा और लौटा तो ठGक संसद सदःय क तरह। आते ह
गया है ? "
सरदारजी घबरा उठे । डाक् टर खुश क मैने फःट7 Iलास रोल कया है ।
रोबदार संसद सदःय का एक वाIय काफ़ है , यह स\चकर मP दरू खड़े होकर िसगरे ट पीने लगा।
िमऽ महे शद िमौ का नाम धारण कर लूँगा। गाँधीवाद होने के नाते, वह थोड़ा झूठ बोलकर मुझे
बचा ह ल>गे।
फोन हो तो जरा कलेIटर को इ'ला कर दो। वह ग़ाड़ का इं तजाम कर द> गे। "
डाIटर वहं से बोला, " सर, बस एक िमनट! जःट ए िमनट सर !" थोड़ दे र बाद सरदारजी ने
मुझे एम. पी. पन काफ भाड़ पड़ रहा था। मP दोःत\ के बीच अजनबी क तरह अकड़ा बैठा था।
सतना म> जब रे लवे के मुसाफरखाने मे पहँु चे तब डाIटर ने कहा, " अब तीन घBटे लगातार तुम
मुझे 'सर' कहो। मेर बहत
ु तौहन हो चुक है ।"
....
मेर टे 'बल पर दो काड7 पड़े हP - इसी डाक से आया दवाली मीटं ग काड7 और दकान
ु से लौटा राशन
काड7 . मीटं ग काड7 म> कसी ने शुभेFछा ूगट क है क मP सुख और समृ'; ूा कSँ. अभी अपने
शुभिचbतक बने हए
ु हP जो सुख दए 'बना चैन नहं ल>गे. दवाली पर कम से कम उbह> याद तो
आती है क इस आदमी का सुखी होना अभी बकाया है . वे काड7 भेज दे ते हP क हम तो सुखी हP ह,
अगर तुम भी हो जाओ, तो हम> फलहाल कोई एतराज़ नहं.
मेरा राशन काड7 मेरे सुख क कामना कर रहा है . मगर राशन काड7 बताता है क इस हझते से गेहूँ क
माऽा आधी हो गयी है . राशन काड7 मे मीटं ग काड7 को काट दया. ऐसा तमाचा मारा क खूबसूरत
मीटं ग काड7 जी के कोमल कपोल र'pम हो गए.शु[ से ह राशन काड7 इस मीटं ग काड7 क ओर
गुरा7कर दे ख रहा था. जैसे ह मP मीटं ग काड7 पढ़कर खुश हआ
ु , राशन काड7 ने उसक गद7 न दबाकर
कहा- Iय\ बे साले, मीटं ग काड7 के बFचे, तू इस आदमी को सुखी करना चाहता है ? जा, इसका गेहूँ
आधा कर दया गया. बाक काला-बाज़ार से खरदे या भूखा रहे .
बेचारा मीटं ग काड7 दनता से मेर ओर दे ख रहा है . मP Iया कSँ? झूठ\ क रcा का ठे का मुझे थोड़े
ह िमला है . Tजbह> िमला है उनके सामने हाथ जोड़ो. मेरे राशन काड7 को तेर झूठ बदा7ँत नहं हई
ु .
इन हालात म> सुख का झूठG आशा लेकर तू Iय\ आया? मीटं ग काड7 रासंघ के शाTbत ूःताव\ क
तरह सुbदर पर ूभावहन है . राशन काड7 खुरदरा और बदसूरत है , पर इसम> अनाज है . मेरे िलए
यह स^य है . और इस रं गीन िचकनाहट म> स^यहन औपचारक शुभेFछा है . मीटं ग काड7 स^य
होता अगर इसके साथ एक राशन काड7 भी भेजा गया होता और िलखा होता- हम चाहते हP क तुम
सुख ूा करो. इस हे तु हम एक मरे हए
ु आदमी के नाम से जाली राशन काड7 बनवाकर भेज रहे हP .
जब तक धाँधली चले सःता अनाज लेते जाना और सुखी रहना. पकड़े जाने पर हमारा नाम मत
बताना. संकट के वp शुभिचंतक का नाम भूल जाना चाहए.
िमऽ\ से तो मP कहना चाहता हँू क ये काड7 ने भेज>. शुभकामना इस दे श म> कारगर नहं हो रह हP .
यहाँ गोरcा का जुलूस सात लाख का होता है और मनुंय रcा का िसफ7 एक लाख का. दिनया
ु भर
म> शुभकामना बोझ हो गयी है . पोप क शुभकामना से एक बम कम नहं िगरता. िमऽ\ क ह इFछा
से कोई सफल, सुखी और समृ; कैसे हो जाएगा? सफलता के महल का ूवेश ार बंद है . इसम>
पीछे के नाबदान से ह घुसा जा सकता है . Tजbह> घुसना है नाक पर [माल रखकर घुस जाते हP . पास
ह इऽ सने [माल\ के ठे ले खड़े हP . [माल खरदो, नाक पर रखो और नाबदान म> से घुस जाओ
सफलता और सुख के महल म>. एक आदमी खड़ा दे ख रहा है . कोई पूछता है - घुसते Iय\ नहं? वह
कहता है - एक नाक होती तो घुस जाते. हमारा तो हर रोम एक नाक है . कहाँ-कहाँ [माल लपेट>.
एक डर भी है . सफलता, सुख और समृ'; ूा भी हो जाए, तो पता नहं कतने लोग बुरा मान
जाएँ. संकट म> तो शऽु भी मदद कर दे ते हP . िमऽता क सFची परcा संकट म> नहं, उ^कष7 म> होती
है . जो िमऽ के उ^कष7 को बदा7ँत कर सके, वह सFचा िमऽ होता है . संकट म> तपी हई
ु िमऽता
ू गए.
उ^कष7 म> खोट िनकलती मPने दे खी है . एक बेचारे क चार क'वताएँ छप ग, तो चार िमऽ टट
ू गये. दो क'व सUमेलन\ म> जमने से एक ःथानीय क'व के क'व-िमऽ
आठ छपने पर पूरे आठ टट
Sठ गए. तीसरे क'व सUमेलन म> जब वह ‘हट
ू ’ हआ
ु , तब जाकर िमऽता अपनी जगह लौट.
मीटं ग काड पर अपना भरोसा नहं. 20 साल\ से इस दे श को मीटं ग काड के सहारे चलाया गया
है . अUबार लग गए हP . हर ^योहार पर दे शवािसय\ को मीटं ग काड7 दए जाते हP - 15 अगःत और 26
जनवर पर, संसद के अिधवेशन पर, पाट_ के सUमेलन पर. बढ़या सुनहले रं ग\ के मीठे शkद\ के
मीटं स- दे शवािसय\, बस इस साल तुम सुखी और समृ; हो जाओ. मीटं ग काड के ढे र लगे हP ,
मगर राशन काड7 छोटा होता जाता है .
यंय लेखन को साह^य म> ूिता दलाने म> परसाई जी का योगदान अमूNय है .आजाद
के बाद के भारतीय समाज क Tःथित का आईना है उनका लेखन.उनक पcधरता आम
आदमी क तरफ है .
3.अFछG आ^मा फोTNडं ग कुस क तरह होनी चाहये.जSरत पड तब फैलाकर बैठ
गये,नहं तो मोडकर कोने से टका दया.
5.अमरक शासक हमले को सयता का ूसार कहते हP .बम बरसते हP तो मरने वाले
सोचते है ,सयता बरस रह है .
11.शासन का घूंसा कसी बड और पु पीठ पर उठता तो है पर न जाने कस चम^कार
से बड पीठ Tखसक जाती है और कसी दब7
ु ल पीठ पर घूंसा पड़ जाता है .
12.मैदान से भागकर िश'वर म> आ बैठने क सुखद मजबूर का नाम इnजत है .इnजतदार
आदमी ऊंचे झाड़ क ऊंची टहनी पर दसरे
ू के बनाये घोसले म> अंडे दे ता है .
15.कैसी अ त
ु एकता है .पंजाब का गेहूं गुजरात के कालाबाजार म> 'बकता है और
मuयूदे श का चावल कलका के मुनाफाखोर के गोदाम म> भरा है . दे श एक है . कानपुर
का ठग मदरई
ु म> ठगी करता है , हbद भाषी जेबकतरा तिमलभाषी क जेब काटता है
ू गयीं.
और रामेरम का भp बिनाथ का सोना चुराने चल पडा है . सब सीमाय> टट
16.रे डयो टVपणीकार कहता है --'घोर करतल uविन हो रह है .'मP दे ख रहा हंू ,नहं हो रह
है .हम सब लोग तो कोट म> हाथ डाले बैठे हP .बाहर िनकालने का जी नहं होत.हाथ अकड
जाय>गे.लेकन हम नहं बजा रहे हP फर भी तािलयां बज रह हP .मैदान म> जमीन पर बैठे
ु
वे लोग बजा रहे हP ,Tजनके पास हाथ गरमाने को कोट नहं हP .लगता है गणतbऽ ठठरते
हये
ु हाथ\ क तािलय\ पर टका है .गणतbऽ को उbहं हाथ\ क तािलयां िमलती हP ,Tजनके
मािलक के पास हाथ िछपाने के िलये गम7 कपडा नहं है .
18.सरकार कहती है क हमने चूहे पकडने के िलये चूहेदािनयां रखी हP .एकाध चूहेदानी क
हमने भी जांच क.उसमे घुसने के छे द से बडा छे द पीछे से िनकलने के िलये है .चूहा इधर
फंसता है और उधर से िनकल जाता है .'पंजडे बनाने वाले और चूहे पकडने वाले चूह\ से
िमले हP .वे इधर हम> 'पंजडा दखाते हP और चूहे को छे द दखा दे ते हP .हमारे माथे पर िसफ7
चूहेदानी का खच7 चढ रहा है .
19.एक और बडे लोग\ के Iलब म> भाषण दे रहा था.मP दे श क िगरती हालत,मंहगाई
,गरबी,बेकार,ॅाचारपर बोल रहा था और खूब बोल रहा था.मP पूर पीडा से,गहरे आबोश
से बोल रहा था .पर जब मP nयादा मिम7क हो जाता ,वे लोग तािलयां पीटने लगते थे.मPने
कहा हम बहत
ु पितत हP ,तो वे लोग तािलयां पीटने लगे.और मP समारोह\ के बाद रात को
घर लौटता हंू तो सोचता रहता हंू क Tजस समाज के लोग शम7 क बात पर हं से,उसमे
Iया कभी कोई बTbतकार हो सकता है ?होगा शायद पर तभी होगा जब शम7 क बात पर
ू गे .
ताली पीटने वाले हाथ कट> गे और हं सने वाले जबडे टट>
20.िनbदा म> 'वटािमन और ूोटन होते हP .िनbदा खून साफ करती है ,पाचन बया ठGक
करती है ,बल और ःफूित7 दे ती है .िनbदा से मांसपेिशयां पु होती हP .िनbदा पयरया का तो
सफल इलाज है .सbत\ को परिनbदा क मनाह है ,इसिलये वे ःविनbदा करके ःवाःlय
अFछा रखते हP .
21.मP बैठा-बैठा सोच रहा हंू क इस सडक म> से कसका बंगला बन जायेगा?...बड
इमारत\ के पेट से बंगले पैदा होते मPने दे खे हP .दशरथ क रािनय\ को यh क खीर खाने
से पुऽ हो गये थे.पुBय का ूताप अपार है .अनाथालय से हवेली पैदा हो जाती है .
उखड़े खUभे
[कुछ सािथय\ के हवाले से पता चला क कुछ साइट> बैन हो गयी हP । पता नहं यह कतना
सच है लेकन लोग\ ने सरकार को कोसना शुS कर दया। अरे भाई,सरकार तो जो दे श
हत म> ठGक लगेगा वह करे गी न! पता नहं मेर इस बात से आप कतना सहमत हP
लेकन यह है सह बात क सरकार हमेशा दे श हत के िलये सोचती है । मP शायद ठGक से
अपनी बात न समझा सकूँ लेकन मेरे पसंददा लेखक ,यंयकार हरशंकर परसाई ने इसे
अपने एक लेख उखड़े खUभे म> बखूबी बताया है ।
यहां जानकार के िलये बता दया जाये क भारत के ूथम ूधान मंऽी ःव.
ःव.जवाहरलाल
नेहS ने एक बार घोषणा क थी क मुनाफाखोर\ को 'बजली के खUभ\ पर लटका दया
जायेगा।]
सुबह होते ह लोग 'बजली के खUभ\ के पास जमा हो गये। उbह\ने खUभ\ क पूजा
क,आरती उतार और उbह> ितलक कया।
शाम तक वे इं तजार करते रहे क अब मुनाफाखोर टांगे जाय>गे- और अब। पर कोई नहं
टाँगा गया।
लोग जुलूस बनाकर राजा के पास गये और कहा,”महाराज,आपने तो कहा था क
मुनाफाखोर 'बजली के खUभे से लटकाये जाय>गे,पर खUभे तो वैसे ह खड़े हP और
मुनाफाखोर ःवःथ और सानbद हP ।”
राजा ने कहा,”कहा है तो उbह> खUभ\ पर टाँगा ह जायेगा। थोड़ा समय लगेगा। टाँगने के
िलये फbदे चाहये। मPने फbदे बनाने का आड7 र दे दया है । उनके िमलते ह,सब
मुनाफाखोर\ को 'बजली के खUभ\ से टाँग दँ ग
ू ा।
तभी दसरा
ू बोल उठा,”पर वह तो कह रहा था क फाँसी पर लटकाने का ठे का भी मP ह
ले लूँगा।”
राजा ने जवाब दया,”नहं,ऐसा नहं होगा। फाँसी दे ना िनजी cेऽ का उोग अभी नहं हआ
ु
है ।”
राजा ने कहा,”आज से ठGक सोलहव> दन वे तुUह> 'बजली के खUभ\ से लटके दख>गे।”
सोलहव> दन सुबह उठकर लोग\ ने दे खा क 'बजली के सारे खUभे उखड़े पड़े हP । वे है रान
हो गये क रात न आँधी आयी न भूकUप आया,फर वे खUभे कैसे उखड़ गये!
उससे राजा ने कहा,” Iय\ जी तुUह> मालूम है ,मPने आज मुनाफाखोर\ को 'बजली के खUभे
से लटकाने क घोषणा क थी?”
अब इं जीिनयर बुलाया गया। उसने कहा उसे 'बजली इं जीिनयर ने आदे श दया था क
रात म> सारे खUभे उखाड़ दे ना चाहये।
'बजली इं जीिनयर से कैफयत तलब क गयी,तो उसने हाथ जोड़कर कहा,”सेबेटर साहब
का हIम
ु िमला था।”
सेबेटर ने कहा,”साहब ,पूरे शहर क सुरcा का सवाल था। अगर रात को खUभे न हटा
िलये जाते, तो आज पूरा शहर न हो जाता!”
'वशेषh ने िनवेदन कया,” सरकार ,मP 'वशेषh हँू और भूिम तथा वातावरण क हलचल
का 'वशेष अuययन करता हँू । मPने परcण के ारा पता लगाया है क जमीन के नीचे
एक भयंकर ूवाह घूम रहा है । मुझे यह भी मालूम हआ
ु क आज वह 'बजली हमारे
शहर के नीचे से िनकलेगी। आपको मालूम नहं हो रहा है ,पर मP जानता हँू क इस वp
हमारे नीचे भयंकर 'बजली ूवाहत हो रह है । यद हमारे 'बजली के खUभे जमीन म> गड़े
रहते तो वह 'बजली खUभ\ के ारा ऊपर आती और उसक टIकर अपने पावरहाउस क
'बजली से होती। तब भयंकर 'वःफोट होता। शहर पर हजार\ 'बजिलयाँ एक साथ िगरतीं।
तब न एक ूाणी जी'वत बचता ,न एक इमारत खड़ रहती। मPने तुरbत सेबेटर साहब
को यह बात बतायी और उbह\ने ठGक समय पर उिचत कदम उठाकर शहर को बचा
िलया।
लोग बड़ दे र तक सकते म> खड़े रहे । वे मुनाफाखोर\ को 'बNकुल भूल गये। वे सब उस
संकट से अ'वभूत थे ,Tजसक कNपना उbह> द गयी थी। जान बच जाने क अनुभूित से
दबे हये
ु थे। चुपचाप लौट गये।
भोलाराम का जीव
सामने बैठे िचऽगु बार-बार चँमा प\छ, बार-बार थूक से पbने पलट, रTजःटर पर
रTजःटर दे ख रहे थे. गलती पकड़ म> ह नहं आ रह थी. आTखर उbह\ने खीझ कर
रTजःटर इतने जोर से बbद कया क मIखी चपेट म> आ गई. उसे िनकालते हए
ु वे बोले
- "महाराज, रकाड7 सब ठGक है . भोलाराम के जीव ने पाँच दन पहले दे ह ^यागी और
यमदत
ू के साथ इस लोक के िलए रवाना भी हआ
ु , पर यहाँ अभी तक नहं पहँु चा."
यमदत
ू हाथ जोड़ कर बोला - "दयािनधान, मP कैसे बतलाऊं क Iया हो गया. आज तक
मPने धोखा नहं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया. पाँच दन पहले
जब जीव ने भोलाराम का दे ह ^यागा, तब मPने उसे पकड़ा और इस लोक क याऽा
आरUभ क. नगर के बाहर nय\ ह मP उसे लेकर एक तीो वायु-तरं ग पर सवार हआ
ु ^य\
ू कर न जाने कहाँ गायब हो गया. इन पाँच दन\ म> मPने सारा
ह वह मेर चंगुल से छट
ॄZाBड छान डाला, पर उसका कहं पता नहं चला."
धम7राज बोध से बोला - "मूख7 ! जीव\ को लाते-लाते बूढ़ा हो गया फर भी एक मामूली
बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दया."
दत
ू ने िसर झुका कर कहा - "महाराज, मेर सावधानी म> 'बलकुल कसर नहं थी. मेरे
ू सके. पर इस बार तो कोई
इन अयःत हाथ\ से अFछे -अFछे वकल भी नहं छट
इbिजाल ह हो गया."
इसी समय कहं से घूमते-घामते नारद मुिन यहाँ आ गए. धम7राज को गुमसुम बैठे दे ख
बोले - "Iय\ धम7राज, कैसे िचTbतत बैठे हP ? Iया नरक म> िनवास-ःथान क समःया
अभी हल नहं हई
ु ?"
धम7राज ने कहा - "वह समःया तो कब क हल हो गई. नरक म> 'पछले साल\ म> बड़े
गुणी कारगर आ गए हP . कई इमारत\ के ठे केदार हP Tजbह\ने पूरे पैसे लेकर रr इमारत>
बना. बड़े बड़े इं जीिनयर भी आ गए हP Tजbह\ने ठे केदार\ से िमलकर पंचवषय योजनाओं
का पैसा खाया. ओवरसीयर हP , Tजbह\ने उन मजदर\
ू क हाTजर भर कर पैसा हड़पा जो
कभी काम पर गए ह नहं. इbह\ने बहत
ु जNद नरक म> कई इमारत> तान द हP . वह
समःया तो हल हो गई, पर एक बड़ 'वकट उलझन आ गई है . भोलाराम नाम के एक
आदमी क पाँच दन पहले मृ^यु हई
ु . उसके जीव को यह दत
ू यहाँ ला रहा था, क जीव
इसे राःते म> चकमा दे कर भाग गया. इस ने सारा ॄZाBड छान डाला, पर वह कहं नहं
िमला. अगर ऐसा होने लगा, तो पाप पुBय का भेद ह िमट जाएगा."
नारद बोले - "मामला बड़ा दलचःप है . अFछा मुझे उसका नाम पता तो बताओ. मP
पृlवी पर जाता हँू ."
ार पर जाकर उbह\ने आवाज लगाई - "नारायण! नारायण!" लड़क ने दे खकर कहा-
"आगे जाओ महाराज."
नारद ने कहा - "मुझे िभcा नहं चाहए, मुझे भोलाराम के बारे म> कुछ पूछ-ताछ करनी
है . अपनी मां को जरा बाहर भेजो, बेट!"
भोलाराम क प¢ी बाहर आई. नारद ने कहा - "माता, भोलाराम को Iया बीमार थी?"
"Iया बताऊँ? गरबी क बीमार थी. पाँच साल हो गए, प>शन पर बैठे. पर प>शन अभी
तक नहं िमली. हर दस-पbिह दन म> एक दरgवाःत दे ते थे, पर वहाँ से या तो जवाब
आता ह नहं था और आता तो यह क तुUहार प>शन के मामले म> 'वचार हो रहा है .
इन पाँच साल\ म> सब गहने बेच कर हम लोग खा गए. फर बरतन 'बके. अब कुछ नहं
बचा था. िचbता म> घुलते-घुलते और भूखे मरते-मरते उbह\ने दम तोड़ द."
दःख
ु क कथा सुनने क फुरसत नारद को थी नहं. वे अपने मुrे पर आए, "मां, यह तो
बताओ क यहाँ कसी से उन का 'वशेष ूेम था, Tजस म> उन का जी लगा हो?"
oी ने गुरा7 कर नारद क ओर दे खा. बोली - "अब कुछ मत बको महाराज ! तुम साधु
हो, उचIके नहं हो. Tजंदगी भर उbह\ने कसी दसर
ू oी क ओर आँख उठाकर नहं
दे खा."
नारद को दया आ गई थी. वे कहने लगे - "साधुओं क बात कौन मानता है ? मेरा यहाँ
कोई मठ तो है नहं. फर भी मP सरकार दqतर जाऊँगा और कोिशश कSंगा."
वहाँ से चल कर नारद सरकार दझतर पहँु च.े वहाँ पहले ह से कमरे म> बैठे बाबू से
उbह\ने भोलाराम के केस के बारे म> बात> कं. उस बाबू ने उbह> uयानपूवक
7 दे खा और
बोला - "भोलाराम ने दरgवाःत> तो भेजी थीं, पर उन पर वज़न नहं रखा था, इसिलए
कहं उड़ गई ह\गी."
नारद उस बाबू के पास गए. उस ने तीसरे के पास भेजा, तीसरे ने चौथे के पास चौथे ने
पांचवे के पास. जब नारद पFचीस-तीस बाबुओं और अफ़सर\ के पास घूम आए तब एक
चपरासी ने कहा - "महाराज, आप Iय\ इस झंझट म> पड़ गए. अगर आप साल भर भी
यहाँ चIकर लगाते रहे , तो भी काम नहं होगा. आप तो सीधे बड़े साहब से िमिलए. उbह>
खुश कर दया तो अभी काम हो जाएगा."
नारद बड़े साहब के कमरे म> पहँु च.े बाहर चपरासी ऊँघ रहा था. इसिलए उbह> कसी ने
छे ड़ा नहं. 'बना ‘'वTजटं ग काड7 ' के आया दे ख साहब बड़े नाराज हए
ु . बोले - "इसे कोई
मTbदर वTbदर समझ िलया है Iया? धड़धड़ाते चले आए! िचट Iय\ नहं भेजी?"
साहब बोले- "आप हP बैरागी. दझतर\ के रित-रवाज नहं जानते. असल म> भोलाराम ने
गलती क. भई, यह भी एक मTbदर है . यहाँ भी दान पुBय करना पड़ता है . आप
भोलाराम के आ^मीय मालूम होते हP . भोलाराम क दरgवाःत> उड़ रह हP . उन पर वज़न
रTखए."
नारद ने सोचा क फर यहाँ वज़न क समःया खड़ हो गई. साहब बोले - "भई, सरकार
पैसे का मामला है . प>शन का केस बीस\ दqतर\ म> जाता है . दे र लग ह जाती है . बीस\
बार एक ह बात को बीस जगह िलखना पड़ता है , तब पIक होती है . Tजतनी प>शन
िमलती है उतने क ःटे शनर लग जाती है . हाँ, जNद भी हो सकती है मगर..." साहब
[के.
साहब ने कुटल मुसकान के साथ कहा, "मगर वज़न चाहए. आप समझे नहं. जैसे
आपक यह सुbदर वीणा है , इसका भी वज़न भोलाराम क दरgवाःत पर रखा जा सकता
है . मेर लड़क गाना बजाना सीखती है . यह मP उसे दे दं ग
ू ा. साधु-सbत\ क वीणा से तो
और अFछे ःवर िनकलते हP ."
नारद अपनी वीणा िछनते दे ख जरा घबराए. पर फर संभल कर उbह\ने वीणा टे 'बल पर
रख कर कहा - "यह लीTजए. अब जरा जNद उसक प>शन ऑड7 र िनकाल दTजए."
साहब ने ूसbbता से उbह> कुस द, वीणा को एक कोने म> रखा और घBट बजाई.
चपरासी हाTजर हआ
ु .
साहब ने हIम
ु दया - बड़े बाबू से भोलाराम के केस क फ़ाइल लाओ.
थोड़ दे र बाद चपरासी भोलाराम क सौ-डे ढ़-सौ दरgवाःत\ से भर फ़ाइल ले कर आया.
उसम> प>शन के कागजात भी थे. साहब ने फ़ाइल पर नाम दे खा और िनTत करने के
िलए पूछा - "Iया नाम बताया साधु जी आपने?"
नारद समझे क साहब कुछ ऊँचा सुनता है . इसिलए जोर से बोले - "भोलाराम!"
सहसा फ़ाइल म> से आवाज आई - "कौन पुकार रहा है मुझे. पोःटमैन है ? Iया प>शन का
ऑड7 र आ गया?"
नारद ने कहा - "मP नारद हँू . तुUह> लेने आया हँू . चलो ःवग7 म> तुUहारा इं तजार हो रहा
है ."
आवाज आई - "मुझे नहं जाना. मP तो प>शन क दरgवाःत\ पर अटका हँू . यहं मेरा मन
लगा है . मP अपनी दरgवाःत> छोड़कर नहं जा सकता."
शम7 क बात पर ताली पीटना
मुझे भाषण के िलए अIसर बुलाया जाता है । 'वषय यह होते हP - दे श का भ'वंय, छाऽ
समःया, युवा-असंतोष, भारतीय संःकृ ित भी(हालांक िनमंऽण क िच]ठG म> ‘संःकृ ित’
अIसर गलत िलखा होता है ), पर मP जानता हंू Tजस दे श म> हं द-हं सा आंदोलन भी
जोरदार होता है , वहां मP ‘संःकृ ित’ क सह शkद रचना अगर दे खूं तो बेवकूफ के साथ
ह ‘रांश-िोह’ भी कहलाऊंगा। इसिलए जहां तक बनता है , मP भाषण ह दे आता हंू ।
मजे क बात यह है क मुझे धािम7क समारोह\ म> भी बुला िलया जाता है । सनातनी,
वेदाbती, बौ;, जैन सभी बुला लेते हP ; Iय\क इbह> न धम7 से मतलब है , न संत से, न
उसके उपदे श से। ये धम
पदे श को भी समझना नहं चाहते। पर ये साल म> एक-दो बार
सफल समारोह करना चाहते हP । और जानते हP क मुझे बुलाकर भाषण करा दे ने से
समारोह सफल होगा, जनता खुश होगी और उनका जलसा कामयाब हो जाएगा।
पर मेर एक नयी मुसीबत पैदा हो गयी है । जब मP ऐसी बात करता हंू Tजस पर शम7
आनी चाहए, तब उस पर लोग हं सकर ताली पीटने लगते हP ।
मP एक संत क जयंती के समारोह म> अuयc था। मP जानता था क बुलाने वाले लोग
मुझसे भीतर से बहत
ु नाराज रहते हP । यह भी जानता हंू क ये मुझे गंद-गंद गािलयां
दे ते हP , Iय\क राजनीित और समाज के मामले म> मP मुंहफट हो जाता हंू । तब सुनने
वाल\ का दन बोध बड़ा मजा दे ता है । पर उस शाम मेरे गले म> वह लोग मालाएं डाल
रहे थे- यह अFछG और उदा^त बात भी हो सकती है । पर मP जानता था क ये मेरे
यंय, हाःय और कटु उ'pय\ का उपयोग करके उन तीन-चार हजार ौोताओं को ूसbन
करना चाहते हP - याने आयोजन सफल करना चाहते हP - याने बेवकूफ बनाना चाहते हP ।
जयbती एक बांितकार संत क थी। ऐसे संत क Tजसने कहा- खुद सोचो। स^य के
अनेक क\ण होते हP । हर बात म> ‘शायद’ का uयान जSर रखना चाहए। महावीर और
बु; ऐसे संत हए
ु , Tजbहोने कहा- सोचो। शंका करो। ूँन करो। तब स^य को पहचानो।
जSर नहं क वह शाँवत स^य है , जो कभी कसी ने िलख दया था।
'वhान नदारद। गNला कम तौल>गे, मगर ै तवाद, अै तवाद, 'विशंटाै तवाद, मु'p और
पुनज7bम के बारे म> बड़े परे शान रह> गे। कपड़ा कम नाप>गे, दाम nयादा ल>गे, पर पंच
आभूषण के बारे म> बड़े जामत रह> गे।
दगंबर मुिन और ँवेतांबर मुिन आपस म> कैसे दे ख रहे थे, यह मP जांच रहा था। लेखक
क दो नहं सौ आंख> होती हP । दगंबर अपने को सव7हारा का मुिन मानता है और
ँवेतांबर मुिन को संपbन समाज का। यह मP समझ गया- उनके तेवर से।
मPने आरं भ म> कहा भी- “सयता के 'वकास का बम होता है । जब हे Bडलूम, पावरलूम,
कपड़ा िमल नहं थी तब 'वँव के हर समाज का ऋ'ष और शाःता कम से कम कपड़े
पहनता था; Iय\क जो भी अFछे कपड़े बन पाते थे, उbह> सामंत वग7 पहनता था। तब
लंगोट लगाना या नंगा रहना दिनया
ु भर म> संत का आचार होता था।”
पर इसके बाद जब मुिन बोले तो उbह\ने घोर हं सा क शैली म> अहं सा समझायी। कुछ
शkद मुझे अभी भी याद हP , “पाखTBडय\, Iया संत को सट7 फकेट दे ने का समारोह करते
हो? तुUहारे सट7 फकेट से संत को कोई परिमट या नौकर िमल जाएगी? पाप क कमाई
खाते हो। झूठ बोलते हो। स^य क बात करते हो। बेईमानी से परमह करते हो। बताओ
ये चार-पांच मंTजल\ क इमारत> Iया स^य, अहं सा और अपरमह से बनी हP ?”
मP दं ग रह गया। मुिन का चेहरा लाल था बोध से। वे कसी सFचे बांितकार क तरह
बोल रहे थे; Iय\क उbह\ने शरर ढांकने को कपड़ा लेने का कसी से अहसान नहं लेना
था।
लगातार सbनाटा।
और मुिन पूसे बोध के साथ सार बनावट और फरे ब को नंगा कर रहे थे।
अंत म> मुझे अuयcीय भषण दे ना लाTजमी था। मP दे ख रहा था क तीस-चालीस साल के
गुट म> युवक लोग पांच-छ: ठकान\ पर बैठे इं तजार कर रहे थे क मP Iया कहता हंू ।
मPने बहत
ु छोटा धbयवाद जैसा भाषण दया। मुिनय\ और 'वान\ का आभार माना और
अंत म> कहा- “एक बात मP आपके सामने ःवीकार करना चाहता हंू । मPने और आपने तीन
घंटे ऊंचे आदश क, सदाचरण क, ूेम क, दया क बात> सुनीं। पर मP आपके सामने
साफ कहता हंू क तीन घंटे पहले Tजतना कमीना और बेईमान मP था, उतना ह अब भी
हंू । मेर मPने कह द। आप लोग\ क आप लोग जान>।”
इस पर भी Iया हआ
ु - हं सी खूब हई
ु और तािलयां 'पटं।
मP पूर पीड़ा से, गहरे आबोश से बोल रहा था। पर जब मP nयादा मािम7क हो जाता, वे
लोग तािलयां पीटते थे। मPने कहा- हम लोग बहत
ु पितत हP । तो वे ताली पीटने लगे।
और मP इन समारोह\ के बाद रात को घर लौटता हंू , तो सोचता रहता हंू क Tजस समाज
के लोग शम7 क बात पर हं स> और ताली पीट> , उसम> Iया कभी कोई बांितकार हो सकता
है ?
होगा शायद। पर तभी होगा, जब शम7 क बात पर ताली पीटने वाले हाथ कट> गे और
ू गे।
हं सने वाले जबड़े टट>
(यह आ^म ूचार नहं है । ूचार का भार मेरे 'वरोिधय\ ने ले िलया है । मP बर हो गया।
यह लिलत िनबंध है ।)
बहत
ु लोग कहते हP - तुम 'पटे । शुभ ह हआ।
ु पर तुUहारे िसफ7 दो अखबार वIतय छपे।
तुम लेखक हो। एकाध कहानी िलखो। रपोता7ज िलखो। नहं तो कोई लिलत िनबंध िलख
डालो। 'पट भी जाओ और साह^य-रचना भी न हो। यह साह^य के ूित बड़ा अbयाय
है । लोग\ को िमरगी आती है और वे िमरगी पर उपbयास िलख डालते हP । ट-हाउस म> दो
लेखक\ म> िसफ7 मां-बहन क गाली-गलौज हो गयी। दोन\ ने दो कहािनयां िलख डालीं।
दोन\ बT़ढया। एक ने िलखा क पहला नीच है । दसरे
ू ने िलखा- मP नहं, वह नीच है ।
पढ़ने वाल\ ने िनंकष7 िनकाला क दोन\ ह नीच हP । दे खो, साह^य का कतना लाभ
हआ
ु क यह िस; हो गया क दोन\ लेखक नीच हP । फर लोग\ ने दे खा क दोन\ गले
िमल रहे हP । साथ चाय पी रहे हP । दोन\ ने मां-बहन क गाली अपने मन के कलुष से
नहं द थी, साह^य-साधना के िलए द थी। ऐसे लेखक मुझे पसंद हP ।
'पटाई क सहानुभूित के िसलिसले म> जो लोग आये, उनक संgया काफ होती थी। मP
उbह> पान Tखलाता था। जब पान का खच7 बहत
ु बढ़ गया, तो मPने सोचा पीटने वाल\ के
पास जाऊं और कहंू , “जब तुमने मेरे िलए इतना कया है , मेरा यश फैलाया है , तो कम
से कम पान का खच7 दे दो। चाहे तो एक ब>त और मार लो। लोग तो खर\च लग जाय
तो भी पान का खच7 ले लेते हP ।”
मगर एक दलचःप आदमी आये। बोले, “इतने साल\ से िलख रहे हो। Iया िमला? कुछ
लोग\ क तारफ, बस! िलखने से nयादा शोहरत 'पटने से िमली। इसिलए हर लेखक को
साल म> कम से कम एक बार 'पटना चाहए। तुम छ: महने म> एक बार 'पटो। फर
दे खो क 'बना एक शkद िलखे अbतरा7ंशय gयाित के होते हो या नहं। तुम चाहो तो
तुUहारा यह काम मP ह कर सकता हंू ।”
मPशक म> था तो एक सहपाठG रामेँवर से मेरा झगड़ा था। एक दन उसे मP ढकेलते-
ढकेलते कcा क दवार तक ले गया। वह फंस गया था। मPने उसे पीटा। फर दोन\ म>
अFछे संबंध हो गये। ःकूली लड़ाई ःथाई नहं होती। पर वह गांठ बांधे था। हमारे घर से
ःकूल डे ढ़ मील दरू था। एक दन हम दोन\ गपशप करते शाम के झुटपुटे म> आ रहे थे
क वह एकाएक बोला, “अरे , यह रामदास कहां से आ रहा है ? वह दे खो।” मP उस तरफ
दे खने लगा। उसने 'बजली क तेजी से मेर टांग\ म> हाथ डाला और वह पटखनी द क
मP नाले के पुल से नीचे िगर पड़ा। उठा। शरर से ताकत से मP डे वढ़ा पड़ता था। सोचा,
इसे दमचू।ं पर उसने बड़े मजे क बात कह। कहने लगा, “दे खो, अदा-बदा हो गये। अपन
अब पIके दोःत। मPने तुUह> कैसी बT़ढया तरकब िसखायी है ।” मPने भी कहा, “हां यार,
तरकब बT़ढया है । मP काफ दँु मन\ को ठGक कSंगा।” फर मPने चार 'वरोिधय\ को वहं
आम के झुरमुट म> पछाड़ा। तरकब वह- साथ जा रहे हP । एकाएक कहता- अरे , वह उधर
से ँयाम सुंदर आ रहा है । वह उधर दे खने लगता और मP उसक टांग\ म> हाथ डालकर
सड़क के नीचे गढ़े म> फ>क दे ता।
मुझे दो िचT]ठयां िमलीं- ‘खबरदार, कभी कमला कहानी म> आयी तो ठGक कर दये
जाओगे। वह मेर ूेिमका है और तुम उससे कहानी म> हर कुछ करवाते हो। वह ऐसी
नहं है ।’
एक दन संकर गली से घर आ रहा था। आगे गली का मोड़ था। वहं मकान के पीछे
क दवार थी। एक आदमी चुपचाप पीछे से आया और ऐसे जोर से धIका दया क मP
दवार तक पहंु च गया। हाथ आगे बढ़ाकर मPने दवार पर रख दये और िसर बचा िलया,
वरना िसर फूट जाता। बाद म> मालूम हआ
ु क वह शहर का नंबर एक का पहलवान है ।
मPने कमला को 'वमला कर दया। लेखक को नाम से Iया फक7 पड़ता है ।
पर यह जून वाली ताजा 'पटाई बड़ मजेदार रह। मारने वाले आये। पांच-छ: ब>त मारे ।
मPने हथेिलय\ से आंख> बचा लीं। पांच-सात सेकंड म> काम ख^म। वे दो वाIय राजनीित
के बोलकर हवा म> 'वलीन हो गये।
तीन दन बाद अखबार\ म> खबर छपी तो मजे क बात> मेरे कान\ म> शहर और बाहर से
आने लगीं। ःनेह, दख
ु क आती ह थीं। पर-
- अFछा 'पटा।
- 'पटने लायक ह था।
- घोर अहं कार आदमी।
- ऐसा िलखेगा तो 'पटे गा ह।
- जो िलखता है , वह साह^य है Iया? अरे , ूेम कहानी िलख। उसम> कोई नहं
'पटता।
कुछ लेखक\ क ूसbनता मेरे पास तक आयी। उनका कहना था- अब यह Iया िलखेगा?
सब ख^म। हो गया इसका काम-तमाम। बहत
ु आंग मूतता था। पर मPने ठGक वैसा ह
िलखना जार रखा और इस बीच पांच कहािनयां तथा चार िनबंध िलख डाले और एक
डायर उपbयास ितहाई िलख िलया है ।
सहानुभूित वाले बड़े दलचःप होते हP । तरह-तरह क बात> करते हP । बुजुग-7 बीमार-वरंठ
साह^यकार बाबू रामानुजलाल ौीवाःतव ने अपनी मोट छड़ भेजी और िलखा- “अब यह
मेरे काम क नहं रह। मेर दिनयां
ु अब 'बःतर हो गयी है । इस छड़ को साथ रखो।”
एक अपरिचत आये और एक छड़ दे गये। वह गुVती थी, पर भीतर फलक नहं था। मूठ
पर पैने लोहे का ढIकन लगा था, Tजसके कनपट पर एक वार से आदमी पछाड़ खा
जाए।
मेरे चाचा नUबर एक के लठै त थे। वे ल]ठ को तेल 'पलाते थे और उसे दखभं
ु जन कहते
थे। मुहNले के रं गदार को, जो सबको तंगा करता था, उbह\ने पकड़ा। सामने एक पतले
झाड़ से बांधा और वह 'पटाई क क वह हमेशा के िलए ठGक हो गया। मPने ह कहा,
“दादा इसे अब छोड़ दो।” उbह\ने छोड़ दया, मगर कहा, “दे ख मPने दखभं
ु जन से काम
नहं िलया। गड़बड़ क तो दखभं
ु जन अपना काम करे गा।”
वह दखभं
ु जन पता नहं कहां चला गया। उनक मृ^यु हो गयी। पर वे शीशम क अपनी
छड़ छोड़ गये हP ।
मP परे शान। Tजस बात को ढाई महने हो गये, Tजसे मP भूल जाना चाहता हंू , उसी क
पूर तफशीश कर रहा है । कहं यह खुफया 'वभाग का आदमी तो नहं है ? पर Tजसका
सब खुला है , उसे खुफया से Iया डर।
आTखर वे खुले।
कहने लगे, “मुgयमंऽी आपक बात मानते हP । लड़के का तबादला अभी कांकरे हो गया है ।
जरा मुgयमंऽी से कहकर उसका तबादला यहं करवा दTजए।”
'पटे तो तबादला करवाने, िनयु'p कराने क ताकत आ गयी- ऐसा लोग मानने लगे हP ।
मान>। मानने से कौन कसे रोक सकता है । यह Iया कम साह^य क उपलTkध है क
'पटकर लेखक तबादला कराने लायक हो जाये। सन ् 1973 क यह सबसे बड़ साहT^यक
उपलTkध है । पर अकादमी माने तो।
यस सर
एक काफ अFछे लेखक थे। वे राजधानी गए। एक समारोह म> उनक मुgयमंऽी से भ>ट
हो गयी। मुgयमंऽी से उनका परचय पहले से था। मुgयमंऽी ने उनसे कहा- आप मजे म>
तो हP । कोई कंट तो नहं है ? लेखक ने कह दया- कंट बहत
ु मामूली है । मकान का
कंट। अFछा सा मकान िमल जाए, तो कुछ ढं ग से िलखना-पढ़ना हो। मुgयमंऽी ने
कहा- मP चीफ सेबेटर से कह दे ता हंू । मकान आपका ‘एलाट’ हो जाएगा।
मुgयमंऽी ने चीफ सेबेटर से कह दया क अमुक लेखक को मकान ‘एलाट’ करा दो।
सब बाजाkता हआ।
ु पूरा ूशासन मकान दे ने के काम म> लग गया। साल डे ढ़ साल बाद
फर मुgयमंऽी से लेखक क भ>ट हो गई। मुgयमंऽी को याद आया क इनका कोई काम
होना था। मकान ‘एलाट’ होना था।
एक बाड़ा था। बाड़े म> तेरह कराएदार रहते थे। मकान मािलक चौधर साहब पास ह एक
बंगले म> रहते थे।
एक नए कराएदार आए। वे डVट कलेIटर थे। उनके आते ह उनका इितहास भी मुहNले
म> आ गया था। वे इसके पहले वािलयर म> थे। वहां दqतर क लेड टाइ'पःट को लेकर
कुछ मामला हआ
ु था। वे साल भर सःपPड रहे थे। यह मामला अखबार म> भी छपा था।
मामला रफा-दफा हो गया और उनका तबादला इस शहर म> हो गया।
डVट साहब के इस मकान म> आने के पहले ह उनके 'वभाग का एक आदमी मुहNले म>
आकर कह गया था क यह बहत
ु बदचलन, चरऽहन आदमी है । जहां रहा, वहं इसने
बदमाशी क। यह बात सारे तेरह कराएदार\ म> फैल गई।
करदार आपस म> कहते- यह शरफ आदिमय\ का मोहNला है । यहां ऐसा आदमी रहने आ
रहा है । चौधर साहब ने इस आदमी को मकान दे कर अFछा नहं कया।
डVट साहब को मालूम था क मेरे बारे म> खबर इधर पहंु च चुक है । वे यह भी जानते
थे क यहां सब लोग मुझसे नफरत करते हP । मुझे बदमाश मानते हP । वे इस माहौल म>
अड़चन महसूस करते थे। वे हनता क भावना से मःत थे। नीचा िसर कए आते-जाते
थे। कसी से उनक दआ
ु -सलाम नहं होती थी।
इधर मुहNले के लोग आपस म> कहते थे- शरफ\ के मुहNले म> यह बदचलन आ बसा है ।
डVट साहब का िसफ7 मुझसे बोलचाल का संबंध ःथा'पत हो गया था। मेरा परवार नहं
था। मP अकेला रहता था। डVट साहब कभी-कभी मेरे पास आकर बैठ जाते। वे अकेले
रहते थे। परवार नहं लाए थे।
मुहNले के लोग आपस म> कहते थे- शरफ\ के मुहNले म> यह बदचलन आ गया।
दो-तीन दन बाद डVट साहब ने मुझसे कहा- ये जो िमसेज चोपड़ा हP , इनका इितहास
आपको मालूम है ? जानते हP इनक शाद कैसे हई
ु ? तीन आदमी इनसे फंसे थे। इनका पेट
फूल गया। बाक दो शादशुदा थे। चोपड़ा को इनसे शाद करनी पड़।
दसरे
ू दन डVट साहब का िसर थोड़ा और ऊंचा हो गया।
मुहNले वाले अभी भी कह रहे थे- शरफ\ के मुहNले म> कैसा बदचलन आदमी आ बसा।
तीन-चार दन बाद फर डVट साहब ने कहा- ौीवाःतव साहब क लड़क बहत
ु 'बगड़
गई है । मीन होटल म> पकड़ गई थी एक आदमी के साथ।
मुहNले वाले अभी भी कह रहे थे- शरफ\ के मुहNले म> यह कहां का बदचलन आ गया।
तीन-चार दन बाद डVट साहब ने कहा- ये जो पांडे साहब हP , अपने बड़े भाई क बीवी
से फंसे हP । िस'वल लाइं स म> रहता है इनका बड़ा भाई।
मुहNले के लोग अभी भी कहते थे- शरफ\ के मुहNले म> यह बदचलन कहां से आ गया।
डVट साहब ने मुहNले म> लगभग हर एक के बारे म> कुछ पता लगा िलया था। मP नहं
कह सकता क यह सब सच था या उनका गढ़ा हआ।
ु आदमी वे उःताद थे। ऊंचे
कलाकार। हर बार जब वे कसी क बदचलनी क खबर दे ते, उनका िसर और ऊंचा हो
जाता।
अब डVट साहब का िसर पूरा तन गया था। चाल म> अकड़ आ गई थी। लोग\ से दआ
ु
सलाम होने लगी थी। कुछ बात भी कर लेते थे।
एक अशु; बेवकूफ
'बना जाने बेवकूफ बनाना एक अलग और आसान चीज है । कोई भी इसे िनभा दे ता है ।
मगर यह जानते हए
ु क मP बेवकूफ बनाया जा रहा हंू और जो मुझे कहा जा रहा है , वह
सब झूठ है - बेवकूफ बनते जाने का एक अपना मजा है । यह तपःया है । मP इस तपःया
का मजा लेने का आद हो गया हंू । पर यह महं गा मजा है - मानिसक Sप से भी और
इस तरह से भी। इसिलए Tजनक है िसयत नहं है उbह> यह मजा नहं लेना चाहए। इसम>
मजा ह मजा नहं है - क[णा है , मनुंय क मजबूरय\ पर सहानुभूित है , आदमी क
पीड़ा क दा[ण यथा है । यह सःता मजा नहं है । जो है िसयत नहं रखते उनके िलए दो
राःते हP - िचढ़ जाय> या शु; बेवकूफ बन जाय>। शु; बेवकूफ एक दै वी वरदान है , मनुंय
जाित को। दिनया
ु का आधा सुख ख^म हो जाए, अगर शु; बेवकूफ न ह\। मP शु; नहं,
‘अशु;’ बेवकूफ हंू । और शु; बेवकूफ बनने को हमेशा उ^सुक रहता हंू ।
अभी जो साहब आये थे, िनहायत अFछे आदमी हP । अFछG सरकार नौकर म> हP ।
साहT^यक भी हP । क'वता भी िलखते हP । वे एक परिचत के साथ मेरे पास क'व के Sप
म> आये। बात> काय क ह घंटा भर होती रहं- तुलसीदास, सूरदास, गािलब, अनीस
वगैरह। पर मP ‘अशु;’ बेवकूफ हंू , इसिलए काय-चचा7 का मजा लेते हए
ु भी जान रहा था
क भ>ट के बाद काय के िसवाय कोई और बात िनकलेगी। वे मेर तारफ भी करते रहे
और मP बरदाँत करता रहा। पर मP जानता था क वे साह^य के कारण मेरे पास नहं
आये।
मPने उनसे क'वता सुनाने को कहा। आमतौर पर क'व क'वता सुनाने को उ^सुक रहता है ,
पर वे क'वता सुनाने म> संकोच कर रहे थे। क'वता उbह\ने सुनायी, पर बड़े बेमन से। वे
साह^य के कारण आये ह नहं थे- वरना क'वता क फरमाइश पर तो मुदा7 भी बोलने
लगता है ।
मPने कहा- कुछ सुनाइए।
पर ये सnजन क'वता सुनाने म> संकोच कर रहे थे और कह रहे थे- हम तो आपसे कुछ
लेने आये हP ।
मP समझता रहा क ये समाज और साह^य के बारे म> कुछ hान लेने आये हP ।
क'वताएं उbह\ने बड़े बेमन से सुना दं। मPने तारफ क, पर वे ूसbन नहं हए।
ु यह
अचरज क सी बात थी। घटया से घटया साहT^यक सज7क भी ूशंसा से पागल हो
जाता है । पर वे जरा भी ूशंसा से 'वचिलत नहं हए।
ु
उठने लगे तो बोले- डपाट7 म>ट म> मेरा ूमोशन होना है । कसी कारण अटक गया है । जरा
आप सेबेटर से कह दTजए, तो मेरा काम हो जाएगा।
एक ूोफेसर साहब Iलास वन के। वे इधर आये। 'वभाग के डन मेरे घिनंठ िमऽ हP ,
यह वे नहं जानते थे। य\ वे मुझसे पFचीस\ बार िमल चुके थे। पर जब वे डन के साथ
िमले तो उbह\ने मुझे पहचाना ह नहं। डन ने मेरा परचय उनसे करवाया। मPने भी ऐसा
बता7व कया, जैसे यह मेरा उनसे पहला परचय है ।
डन मेरे यार हP । कहने लगे- यार चलो केBटन म>, अFछG चाय पी जाय। अFछा नमकन
भी िमल जाए तो मजा आ जाय।
कहने लगे- साल\ से मेर लालसा थी क आपके दश7न कSं। आज यह लालसा पूण7
हई।
ु (हालांक वे कई बार िमल चुके थे। पर डन सामने थे।)
अंमेजी म> एक बड़ा अFछा मुहावरा है - ‘टे क इट 'वद ए 'पंच ऑफ साNट’- याने थोड़े
नमक के साथ लीTजए। मPने अपनी तारफ थोड़े नमक के साथ ले ली।
शाम को ूोफेसर साहब मेरे घर आये। कहने लगे- डन साहब तो आपके बड़े घिनंठ हP ।
उनसे कहए न क मुझे पेपर दे द> , कुछ कां'पयां भी- और ‘माडरे शन’ के िलए बुला ल>
तो और अFछा है ।
बेचारे Iया जवाब दे ते? अशु; बेवकूफ मP- मजा लेता रहा क वे Iलास वन के अफसर
नहं, चपरासी क तरह मेरे पास से 'वदा हए।
ु बड़ा आदमी भी कतना बेचारा होता है ।
एक दन मई क भर दोपहर म> एक साहब आ गये। भयंकर गम और धूप। मPने सोचा
क कोई भयंकर बात हो गई है , तभी ये इस वIत आये हP । वे पसीना प\छकर 'वयतनाम
क बात करने लगे। 'वयतनाम म> अमरक बब7रता क बात कर रहे थे। मP जानता था
क मP िनIसन नहं हंू । पर वे जानते थे क मP बेवकूफ हंू । मP भी जानता था क इनक
िचंता 'वयतनाम नहं है ।
मPने दे दए और 'वयतनाम क समःया आTखर कुल दस [पये म> िनपट गई।
मPने कहा- बु';जीवी वIतय दे रहे हP । यह काफ है । कल वे ठGक उNटा वIतय भी दे
सकते हP , Iय\क वे बु';जीवी हP ।
मPने कहा- आप जाइए। िनTंत रहए- लड़के के िलए जो मP कर सकता हंू कSंगा।
ू रहे हP । हर
यह 26 जनवर 1972 फर आ गया। यह गणतंऽ दवस है , मगर ‘गण’ टट
ू
गणतंऽ दवस ‘गण’ के टटने या नये ‘गण’ बनने के आंदोलन के साथ आता है । इस
बार आंी और तेलंगाना हP । अगले साल इसी पावन दवस पर कोई और ‘गण’ संकट
आयेगा।
इस पूरे साल म> मPने दो चीज> दे खीं। दो तरह के लोग बढ़े - जादगर
ू और साधु बढ़े । मेरा
अंदाज था, सामाbय आदमी के जीवन के सुभीते बढ़> गे- मगर नहं। बढ़े तो जादगर
ू और
साधु-योगी। कभी-कभी सोचता हंू क Iया ये जादगर
ू और साधु ‘गरबी हटाओ’ ूोमाम
के अंतग7त ह आ रहे हP ! Iया इसम> कोई योजना है ?
रोज अखबार उठाकर दे खता हंू । दो खबर> सामने आती हP - कोई नया जादगर
ू और कोई
नया साधु पैदा हो गया है । उसका 'वhापन छपता है । जादगर
ू आंख\ पर प]ट बांधकर
ःकूटर चलाता है और ‘गरबी हटाओ’ वाली जनता कामधाम छोड़कर, तीन-चार घंटे
आंख\ पर प]ट बांधे जादगर
ू ् को दे खती हजार\ क संgया म> सड़क के दोन\ तरफ खड़
रहती है । ये छोटे जादगर
ू हP । इस दे श म> बड़े बड़े जादगर
ू हP , जो छkबीस साल\ से आंख\
पर प]ट बांधे हP । जब वे दे खते हP क जनता अकुला रह है और कुछ करने पर उताS
है , तो वे फौरन जाद ू का खेल दखाने लगते हP । जनता दे खती है , ताली पीटती है । मP
पूछता हंू - जादगर
ू साहब, आंख\ पर प]ट बांधे राजनैितक ःकूटर पर कधर जा रहे हो?
कस दशा को जा रहे हो- समाजवाद? खुशहाली? गरबी हटाओ? कौन सा गbतय है ? वे
कहते हP - गbतय से Iया मतलब? जनता आंख\ पर प]ट बांधे जादगर
ू का खेल दे खना
चाहती है । हम दखा रहे हP । जनता को और Iया चाहए?
जनता को सचमुच कुछ नहं चाहए। उसे जाद ू के खेल चाहए। मुझे लगता है , ये दो
छोटे -छोटे जादगर
ू रोज खेल दखा रहे हP , इbह\ने ूेरणा इस दे श के राजनेताओं से महण
क होगी। जो छkबीस साल\ से जनता को जाद ू के खेल दखाकर खुश रखे हP , उbह> तीन-
चार घंटे खुश रखना Iया कठन है । इसिलए अखबार म> रोज फोटो दे खता हंू , कसी शहर
म> नये 'वकिसत कसी जादगर
ू क।
मुझे लगता है , छkबीस साल\ म> दे श क जनता क मानिसकता ऐसी बना द गयी है क
जाद ू दे खो और ताली पीटो। चम^कार दे खो और खुश रहो।
भारत-पाक यु; ऐसा ह एक जाद ू था। जरा बड़े ःकेल का जाद ू था, पर था जाद ू ह।
जनता अभी तक ताली पीट रह है ।
हमार ूधानमंऽी कह> गी- इधर भी गरबी हट नहं रह। कमत> बढ़ती जा रह हP । जनता
म> बड़ बेचन
ै ी है । बेकार बढ़ती जा रह है ।
तब दोन\ तय कर> ग-े Iय\ न पंिह दन\ का एक और जाद ू हो जाए। चार-पांच साल दोन\
दे श\ क जनता इस जाद ू के असर म> रहे गी।(दे शभIत माफ कर> - मगर जरा स\च>)
दसरा
ू कमाल इस दे श म> साधु है । अगर जाद ू से नहं मानते और राशन क दकान
ु पर
लाइन लगातार बढ़ रह है , तो लो, साधु लो।
जैसे जादगर\
ू क बाढ़ आयी है , वैसे ह साधुओं क बाढ़ आयी है । इन दोन\ म> कोई
संबंध जSर है ।
साधु कहता है - शरर िमlया है । आ^मा को जगाओ। उसे 'वँवा^मा से िमलाओ। अपने
को भूलो। अपने सFचे ःवSप को पहचानो। तुम सत ्-िचत ्-आनbद हो।
आनंद ह ॄZ है । राशन ॄZ नहं। Tजसने ‘अbनं ॄZ’ कहा था, वह झूठा था। नौिसTखया
था। अंत म> वह इस िनण7य पर पहंु चा क अbन नहं ‘आनbद’ ह ॄZ है ।
सब ॄZ ह ॄZ है ।
साधु का यह कम7 है क मनुंय को ॄZ क तरफ ले जाय और पैसे इक]ठे करे ; Iय\क
‘ॄZ स^यं जगTbमlया।’
26 जनवर आते आते मP यह सोच रहा हंू क ‘हटाओ गरबी’ के नारे को, हटाओ
महं गाई को, हटाओ बेकार को, हटाओ भुखमर को Iया हआ
ु ?
भगत क गत
सारा मुहNला अभी तक याद करता है क भगतजी मंदर म> आधीरात तक भजन करते
थे। हर दो-तीन दन\ म> वे कसी समथ7 ौ;ालु से मंदर म> लाउड-ःपीकर लगवा दे ते
और उस पर अपनी मंडली समेत भजन करते। पव7 पर तो चौबीस\ घंटे लाउड-ःपीकर पर
अखBड कत7न होता। एक-दो बार मुहNले वाल\ ने इस अखBड कोलाहल का 'वरोध कया
तो भगतजी ने भIत\ क भीड़ जमा कर ली और दं गा कराने पर उताS हो गए। वे
भगवान के लाउड-ःपीकर पर ूाण दे ने और ूाण लेने पर तुल गये थे।
ऐसे ईँवर-भIत, Tजbह\ने अरब\ बार भगवान का नाम िलया, नरक म> भेजे गए और
अजािमल, Tजसने एक बार भूल से भगवान का नाम ले िलया था, अभी भी ःवग7 के मजे
लूट रहा है । अंधेर कहां नहं है !
भगतजी बड़े 'वँवास से उस लोक म> पहंु चे। बड़ दे र तक यहां-वहां घूमकर दे खते रहे ।
फर एक फाटक पर पहंु चकर चौकदार से पूछा- ःवग7 का ूवेश-ार यह है न?
चौकदार ने कहा- हां यह है ।
वे आगे बढ़ने लगे, तो चौकदार ने रोका- ूवेश-पऽ यानी टकट दखाइए पहले।
भगतजी को बोध आ गया। बोले- मुझे भी टकट लगेगा यहां? मPने कभी टकट नहं
िलया। िसनेमा मP 'बना टकट दे खता था और रे ल म> भी 'बना टकट बैठता था। कोई
मुझसे टकट नहं मांगता। अब यहां ःवग7 म> टकट मांगते हो? मुझे जानते हो। मP
भगतजी हंू ।
भगतजी उसे ठे लकर आगे बढ़ने लगे। तभी चौकदार एकदम पहाड़ सरखा हो गया और
उसने उbह> उठाकर दqतर क सीढ़ पर खड़ा कर दया।
भगतजी दqतर म> पहंु चे। वहां कोई बड़ा दे वता फाइल> िलए बैठा था। भगतजी ने हाथ
जोड़कर कहा- अहा मP पहचान गया भगवान काित7केय 'वराजे हP ।
फाइल से िसर उठाकर उसने कहा- मP काित7केय नहं हंू । झूठG चापलूसी मत करो। जीवन-
भर वहां तो कुकम7 करते रहे हो और यहां आकर ‘ह> -ह> ’ करते हो। नाम बताओ।
भगतजी ने कहा- मेरा मामला तो 'बNकुल सीधा है । मP सोलह आने धािम7क आदमी हंू ।
िनयम से रोज भगवान का भजन करता रहा हंू । कभी झूठ नहं बोला और कभी चोर
नहं क। मंदर म> इनी Toयां आती थीं, पर मP सबको माता समझता था। मPने कभी
कोई पाप नहं कया। मुझे तो आंख मूंदकर आप ःवग7 भेज सकते हP ।
अिधकार ने कहा- भगतजी आपका मामला उतना सीधा नहं है , Tजतना आप समझ रहे
हP । परमा^मा खुद उसम> दलचःपी ले रहे हP । आपको मP उनके सामने हाTजर कये दे ता
हंू ।
एक चपरासी भगतजी को भगवान के दरबार म> ले चला। भगतजी ने राःते म> ह ःतुित
शुS कर द। जब वे भगवान के सामने पहंु चे तो बड़े जोर-जोर से भजन गाने लगे-
भजन पूरा करके गदगद वाणी म> बोले- अहा, जbम-जbमाbतर क मनोकामना आज पूर
हई
ु है । ूभु, अपूव7 Sप है आपका। Tजतनी फोटो आपक संसार म> चल रह हP , उनम> से
कसी से नहं िमलता।
भगवान ःतुित से ‘बोर’ हो रहे थे। [खाई से बोले- अFछा अFछा ठGक है । अब Iया
चाहते हो, सो बोलो।
भगतजी को इस ूँन से चोट लगी। Tजसके िलए इतना कया, वह पूछता है क तुमने
ऐसा Iया कया! भगवान पर बोध करने से Iया फायदा- यह सोचकर भगतजी गुःसा पी
गये। दनभव से बोले- मP रोज आपका भजन करता रहा।
भगवान ने कहा- वे तो अपनी चीज का 'वhापन करते हP । तुम Iया मेरा 'वhापन करते
थे? मP Iया कोई 'बकाऊ माल हंू ।
भगवान ने कहा- फर अbतया7मी को सुनाने के िलए लाउड-ःपीकर Iय\ लगाते थे? Iया
मP बहरा हंू ? यहां सब दे वता मेर हं सी उड़ाते हP । मेर प^नी मजाक करती है क यह
भगत तुUह> बहरा समझता है ।
भगवान को और गुःसा आया। वे कहने लगे- तुमने कई साल तक सारे मुहNले के लोग\
को तंग कया। तुUहारे कोलाहल के मारे वे न काम कर सकते थे, न चैन से बैठ सकते
थे और न सो सकते थे। उनम> से आधे तो मुझसे घृणा करने लगे हP । सोचते हP , अगर
भगवान न होता तो यह भगत इतना हNला न मचाता। तुमने मुझे कतना बदनाम कया
है !
भगत ने साहस बटोरकर कहा- भगवना आपका नाम ल\ग\ के कान\ म> जाता था, यह तो
उनके िलए अFछा ह था। उbह> अनायास पुBय िमल जाता था।
भगवान हं से। कहने लगे- भगत, तुमने आदिमय\ क ह^या क है । उधर क अदालत से
बच गये, पर यहां नहं बच सकते।
हां, यह मेरे मुहNले का रमानाथ माःटर है । 'पछले साल बीमार से मरा था।– भगतजी ने
'वँवास से कहा।
भगवान बोले- बीमार से नहं, तुUहारे भजन से मरा है । तुUहारे लाउड-ःपीकर से मरा है ।
रमानाथ, तुUहार मृ^यु Iय\ हई
ु ?
रमानाथ ने कहा- ूभु मP बीमार था। डॉIटर ने कहा क तुUह> पूर तरह नींद और आराम
िमलना चाहए। पर भगतजी के लाउडःपीकर पर अखBड कत7न के मारे मP सो न सका,
न आराम कर सका। दसने
ू दन मेर हालत 'बगड़ गयी और चौथे दन मP मर गया।
तभी एक बीस-इIकस साल का लड़का बुलाया गया। उससे पूछा- सुर>ि,तुम कैसे मरे ?
मुBडन
डन
कसी दे श क संसद म> एक दन बड़ हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीितक
समःया नहं थी, बTNक यह था क एक मंऽी का अचानक मुBडन हो गया था। कल तक
उनके िसर पर लंबे घुंघराले बाल थे, मगर रात म> उनका अचानक मुBडन हो गया था।
सदःय\ म> कानाफूसी हो रह थी क इbह> Iया हो गया है । अटकल> लगने लगीं। कसी ने
कहा- शायद िसर म> जूं हो गयी ह\। दसरे
ू ने कहा- शायद दमाग म> 'वचार भरने के
िलए बाल\ का पदा7 अलग कर दया हो। कसी और ने कहा- शायद इनके परवार म>
कसी क मौत हो गयी। पर वे पहले क तरह ूसbन लग रहे थे।
आTखर एक सदःय ने पूछा- अuयc महोदय! Iया मP जान सकता हंू क माननीय मंऽी
महोदय के परवार म> Iया कसी क मृ^यु हो गयी है ?
एक सदःय ने पूछा- अuयc महोदय! Iया माननीय मंऽी को मालूम है क उनका मुBडन
हो गया है ? यद हां, तो Iया वे बताय>गे क उनका मुBडन कसने कर दया है ?
कई सदःय िचNलाये- हआ
ु है ! सबको दख रहा है ।
मंऽी ने कहा- सबको दखने से कुछ नहं होता। सरकार को दखना चाहए। सरकार इस
बात क जांच करे गी क मेरा मुBडन हआ
ु है या नहं।
एक सदःय ने कहा- इसक जांच अभी हो सकती है । मंऽी महोदय अपना हाथ िसर पर
फेरकर दे ख ल>।
सदःय िचNलाये- इसक जांच क Iया जSरत है ? िसर आपका है और हाथ भी आपके
हP । अपने ह हाथ को िसर पर फेरने म> मंऽी महोदय को Iया आप' है ?
मंऽी बोले- मP सदःय\ से सहमत हंू क िसर मेरा है और हाथ भी मेरे हP । मगर हमारे
हाथ परं पराओं और नीितय\ से बंधे हP । मP अपने िसर पर हाथ फेरने के िलए ःवतंऽ नहं
हंू । सरकार क एक िनयिमत काय7ूणाली होती है । 'वरोधी सदःय\ के दबाव म> आकर मP
उस ूणाली को भंग नहं कर सकता। मP सदन म> इस संबंध म> एक वIतय दं ग
ू ा।
सदःय\ ने कहा- यह मामला कुतुब मीनार का नहं जो सदय\ जांच के िलए खड़ रहे गी।
यह आपके बाल\ का मामला है , जो बढ़ते और कटने रहते हP । इसका िनण7य तुरंत होना
चाहए।
मंऽी ने जवाब दया- कुतुब मीनार से हमारे बाल\ क तुलना करके उनका अपमान करने
का अिधकार सदःय\ को नहं है । जहां तक मूल समःया का संबंध है , सरकार जांच के
पहले कुछ नहं कह सकती।
जांच सिमित साल\ जांच करती रह। इधर मंऽी के िसर पर बाला बढ़ते रहे ।
एक दन मंऽी ने जांच सिमित क रपोट7 सदन के सामने रख द।
सदन के दसरे
ू भाग से ‘शम7-शम7’ क आवाज> उठGं। एतराज उठे - यह एकदम झूठ है ।
मंऽी का मुBडन हआ
ु था।
मंऽी मुःकुराते हए
ु उठे और बोले- यह आपका gयाल हो सकता है । मगर ूमाण तो
चाहए। आज भी अगर आप ूमाण दे द> तो मP आपक बात मान लेता हंू ।
ऐसा कहकर उbह\ने अपने घुंघराले बाल\ पर हाथ फेरा और सदन दसरे
ू मसले सुलझाने म>
यःत हो गया।
मP उbह> समझा रहा था क लड़क क शाद म> टमटाम म> यथ7 खच7 मत करो।
पर वे बुजुग7 कह रहे थे- आप ठGक कहते हP , मगर रँतेदार\ म> नाक कट जाएगी।
नाक उनक काफ लंबी थी। मेरा gयाल है , नाक क हफाजत सबसे nयादा इसी दे श म>
होती है । और या तो नाक बहत ु बहत
ु नम7 होती है या छरा ु तेज, Tजससे छोट सी बात से
भी नाक कट जाती है । छोटे आदमी क नाक बहत
ु नाजुक होती है । यह छोटा आदमी
नाक को िछपाकर Iय\ नहं रखता?
कुछ बड़े आदमी, Tजनक है िसयत है , इःपात क नाक लगवा लेते हP और चमड़े का रं ग
चढ़वा लेते हP । कालाबाजार म> जेल हो आए हP औरत खुलेआम दसरे
ू के साथ ‘बाIस’ म>
िसनेमा दे खती है , लड़क का साव7जिनक गभ7पात हो चुका है । लोग उःतरा िलए नाक
काटने को घूम रहे हP । मगर काट> कैसे? नाक तो ःटल क है । चेहरे पर पहले जैसी ह
फट है और शोभा बढ़ा रह है ।
ःमगिलंग म> पकड़े गये हP । हथकड़ पड़ है । बाजार म> से ले जाये जा रहे हP । लोग नाक
काटने को उ^सुक हP । पर वे नाक को ितजोड़ मे रखकर ःमगिलंग करने गये थे। पुिलस
को Tखला-'पलाकर बर होकर लौट> गे और फर नाक पहन ल>गे।
ु होिशयार हP , वे नाक को तलवे म> रखते हP । तुम सारे शरर म> ढंू ढ़ो, नाक ह
जो बहत
नहं िमलती। नाितन क उॆ क दो लड़कय\ से बला^कार कर चुके हP । जालसाजी और
बPक को धोखा दे ने म> पकड़े जा चुके हP । लोग नाक काटने को उतावले हP , पर नाक
िमलती ह नहं। वह तो तलवे म> है । कोई जीवशाःऽी अगर नाक क तलाश भी कर दे
तो तलवे क नाक काटने से Iया होता है ? नाक तो चेहरे पर क कटे , तो कुछ मतलब
होता है ।
कुछ नाक> गुलाब के पौधे क तरह होती हP । कलम कर दो तो और अFछG शाखा बढ़ती है
और फूल भी बT़ढया लगते हP । मPने ऐसी फूलवाली खुशबूदार नाक> बहत
ु दे खीं हP । जब
खुशबू कम होने लगती है , ये फर कलम करा लेते हP , जैसे कसी औरत को छे ड़ दया
और जूते खा गये।
‘जूते खा गये’ अजब मुहावरा है । जूते तो मारे जाते हP । वे खाये कैसे जाते हP ? मगर
भारतवासी इतना भुखमरा है क जूते भी खा जाता है ।
तीन-चार महने बाद वे िमले तो खुश थे। नाक भी पहले से लंबी हो गयी थी। मPने कहा-
नाक तो पहले से लंबी मालूम होती है ।
वे बोले- हां, कुछ बढ़ गयी है । काफ लोग कहते हP , आपने बड़ा बांितकार काम कया।
कुछ 'बरादर वाले भी कहते हP । इसिलए नाक बढ़ गयी है ।
कुछ लोग मPने दे खे हP जो कई साल अपने शहर क नाक रहे हP । उनक नाक अगर कट
जाए तो सारे शहर क नाक कट जाती है । अगर उbह> संसद का टकट न िमले, तो सारा
शहर नकटा हो जाता है । पर अभी मP एक शहर गया तो लोग\ ने पूछा- फलां साहब के
Iया हाल हP ? वे इस शहर क नाक हP । तभी एक मसखरे ने कहा- हां साहब, वे अभी भी
शहर क नाक हP , मगर िछनक हई।
ु (यह वी^स रस है । रस िस;ांत ूेिमय\ को अFछा
लगेगा।)
तो जो भूतपूव7 संपbन बुजुग7 मेरे सामने बैठे थे, वे ूगितशील थे। लड़क का
अbतरजातीय 'ववाह कर रहे थे। वे खऽी और लड़का शु; काbयकुkज। वे खुशी से शाद
कर रहे थे। पर उसम> 'वरोधाभास यह था क शाद ठाठ से करना चाहते थे। बहत
ु लोग
ु
एक परं परा से छटकारा पा लेते हP , पर दसर
ू से बंधे रहते हP । रात को शराब क पाट_ से
कसी ईसाई दोःत के घर आ रहे हP , मगर राःते म> हनुमान का मंदर दख जाए तो
थोड़ा ितलक भी िसंदरू का लगा ल>गे। मेरा एक घोर नाTःतक िमऽ था। हम घूमने
िनकलते तो राःते म> मंदर दे खकर वे कह उठते- हरे राम! बाद म> पछताते भी थे।
तो मP उन बुजुग7 को समझा रहा था- आपके पास [पये हP नहं। आप कज7 लेकर शाद
का ठाठ बनाय>गे। पर कज7 चुकाय>गे कहां से? जब आपने इतना नया कदम उठाया है , क
अbतरजातीय 'ववाह कर रहे हP , तो 'ववाह भी नये ढं ग से कTजए। लड़का काbयकुबज
का है । 'बरादर म> शाद करता तो कई हजार उसे िमलते। लड़के शाद के बाजार म>
मवेशी क तरह 'बकते हP । अFछा मालवी बैल और हरयाणा क भPस ऊंची कमत पर
'बकती हP । लड़का इतना ^याग तो लड़क के ूेम के िलए कर चुका। फर भी वह कहता
है - अदालत जाकर शाद कर लेते हP । बाद म> एक पाट_ कर द> गे। आप आय7-समाजी हP ।
घBटे भर म> राःते म> आय7समाज मंदर म> वैदक रित से शाद कर डािलए। फर तीन-
चार सौ [पय\ क एक पाट_ दे डािलए। लड़के को एक पैसा भी नहं चाहए। लड़क के
कपड़े वगैरह िमलाकर शाद हजार म> हो जाएगी।
वे कहने लगे- बात आप ठGक कहते हP । मगर रँतेदार\ को तो बुलाना ह पड़े गा। फर
जब वे आय>गे तो इnजत के gयाल से सजावट, खाना, भ>ट वगैरह दे नी होगी।
उbह\ने जवाब दया- वे पंजाब म> हP । पटयाला म> ह तीन करबी रँतेदार हP । कुछ
दNली म> हP । आगरा म> हP ।
मPने फर कहा- मP आपसे कहता हंू क दरू से रँतेदार का िनमंऽण पऽ मुझे िमलता है ,
तो मP घबरा उठता हंू ।
सोचता हंू - जो ॄाZण यारह [पये म> शिन को उतार दे , पFचीस [पय\ म> सगोऽ 'ववाह
करा दे , मंगली लड़क का मंगल पंिह [पय\ म> उठाकर शुब के दायरे म> फ>क दे , वह
लन िसतंबर से लेकर माच7 तक सीिमत Iय\ नहं कर दे ता ? मई और जून क भयंकर
गम क लन> गोल Iय\ नहं कर दे ता ? वह कर सकता है । और फर ईसाई और
मुसलमान\ म> जब 'बना लन शाद होती है , तो Iया वर-वधू मर जाते हP ? आठ ूकार
के 'ववाह\ म> जो ‘गंधव7 'ववाह’ है वह Iया है ? वह यह शाद है जो आज होने लगा है ,
क लड़का-लड़क भागकर कहं शाद कर लेते हP । इधर लड़क का बाप गुःसे म> पुिलस म>
रपोट7 करता है क अमुक लड़का हमार ‘नाबािलग’ लड़क को भगा ले गया है । मगर
कुछ नहं होता; Iय\क लड़क मैशक का सट7 फकेट साथ ले जाती है Tजसम> जbम-
तारख होती है ।
वे कहने लगे- नहं जी, रँतेदार\ म> नाक कट जाएगी।
मPने कहा- पटयाला से इतना कराया लगाकर नाक काटने इधर कोई नहं आयेगा। फर
पटयाला म> कट नाक को कौन इधर दे खेगा। काट ल> पटयाला म>।
मPने कहा- दे Tखए जी, आप चाह> तो मP पुरोहत हो जाता हंू और घBटे भर म> शाद करा
दे ता हंू ।
मPने कहा- हां, ॄाZण का बेटा हंू । बुजुग ने सोचा होगा क लड़का नालायक िनकल जाए
और कसी काम-धbधे के लायक न रहे , तो इसे कम से कम स^यनारायण क कथा और
'ववाह 'विध िसखा दो। ये मP बचपन म> ह सीख गया था।
वे हं सने लगे।
उbह\ने सोचा। फर बोले- तरकब ठGक है ! पर इस तरह क धोखाधड़ मुझे पसंद नहं।
दसरे
ू दन मुझे बाहर जाना पड़ा। दो-तीन महने बाद लौटा तो लोग\ ने बताया क
उbह\ने सामान और नकद लेकर शाद कर डाली।