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दशा-महादशाओं का फल

योितष म अ टो री और िवंशो री दो प्रकार की महादशाएँ मा य ह। अ टो री अथार्त 108 वष म सारे ग्रह


की दशाएँ समा त होती ह तथा िवंशो री अथार्त 120 वषर् म सारे ग्रह की दशाएँ समा त होती ह।
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आजकल िवंशो री महादशा प्रणाली ही गणना म है । इसके अनुसार प्र येक ग्रह की दशाओं की अविध अलग-अलग
होती है । क्रमानुसार - सय
ू र् - 6 वषर्, चंद्र-10 वषर्, मंगल - 7 वषर्, राहु - 18 वषर्, गु - 16 वषर्, शिन-19 वषर्, बध
ु - 17 वषर्,
केतु - 7 वषर्, शक्र
ु - 20 वषर्

* ज म के िवचारानस
ु ार जातक ने िजस ग्रह की महादशा म ज म िलया है , उससे अगले क्रम म
दशाएँ िगनी जाती ह।
* सामा यत: 6, 8, 12 के वामी के साथ उपि थत ग्रह या 6, 8, 12 थान म उपि थत ग्रह की
महादशा अ छा फल नहीं दे ती है ।
* कद्र व ित्रकोण म ि थत ग्रह की दशा-महादशा अ छा फल दे ती है ।

* शुभ ग्रह की महादशा म पाप ग्रह की अंतदर् शा अशुभ फल दे ती है मगर पाप ग्रह म शुभ ग्रह

की अंतदर् शा िमला-जल
ु ा फल दे ती है ।
* पाप ग्रह की महादशा म पाप ग्रह की अंतदर् शा या शुभ ग्रह म शुभ ग्रह की अंतदर् शा अ छा

फल दे ती है ।
योितष म अ टो री और
िवंशो री दो प्रकार की
महादशाएँ मा य ह। अ टो री
अथार्त 108 वष म सारे ग्रह
की दशाएँ समा त होती ह तथा
िवंशो री अथार्त 120 वषर् म
सारे ग्रह की दशाएँ समा त
होती ह।

भावानस
ु ार फल -
* लग्नेश की महादशा - वा य अ छा, धन-प्रित ठा म व ृ िध
* धनेश की महादशा - अथर् लाभ मगर शरीर क ट, त्री (प नी) को क ट

* तत
ृ ीयेश की महादशा - भाइय के िलए परे शानी, लड़ाई-झगड़ा
* चतुथश की महादशा - घर, वाहन सख
ु , प्रेम- नेह म व ृ िध
* पंचमेश की महादशा - धनलाभ, मान-प्रित ठा दे ने वाली, संतान सख
ु , माता को क ट
* ष ठे श की महादशा - रोग, शत्र,ु भय, अपमान, संताप

* स तमेश की महादशा - जीवनसाथी को वा य क ट, िचंताकारक


* अ टमेश की महादशा - क ट, हािन, म ृ यु भय

* नवमेश की महादशा - भाग्योदय, तीथर्यात्रा, प्रवास, माता को क ट

* दशमेश की महादशा - रा य से लाभ, पद-प्रित ठा प्राि त, धनागम, प्रभाव व ृ िध, िपता को लाभ

* लाभेश की महादशा - धनलाभ, पत्र


ु प्राि त, यश म व ृ िध, िपता को क ट
* ययेश की महादशा - धनहािन, अपमान, पराजय, दे ह क ट, शत्रु पीड़ा

िवशेष : अ छे भाव के वामी कद्र या ित्रकोण म होने पर ही अ छा प्रभाव दे पाते ह। ग्रह के बुरे प्रभाव को कम
करने के िलए पज
ू ा व मंत्र जाप करना चािहए।

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िवंशो री दशा गणना एवं इसका आप पर प्रभाव - How to
Calculate Vimshottari Dasha and its Effect on Your Life

वैिदक योितष के ग्रं थ म अनेक दशाओं का वणर्न िकया गया ह पर तु सरल, लोकिप्रय, सटीक
एवं सवर्ग्रा य िवंशो री दशा ही है . कृ् णमिू तर् प धित म भी इसी दशा का प्रयोग िकया जाता
ू र् आ मा का, च द्रमा मन का, मंगल बल का, बुध बु िध का, गु
है .सय जीव का, शुक्र त्री का और
शिन आयु का कारक है . फलादे श दे श, काल और पिरि थित को यान म रखकर करना चािहए
फलादे श म पिरि थित का यान रखना आव यक है . जब एक यात्री जंगल से, रे िग तान से, नदी
से और शहर की सड़क एवं गिलय से गज
ु रता है तो तरह-तरह के मनोभाव का अनुभव करता
है . उसी प्रकार हम ज म से म ृ ् यु तक ग्रह के प्रभाव से िविभ न प्रकार की सख
ु द एवं द:ु खद
घटनाओं से प्रभािवत होते है .

ग्रह उ च रािश म हो तो नाम, यश प्रा त होता है तथा ग्रह के अशभ


ु होने पर क ट प्रा त होता
है . ज म नक्षत्र से दशा वामी िकस नक्षत्र म है ये दे खना आव यक है . यिद वह क्षेम, स प ,
िमत्र या अितिमत्र तार म है तो शभ
ु फल प्रा त होते है .

िवंशो री दशा की गणना (Calculating Vimshottari Dasha)


ज म के समय िकतनी दशा शेष है इसकी गणना च द्र प टीकरण से की जाती है (The balance
of dasha at birth is calculated through Moon's longitude). माना ज म समय च द्र मेष रािश म
10 िडग्री 15 िमनट का है . मेष रािश म अि वनी नक्षत्र 0 से 13 िडग्री 20 िमनट तक रहता है .
अथार्त च द्र अि वनी नक्षत्र के 10 िडग्री 15 िमनट तक भोग चुका है . शेष 3 िडग्री 5 िमनट भोगना
बचा है . अि वनी नक्षत्र का वामी केतु है िजसकी दशा 7 वषर् की है . अत: दशा वषर् शेष = 3
िडग्री 5 िमनट = 185 िमनट

गणना म घटी पल का उपयोग नहीं िकया गया है . िडग्री िमनट का उपयोग आधुिनक व सरल है .
हमने 13 िडग्री 20 िमनट को िमनट म बदल िदया तो हम 800 िमनट िमलते है .

महादशा के वषर् (Mahadasha Years)

 सय
ू र् = 6 वषर्

 च द्र = 10 वषर्

 मंगल = 7 वषर्

 बुध = 17 वषर्

 गु = 16 वषर्

 शुक्र = 20 वषर्
 शिन = 19 वषर्

 राहु = 18 वषर्

 केतु = 7 वषर्

अ तर दशा की गणना (Calculating the Antar Dasha)


माना शक्र
ु म शक्र
ु का अ तर िनकालना है तो महादशा वषर् x महादशा वषर् कर. इकाई का तीन
गन
ु ा िदन होगा शेष माह होग. जैसे 20 x 20 = 400, 0 िदन = 40 माह अथार्त 3 वषर् 4 माह का
अ तर होगा. शुक्र म सय
ू र् का अ तर भी इसी प्रकार होगा 20 x 6 = 120 िदन = 12 माह = 1 वषर्

 शुक्र म च द्र का अ तर = 20 x 10 = 200 िदन = 20 माह = 1 वषर् 8 माह

 शुक्र म मंगल का अ तर = 20 x 7 = 140 िदन = 14 माह = 1 वषर् 2 माह

 शुक्र म राहु का अ तर = 20 x 18 = 360 िदन = 36 माह = 3 वषर्

 शुक्र म गु का अ तर = 20 x 16 = 320 िदन = 32 माह = 2 वषर् 8 माह

 शुक्र म शिन का अ तर = 20 x 19 = 380 िदन = 38 माह = 3 वषर् 2 माह

 शुक्र म बुध क अ तर = 20 x 17 = 340 िदन = 34 माह = 2 वषर् 10 माह


 शुक्र म केतु का अ तर = 20 x 7 = 140 िदन = 14 माह = 1 वषर् 2 माह

प्र य तर दशा की गणना (Calculating the Pratyantara Dasha)


यह त ृ ् ीय तर की गणना है . िजस प्रकार 120 वषर् म समान अनप
ु ात म गणना की जाती है ,
उसी प्रकार अ य तर की भी गणना की जाती है . शुक्र म शुक्र का अ तर 3 वषर् 4 माह अथार्त
40 माह है . 120 वषर् म 20 वषर् शुक्र के ह अत: 1 वषर् म 20 / 120 = 1/ 6 अत: 40 माह म = 40 x 1/
6 = 6 माह 20 िदन
इसकी सीधे तरीके से गणना कर तो --

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दशा फल (Vimshottari Dasha Effect)

कई बार ज म कु डली शुभ होने पर भी जातक को शुभ फल प्रा त नहीं होते कभी दशा, कभी
अ तदर् शा व कभी गोचर म ग्रह की ऎसी िवषम ि थित बन जाती है िक जातक याकुल हो
जाता है . ऎसी पिरि थित म उसम आशा व उमंग जगाना ही योितषी की परीक्षा है .

शभ
ु  फलदायी दशा (Dasha with positive results)
जो ग्रह ज म कु डली म के द्र, ित्रकोण, लाभ या धन भाव म ( 1,2,4,5,7,9,10,11व भाव ) ि थत
हो या इन भाव के वामी हो तो इनकी दशा शभ ु फल दे ती है . (The planets located in Kendras,
Trikon, Labh or Dhana bhava, or if it is the lord of these bhavas will give good results in its
dasha)
ग्रह उ च रािश, वरािश या िमत्र रािश म हो. ग्रह शभ
ु ग्रह से यक्
ु त अथवा ट हो तो शभ

फल म व ृ ् िध करते ह.
ग्रह भाव म य म ि थत हो या षडबल म बली ह तो उनकी दशा अ तदर् शा, प्र य तर दशा व
सू म दशा म धन , वा य, सख
ु व स मान िमलता है .
ित्रषडाय या ित्रक भाव म ि थत पाप ग्रह ( सय
ू ,र् मंगल, शिन, राहु ) अथवा द:ु थान के वामी ग्रह
यिद द:ु थान म हो तो भी अपनी दशा व अ तदर् शा मे शुभ फल िदया करते ह.

राहु / केतु भी शुभ फलदायी (Positive results from Rahu and Ketu)


राहु या केतु के द्र म ि थत हो और ित्रकोणेश से स ब ध बना रहे हो तो राजयोग बनाते है . इसी
प्रकार राहु या केतु ित्रकोण म ि थत हो और के द्रे श से स ब ध बना रहे ह तो भी राजयोग
बनाते है . राहु या केतु के द्र, ित्रकोण के अलावा ज म कु डली म िकसी भी भाव म के द्रे श और
ित्रकोणेश से स ब ध बना रहे है शभ
ु फलदायी होते है . ये स ब ध यिु त से, ्ि ट से िकसी भी
प्रकार से बन सकते है .

पाप ग्रह शुभ युक्त या शुभ  ् ट होने पर शुभ (Malefic planets are auspicious when in


association with benefic planets)
नैसिगर्क पाप ग्रह ( सय
ु ,र् शिन, मंगल, राहु ) यिद पाप भाव ( त ृ ् ीय, ष ठ, अ टम व वादश भाव
) म ि थत ह तो अपनी दशा म भाई बहन का नेह सहयोग, रोग ऋण का नाश, बाधा व क ट
की समाि त तथा मान वैभव की व ृ ् िध िदया करते है .
इसी प्रकार पाप भाव या द ु ट भाव (3,6,8,12 भाव ) के वामी कहीं भी बैठ कर यिद शभ
ु ग्रह या
शुभ भाव के वामी से युक्त या ् ट ह तो वह द ु ट ग्रह भी अ नी दशा या भिु क्त म रोग,
पीडा, ़ भय , क ट से मिु क्त िदलाकर धन वैभव बढाएं़ गे.

शुभ ग्रह का दशा फल िवचार (Understanding results from benefic planets)


प्राय: शुभ ग्रह सबसे पहले उस भाव के फल दे ते ह िजस भाव म ये ि थत ह. म य म ये िजस
रािश म ि थत है उसके अनुसार फल दे ते है . अ त म िजन ग्र्ह से ् ट होते ह उन ् ट ग्रह
का फल भी दे ते है .

अशुभ ग्रह  का दशा फल िवचार (Results from Malefic planets)


अशुभ ग्रह सबसे पहले रािश स ब धी फल दे गा िजस रािश म ये ग्रह ि थत है . उसके बाद उस
भाव के कारक व स ब धी फल दे गा िजसम ये पाप ग्रह ि थत है . अ त म िविभ न ग्रह की
इस दशा नाथ या अ तदर् शा नाथ पर पड़ने वाली ्ि ट के अनुसार फल िमलेगा.
उ च ग्रह की दशा (Dasha of exalted planet)
उ च ग्रह की दशा म जातक को मान स मान तथा यश की प्राि त होती है .

नीच ग्रह की दशा (Dasha of debilitated planet)


नीच ग्रह की दशा म जातक को संघष का सामना करना पड़ता है . पर तु यिद ये नीच ग्रह
तीसरे भाव, छठे भाव या एकादश भाव म ि थत ह और इनका नीच भंग भी हो रहा है तो ये
राजयोग दे ते है . इसे नीचभंग राजयोग कहते है .

वक्री ग्रह की दशा (Dasha of retrograde planet)


वक्री ग्रह िजन भाव म ि थत है और िजन भाव के वामी ह उन भाव के कारक व म कमी
ला दे ते ह. वक्री ग्रह बार-बार प्रयास कराते है . वक्री ग्रह की दशा म जातक के जीवन म उतार-
चढाव काफी रहते है .

मंगल नीच (Debilitated Mars)
ककर् रािश म मंगल को नीच माना जाता है . परं तु ककर् लग्न के िलये मंगल योगकारी ग्रह है .
अपनी मेष रािश से चतथ
ु र् ( सख
ु भाव ) म होने से व विृ ् चक से भाग्य भाव म ( नवम भाव
)होने से यापार , यवसाय तथा मान स मान की व ृ ् िध तथा भाग्योदय िकया करता है . मंगल
की दशा अ तदर् शा म जातक लाभ और प्रित ठा पाता है .

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