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Mahipal's journey in

School For Social


Change

सामाजिक परिवर्तन कार्तशाला से पहले मेिी


सोच एक धमत-भीरू (धमत से डिने वाले)
व्यक्ति की थी क्ोोंजक मैं एक जहन्दू परिवाि से
आर्ा हूँ जिस में बच्चे के पै दा होर्े ही िाजर्,
धमत, भगवान, मजहला, पुरुष के काम, शुभ
अशुभ जकस जदन घि से बाहि िाना, जकस
जदन नहीों िाना र्े सब कूट कूट के भि जदर्ा
िार्ा है , श्रुर्ी में काम किने के दौिान काफी
चीिोों में बदलाव आर्ा लेजकन िब इस जशजबि
में गर्ा र्ो शुरुवार् में लगा जक र्े सब क्ा कह
िहे जक दु जनर्ाूँ भगवान ने नहीों बनार्ी. पृथ्वी,
चाूँ द, सूिि, जसर्ािे औि हम सब एक ही चीि
से बने हैं . जिसको बनने में लाखोों किोोंड़ोों वषत लगे. िीवन की उत्पजर् शैवाल से हुई. र्े सब जवस्ताि से पढ़ने
के बाद समझ में आर्ा. हि कोई धमत अपने को बड़ा जदखाने पे लगा हुआ है . हम सोचर्े थे की धमत में
एकर्ा है लेजकन सचाई इस के जबपिीर् है आि हि कोई धमत के नाम पि लड़ मिने को र्ै र्ाि हो िहा है .
धमत ने हमेशा ही लड़ाईर्ाों ही किवाई है . इन्सान ने धर्म को बनाया धर्म ने इन्सान नह ीं. आि िो समाि
में व्यवस्था है र्े सब इन्सान ने अपने फार्दे के जलए ही बनार्े | ऊूँच नीच िार्ी भेदभाव र्े सब एक खास
वगत की बनार्ीों गर्ी व्यवस्था है िो समाि पे थोपी गर्ी|

मनुष्य अपने शुरुवार्ी जदनोों में आिाम से िहर्ा था िैसे िैसे मनुष्य की बुक्ति का जवकास हुवा औि वैसे वैसे
अजधशेष (सिप्लस) भी बढ़र्ा चला गर्ा | अजधशेष (सिप्लस) बड़ा र्ो इस पि अजधकाि िमाने के र्िीके
भी बदलर्े चले गर्े | एक समर् था िब दे श औि दु जनर्ाएों में वस्तु के बदले वस्तु जबजनमर् का चलन
था|लेजकन बाद में र्े सब मुद्रा में बदलाव हो गर्ा|

इस स्कूल में सबसे महत्वपू र्त बार् है दे खने औि सोचने का निरिर्ा बदलना| कुछ चीिें हमें बचपन से ही
जसखार्ी िार्ी है जक लड़की के र्े काम हैं लड़कोों के काम अलग है लड़के कहीों भी िा सकर्े लड़जकर्ोों
को कम बोलना चाजहए| लड़के के कपड़े अलग लड़जकर्ोों के अलग कम से कम हम अपने बच्चोों में र्े
परिवर्तन ला सकर्े हैं | िार्ी व्यवस्था एक ब्राह्मर् वादी सोच की व्यवस्था है | पूोंिी औि अजधशेष पि कब्जे
के जलए िार्ीर् व्यवस्था का जनमात र् जकर्ा गर्ा| िैसे ब्राह्मर् पढ़ने जलखने का काम किें गे क्षजिर् िक्षा का
काम वैश्य व्यापाि का काम शुद्र सेवा काम औि शुद्र को सम्पजर् िखने का भी अजधकाि नहीों था| हमािे
दे श में िब बच्चा पै दा होर्ा है र्ो वो शिीि औि िाजर् ले कि पैदा होर्ा| िाजर् प्रथा ने हमेशा आगे बढ़ने से
िोका|
पहले मैं भी आिक्षर् के क्तखलाफ था, मैं भी सोचर्ा था की इसे ख़त्म कि दे ना चाजहए लेजकन इस जशजवि से
मुझे समझ बनी की र्े क्ोों िरुिी है | जपछले हिािोों सालोों से जिस वगत के साथ इस िाजर् व्यवस्था ने अन्यार्
जकर्ा उस वगत को ऊपि लाने का र्े एक मिहम है | आिक्षर् ने उसी को आगे बढ़ाने का काम जकर्ा | आि
भी हम िब दे श में जकसी बड़े र्ा िािनैजर्क र्न्त्र में दे खर्े हैं र्ो सभी में उच्च वगत के लोग ही बैठे हैं | र्हाूँ
र्क पहुचने में हमािी सामाजिक व्यवस्था ने ही उनकी मदद की क्ोोंजक समाि की मूलभूर् सुजवधाएों उन्ही
लोगोों के पास है | वो केवल अपनी मेहनर् के बल से आगे नहीों बढ़े बक्ति वो जिस वगत में पै दा हुआ उस ने
उसे आगे बढ़ने का अवसि जदर्ा| िो इन वगों को नहीों जमला|
दे श क्ा है र्े सच में नहीों िानर्े थे िब कहा गर्ा की अलग अलग िाज्ोों की सों स्कृजर् पहनावा, िहन-
सहन, खान पान, भाषा, बोली के बािे में जलखो| लेजकन इस कार्तशाला से र्े एकदम से साफ हो िार्ा है
की हि िाज् व क्षेि की भौगोजलक क्तस्थजर् औि मौसम के अनुसाि वहाूँ का पहनावा औि खानपान होर्ा
है |िब हम दे श की बार् किर्े हैं र्ो सभी की बार् किनी चाजहए. इन सब से जमलकि ही दे श बनर्ा है | हम
औि हमािी सिकािें जकसी के ऊपि अपनी िार् थोप नहीों सकर्े , क्ोोंजक हमें दे श में कहीों भी िहने का औि
कुछ भी खाने की स्वर्ोंिर्ा है | जिसका हक़ हमािा सोंजवधान भी हमको दे र्ा है | हम कहर्े हैं जक हमािा दे श
सब से बड़ा लोकर्ाक्तन्त्रक दे श है | लेजकन हम केवल वोट र्क ही सीजमर् हैं | जिस सिकाि को हम बनार्े
वो क्ा लोगोों के जलए काम किर्ी है ? नहीों ! वो र्ो जसफत पूोंिीपजर् वगत के जलए ही काम किर्ी है | स्वर्न्त्रर्ा
के बाद दे श में िो भी कानू न बनार्े गर्े उसमें अजधकर्ि कानून जब्रजटश सिकाि के समर् के बने हुए हैं िो
कानुन अमीि वगत के जलए थे | कानुन बनाने वालोों की िो प्रथाजमकर्ा थी वो भी उसी वगत को फार्दा
पहुचना था| क्ोोंजक उस कमेटी के सभी सदस्य वही थे िो जब्रजटश समर् में उच्च पदोों में र्ा उन रिर्ासर्ोों
के िागीिदाि िहे | वो आि भी िािी है |
मीजडर्ा, आि जिसको हम सोंजवधान का चौथा स्तोंभ मानर्े है वो एक बािाि के रूप में बन चुका है | आि
कोई भी मीजडर्ा स्वर्ों ि रूप से काम नहीों किर्ा | मीजडर्ा आि के समर् में कुछ कापोिे ट घिानोों के हाथोों
में है | र्े वो लोग हैं िो जकसी उच्च वगत र्ा िाज्सत्ता से िुड़े हुए हैं | आि के समर् में मीजडर्ा ही हमािे
जदमाग में एक सोच बना िहा है जक क्ा खिीदना है क्ा खाना, धाजमतकर्ा कट्टिर्ा, जवकास औि सत्ता की
र्िफ एक सोच बना िहा | पूूँिीवाद का र्ह जवकास आि दे श औि दु जनर्ाूँ में स्माटत जसटी बनाने की ओि
बढ़ िहे हैं औि सिकािोों का भी कहना हैं जक हम सभी चीिें आप के जलए शहिोों में उपलब्ध किा दें गे
लेजकन र्े सोंसाधन आर्ें गे कहाूँ से ? कहीों ना कहीों जकसी गाूँ व से आर्ेंगे. िब गाूँ व से आर्ेंगे र्ो लोगोों को
जवस्थाजपर् जकर्ा िार्ेगा. िों गल कटें गे, डे म बनेगे, र्ो उनका क्ा? क्ा उन सभी को भी शहिोों में िहने के
जलए अच्छे घि औि वो सब सुजबधार्ें जमलेगी? क्ा नही वो र्ो इन्ही शहिोों में घिोों में काम किें गे | र्हाूँ
मिदु ि भी र्ो चाजहए| औि मिदु ि भी इन्ही गाूँ व से जमलेंगे| हम जिस भी वस्तु का उगभोग किर्े हैं | अगि
उस के पीछे िा कि कािर् ढूूँढें र्ो पर्ा चलर्ा जक कहीों न कहीों जकसी न जकसी का शोषर् हुआ है | अगि
हम को जवकास ही किना है र्ो क्ोों स्माटत जसटी बनाने पि ही लगे हैं | हमािे सामने दे श में कई ऐसे भी गाूँ व
के माडल हैं िो अपनी आिीजवका अपने गाूँ व से ही चला िहे | र्ो क्ोों न हम गाूँ व को ही स्वावलम्बी बनाने
पि िोि दें ?

अथतव्यवस्था पि हुए सि से उसके वर्त मान ढाों चे को समझने के बाद दे श औि समाि मे व्याप्त आजथतक
असमानर्ा के कािर् समझ मे आर्े । औि र्े जक हम हमािे सोंजवधान के आजथतक समानर्ा के लक्ष्य को पाने
के बिार् उसकी उल्टी जदशा में र्ािा कि िहे है । महज़ 1% लोगोों के पास 70% सोंपजत्त है औि दे श की
आधी से ज्ादा आबादी गिीबी में िीवनर्ापन कि िही है । बेिोज़गािी, भुखमिी, गाूँ वोों से जवस्थापन,
पलार्न औि जकसानोों का आत्महत्या किना आजद सभी बार्ें दे श की पूोंिीवादी अथतव्यवस्था की नाकाजमर्ोों
को दशात र्ी है । हमािी बैंजकोंग व्यवस्था प्रर्ाली जसफत अमीिोों औि उद्योगपजर्र्ोों के जलए काम कि िही
है । अथतव्यवस्था के एक सि के दौिान िब गाूँ व औि जकसानोों की आर् औि खचे जनकले िा िहे थे र्ो र्े
िानकि बहुर् दु ुःख हुआ जक दे श के कई जकसान साथी महज़ 2500 रुपर्े महीने में अपने परिवाि का
खचात चलार्े है | औि एक पू िे गाूँ व की आमदनी शहि के एक उच्च मध्यमवगीर् परिवाि की आमदनी के
बिाबि है । सभी जकसान भाई कज़त र्ले दबे हुए है औि गाूँ वोों से पैसा शहिोों की र्िफ िा िहा है ।औि आि
भी गाूँ व से ही शहिोों में जबिली पानी खाने के जलए फल, अनाि, सब्जी िार्ी है | अगि गाूँ व नहीों िहें गे
जकसानी नहीों होगी र्ो शहिोों का क्ा किें गे|

दे श की हमािी वर्त मान स्कूली जशक्षा प्रर्ाली सभी के जलए उजपर्ोगी नहीों है स्कूलोों में पढाई का ढाों चा िीवन
अनुजपर्ोगी साजबर् हो िही | क्ोों सभी को सभी जबषर् पढ़ने अजनवार्त है | हो सकर्ा है की इों जिजनर्ि के
जलए गजर्र् िरुिी है लेजकन एक जकसान के बच्चे के जलए उसकी आवश्यकर्ा नहीों है औि साथ ही उसके
घि समाि का भी माहौल नहीों है जिसके कािर् वो उस जवषर् में अच्छा नहीों कि पार्ा है जिससे वो कई
बाि आगे नहीों बढ़ पार्ा.
वही ों 'स्कूल फ़ॉि सोशल चेंि' का ढाों चा औि जवषर्वस्तु हमािे िीवन से सीधा सम्बों ध िखर्ी है | िो समाि व िीवन को बे हर्ि
बनाने में उपर्ोगी है । स्कूली व्यवस्था बचपन से ही केवल िटने का काम किार्ी | वहीूँ स्कूल फॉि सोसल चेंि में हमें र्कत जवर्कत
किने के साथ ही खेल औि वै ज्ञाजनक पिजर् से समझने का काम किर्ा है | जिससे दे श समाि में चल िहे आजथतक िािनैजर्क
सामाजिक मुद्ोों को सही र्ौि से दे खने समझने में मदद किर्ा है |

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