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दे हरादू न-संभाग
DEHRADUN REGION
अध्ययन-सामग्री
STUDY MATERIAL
कक्षा: 12
CLASS: 12
वहं दी(केंवद्रक)
HINDI (CORE)
2012-13
केंद्रीय विद्यालय-संगठन
दे हरादू न-संभाग
अध्ययन-सामग्री
कक्षा-12, वहं दी(केंवद्रक)
1
2012-13
अध्ययन-सामग्री: कक्षा-12,
वहं दी(केंवद्रक)
2012-13
संरक्षक
श्री नरे न्द्र वसंह राणा, उपायुक्त, केंद्रीय विद्यालय-संगठन, दे हरादू न-संभाग
सलाहकार
श्री सरदार वसंह चौहान, सहायक आयुक्त, केंद्रीय विद्यालय-संगठन, दे हरादू न-संभाग
निर्दे शक
श्री दे िी प्रसाद ममगाईं, प्राचायय , केंद्रीय विद्यालय, क्रमां क-२ भा.स.वि., हाथीबडकला,
दे हरादू न
सह निर्दे शक
श्रीमती भारती दे िी राणा, प्राचायय , केंद्रीय विद्यालय, आइ.एम्.ए.,दे हरादू न
समन्वयक
श्री अशोक कुमार िार्ष्णेय, उप प्राचायय , केंद्रीय विद्यालय, आइ.एम्.ए.,दे हरादू न
सामग्री-विन्यास
2
डॉ. नीलम सरीन, स्नातकोत्तर वशवक्षका,केंद्रीय विद्यालय, आयु ध-वनमाय णी, रायपुर,
दे हरादू न
डॉ. सुरेन्द्र कुमार शमाय ,स्नातकोत्तर वशक्षक,केंद्रीय विद्यालय, क्रमां क-२, भा.स.वि.,
हाथीबडकला, दे हरादू न
श्रीमती रजनी वसंह,स्नातकोत्तर वशवक्षका, केंद्रीयविद्यालय, आइ.एम्.ए.,दे हरादू न
कोड सं . 302
कुल अंक
100
4
अध्ययि-सामग्री
नहंर्दी (केंनिक) २०१२-१३
अपनित:निधाटररत अंक: २० (गद्य के नलए १५ तथा पद्य के नलए ५ अंक निधाटररत हैं )
अपनित अंश को हल करिे के नलए आवश्यक निर्दे श :
अपनित अंश में २० अंकों के प्रश्न पूछे जाएाँ गे , जो गद्य और पद्य र्दो रूपों में
होंगे| ये प्रश्न एक या र्दो अंकों के होते हैं | उत्तर र्दे ते समय निम्न बातों को
ध्याि में रख कर उत्तर र्दीनजए –
१. नर्दए गए गद्यांश अथवा पद्यांश कोपूछे गए प्रश्नों के साथ ध्याि पूवटक र्दो बार
पनिए |
२. प्रश्नों के उत्तर र्दे िे के नलए सबसे पहले सरलतम प्रश्न का उत्तर र्दीनजए और
नमलिे पर उसको रे खांनकत कर प्रश्न संख्या नलख र्दीनजए, निर सरलतम से
सरलतर को क्रम से छााँट कर रे खांनकत कर प्रश्न संख्या नलखते जाएाँ |
३. उत्तर की भाषा आपकी अपिी भाषा होिी चानहए |
४. गद्यांश में व्याकरण से तथा काव्यांश में स ंर्दयट -बोध से संबंनधत प्रश्नों को भी
पूछा जाता है , इसनलए व्याकरण और काव्यांग की सामान्य जािकारी को अद्यति
रखें |
५. उत्तर को अनधक नवस्तार ि र्दे कर संक्षेप में नलखें |
६. पूछे गए अंश के कथ्य में नजस तथ्य को बार-बार उिाया गया है , उसी के
आधार पर शीषटक नलखें | शीषटक एक या र्दो शब्ों का होिा चानहए |
१. अपनित गद्यांश का िमूिा- निधाटररत अंक: १५
मैं वजस समाज की कल्पना करता हाँ , उसमें गृहथथ संन्यासी और संन्यासी गृहथथ होंगे अथाय त
संन्यास और गृहथथ के बीच िह दू री नहीं रहे गी जो परं परा से चलती आ रही है | संन्यासी
उत्तम कोवट का मनुष्य होता है , क्ोंवक उसमें संचय की िृवत्त नहीं होती, लोभ और स्वाथय
नहीं होता | यही गुण गृहथथ में भी होना चावहए | संन्यासी भी िही श्रेष्ठ है जो समाज के
वलए कुछ काम करे | ज्ञान और कमय को वभन्न करोगे तो समाज में विर्मता उत्पन्न होगी ही
|मुख में कविता और करघे पर हाथ, यह आदशय मुझे पसंद था |इसी की वशक्षा मैं दू सरों
को भी दे ता हाँ और तुमने सुना है या नहीं की नानक ने एक अमीर लडके के हाथ से पानी
पीना अस्वीकार कर वदया था | लोगों ने कहा –“गुरु जी यह लड़का तो अत्यंत संभ्ां त कुल
का है , इसके हाथ का पानी पीने में क्ा दोर् है ?” नानक बोले-“तलहत्थी में मेहनत के
वनशाननहीं हैं | वजसके हाथ में मेहनत के ठे ले पड़े नहीं होते उसके हाथ का पानी पीने में
मैं दोर् मानता हाँ |” नानक ठीक थे | श्रेष्ठ समाज िह है , वजसके सदस्य जी खोलकर
मेहनत करते हैं और तब भी जरूरत से ज्यादा धन पर अवधकार जमाने की उनकी इच्छा
नहीं होती |
प्रश्नों का िमूिा-
(क) ‘गृहथथ संन्यासी और संन्यासी गृहथथ होंगे’ से लेखक का क्ा आशय है ?
२
(ख) संन्यासी को उत्तम कोवट का मनुष्य कहा गया है , क्ों ? १
(ग) श्रेष्ठ समाज के क्ा लक्षण बताए गए हैं ? १
(घ) नानक ने अमीर लड़के के हाथ से पानी पीना क्ों अस्वीकार वकया ? २
(ङ) ‘मुख में कविता और करघे पर हाथ’- यह उन्द्रक्त वकसके वलए प्रयोग की
1
गई है और क्ों ? २
(च) श्रेष्ठ संन्यासी के क्ा गुण बताए गए हैं ?१
(छ) समाज में विर्मता से आप क्ा समझते हैं और यह कब उत्पन्न होती है ?
२
(ज) संन्यासी शब्द का संवध-विच्छे द कीवजए | १
(झ) विर्मता शब्द का विलोम वलख कर उसमें प्रयु क्त प्रत्यय अलग कीवजए | २
(ञ) गद्यां श का उपयुक्त शीर्यक दीवजए | १
उत्तर –
(क) गृहथथ जन संन्यावसयों की भााँ वत धन-संग्रह और मोह से मुक्त रहें तथा संन्यासी जन
गृहथथों की भााँ वत सामावजक कमों में सहयोग करें , वनठल्ले न रहें |
(ख) संन्यासी लोभ, स्वाथय और संचय से अलग रहता है |
(ग) श्रेष्ठ समाज के सदस्य भरपूर पररश्रम करते हैं तथा आिश्यकता से अवधक धन
पर अपना अवधकार नहीं जमाते |
(घ) अमीर लड़के के हाथों में मेहनतकश के हाथों की तरह मेहनत करने के वनशान
नहीं थे और नानक मेहनत करना अवनिायय मानते थे |
(ङ) ”मुख में कविता और करघे में हाथ’ कबीर के वलए कहा गया है | क्ोंवक
उसके घर में जु लाहे का कायय होता था और कविता करना उनका स्वभाि था |
(च) श्रेष्ठ संन्यासी समाज के वलए भी कायय करता है |
(छ) समाज में जब ज्ञान और कमय को वभन्न मानकर आचरण वकए जाते हैं तब उस
समाज में विर्मता मान ली जाती है |ज्ञान और कमय को अलग करने पर ही
समाज में विर्मता फैलती है |
(ज) सम् + न्यासी
(झ) विर्मता – समता, ‘ता’ प्रत्यय
(ञ) संन्यास-गृहथथ
उत्तर –
(क) भार्ा, िेश, प्रदे श वभन्न होते हुए भी सभी के सुख-दु ुःख एक हैं |
(ख) भारत की एक अरब से अवधक जनता अपनी मजबूत भुजाओं से सबकी सुरक्षा
करने में समथय है |
(ग) भारतीयों का व्िहार आपसी सहयोग और अपनेपन से भरा है सब संग-संग
हाँ सते -गाते हैं और संग-संग कवठनाइयों से जूझते हैं |
(घ) सुमधुर संगीत से युक्त |
(ङ) रूपक |
४. पत्-लेखि-निधाटररत अंक: ५
विचारों, भािों, संदेशों एिं सूचनाओं के संप्रेर्ण के वलए पत्र सहज, सरल तथा पारं पररक
माध्यम है । पत्र अनेक प्रकार के हो सकते हैं , पर प्राय: परीक्षाओं में वशकायती-पत्र,
आिेदन-पत्र तथा संपादक के नाम पत्र पूछे जाते हैं । इन पत्रों को वलखते समय वनम्न बातों
का ध्यान रखा जाना चावहए:
पत्-लेखि के अंग:-
१. पता और नर्दिांक- पत्र के ऊपर बाईं ओर प्रे र्क का पता ि वदनां क वलखा जाता
है (छात्र पते के वलए परीक्षा-भिन ही वलखें )
२. संबोधि और पता– वजसको पत्र वलखा जारहा है उसको यथानुरूप संबोवधत वकया
जाता है , औपचाररक पत्रों में पद-नाम और कायाय लयी पता रहता है |
३. नवषय – केिल औपचाररक पत्रों में प्रयोग करें (पत्र के कथ्य का संवक्षप्त रूप,
वजसे पढ़ कर पत्र की सामग्री का संकेत वमल जाता है )
४. पत् की सामग्री – यह पत्र का मूल विर्य है , इसे संक्षेप में सारगवभयत और विर्य
के स्पष्टीकरण के साथ वलखा जाए |
५. पत् की समाप्ति – इसमें धन्यिाद, आभार सवहत अथिा साभार जैसे शब्द वलख
कर लेखक अपने हस्ताक्षर और नाम वलखता है |
4
ध्याि र्दें , छात्र पत्र में कहीं अपना अवभज्ञान (नाम-पता) न दें | औपचाररक पत्रों
में विर्यानुरूप ही अपनी बात कहें | वद्व-अथयक और बोवझल शब्दािली से बचें |
६. भार्ा शुद्ध, सरल, स्पष्ट, विर्यानुरूप तथा प्रभािकारी होनी चावहए।
पत् का िमूिा :
अस्पताल के प्रबंधन पर संतोर् व्क्त करते हुए वचवकत्सा-अधीक्षक को पत्र वलन्द्रखए |
परीक्षा-भवि,
नर्दिांक: -----
मािाथट
नचनकत्सा-अधीक्षक,
कोरोिेशि अस्पताल,
र्दे हरार्दूि |
नवषय : अस्पताल के प्रबंधि पर संतोष व्यक्त करिे के संर्दभट में -
मान्यवर,
इस पत् के माध्यम से मैं आपके नचनकत्सालय के सुप्रबंधि से प्रभानवत हो कर
आपको धन्यवार्द र्दे रहा हाँ | गत सिाह मेरे नपता जी हृर्दय-आघात से पीनड़त होकर
आपके यहााँ र्दाप्तखल हुए थे | आपके नचनकत्सकों और सहयोगी स्टाि िे नजस तत्परता,
कतटव्यनिष्ठा और ईमािर्दारी से उिकी र्दे खभाल तथा नचनकत्सा की उससे हम सभी
पररवारी जि संतुष्ट हैं | हमारा नवश्वास बिा है | आपके नचनकत्सालय का अिुशासि
प्रशंसिीय है |
आशा है जब हम पुिपटरीक्षण हेतु आएाँ गे , तब भी वैसी ही सुव्यवस्था नमलेगी |
साभार !
भवर्दीय
क ख
ग
अभ्यासाथट प्रश्न:-
१. वकसी दै वनक समाचार-पत्र के संपादक के नाम पत्र वलन्द्रखए वजसमें िृक्षों की कटाई
को रोकने के वलए सरकार का ध्यान आकवर्यत वकया गया हो।
२. वहं सा-प्रधान विल्ों को दे ख कर बालिगय पर पड़ने िाले दु ष्प्रभाि का िणयन करते
हुए वकसी दै वनक पत्र के संपादक के नाम पत्र वलन्द्रखए।
३. अवनयवमत डाक-वितरण की वशकायत करते हुए पोस्टमास्टर को पत्र वलन्द्रखए।
४. वलवपक पद हे तु विद्यालय के प्राचायय को आिेदन-पत्र वलन्द्रखए।
५. अपने क्षेत्र में वबजली-संकट से उत्पन्न कवठनाइयों का िणयन करते हुए अवधशासी
अवभयन्ता विद् युत-बोडय को पत्र वलन्द्रखए।
७. दै वनक पत्र के सं पादक को पत्र वलन्द्रखए, वजसमें वहं दी भार्ा की वद्व-रूपता को
समाप्त करने के सुझाि वदए गए हों |
5
५. (क) अनभव्यप्तक्तऔरमाध्यम: (एक-एक अंक के ५ प्रश्न पूछे जाएाँ गे तथा उत्तर
संक्षेप में नर्दए जाएाँ गे )
उत्तम अंक प्राि करिे के नलए ध्याि र्दे िे योग्य बातें-
१. अनभव्यप्तक्त और माध्यम से संबंनधत प्रश्न नवशेष रूप से तथ्यपरक होते हैं अत:
उत्तर नलखते समय सही तथ्यों को ध्याि में रखें।
२. उत्तर नबंर्दुवार नलखें , मुख्य नबं र्दु को सबसे पहले नलख र्दें ।
३. शुद्ध वतटिी का ध्याि रखें ।
४. लेख साफ़-सुथरा एवम पििीय हो ।
५. उत्तर में अिावश्यक बातें ि नलखें ।
६. निबंधात्मक प्रश्नों में क्रमबद्धता तथा नवषय के पूवाटपर संबंध का ध्याि रखें,
तथ्यों तथा नवचारों की पुिरावृनत्त ि करें ।
जिसंचारमाध्यम
१. संचार नकसे कहते हैं ?
‘संचार’ शब्द चर् धातु के साथ सम् उपसगय जोड़ने से बना है - इसका अथय है चलना
या एक थथान से दू सरे थथान तक पहुाँ चना |संचार संदेशों का आदान-प्रदान है |
सूचिाओं, नवचारों और भाविाओं का नलप्तखत, म प्तखक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के
जररये सफ़लता पूवटक आर्दाि-प्रर्दाि करिा या एक जगह से र्दूसरी जगह पहुाँचािा
संचार है।
२. “संचार अिुभवों की साझेर्दारी है ”- नकसिे कहा है ?
प्रवसद्ध संचार शास्त्री विल्बर श्रेम ने |
३. संचार माध्यम से आप क्या समझते हैं ?
संचार-प्रवक्रया को संपन्न करने में सहयोगी तरीके तथा उपकरण संचार के माध्यम
कहलाते हैं ।
४. संचार के मूल तत्त्व नलप्तखए |
संचारक या स्रोत
एन्कोवडं ग (कूटीकरण )
संदेश ( वजसे संचारक प्राप्तकताय तक पहुाँ चाना चाहता है )
माध्यम (संदेश को प्राप्तकताय तक पहुाँ चाने िाला माध्यम होता है जैसे- ध्ववन-
तरं गें, िायु -तरं गें, टे लीफोन, समाचारपत्र, रे वडयो, टी िी आवद)
प्राप्तकत्ताय (डीकोवडं ग कर संदेश को प्राप्त करने िाला)
फीडबैक (संचार प्रवक्रया में प्राप्तकत्ताय की प्रवतवक्रया)
शोर (संचार प्रवक्रया में आने िाली बाधा)
५. संचारकेप्रमुखप्रकारोंकाउल्लेखकीनजए ?
सां केवतकसंचार
मौन्द्रखकसंचार
अमौन्द्रखक संचार
अंत:िैयन्द्रक्तकसंचार
अंतरिैयन्द्रक्तकसंचार
समूहसंचार
जनसंचार
६. जिसंचारसेआपक्यासमझतेहैं ?
6
प्रत्यक्ष संिाद के बजाय वकसी तकनीकी या यां वत्रक माध्यम के द्वारा समाज के
एकविशाल िगयसे संिाद कायम करना जनसंचार कहलाता है ।
७. जिसंचार के प्रमुख माध्यमों का उल्लेख कीनजए |
अखबार, रे वडयो, टीिी, इं टरनेट, वसनेमा आवद.
८. जिसंचार की प्रमुखनवशेषताएाँ नलप्तखए |
इसमें िीडबैक तुरंत प्राप्त नहीं होता।
इसके संदेशों की प्रकृवत साियजवनक होती है ।
संचारक और प्राप्तकत्ताय के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता।
जनसंचार के वलए एक औपचाररक संगठन की आिश्यकता होती है ।
इसमेंढेर सारे द्वारपाल काम करते हैं ।
९. जिसंचार के प्रमुख कायट क ि-क िसेहैं ?
सूचना दे ना
वशवक्षत करना
मनोरं जन करना
वनगरानी करना
एजेंडा तय करना
विचार-विमशय के वलए मंच उपलब्ध कराना
१०. लाइव से क्या अनभप्राय है ?
वकसी घटना का घटना-थथल से सीधा प्रसारण लाइि कहलाता है |
११. भारत का पहला समाचार वाचक नकसे मािा जाता है ?
दे िवर्य नारद
१२. जि संचार का सबसे पहला महत्त्वपूणट तथा सवाटनधक नवस्तृत माध्यम क ि
सा था ?
समाचार-पत्र और पवत्रका
१३. नप्रंट मीनिया के प्रमुख तीि पहलू क ि-क ि से हैं ?
समाचारों को संकवलत करना
संपादन करना
मुद्रण तथा प्रसारण
१४. समाचारों को संकनलत करिे का कायट क ि करता है ?
संिाददाता
१५. भारत में पत्काररता की शुरुआत कब और नकससे हुई ?
भारत में पत्रकाररता की शुरुआत सि १७८० में जेम्स आगस्ट नहकी के बंगाल गजट
से हुई जो कलकत्ता से वनकला था |
१६. नहंर्दी का पहला सािानहक पत् नकसे मािा जाता है ?
वहं दी का पहला साप्तावहक पत्र ‘उदं त मातंड’ को माना जाता है जो कलकत्ता से
पंवडत जुगल वकशोर शु क्ल के संपादन में वनकला था |
१७. आजार्दी से पूवट क ि-क ि प्रमुख पत्कार हुए?
महात्मा गां धी , लोकमान्य वतलक, मदन मोहन मालिीय, गणेश शं कर विद्याथी ,
माखनलाल चतुिेदी, महािीर प्रसाद वद्विेदी , प्रताप नारायण वमश्र, बाल मुकुंद गुप्त
आवद हुए |
१८. आजार्दी से पूवट के प्रमुख समाचार-पत्ों और पनत्काओं के िाम नलप्तखए |
केसरी, वहन्दु स्तान, सरस्वती, हं स, कमयिीर, आज, प्रताप, प्रदीप, विशाल भारत
7
आवद |
१९. आजार्दी के बार्द की प्रमु ख पत्-पनत्काओं तथा पत्कारों के िाम नलखए |
प्रमुख पत्र ---- नि भारत टाइम्स, जनसत्ता, नई दु वनया, वहन्दु स्तान, अमर उजाला,
दै वनक भास्कर, दै वनक जागरण आवद |
प्रमुख पवत्रकाएाँ – धमययुग, साप्तावहक वहन्दु स्तान, वदनमान , रवििार , इं वडया टु डे,
आउट लुक आवद |
प्रमुख पत्रकार- अज्ञेय, रघुिीर सहाय, धमयिीर भारती, मनोहरश्याम जोशी, राजेन्द्र
माथुर, प्रभार् जोशी आवद ।
अन्य महत्त्वपूणट प्रश्न:
१. जनसंचार और समूह संचार का अंतर स्पष्ट कीवजए ?
२. कूटिाचन से आप क्ा समझते हैं ?
३. कूटीकरण वकसे कहते हैं ?
४. संचारक की भूवमका पर प्रकाश डावलए ।
५. फीडबैक से आप क्ा समझते हैं ?
६. शोर से क्ा तात्पयय है ?
७. औपचाररक संगठन से आप क्ा समझते हैं ?
८. सनसनीखेज समाचारों से सम्बंवधत पत्रकाररता को क्ा कहते हैं ?
९. कोई घटना समाचार कैसे बनती है ?
१०. संपादकीय पृ ष्ठ से आप क्ा समझते हैं ?
११. मीवडया की भार्ा में द्वारपाल वकसे कहते हैं ?
पत्काररता के नवनवध आयाम
१. पत्काररताक्याहै ?
ऐसी सूचनाओं का संकलन एिं संपादन कर आम पाठकों तक पहुाँ चाना, वजनमें अवधक
से अवधक लोगों की रुवच हो तथा जो अवधक से अवधक लोगों को प्रभावित करती हों,
पत्रकाररताकहलाता है ।(र्दे श-नवर्दे श में घटिे वाली घटिाओं की सूचिाओं को
संकनलत एवं संपानर्दत कर समाचार के रूप में पािकों तक पहुाँचािे की
नक्रया/नवधा को पत्काररता कहते हैं )
२. पत्कारीय लेखि तथा सानहप्तिक सृजिात्मक लेखि में क्या अंतर है ?
पत्रकारीय लेखन का प्रमुख उद्दे श्य सूचना प्रदान करना होता है , इसमें तथ्यों की
प्रधानता होती है , जबवक सावहन्द्रत्यक सृजनात्मक लेखन भाि, कल्पना एिं सौंदयय -प्रधान
होता है ।
३. पत्काररता के प्रमुख आयाम क ि-क ि से हैं ?
संपादकीय, िोटो पत्रकाररता, काटू य न कोना , रे खां कन और काटोग्राि |
४. समाचारनकसेकहतेहैं ?
समाचार वकसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की ररपोटय है ,वजसमें अवधक
से अवधक लोगों की रुवच हो और वजसका अवधक से अवधक लोगों पर प्रभाि पड़ता
हो ।
५. समाचारके तत्त्वों को नलप्तखए |
पत्रकाररता की दृवष्ट से वकसी भी घटना, समस्या ि विचार को समाचार का रूप धारण
करने के वलए उसमें वनम्न तत्त्ों में से अवधकां श या सभी का होना आिश्यक होता है -
िवीिता, निकटता, प्रभाव, जिरुनच, संघषट , महत्त्वपूणट लोग, उपयोगी
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जािकाररयााँ , अिोखापि आवद ।
६. िे िलाइिसेआपक्यासमझतेहैं ?
समाचार माध्यमों के वलए समाचारों को किर करने के वलए वनधाय ररत समय-सीमा
कोडे डलाइनकहते हैं ।
७. संपार्दि से क्या अनभप्राय है ?
प्रकाशन के वलए प्राप्त समाचार-सामग्री से उसकी अशुन्द्रद्धयों को दू र करके पठनीय
तथा प्रकाशन योग्य बनाना संपादन कहलाता है ।
८. संपार्दकीयक्याहै ?
संपादक द्वारा वकसी प्रमुख घटना या समस्या पर वलखे गए विचारात्मक लेख को, वजसे
संबंवधत समाचारपत्र की राय भी कहा जाता है , संपादकीय कहते हैं ।संपादकीय वकसी
एक व्न्द्रक्त का विचार या राय न होकर समग्र पत्र-समूह की राय होता है , इसवलए
संपादकीय में सं पादक अथिा लेखक का नाम नहीं वलखा जाता ।
९. पत्काररता के प्रमुखप्रकारनलप्तखए |
खोजी पत्रकाररता
विशेर्ीकृत पत्रकाररता
िॉचडॉग पत्रकाररता
एडिोकेसी पत्रकाररता-
पीतपत्रकाररता
पेज थ्री पत्रकाररता
१०. खोजी पत्काररता क्याहै ?
वजसमेंआम तौर पर साियजवनक महत्त् के मामलों,जैसे-भ्ष्टाचार, अवनयवमतताओं
और गड़बवड़यों की गहराई से छानबीन कर सामने लाने की कोवशश की जाती
है । न्द्रस्टंग ऑपरे शन खोजी पत्रकाररता का ही एक नया रूप है ।
११. वॉचिॉगपत्काररता से आप क्या समझते हैं ?
लोकतंत्र में पत्रकाररता और समाचार मीवडया का मुख्य उत्तरदावयत्व सरकार के
कामकाज पर वनगाह रखना है और कोई गड़बड़ी होने पर उसका परदािाश
करना होता है , परं परागत रूप से इसे िॉचडॉग पत्रकाररता कहते हैं ।
१२. एिवोकेसी पत्काररता नकसेकहतेहैं ?
इसे पक्षधर पत्रकाररता भी कहते हैं । वकसी खास मुद्दे या विचारधारा के पक्ष में
जनमत बनाने केवलए लगातार अवभयान चलाने िाली पत्रकाररता को एडिोकेसी
पत्रकाररता कहते हैं ।
१३. पीतपत्काररतासेआपक्यासमझतेहैं ?
पाठकों को लुभाने के वलए झूठी अििाहों, आरोपों-प्रत्यारोपों, प्रेमसंबंधों आवद
से संबंवधत सनसनीखेज समाचारों से संबंवधत पत्रकाररता को पीतपत्रकाररता
कहते हैं ।
१४. पेज थ्री पत्काररता नकसेकहतेहैं ?
ऐसी पत्रकाररता वजसमें िैशन, अमीरों की पावटय यों , महविलों और जानेमाने
लोगों के वनजी जीिन के बारे में बताया जाता है ।
१५. पत्काररता के नवकास में क ि-सा मूल भाव सनक्रय रहता है ?
वजज्ञासा का
१६. नवशेषीकृत पत्काररता क्या है ?
वकसी विशेर् क्षेत्र की विशेर् जानकारी दे ते हुए उसका विश्लेर्ण करना
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विशेर्ीकृत पत्रकाररता है |
१७. वैकप्तिक पत्काररता नकसे कहते हैं ?
मुख्य धारा के मीवडया के विपरीत जो मीवडया थथावपत व्िथथा के विकल्प को
सामने लाकर उसके अनुकूल सोच को अवभव्क्त करता है उसे िैकन्द्रल्पक
पत्रकाररता कहा जाता है ।आम तौर पर इस तरह के मीवडया को सरकार और
बड़ीपूाँजी का समथयन प्राप्त नहीं होता और न ही उसे बड़ी कंपवनयों के विज्ञापन
वमलते हैं ।
१८. विशेर्ीकृत पत्रकाररता के प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख कीवजए |
संसदीय पत्रकाररता
न्यायालय पत्रकाररता
आवथयक पत्रकाररता
खेल पत्रकाररता
विज्ञान और विकास पत्रकाररता
अपराध पत्रकाररता
फैशन और वफल् पत्रकाररता
अन्य महत्त्वपूणट प्रश्न :
१. पत्रकाररता के विकास में कौन-सा मूल भाि सवक्रय रहता है ?
२. कोई घटना समाचार कैसे बनती है ?
३. सूचनाओं का संकलन, संपादन कर पाठकों तक पहुाँ चाने की वक्रया को क्ा कहते हैं ?
४. सम्पादकीय में सम्पादक का नाम क्ों नहीं वलखा जाता ?
५. वनम्न के बारे में वलन्द्रखए –
(क) डे ड लाइन
(ख) फ्लैश/ब्रेवकंग न्यूज
(ग) गाइड लाइन
(घ) लीड
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नवनभन्न माध्यमों के नलए लेखि
नप्रंट माध्यम (मुनित माध्यम)-
१. नप्रंट मीनिया से क्या आशय है ?
छपाई िाले संचार माध्यम को वप्रंट मीवडया कहते हैं | इसे मुिण-माध्यम भी
कहा जाता है | समाचार-पत्र ,पवत्रकाएाँ , पुस्तकें आवद इसके प्रमुख रूप हैं |
२. जिसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुरािा माध्यम क ि-सा है ?
जनसंचार के आधुवनक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम वप्रंट माध्यम है |
३. आधुनिक छापाखािे का आनवष्कार नकसिे नकया ?
आधुवनक छापाखाने का आविष्कार जमयनी के गुटेनबगय ने वकया।
४. भारत में पहला छापाखािा कब और कहााँ पर खुला था ?
भारत में पहला छापाखाना सन १५५६ में गोिा में खुला, इसे ईसाई वमशनररयों ने
धमय-प्रचार की पुस्तकें छापने के वलए खोला था |
५. जिसंचार के मुनित माध्यम क ि-क ि से हैं ?
मुवद्रत माध्यमों के अन्तगयत अखबार, पवत्रकाएाँ , पुस्तकें आवद आती हैं ।
६. मुनित माध्यम की नवशेषताएाँ नलप्तखए |
छपे हुए शब्दों में थथावयत्व होता है , इन्हें सुविधानुसार वकसी भी प्रकार से
पढाा़ जा सकता है ।
यह माध्यम वलन्द्रखत भार्ा का विस्तार है ।
यह वचंतन, विचार- विश्लेर्ण का माध्यम है ।
७. मुनित माध्यम की सीमाएाँ (र्दोष) नलप्तखए |
वनरक्षरों के वलए मुवद्रत माध्यम वकसी काम के नहीं होते।
ये तुरंत घटी घटनाओं को संचावलत नहीं कर सकते।
इसमें स्पेस तथा शब्द सीमा का ध्यान रखना पड़ता है ।
इसमें एक बार समाचार छप जाने के बाद अशुन्द्रद्ध-सुधार नहीं वकया जा
सकता।
८. मुनित माध्यमों के लेखि के नलए नलखते समय नकि-नकि बातों का ध्याि
रखा जािा चानहए |
भार्ागत शुद्धता का ध्यान रखा जाना चावहए।
प्रचवलत भार्ा का प्रयोग वकया जाए।
समय, शब्द ि थथान की सीमा का ध्यान रखा जाना चावहए।
लेखन में तारतम्यता एिं सहज प्रिाह होना चावहए।
11
रे नियो (आकाशवाणी)
१. इलैक्ट्रानिक माध्यम से क्या तात्पयट है ?
वजस जन संचार में इलैक्ट्रावनक उपकरणों का सहारा वलया जाता है इलैक्ट्रावनक माध्यम
कहते हैं । रे वडयो, दू रदशयन , इं टरनेट प्रमुख इलैक्ट्रावनक माध्यम हैं ।
२. आल इं निया रे नियो की नवनधवत स्थापिा कब हुई ?
सन १९३६ में
३. एफ़.एम. रे नियो की शुरुआत कब से हुई ?
एि.एम. (विक्वेंसी माड्युलेशन) रे वडयो की शु रूआत सन १९९३ से हुई ।
४. रे नियो नकस प्रकार का माध्यम है ?
रे वडयो एक इलैक्ट्रोवनक श्रव् माध्यम है । इसमें शब्द एिं आिाज का महत्त् होता है ।
यह एक एक रे खीय माध्यम है ।
५. रे नियो समाचार नकस शैली पर आधाररत होते हैं ?
रे वडयो समाचार की संरचना उल्टावपरावमड शैली पर आधाररत होती है ।
६. उल्टा नपरानमि शैली क्या है ? यह नकतिे भागों में बाँटी होती है ?
वजसमें तथ्यों को महत्त् के क्रम से प्रस्तुत वकया जाता है , सियप्रथम सबसे ज्यादा
महत्त्पूणय तथ्य को तथा उसके उपरां त महत्त् की दृवष्ट से घटते क्रम में तथ्यों को
रखा जाता है उसे उल्टा वपरावमड शैली कहते हैं । उल्टावपरावमड शै ली में समाचार
को तीन भागों में बााँ टा जाता है -इं टरो, बााँ डी और समापन।
७. रे नियो समाचार-लेखि के नलए नकि-नकि बुनियार्दी बातों पर ध्याि नर्दया जािा
चानहए?
समाचार िाचन के वलए तैयार की गई कापी साि-सुथरी ओ टाइप्ड कॉपी
हो।
कॉपी को वटर पल स्पेस में टाइप वकया जाना चावहए।
पयाय प्त हावशया छोडाा़ जाना चावहए।
अंकों को वलखने में सािधानी रखनी चावहए।
संवक्षप्ताक्षरों के प्रयोग से बचा जाना चावहए।
टे लीनवजि(र्दूरर्दशट ि) :
१. र्दूरर्दशटि जि संचार का नकस प्रकार का माध्यम है ?
र्दूरर्दशटि जनसंचार का सबसे लोकवप्रय ि सशक्त माध्यम है । इसमें ध्ववनयों के साथ-
साथ दृश्यों का भी समािेश होता है । इसके वलए समाचार वलखते समय इस बात
का ध्यान रखा जाता है वक शब्द ि पदे पर वदखने िाले दृश्य में समानता हो।
२. भारत में टे लीनवजि का आरं भ और नवकास नकस प्रकार हुआ ?
भारत में टे लीविजन का प्रारं भ १५ वसतंबर १९५९ को हुआ । यूनेस्को की एक शैवक्षक
पररयोजना के अन्तगयत वदल्ली के आसपास के एक गााँ ि में दो टी.िी. सैट लगाए
गए, वजन्हें २०० लोगों ने दे खा । १९६५ के बाद विवधित टीिी से िा आरं भ हुई ।
१९७६ में दू रदशयन नामक वनकाय की थथापना हुई।
३. टी०वी० खबरों के नवनभन्न चरणों को नलप्तखए ।
दू रदशयन मे कोई भी सूचना वनम्न चरणों या सोपानों को पार कर दशयकों तक पहुाँ चती
है ।
(१) फ़्लैश या ब्रेवकंग न्यूज (समाचार को कम-से -कम शब्दों में दशय कों तक
तत्काल
पहुाँ चाना)
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(२)डराई एं कर (एं कर द्वारा शब्दों में खबर के विर्य में बताया जाता है )
(३) िोन इन (एं कर ररपोटय र से िोन पर बात कर दशयकों तक सूचनाएाँ पहुाँ चाता है
)
(४) एं कर-विजुअल(समाचार के साथ-साथ संबंवधत दृश्यों को वदखाया जाना)
(५) एं कर-बाइट(एं कर का प्रत्यक्षदशी या संबंवधत व्न्द्रक्त के कथन या बातचीत
द्वारा प्रामावणक खबर प्रस्तुत करना)
(६) लाइि(घटनाथथल से खबर का सीधा प्रसारण)
(७) एं कर-पैकेज (इसमें एं कर द्वारा प्रस्तुत सूचनाएाँ ; संबंवधत घटना के दृश्य,
बाइट,
ग्राविक्स आवद द्वारा व्िन्द्रथथत ढं ग से वदखाई जाती हैं )
इं टरिेट
१. इं टर िेट क्या है ? इसके गुण-र्दोषों पर प्रकाश िानलए ।
इं टरनेट विश्वव्ापी अंतजाय ल है , यह जनसंचार का सबसे निीन ि लोकवप्रय
माध्यम है । इसमें जनसंचार के सभी माध्यमों के गुण समावहत हैं । यह जहााँ
सूचना, मनोरं जन, ज्ञान और व्न्द्रक्तगत एिं साियजवनक सं िादों के आदान-प्रदान
के वलए श्रेष्ठ माध्यम है , िहीं अश्लीलता, दु ष्प्रचारि गंदगी िैलाने का भी
जररया है ।
२. इं टरिेट पत्काररताक्या है ?
इं टरनेट(विश्व्व्व्ापी अंतजाय ल) पर समाचारों का प्रकाशन या आदान-प्रदान
इं टरनेट पत्रकाररता कहलाता है । इं टरनेट पत्रकाररता दो रूपों में होती है ।
प्रथम- समाचार संप्रेर्ण के वलए नेट का प्रयोग करना । दू सरा- ररपोटय र अपने
समाचार को ई-मेल द्वारा अन्यत्र भेजने ि समाचार को संकवलत करने तथा
उसकी सत्यता,विश्वसनीयता वसद्ध करने के वलए करता है ।
३. इं टरिेट पत्काररता को और नकि-नकि िामों से जािा जाता है ?
ऑनलाइन पत्रकाररता, साइबरपत्रकाररता,िेब पत्रकाररता आवद नामों से ।
४. नवश्व-स्तर पर इं टरिेट पत्काररता का नवकास नकि-नकि चरणों में हुआ ?
विश्व-स्तर पर इं टरनेट पत्रकाररता का विकास वनम्नवलन्द्रखत चरणों में हुआ-
प्रथम चरण------- १९८२ से १९९२
वद्वतीय चरण------- १९९३ से २००१
तृतीय चरण------- २००२ से अब तक
अभ्यासाथट प्रश्न:
१. भारत में पहला छापाखान वकस उद्दे श्य से खोला गया ?
२. गुटेनबगय को वकस क्षेत्र में योगदान के वलए याद वकया जाता है ?
३. रे वडयो समाचर वकस शैली में वलखे जाते हैं ?
४. रे वडयो तथा टे लीविजन माध्यमों में मुख्य अंतर क्ा है ?
५. एं कर बाईट क्ा है ?
६. समाचार को संकवलत करने िाला व्न्द्रक्त क्ा कहलाता है ?
७. नेट साउं ड वकसे कहते हैं ?
८. ब्रेवकंग न्यूज से आप क्ा समझते हैं ?
पत्कारीय लेखि के नवनभन्न रूप और लेखि प्रनक्रया
१. पत्कारीय लेखि क्या है ?
समाचार माध्यमों मे काम करने िाले पत्रकार अपने पाठकों तथा श्रोताओं तक
सूचनाएाँ पहुाँ चाने के वलए लेखन के विवभन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं , इसे ही
पत्रकारीय लेखन कहते हैं । पत्रकारीय लेखन का संबंध समसामवयक विर्यों, विचारों ि
घटनाओं से है । पत्रकार को वलखते समय यह ध्यान रखना चावहए िह सामान्य जनता
के वलए वलख रहा है , इसवलए उसकी भार्ा सरल ि रोचक होनी चावहए। िाक् छोटे
ि सहज हों। कवठन भार्ा का प्रयोग नहीं वकया जाना चावहए। भार्ा को प्रभािी बनाने
के वलए अनािश्यक विशेर्णों,जागटन्स(अप्रचनलत शब्ावली) और क्लीशे
(नपष्टोप्तक्त, र्दोहराव) का प्रयोग नहीं होना चवहए।
२. पत्कारीय लेखि के अंतगटत क्या-क्या आता है ?
पत्रकररता या पत्रकारीय लेखन के अन्तगयत सम्पादकीय, समाचार, आलेख, ररपोटय ,
िीचर, स्तम्भ तथा काटू य न आवद आते हैं
३. पत्कारीय लेखि का मुख्य उद्दे श्य क्या होता है ?
पत्रकारीय लेखन का प्रमुख उद्दे श्य है - सूचना दे ना, वशवक्षत करना तथा मनोरं जन आ
करना आवद होता है |
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४. पत्कारीय लेखि के प्रकार नलखए |
पत्रकारीय लेखन के कईप्रकार हैं यथा- खोजपरक पत्रकाररता’, िॉचडॉग पत्रकाररता
और एड् िोकैसी पत्रकाररता आवद।
५. पत्कारनकतिे प्रकार के होते हैं ?
पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं -
पूणय कावलक
अंशकावलक (न्द्रस्टरंगर)
िीलां सर या स्वतं त्र पत्रकार
६. समाचार नकस शैली में नलखे जाते हैं ?
समाचार उलटा वपरावमड शैली में वलखे जाते हैं , यह समाचार लेखन की सबसे
उपयोगी और लोकवप्रय शैली है । इस शै ली का विकास अमेररका में गृह युद्ध के
दौरान हुआ। इसमें महत्त्पूणय घटना का िणय न पहले प्रस्तुत वकया जाता है , उसके
बाद महत्त् की दृवष्ट से घटते क्रम में घटनाओं को प्रस्तुत कर समाचार का अंत वकया
जाता है । समाचार में इं टरो, बॉडी और समापन के क्रम में घटनाएाँ प्रस्तुत की जाती
हैं ।
७. समाचार के छह ककार क ि-क ि से हैं ?
समाचार वलखते समय मुख्य रूप से छह प्रश्नों- क्या, क ि, कहााँ , कब, क्यों और
कैसे का उत्तर दे ने की कोवशश की जाती है । इन्हें समाचार के छह ककार कहा जाता
है । प्रथम चार प्रश्नों के उत्तर इं टरो में तथा अन्य दो के उत्तर समापन से पूिय बॉडी िाले
भाग में वदए जाते हैं ।
८. फ़ीचर क्या है ?
िीचर एक प्रकार का सुव्िन्द्रथथत, सृजनात्मक और आत्मवनष्ठ लेखन है ।
९. फ़ीचर लेखि का क्या उद्दे श्य होता है ?
िीचर का उद्दे श्य मुख्य रूप से पाठकों को सूचना दे ना, वशवक्षत करना तथा उनका
मनोरं जन करना होता है ।
१०. फ़ीचर और समचार में क्या अंतर है ?
समाचार में ररपोटय र को अपने विचारों को डालने की स्वतंत्रता नहीं होती, जबवक
िीचर में लेखक को अपनी राय , दृवष्टकोण और भािनाओं को जावहर करने का
अिसर होता है । समाचार उल्टा वपरावमड शैली में वलखे जाते हैं , जबवक िीचर
लेखन की कोई सुवनवित शैली नहीं होती । िीचर में समाचारों की तरह शब्दों की
सीमा नहीं होती। आमतौर पर िीचर, समाचार ररपोटय से बड़े होते हैं । पत्र-पवत्रकाओं
में प्राय: २५० से २००० शब्दों तक के िीचर छपते हैं ।
११. नवशेष ररपोटट से आप क्या समझते हैं ?
सामान्य समाचारों से अलग िे विशेर् समाचार जो गहरी छान-बीन, विश्लेर्ण और
व्ाख्या के आधार पर प्रकावशत वकए जाते हैं , विशेर् ररपोटय कहलाते हैं ।
१२. नवशेष ररपोटट के नवनभन्न प्रकारों को स्पष्ट कीनजए ।
खोजी ररपोटट : इसमें अनुपल्ब्ब्ध तथ्यों को गहरी छान-बीन कर साियजवनक वकया
जाता है ।
(२)इन्डे प्थ ररपोटट : साियजावनक रूप से प्राप्त तथ्यों की गहरी छान-बीन कर उसके
महत्त्पूणय पक्षों को पाठकों के सामने लाया जाता है ।
(३) नवश्लेषणात्मक ररपोटट : इसमें वकसी घटना या समस्या का वििरण सूक्ष्मता के
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साथ विस्तार से वदया जाता है । ररपोटय अवधक विस्तृत होने पर कई वदनों तक वकस्तों
में प्रकावशत की जाती है ।
(४)नववरणात्मक ररपोटट : इसमें वकसी घटना या समस्या को विस्तार एिं बारीकी
के
साथ प्रस्तुत वकया जाता है ।
16
१४. संपार्दकीय से क्या अनभप्राय है ?
संपादक द्वारा वकसी प्रमुख घटना या समस्या पर वलखे गए विचारात्मक लेख को,
वजसेसंबंवधत समाचारपत्र की राय भी कहा जाता है , संपादकीय कहते हैं । संपादकीय
वकसी एक व्न्द्रक्त का विचार या राय न होकर समग्र पत्र-समूह की राय होता है ,
इसवलए संपादकीय में सं पादक अथिा लेखक का नाम नहीं वलखा जाता ।
१५. स्तंभलेखि से क्या तात्पयट है ?
यह एक प्रकार का विचारात्मक लेखन है । कुछ महत्त्पू णय लेखक अपने खास िैचाररक
रुझान एिं लेखन शैली के वलए जाने जाते हैं । ऐसे लेखकों की लोकवप्रयता को
दे खकर समाचरपत्र उन्हें अपने पत्र में वनयवमत स्तंभ-लेखन की वजम्मेदारी प्रदान करते
हैं । इस प्रकार वकसी समाचार-पत्र में वकसी ऐसे लेखक द्वारा वकया गया विवशष्ट एिं
वनयवमत लेखन जो अपनी विवशष्ट शै ली एिं िैचाररक रुझान के कारण समाज में
ख्यावत-प्राप्त हो, स्तंभ लेखन कहा जाता है ।
१६. संपार्दक के िाम पत् से आप क्या समझते हैं ?
समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ पर तथा पवत्रकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम
आए पत्र प्रकावशत वकए जाते हैं । यह प्रत्ये क समाचारपत्र का वनयवमत स्तंभ होता है ।
इसके माध्यम से समाचार-पत्र अपने पाठकों को जनसमस्याओं तथा मुद्दों पर अपने
विचार एिमराय व्क्त करने का अिसर प्रदान करता है ।
१७. साक्षात्कार/इं टरव्यू से क्या अनभप्राय है ?
वकसी पत्रकार के द्वारा अपने समाचारपत्र में प्रकावशत करने के वलए, वकसी व्न्द्रक्त
विशेर् से उसके विर्य में अथिा वकसी विर्य या मुद्दे पर वकया गया प्रश्नोत्तरात्मक
संिाद साक्षात्कार कहलाता है ।
अन्य महत्त्वपूणट प्रश्न:
१. सामान्य लेखन तथा पत्रकारीय लेखन में क्ा अंतर है ?
२. पत्रकारीय लेखन के उद्दे श्य वलन्द्रखए।
३. पत्रकार वकतने प्रकार के होते हैं ?
४. उल्टा वपरावमड शैली का विकास कब और क्ों हुआ?
५. समाचार के ककारों के नाम वलन्द्रखए |
६. बाडी क्ा है ?
७. िीचर वकस शैली में वलखा जाता है ?
८. िीचर ि समाचार में क्ा अंतर है ?
९. विशेर् ररपोटय से आप क्ा समझते हैं ?
१०. विशेर् ररपोटय के भेद वलन्द्रखए।
११. इन्डे प्थ ररपोटय वकसे कहते हैं ?
१२. विचारपरक लेखन क्ा है तथा उसके अन्तगयत वकस प्रकार के लेख आते हैं ?
१३. स्वतंत्र पत्रकार वकसे कहते है ?
१४. पूणयकावलक पत्रकार से क्ा अवभप्राय है ?
१५. अंशकावलक पत्रकार क्ा होता है ?
नवशेष लेखि: स्वरूप और प्रकार
१. नवशेष लेखि नकसे कहते हैं ?
विशेर् लेखनवकसी खास विर्य पर सामान्य लेखन से हट कर वकया गया लेखन है ;
वजसमें राजनीवतक, आवथयक, अपराध, खेल, विल्,कृवर्, कानून, विज्ञान और अन्य
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वकसी भी महत्त्पूणय विर्य से संबंवधत विस्तृत सूचनाएाँ प्रदान की जाती हैं ।
२. िे स्कक्या है ?
समाचारपत्र, पवत्रकाओं, टीिी और रे वडयो चैनलों में अलग-अलग विर्यों पर विशेर्
लेखन के वलए वनधाय ररत थथल को िे स्क कहते हैं और उस विशेर् डे स्क पर काम
करने िाले पत्रकारों का भी अलग समूह होता है । यथा-व्ापार तथा कारोबार के
वलए अलग तथा खेल की खबरों के वलए अलग डे स्क वनधाय ररत होता है ।
३. बीटसे क्या तात्पयट है ?
विवभन्न विर्यों से जुड़े समाचारों के वलए संिाददाताओं के बीच काम का विभाजन आम
तौर पर उनकी वदलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रख कर वकया जाता है । मीवडया की
भार्ा में इसे बीट कहते हैं ।
४. बीट ररपोनटिं ग तथा नवशेषीकृत ररपोनटिं ग में क्या अन्तर है ?
बीट ररपोवटं ग के वलए संिाददाता में उस क्षेत्र के बारे में जानकारी ि वदलचस्पी
का होना पयाय प्त है , साथ ही उसे आम तौर पर अपनी बीट से जुड़ीसामान्य खबरें
ही वलखनी होती हैं । वकन्तु विशेर्ीकृत ररपोवटं ग में सामान्य समाचारों से आगे बढ़कर
संबंवधत विशेर् क्षेत्र या विर्य से जुड़ी घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों का बारीकी से
विश्लेर्ण कर प्रस्तुतीकरण वकया जाता है । बीट किर करने िाले ररपोटय र को
संिाददाता तथा विशेर्ीकृत ररपोवटं ग करने िाले ररपोटय र को विशेर् संिाददाता कहा
जाता है ।
५. नवशेष लेखि की भाषा-शैली पर प्रकाश िानलए |
विशेर् लेखन की भार्ा-शैली सामान्य लेखन से अलग होती है । इसमें संिाददाता को
संबंवधत विर्य की तकनीकी शब्दािली का ज्ञान होना आिश्यक होता है , साथ ही यह
भी आिश्यक होता है वक िह पाठकों को उस शब्दािली से पररवचत कराए वजससे
पाठक ररपोटय को समझ सकें। विशेर् लेखन की कोई वनवित शैली नहीं होती ।
६. नवशेष लेखि के क्षेत् क ि-क ि से हो सकते हैं ?
विशेर् लेखन के अनेक क्षेत्र होते हैं , यथा- अथय -व्ापार, खेल, विज्ञान-प्रौद्योवगकी,
कृवर्, विदे श, रक्षा, पयाय िरण वशक्षा, स्वास्थ्य, विल्-मनोरं जन, अपराध, कानून ि
सामावजक मुद्दे आवद ।
अभ्यासाथट महत्त्वपूणट प्रश्न :
१. वकसी खास विर्य पर वकए गए लेखन को क्ा कहते हैं ?
२. विशेर् लेखन के क्षेत्र वलन्द्रखए।
४.पत्रकारीय भार्ा में लेखन के वलए वनधाय ररत थथल को क्ा कहते है ?
५. बीट से आप क्ा समझते हैं ?
६. बीट ररपोवटं ग क्ा है ?
७. बीट ररपोवटं ग तथा विशेर्ीकृत ररपोवटं ग में क्ा अंतर है ?
८. विशेर् संिाददाता वकसे कहते हैं ?
बोिट परीक्षा में पूछे गए प्रश्न एवं अन्य महत्त्वपूणट पृष्टव्य प्रश्नों का कोश :
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५. वहं दी का पहला समाचार-पत्र कब, कहााँ से वकसके द्वारा प्रकावशत वकया गया ?
६. वहं दी में प्रकावशत होने िाले दो दै वनक समाचार-पत्रों तथा पवत्रकाओं के नाम वलन्द्रखए |
७. रे वडयो की अपेक्षा टीिी समाचारों की लोकवप्रयता के दो कारण वलन्द्रखए |
८. पत्रकारीय लेखन तथा सावहन्द्रत्यक सृजनात्मक लेखन का अंतर बताइए |
९. पत्रकाररता का मूलतत्व क्ा है ?
१०. स्तंभलेखन से क्ा तात्पयय है ?
११. पीत पत्रकाररता वकसे कहते हैं ?
१२. खोजी पत्रकाररता का आशय स्पष्ट कीवजए |
१३. समाचार शब्द को पररभावर्त कीवजए |
१४. उल्टा वपरावमड शै ली क्ा है ?
१५. समाचार लेखन में छह ककारों का क्ा महत्त् है ?
१६. मुवद्रत माध्यमों की वकन्हीं दो विशेर्ताओं का उल्लेख कीवजए |
१७. डे ड लाइन क्ा है ?
१८. रे वडयो नाटक से आप क्ा समझते हैं ?
१९. रे वडयो समाचार की भार्ा की दो विशेर्ताएाँ वलन्द्रखए
२०. एं कर बाईट वकसे कहते हैं ?
२१. टे लीविजन समाचारों में एं कर बाईट क्ों जरूरी है ?
२२. मुवद्रत माध्यम को थथायी माध्यम क्ों कहा जाता है ?
२३. वकन्हीं दो समाचार चैनलों के नाम वलन्द्रखए |
२४. इं टरनेट पत्रकाररता के लोकवप्रय होने के क्ा कारण हैं ?
२५. भारत के वकन्हीं चार समाचार-पत्रों के नाम वलन्द्रखए जो इं टरनेट पर उपलब्ध
हैं ?
२६. पत्रकाररता की भार्ा में बीट वकसे कहते हैं ?
२७. विशेर् ररपोटय के दो प्रकारों का उल्लेख कीवजए |
२८. विशेर् लेखन के वकन्हीं दो प्रकारों का नामोल्लेख कीवजए |
२९. विशेर् ररपोटय के लेखन में वकन बातों पर अवधक बल वदया जाता है ?
३०. बीट ररपोटय र वकसे कहते हैं ?
३१. ररपोटय लेखन की भार्ा की दो विशेर्ताएाँ वलन्द्रखए |
३२. संपादकीय के साथ संपादन-लेखक का नाम क्ों नहीं वदया जाता ?
३३. संपादकीय लेखन क्ा होता है ?
अथिा
संपादकीय से क्ा तात्पयय है ?
३४. संपादक के दो प्रमुख उत्तरदावयत्वों का उल्लेख कीवजए |
३५. ऑप-एड पृष्ठ वकसे कहते हैं ?
३६. न्यूजपेग क्ा है ?
३७. आवडएं स से आप क्ा समझते हैं ?
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३८. इलेक्ट्रोवनक मीवडया क्ा है ?
३९. काटू य न कोना क्ा है ?
४०. भारत में वनयवमत अपडे ट साइटों के नाम बताइए।
४१. कम्प्यूटर के लोकवप्रय होने का प्रमुख कारण बताइए।
४२. विज्ञापन वकसे कहते हैं ?
४३. फीडबैक से क्ा अवभप्राय है ?
४४. जनसंचार से आप क्ा समझते हैं ?
४५. समाचार और फीचर में क्ा अंतर है ?
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(ख)आलेख/ररपोटट – निधाटररत अंक:५
आलेख
आलेख-लेखन हे तु महत्त्पूणय बातें:
१. वकसी विर्य पर सिां गपू णय जानकारी जो तथ्यात्मक, विश्लेर्णात्मक अथिा विचारात्मक
हो आलेख कहलाती है |
२. आलेख का आकार संवक्षप्त होता है |
३. इसमें विचारों और तथ्यों की स्पष्टता रहती है , ये विचार क्रमबद्ध रूप में होने चावहए|
४. विचार या तथ्य की पुनरािृवत्त न हो |
५. आलेख की शैली वििेचन ,विश्लेर्ण अथिा विचार-प्रधान हो सकती है |
६. ज्वलंत मुद्दों, समस्याओं , अिसरों, चररत्र पर आलेख वलखे जा सकते हैं |
७. आलेख गंभीर अध्ययन पर आधाररत प्रामावणक रचना होती है |
िमूिा आलेख :
शेर का घर नजमकाबेट िेशिल पाकट –
जंगली जीिों की विवभन्न प्रजावतयों को सरं क्षण दे ने तथा उनकी संख्या को बढाने के उद्दे श्य से
वहमालय की तराई से लगे उत्तराखंड के पौड़ी और नैनीताल वजले में भारतीय महाद्वीप के
पहले राष्टरीय अभयारण्य की थथापना प्रवसद्ध अंगरे जी लेखक वजम काबेट के नाम पर की
गई | वजम काबेट नॅशनल पाकय नैनीताल से एक सौ पन्द्रह वकलोमीटर और वदल्ली से २९०
वकलोमीटर दू र है । यह अभयारण्य पााँ च सौ इक्कीस वकलोमीटर क्षेत्र में फैला है | निम्बर
से जून के बीच यहााँ घू मने -वफरने का सिोत्तम समय है |
यह अभयारण्य चार सौ से ग्यारह सौ मीटर की ऊाँचाई पर है | वढकाला इस
पाकय का प्रमुख मैदानी थथल है और कां डा सबसे ऊाँचा थथान है | जंगल, जानिर, पहाड़
और हरी-भरी िावदयों के िरदान से वजमकाबेट पाकय दु वनया के अनूठे पाकों में है | रायल
बंगाल टाइगर और एवशयाई हाथी पसंदीदा घर है | यह एवशया का सबसे पहला सं रवक्षत
जंगल है | राम गंगा नदी इसकी जीिन-धारा है | यहााँ एक सौ दस तरह के पेड़-पौधे,
पचास तरह के स्तनधारी जीि, पच्चीस प्रजावतयों के सरीसृप और छह सौ तरह के रं ग-
विरं गे पक्षी हैं | वहमालयन तेंदुआ, वहरन, भालू, जंगली कुत्ते , भेवड़ये , बंदर, लंगूर ,
जंगली भैंसे जैसे जानिरों से यह जंगल आबाद है | हर िर्य लाखों पययटक यहााँ आते हैं |
शाल िृक्षों से वघरे लंबे-लंबे िन-पथ और हरे -भरे घास के मैदान इसके प्राकृवतक सौंदयय में
चार चााँ द लगा दे ते हैं |
निम्ननलप्तखत नवषयों पर आलेख नलप्तखए-
बढ़ती आबादी : दे श की बरबादी
सां प्रदावयकसद्भािना
कजय में डूबा वकसान
आतंकिाद की समस्या
डॉक्ट्र हड़ताल पर, मरीज परे शान
ितयमान परीक्षा-प्रणाली
बजट और बचत
शन्द्रक्त, संयम और साहस
ररश्वत का रोग
सपना सच हो अपना
ररपोटट /प्रनतवेर्दि
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ररपोटट /प्रनतवेर्दि का सामान्य अथट : सूचनाओं के तथ्यपरक आदान-प्रदान को ररपोटय या
ररपोवटं ग कहते हैं | प्रवतिेदन इसका वहं दी रूपां तरण है | ररपोटय वकसी संथथा, आयोजन या
काययक्रम की तथ्यात्मक जानकारी है | बड़ी-बड़ी कंपवनयां अपने अं शधारकों को िावर्यक/
अद्धय िावर्यक प्रगवत ररपोटय भेजा करती हैं |
ररपोटट के गुण:
तथ्यों की जानकारी स्पष्ट, सटीक, प्रामावणक हो |
संथथा/ विभाग के नाम का उल्लेख हो |
अध्यक्ष आवद पदावधकाररयों के नाम |
गवतविवधयााँ चलानेिालों के नाम |
काययक्रम का उद्दे श्य |
आयोजन-थथल, वदनां क, वदन तथा समय |
उपन्द्रथथत लोगों की जानकारी |
वदए गए भार्णों के प्रमुख अंश |
वलये गए वनणययों की जानकारी |
भार्ा आलंकाररक या सावहन्द्रत्यक न हो कर सूचनात्मक होनी चावहए |
सूचनाएाँ अन्यपुरुर् शैली में दी जाती हैं | मैं या हम का प्रयोग नहीं होता |
संवक्षप्तता और क्रवमकता ररपोटय के गुण हैं |
नई बात नए अनुच्छेद से वलखें |
प्रवतिेदक या ररपोटय र के हस्ताक्षर |
निम्ननलप्तखत नवषयों पर ररपोटट तैयार कीनजए-
१. पूजा-थथलों पर दशयनावथय यों की अवनयंवत्रत भीड़
२. दे श की महाँ गी होती व्ािसावयक वशक्षा
३. मतदान केन्द्र का दृश्य
४. आए वदन होती सड़क दु घयटनाएाँ
५. आकन्द्रिक बाढ़ से हुई जनधन की क्षवत
६.िीचर लेखि- निधाटररत अंक:५
समकालीन घटना तथा वकसी भी क्षेत्र विशेर् की विवशष्ट जानकारी के सवचत्र तथा मोहक
वििरण को फीचर कहते हैं |फीचर मनोरं जक ढं ग से तथ्यों को प्रस्तुत करने की कला है |
िस्तुत: फीचर मनोरं जन की उं गली थाम कर जानकारी परोसता है | इस प्रकार मानिीय रूवच
के विर्यों के साथ सीवमत समाचार जब चटपटा लेख बन जाता है तो िह फीचर कहा जाता
है | अथाय त- “ज्ञान + मनोरं जन = फीचर” |
फीचर में अतीत, ितयमान और भविष्य की प्रेरणा होती है | फीचर लेखक पाठक को ितयमान
दशा से जोड़ता है , अतीत में ले जाता है और भविष्य के सपने भी बुनता है | फीचर लेखन
की शैली विवशष्ट होती है | शैली की यह वभन्नता ही फीचर को समाचार, आलेख या ररपोटय
से अलग श्रेणी में ला कर खडा करती है | फीचर लेखन को अवधक स्पष्ट रूप से समझने
के वलए वनम्न बातों का ध्यान रखें –
१. समाचार साधारण जनभार्ा में प्रस्तुत होता है और फीचर एक विशेर् िगय ि विचारधारा
पर केंवद्रत रहते हुए विवशष्ट शैली में वलखा जाता है |
२. एक समाचार हर एक पत्र में एक ही स्वरुप में रहता है परन्तु एक ही विर्य पर
फीचर अलग-अलग पत्रोंमें अलग-अलग प्रस्तुवत वलये होते हैं | फीचर के साथ लेखक
का नाम रहता है |
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३. फीचर में अवतररक्त साज-सज्जा, तथ्यों और कल्पना का रोचक वमश्रण रहता है |
४. घटना के पररिेश, विविध प्रवतवक्रयाएाँ िउनके दू रगामी पररणाम भी फीचर में रहा
करते हैं |
५. उद्दे श्य की दृवष्ट से फीचर तथ्यों की खोज के साथ मागयदशयन और मनोरं जन की दु वनया
भी प्रस्तुत करता है |
६. फीचर फोटो-प्रस्तुवत से अवधक प्रभािशाली बन जाता है |
िमूिा िीचर :
नपयक्कड़ तोता :
संगत का असर आता है , वफर चाहे िह आदमी हो या तोता | वब्रटे न में एक तोते
को अपने मावलक की संगत में शराब की ऐसी लत लगी वक उसने घर िालों और
पड़ोवसयों का जीना बेहाल कर वदया | जब तोते को सुधारने के सारे हथकंडे फेल हो
गए तो मजबूरन मावलक को ही शराब छोड़नी पड़ी | माकय बेटोवकयो ने अफ्रीकी
प्रजावत का तोता मवलयन पाला| माकय यदा-कदा शराब पी लेते | वगलास में बची शराब
मवलयन चट कर जाता | धीरे -धीरे मवलयन की तलब बढ़ने लगी| िह िक्त-बेिक्त शराब
मााँ गने लगा |-------------------------------
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निम्ननलप्तखत नवषयों पर फ़ीचरनलप्तखए:
चुनािी िायदे
महाँ गाई के बोझतले मजदू र
िाहनों की बढ़ती संख्या
िररष्ठ नागररकों के प्रवत हमारा नजररया
वकसान का एक वदन
क्रां वत के स्वप्न-द्रष्टा अब्दु लकलाम
वक्रकेट का नया संस्करण ट्वें टी-ट्वें टी
बेहतर संसाधन बन सकती है जनसंख्या
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अध्ययि-सामग्री
पद्य खंि
प्रश्न :-७ नर्दए गए काव्यांश में से अथट ग्रहण संबंधी चार प्रश्न- २*४ = ८ अंक
प्रश्न ९ :-नवषय-वस्तु पर आधाररत तीि प्रश्नों में से र्दो प्रश्नों के उत्तर -३*२=६ अं क
कवि, कविता का नाम ,एक दो िाक्ों में सु गवठत प्रसंग या पंन्द्रक्तयों का सार
अवनिायय रूप से याद होना चावहए .
ितयनी एिं िाक् गठन की अशुन्द्रद्धयााँ ० ( जीरो) % रखने के वलए उत्तरों का वलन्द्रखत
अभ्यास अवनिायय है .
तीन अंक के प्रश्न के उत्तर में अवनिाययत: तीन विचार-वबंदु, शीर्यक बना कर
रे खां वकत करते हुए, क्रमबद्ध रूप से उत्तर वलखा जाना चावहए . अन्य प्रश्नों के उत्तरों
में भी इसी प्रकार अंकों के अनुसार विचार-वबंदुओं की संख्या होनी चावहए .
समय पर पूणय प्रश्न-पत्र हल करने के वलए उत्तरों के मुख्य वबंदु क्रम से याद होने
चावहए .
उत्तरों के विचार-वबन्दु ओं एिं िाक्ों का वनवित क्रम होना चावहए जो पहले से उत्तर
याद वकए वबना संभि नहीं होता .
काव्-सोंदयय संबंधी प्रश्नों में अलंकार ,छं द आवद विशेर्ताएाँ कविता में से उदाहरण
अंश वलख कर स्पष्ट की जानी चावहए .
भाि-साम्य के रूप में अथय से वमलती-जु लती अन्य कवियों की पंन्द्रक्तयााँ वलखना
उपयुक्त है .
कवि एिं कविता की पृष्ठ्भूवम वशक्षक की सहायता से अवनिायय रूप से समझ लें |
उपयुक्त थथान पर इसे उत्तर में संकेवतत भी करें .
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1 कनवता :– आत्म पररचय
सार :-
३ इस कविता में कवि ने समाज एिं पररिेश से प्रेम एिं संघर्य का संबंध वनभाते हुए जीिन
में सामंजस्य थथावपत करने की बात की है .
५ ‘नादान िहीं है हाय ,जहााँ पर दाना’ पंन्द्रक्त के माध्यम से कवि सत्य की खोज के वलए
,अहं कार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे रहा है .
काव्य-खंि पर आधाररत र्दो प्रकार के प्रश्न पूछे जाएाँ गे – अथटग्रहण-संबंधी एवं स र्द
ं यट -
बोध-संबंधी
अथटग्रहण-संबंधी प्रश्न
उत्तर:- कवि अपने सां साररक अनुभिों के सुख - दु ख हृदय में वलए वफरता है ।
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प्रश्न३:- पररिेश का व्न्द्रक्त से क्ा संबंध है ? मैं सााँ सों के दो तार वलए वफरता हाँ .“के
माध्यम से कवि क्ा कहना चाहता है ?
उत्तर:- संसार में रह कर संसार से निरपेक्षता संभव िही ंहै क्ोंवक पररवेश में रहकर ही
व्यप्तक्त की पहचाि बनती है ।उसकी अन्द्रिता सु रवक्षत रहती है ।
उत्तर:-दु वनया के साथ संघर्यपूणय संबंध के चलते कवि का जीवि-नवरोधों के बीच सामंजस्य
करते हुए व्तीत होता है ।
उत्तर :-‘जग पूछ रहा’‚ ‘जग की गाते ’‚ ‘मन का गान’ आवद मुहािरों का प्रयोग
उत्तर :- गीवत-शै ली
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कनवता
आत्म-पररचय
उत्तर:- कवि सां साररक सुख-दु ख की दोनों पररन्द्रथथवतयों में मग्न रहता है । उसके पास प्रे म की
सां त्वना दावयनी अमूल्य वनवध है ।
उत्तर:- संसार के कष्टों को सहते हुए हमें यह ध्यान रखना चावहए वक कष्टों को सहना
पड़े गा। इसके वलए मनु ष्य को हाँ स कर कष्ट सहना चावहए।
उत्तर:- संसार उन लोगों को आदर दे ता है जो उसकी बनाई लीक पर चलते हैं परं तु कवि
केिल िही कायय करता है जो उसके मन, बुन्द्रद्ध और वििेक को अच्छा लगता है ।
उत्तर:- जहााँ कहीं मनु ष्य को विद्वत्ता का अहं कार है िास्ति में िही नादानी का सबसे बड़ा
लक्षण है ।
उत्तर:- कवि की रचनाओं में व्क्त पीड़ा िास्ति में उसके हृदय में मानि मात्र के प्रवत
व्ाप्त प्रेम का ही सूचक है ।
प्रश्न६:- ”मैं फूट पड़ा तुम कहते छं द बनाना” का अथय स्पष्ट कीवजए।
उत्तर:- कवि की श्रेष्ठ रचनाएाँ िास्ति में उसके मन की पीड़ा की ही अवभव्न्द्रक्त है वजनकी
सराहना संसार श्रेष्ठ सावहत्य कहकर वकया करता है ।
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कनवता
प्रस्तुत कविता में कवि बच्चन कहते हैं वक समय बीतते जाने का एहसास हमें लक्ष्य-प्रान्द्रप्त
के वलए प्रयास करने के वलए प्रेररत करता है ।
मागय पर चलने िाला राही यह सोचकर अपनी मंवजल की ओर कदम बढ़ाता है वक कहीं
रास्तें में ही रात न हो जाए।
पवक्षयों को भी वदन बीतने के साथ यह एहसास होता है वक उनके बच्चे कुछ पाने की आशा
में घोंसलों से झां क रहे होंगे। यह सोचकर उनके पंखो में गवत आ जाती है वक िे जल्दी से
अपने बच्चों से वमल सकें।
कविता में आशावार्दी स्वर है ।गंतव् का िरण पनथक के कर्दमों में स्फूनतट भर दे ता
है ।आशा की वकरण जीवि की जड़ता को समाि कर दे ती है । िैयन्द्रक्तक अनुभूवत का कवि
होने पर भी बच्चन जी की रचनाएाँ वकसी सकारात्मक सोच तक ले जाने का प्रयास हैं ।
अथटग्रहण-संबंधी प्रश्न
उत्तर :-जीिन रूपी पथ में मृत्यु रूपी रात से सचेत रहने के वलए कहा गया है ।
उत्तर :-वचवड़या के बच्चे उसकी प्रतीक्षा करते होंगे यह विचार वचवड़या के पंखों में गवत भर
कर उसे चंचल बना दे ता है ।
प्रश्न४ :-प्रयासों में तेजी लाने के वलए मनुष्य को क्ा करना चावहए?
उत्तर :- प्रयासों में तेजी लाने के वलए मनुष्य को जीिन में एक वनवित मधुर लक्ष्य थथावपत
करना चावहए।
2 पतंग
आलोक धन्वा
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पतंग कविता में कवि आलोक धन्वा बच्चों की बाल सुलभ इच्छाओं और उमंगों तथा प्रकृवत के
साथ उनके रागात्मक सं बंधों का अत्यंत सुन्दर वचत्रण वकया है ।भादों मास गुजर जाने के बाद
शरद ऋतु का आगमन होता है ।चारों ओर प्रकाश फैल जाता है ।सिेरे के सूयय का प्रकाश लाल
चमकीला हो जाता है ।शरद ऋतु के आगमन से उत्साह एिं उमंग का माहौल बन जाता है ।
शरद ऋतु का यह चमकीला इशारा बच्चों को पतंग उड़ाने के वलए बुलाता है , और पतं ग
उड़ाने के वलए मंद मंद िायु चलाकर आकाश को इस योग्य बनाता है वक दु वनया की सबसे
हलके रं गीन कागज और बां स की सबसे पतली कमानी से बनी पतंगें आकाश की ऊाँचाइयों
में उड़ सके‘।बच्चों के पााँ िों की कोमलता से आकवर्यत हो कर मानो धरती उनके पास आती
है अन्यथा उनके पााँ ि धरती पर पड़ते ही नहीं| ऐसा लगता है मानो िे हिा में उड़ते जा
रहे हैं ।पतंग उड़ाते समय बच्चे रोमां वचत होते हैं |एक संगीतमय ताल पर उनके शरीर हिा में
लहराते हैं ।िे वकसी भी खतरे से वबलकुल बेखबर होते हैं ।बाल मनोविज्ञान. बाल वक्रया–
कलापों एिं बाल सुलभ इच्छाओं का सुंर्दर नबंबों के माध्यम से अंकि वकया गया है ।
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उत्तर :- सुनहले सूरज के सामने: – वनडर ,उत्साह से भरे होना
3 कनवता के बहािे
काँु वर िारायण
कुाँिर नारायणकी रचनाओं में संयम‚ पररष्कार एवं साि सुथरापि है ।यथाथट का कलात्मक
संवेर्दिापूणट नचत्ण उनकी रचनाओं की विशेर्ता है ।उनकी रचनाएाँ जीवि को समझिे की
नजज्ञासा है यथाथय – प्रान्द्रप्त की घोर्णा नहीं।वैयप्तक्तक एवं सामानजक तिाव व्ंजनापूणय ढ़ं ग से
उनकी रचनाओं में थथान में पाता है ।प्रस्तुत कविता में कवित्व शन्द्रक्त का िणयन है । कविता
वचवड़या की उड़ान की तरह कल्पना की उड़ान है लेवकन वचवड़या के उड़ने की अपनी सीमा
है जबवक कवि अपनी कल्पना के पंख पसारकर दे श और काल की सीमाओं से परे उड़
जाता है ।
फूल कविता वलखने की प्रेरणा तो बनता है लेवकन कविता तो वबना मुरझाए हर युग में अपनी
खुशबू वबखेरती रहती है ।
कविता बच्चों के खेल के समान है और समय और काल की सीमाओं की परिाह वकए वबना
अपनी कल्पना के पंख पसारकर उड़ने की कला बच्चे भी जानते है ।
बाहर भीतर
इस घर ,उस घर
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१ िए प्रतीक :-वचवड़या‚ ।
32
3 कनवता के बहािे
काँु वर िारायण
उत्तर :- कविता की उड़ान वचवड़या की उड़ान से कहीं अवधक सू क्ष्म और महत्त्पूणय होती
है ।
प्रश्न३ :-“फूल मुरझा जाते हैं पर कविता नहीं” क्ों स्पष्ट कीवजए।
उत्तर :- कविता कालजयी होती है उसका मू ल्य शाश्वत होता है जबवक फूल बहुत जल्दी
कुम्हला जाते हैं ।
कवि कहते हैं वक एक बार िह सरल सीधे कथ्य की अवभव्न्द्रक्त में भी भार्ा के चक्कर में
ऐसा फाँस गया वक उसे कथ्य ही बदलाबदला सा लगने लगा। कवि कहता है वक वजस -
प्रकार जोर जबरदस्ती करने से कील की चूड़ी मर जाती है और तब चूड़ीदार कील को
चूड़ीविहीन कील की तरह ठोंकना पड़ता है उसी प्रकार कथ्य के अनुकूल भार्ा के अभाि में
में प्रभािहीन भार्ा में भाि को अवभव्न्द्रक्त वकया जाता है ।
33
अंत में भाि ने एक शरारती बच्चे के समान कवि से पूछा वक तूने क्ा अभी तक भार्ा का
स्वाभाविक प्रयोग नहीं सीखा।
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाि था
न ताकत !
२ नए उपमान
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उत्तर :-
में न आना
हो जाना
उत्तर:-
कनवता–
बात सीधी थी पर
उत्तर :-आडं बरपूणय भार्ा का प्रयोग करने से बात का अथय समझना कवठन हो जाता है ।
प्रश्न२ :- भार्ा को अथय की पररणवत तक पहुाँ चाने के वलए कवि क्ा क्ा प्रयास करते
हैं ?
उत्तर :- भार्ा को अथय की पररणवत तक पहुाँ चाने के वलए कवि उसे नाना प्रकार के
अलंकरणों से
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प्रश्न३:-भार्ा मे पेंच कसना क्ा है ?
उत्तर :-भार्ा को चामत्काररक बनाने के वलए विवभन्न प्रयोग करना भार्ा मे पेंच कसना है
परं तु इससे भार्ा का पेंच ज्यादा कस जाता है अथाय त कथ्य एिं शब्दों में कोई तालमेल नहीं
बैठता, बात समझ में ही नहीं आती।
उत्तर :-वजस प्रकार एक शरारती बच्चा वकसी की पकड़ में नहीं आता उसी प्रकार एक
उलझा दी गई बात तमाम कोवशशों के बािजूद समझने के योग्य नहीं रह जाती चाहे उसके
वलए वकतने प्रयास वकए जाएं ,िह एक शरारती बच्चे की तरह हाथों से वफसल जाती है ।
रघुवीर सहाय
हम दू रदशयन पर बोलेंगे
हम समथय शन्द्रक्तिान
हम एक दु बयल को लाएाँ गे
प्रश्न १:- ‘हम दू रदशयन पर बोलेंगे हम समथय शन्द्रक्तिान’-का वनवहत अथय स्पष्ट कीवजए |
36
प्रश्न३:- आप क्ा अपावहज हैं ?
तो आप क्ों अपावहज हैं ?पंन्द्रक्त द्वारा कवि वकस विवशष्ट अथय की अवभव्न्द्रक्त करने में
सफल हुआ है ?
उत्तर:- - लाक्षवणक अथय :- दृश्य माध्यम का प्रयोग, कलात्मक, काव्ात्मक, सां केवतक
प्रस्तुवत का मात्र वदखािा।
“कैमरा बस करो
नहीं हुआ
रहने दो”
लाक्षवणक अथय :-- सूत्र िाक् ‚क्रूर व्ािसावयक उद्दे श्य का उद् घाटन
कहानीपन और नाटकीयता
बोलचाल की भार्ा के शब्दुः– बनाने के िास्ते ‚ संग रुलाने हैं ।
सां केवतकता– परदे पर िक्त की कीमत है ।
वबंब :–फूली हुई आाँ ख की एक बड़ी तस्वीर
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कैमरे में बंर्द अपानहज
उत्तर :-दू रदशयन पर एक अपावहज का साक्षात्कार‚ व्यावसानयक उद्दे श्यों को पूरा करिे के
नलए वदखाया जाता है ।
प्रश्न४ :-‘हम समथय शन्द्रक्तिान एिं हम एक दु बयल को लाएं गे’ में वनवहताथय स्पष्ट कीवजए।
उत्तर :-साक्षात्कारकताय स्वयं को पूणट माि कर‚ एक अपावहज व्न्द्रक्त को र्दु बटल समझिे
का अहंकार पाले हुए है ।
प्रश्न५:- अपावहज की शब्दहीन पीड़ा को मीवडयाकमी वकस प्रकार अवभव्क्त कराना चाहता
है ?
उत्तर :-मीवडयाकमी अपावहज की लाल सूजी हुई ऑंखों को‚ पीड़ा की सांकेनतक
अनभव्यप्तक्त के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है ।
उत्तर :-मीवडयाकमी सफल नहीं होता क्ों वक प्रसारण समय समाप्त हो जाता है और
प्रसारण समय के बाद यवद अपावहज व्न्द्रक्त रो भी दे ता तो उससे मीवडयाकमी का
व्ािसावयक उद्दे श्य पूरा नहीं हो सकता था उसवलए अब उसे अपावहज व्न्द्रक्त के आं सुओं में
कोई वदलचस्पी नहीं थी।
उत्तर :-बार बार प्रयास करने पर भी मीवडयाकमी‚ अपावहज व्न्द्रक्त को रोता हुआ नहीं
वदखा पाता।िह खीझ जाता है और प्तखनसयािी मुस्कुराहट के साथ कायटक्रम समाि कर
दे ता है |’सामानजक उद्दे श्य से युक्त कायटक्रम’शब्ों में व्यंग्य है क्ोंवक मीवडया के छद्म
व्यावसानयक उद्दे श्य की पूनतट िही ं हो पाती |
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प्रश्न८ :-‘परदे पर िक्त की कीमत है ’ में वनवहत संकेताथय को स्पष्ट कीवजए।
उत्तर :-प्रसारण समय में रोचक सामग्री परोस पािा ही मीवडया कवमययों का एकमात्
उद्दे श्य होता है ।अन्यथा उनके सामानजक सरोकार मात् एक नर्दखावा हैं ।
5 सहषट स्वीकारा है
सार
उत्तर:- वनजी जीिन के प्रेम का संबंल कवि को विश्व व्ापी प्रेम से जुड़ने की प्रेरणा दे ता है
|अत: कवि इसका श्रेय अपने वप्रय को दे ता है |
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स ंर्दयट -बोध-ग्रहण संबंधी प्रश्न
दृश्य वबंब– “मुस्काता चााँ द ज्यों धरती पर रात भर। मुझ पर तुम्हारा ही न्द्रखलता िह
चेहरा।“
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5 सहषट स्वीकारा है
उत्तर:- कवि को अपनी स्वावभमानयुक्त गरीबी, जीिन के गम्भीर अनुभि विचारों का िैभि,
व्न्द्रक्तत्व की दृढ़ता, मन की भािनाओं की नदी, यह सब नए रूप में मौवलक लगते हैं क्ों
वक उसके जीिन में जो कुछ भी घटता है िह जाग्रत है , नवश्व उपयोगी है अत: उसकी
उपलन्द्रब्ध है और िह उसकी नप्रया की प्रेरणा से ही संभव हुआ है । उसके जीिन का
प्रत्येक अभाि ऊजाय बनकर जीवि में िई नर्दशा ही दे ता रहा है |
उत्तर:-वजस प्रकार झरने में चारों ओर की पहावड़यों से पानी इकट्टठा हो जाता है उसे एक
कभी खत्म ि होिे वाले स्रोत के रूप में प्रयोग वकया जा सकता है उसी प्रकार कवि के
वदल में न्द्रथथत प्रेम उमड़ता है , कभी समाप्त नहीं होता। जीवि का नसंचि करता है |
व्यप्तक्तगत स्वाथट से र्दूर पूरे समाज के नलए जीविर्दायी हो जाता है |
प्रश्न४:- ‘वजतना भी उाँ ड़ेलता हाँ भर-भर वफर आता है “ का विरोधाभास स्पष्ट कीवजए।
उत्तर:-हृदय में न्द्रथथत प्रेम की विशेर्ता यह है वक वजतना अवधक व्क्त वकया जाए उतना
ही बढ़ता जाता है ।
उत्तर:-कवि ने वप्रयतमा की आभा से ,प्रेम के सुखद भािों से सदै ि वघरे रहने की न्द्रथथवत को
उजाले के रूप में वचवत्रत वकया है । इन िृवतयों से वघरे रहना आनंददायी होते हुए भी कवि
के वलए असहनीय हो गया है क्ोंवक इस आनंद से िंवचत हो जाने का भय भी उसे सदै ि
सताता रहता है ।
6. उषा
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शमशेर बहार्दु र नसंह
सार
उर्ा कविता में सूयोदय के समय आकाश मंडल में रं गों के जादू का सुन्दर िणयन वकया
गया है । सूयोदय के पू िय प्रातुःकालीन आकाश नीले शंख की तरह बहुत नीला होता है ।
भोरकालीन नभ की तुलना काली वसल से की गयी है वजसे अभी-अभी केसर पीसकर धो
वदया गया है । कभी कवि को िह राख से लीपे चौके के समान लगता है , जो अभी गीला
पड़ा है । नीले गगन में सूयय की पहली वकरण ऐसी वदखाई दे ती है मानो कोई सुंदरी नीले जल
में नहा रही हो और उसका गोरा शरीर जल की लहरों के साथ वझलवमला रहा हों।
कनवता– उषा
प्रश्न१ :-उर्ा कविता में सूयोदय के वकस रूप को वचवत्रत वकया गया है ?
43
उत्तर :-भोर के नभ और राख से लीपे गए चौके में यह समानता है वक दोनों ही गहरे
सलेटी रं ग के हैं ,पवित्र हैं । नमी से युक्त हैं ।
उत्तर :- भोर का नभ लावलमा से युक्त स्याही वलए हुए होता है | अत: लाल खवड़या चाक
से मली गई स्लेट जैसा प्रतीत होता है |
उत्तर विविध रूप रं ग बदलती सुबह व्न्द्रक्त पर जादु ई प्रभाि डालते हुए उसे मंत्र मुग्ध कर
दे ती है |
भोर का नभ राख से लीपा चौका दोनों ही गहरे सलेटी रं ग के हैं ।पवित्र हैं ।नमी से
युक्त हैं ।
काली वसल भोर का नभ और लालकेसर से धुली काली वसल दोनों ही लावलमा से
युक्त हैं ।
काली वसलेट जो लाल खवड़या चाक से मल दी गई हो और भोर का नभ दोनों ही
लावलमा से युक्त हैं ।
प्रातुः काल के स्वच्छ वनमयल आकाश में सूयय ऐसा प्रतीत होता है मानो नीलजल में
कोई स्ववणयम दे ह नहा रही हो।
प्रश्न२:- कविता की भार्ा एिं अवभव्न्द्रक्त संबंधी विशेर्ताएं वलन्द्रखए।
२ दृश्यवबंब
उत्प्रेक्षा अलंकार:-
गौर वझलवमल दे ह
44
जैसे वहल रही हो “
उत्तर :-कविता में नीले नभ को राख से वलपे गीले चौके के समान बताया गया है | दू सरे
वबंब में उसकी तुलना काली वसल से की गई है | तीसरे में स्लेट पर लाल खवड़या चाक का
उपमान है |लीपा हुआ आाँ गन ,काली वसल या स्लेट गााँ ि के पररिेश से ही वलए गए हैं
|प्रात: कालीन सौंदयय क्रमश: विकवसत होता है | सियप्रथम राख से लीपा चौका जो गीली
राख के कारण गहरे स्लेटी रं ग का अहसास दे ता है और पौ फटने के समय आकाश के
गहरे स्लेटी रं ग से मेल खाता है |उसके पिात तवनक लानलमा के नमश्रण से काली नसल
का जरा से लाल केसर से धुलिा सटीक उपमान है तथा सूयट की लानलमा के रात की
काली स्याही में घुल जािे का सुंर्दर नबंब प्रस्तुत करता है | धीरे –धीरे लावलमा भी समाप्त
हो जाती है और सुबह का िीला आकाश िील जल का आभास दे ता है ि सूयट की
स्वनणटम आभा ग रवणी र्दे ह के िील जल में िहा कर निकलिे की उपमा को साथयक
वसद्ध करती है | प्रश्न२ :-
भोर का नभ
राख से लीपा चौका
(अभी गीला पड़ा है )
नयी कविता में कोष्ठक ,विराम वचह्ों और पंन्द्रक्तयों के बीच का थथान भी कविता को अथय
दे ता है |उपयुयक्त पंन्द्रक्तयों में कोष्ठक से कविता में क्ा विशेर् अथय पैदा हुआ है ? समझाइए
|
7. बार्दल राग
वनराला की यह कविता अनावमका में छह खंडों में प्रकावशत है ।यहां उसका छठा खंड वलया
गया है |आम आदमी के दु ुःख से त्रस्त कवि पररितयन के वलए क्रां वत रुपी बादल का आह्वान
करता है |इस कविता में बार्दल क्रांनत या नवप्लव का प्रतीक है । कवि विप्लि के बादल को
संबोवधत करते हुए कहता है नक जि मि की आकांक्षाओं से भरी-तेरी नाि समीर रूपी
45
सागर पर तैर रही है । अन्द्रथथर सुख पर दु ुःख की छाया तैरती वदखाई दे ती है । संसार के
लोगों के हृर्दय र्दग्ध हैं (र्दु ुःखी)। उन पर वनदय यी विप्लि अथाय त् क्रां वत की माया फैली हुई है ।
बार्दलों के गजटि से पृथ्वी के गभट में सोए अंकुर बाहर निकल आते हैं अथाय त शोवर्त िगय
सािधान हो जाता है और आशा भरी दृनष्ट से क्रांनत की ओर र्दे खिे लगता है । उनकी
आशा क्रां वत पर ही वटकी है । बादलों की गजय ना और मूसलाधार िर्ाय में बड़े बड़े -पियत िृक्ष
घबरा जाते हैं ।उनको उखड़कर वगर जाने का भय होता है |क्रावत की हुं कार से पूाँजीपनत
घबरा उिते हैं, िे वदल थाम कर रह जाते हैं । क्रांनत को तो छोटे छोटे लोग बुलाते हैं।-
वजस प्रकार छोटे छोटे पौधे हाथ वहलाकर-बार्दलों के आगमि का स्वागत करते हैं िैसे ही
शोवर्त िगय क्रां वत के आगमन का स्वागत करता है ।
छायावार्दी कनव वनराला साम्यवार्दी प्रभाव से भी जुड़े हैं ।मुक्त छं र्द वहन्दी को उन्हीं की दे न
है ।शोनषत वगट की समस्याओं को समाि करिे के वलए क्रांनत रूपी बार्दल का आह्वाि
वकया गया है ।
कनवता–
बार्दल राग
“वतरती है समीर-सागर पर
जग के दग्ध हृदय पर
यह तेरी रण-तरी
वफर –वफर
िर्यण है मूसलधार ,
46
हृदय थाम लेता संसार ,
उत्तर :-बादलराग क्रां वत का प्रतीक है । इन दोनों के आगमन के उपरां त विश्व हरा- भरा.
समृद्ध और स्वथथ हो जाता है ।
उत्तर :-सुख सदै ि बना नहीं रहता अतुः उसे अन्द्रथथर कहा जाता है ।
प्रश्न३ :-विप्लिी बादल की युद्ध रूपी नौका की क्ा- क्ा विशेर्ताएं हैं ?
उत्तर :-बादलों के अंदर आम आदमी की इच्छाएाँ भरी हुई हैं ।वजस तरह से युद्र्ध नौका में
युद्ध की सामग्री भरी होती है ।युद्ध की तरह बादल के आगमन पर रणभेरी बजती है ।
सामान्यजन की आशाओं के अंकुर एक साथ फूट पड़ते हैं ।
प्रश्न४ :-बादल के बरसने का गरीब एिं धनी िगय से क्ा संबंध जोड़ा गया है ?
उत्तर:-बादल के बरसने से गरीब िगय आशा से भर जाता है एिं धनी िगय अपने विनाश की
आशंका से भयभीत हो उठता है ।
47
स ंर्दयट -बोध-संबंधी प्रश्न
शस्य अपार ,
वहल वहल
न्द्रखल न्द्रखल
हाथ वहलाते
तुझे बुलाते।
प्रश्न १:- वनम्न वलन्द्रखत प्रतीकों को स्पष्ट कीवजए– छोटे पौधे, सुप्त अं कुर
उत्तर :-प्रसन्न वचत्त वनधयन िगय जो क्रां वत की सं भािना मात्र से न्द्रखल उठता है ।
उत्तर:-बचपन में मनु ष्य वनविंत होता है । वनधयन मनुष्य उस बच्चे के समान है जो क्रां वत के
समय भी वनभयय होता है और अंतत: लाभान्द्रन्वत होता है ।
कनवता–
बार्दल राग
उत्तर :-बादलों की गजय ना और मूसलाधार िर्ाय में बड़े बड़े -पियत िृक्ष घबरा जाते हैं ।उनको
उखड़कर नगर जािे का भय होता है |उसी प्रकार क्रावत की हुं कार से पूाँजीपनत घबरा
उिते हैं, िे वदल थाम कर रह जाते हैं ।उन्हें अपनी संपनत्त एवं सत्ता के नछि जािे का
भय होता है | उनकी अट्टानलकाएाँ मजबूती का भ्रम उत्पन्न करती हैं पर िास्ति में िे अपने
भविों में आतंनकत होकर रहते हैं |
प्रश्न२:- कवि ने वकसान का जो शब्द-वचत्र वदया है उसे अपने शब्दों में वलन्द्रखए |
48
उत्तर :- वकसान के जीवि का रस शोषकों िे चूस नलया है ,आशा और उत्साह की
संजीविी समाि हो चुकी है |शरीर से भी िह र्दु बटल एवं खोखला हो चुका है | क्रां वत
का वबगुल उसके हृर्दय में आशा का संचार करता है |िह प्तखलप्तखला कर बार्दल रूपी
क्रांनत का स्वागत करता है |
उत्तर:- बादल की गजय ना के साथ वबजली वगरने से बड़े –बड़े वृक्ष जल कर राख हो जाते
हैं | उसी प्रकार क्रां वत की आं धी आने से शोषक, धिी वगट की सत्ता समाि हो जाती है
और िे खत्म हो जाते हैं |
प्रश्न४:- पृथ्वी में सोये अंकुर वकस आशा से ताक रहे हैं ?
उत्तर :- बादल के बरसने से बीज अंकुररत हो लहलहािे लगते हैं | अत: बादल की
गजयन उनमें आशाएाँ उत्पन्न करती है | िे वसर ऊाँचा कर बार्दल के आिे की राह निहारते
हैं | ठीक उसी प्रकार वनधयन व्न्द्रक्त शोषक के अिाचार से मुप्तक्त पािे और अपने जीिन
की खुशहाली की आशा में क्रांनत रूपी बार्दल की प्रतीक्षा करते हैं |
प्रश्न५:- रुद्ध कोर् है , क्षुब्द्द्ध तोर् –वकसके वलए कहा गया है और क्ों ?
उत्तर :- क्रां वत होने पर पूंजीपवत िगय का धि नछि जाता है ,कोष ररक्त हो जाता है |
उसके धि की आमर्द समाि हो जाती है | उसका संतोष भी अब ‘बीते नर्दिों की
बात’ हो जाता है |
उत्तर :- मानि-जीिन में सुख सदा बना नहीं रहता है , उस पर दु ुःख की छाया सदा
मंडराती रहती है |
उत्तर :- बादल इस कविता में क्रांनत का प्रतीक है | वजस प्रकार बादल प्रकृनत ,नकसाि
और आम आर्दमी के जीवि में आिंर्द का उपहार ले कर आता है उसी प्रकार क्रां वत
वनधयन शोवर्त िगय के जीिन में समािता का अनधकार व संपन्नता ले कर आता है
उत्तर :- क्रां वत रूपी बादल का आगमन जीविर्दायी, सुखर्द होता है -पारािार अथाय त
सागर | िह जीवि में खुनशयों का खजािा लेकर आता है | निधटि वगट को समािता
का अनधकार दे ता है |सुख समृप्तद्ध का कारक बनकर अिाचार की अनि से मुक्त
करता है |
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8 कनवतावली
तुलसीर्दास
सार
श्रीरामजी को समवपयत ग्रन्थ श्रीरामचररतमानस उत्तर भारत मे बड़े भन्द्रक्तभाि से पढ़ा जाता है ।
लक्ष्मण -मूर्च्ाट और राम का नवलाप
रािण पुत्र मेघनाद द्वारा शन्द्रक्त बाण से मूवछय त हुए लक्ष्मण को दे खकर राम व्ाकुल हो जाते
हैं ।सुर्ेण िैद्य ने संजीिनी बूटी लाने के वलए हनुमान को वहमालय पियत पर भेजा।आधी रात
व्तीत होने पर जब हनुमान नहीं आए,तब राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर हृदय
से लगा वलया और साधारण मनुष्य की भााँ वत विलाप करने लगे।राम बोले हे भाई......
तुम मुझे कभी दु खी नहीं दे ख सकते थे।तुम्हारा स्वभाि सदा से ही कोमल था।तुमने मेरे !
वलए माता वपता को भी छोड़ वदया और मेरे साथ िन में सदी,गमी और विवभन्न प्रकार की
विपरीत पररन्द्रथथवतयों को भी सहा|जैसे पंख वबना पक्षी,मवण वबना सपय और सूाँड वबना श्रेष्ठ
हाथी अत्यंत दीन हो जाते हैं ,हे भाई!यवद मैं जीवित रहता हाँ तो मेरी दशा भी िैसी ही हो
जाएगी।
मैं अपनी पत्नी के वलए अपने वप्रय भाई को खोकर कौन सा मुाँह लेकर अयोध्या जाऊाँगा।इस
बदनामी को भले ही सह लेता वक राम कायर है और अपनी पत्नी को खो बैठा। स्त्री की
हावन विशेर् क्षवत नहीं है ,परन्तु भाई को खोना अपूरणीय क्षवत है ।
‘रामचररतमानस’ के ‘लंका कां ड’ से गृही लक्ष्मण को शप्तक्त बाण लगिे का प्रसंग कवि
की मावमयक थथलों की पहचान का एक श्रेष्ठ नमूना है । भाई के शोक में विगवलत राम का
नवलाप धीरे धीरे प्रलाप में बदल जाता है -, वजसमें लक्ष्मण के प्रवत राम के अंतर में नछपे
प्रेम के कई कोण सहसा अनािृत हो जाते हैं ।यह प्रसंग ईश्वर राम में मािव सुलभ गुणों
का समन्वय कर दे ता है | हनुमान का संजीिनी लेकर आ जाना करुण रस में वीर रस
का उर्दय हो जाने के समान है |
कनवत्त और सवैया
सार
50
यथाथट है , वजसमें िे कृपालु प्रभु राम व रामराज्य का स्वप्न रचते हैं । युग और उसमें अपने
जीिन का न वसफय उन्हें गहरा बोध है , बन्द्रल्क उसकी अवभव्न्द्रक्त में भी िे अपने समकालीन
कवियों से आगे हैं । यहााँ पाठ में प्रस्तुत ‘कवितािली’ के छं द इसके प्रमाणस्वरूप हैं । पहले -
छं द”वकसिी वकसान ....“ में उन्होंने वदखलाया है वक संसार के अच्छे बुरे समस्त-लीला-
प्रपंचों का आधार‘पेट की आग’का गहन यथाथय है ; वजसका समाधान िे राम की भन्द्रक्त
में दे खते हैं । दररद्रजन की व्था दू र करने के वलए राम रूपी घनश्याम का आह्वान वकया
गया है । पेट की आग बुझािे के नलए राम रूपी वषाट का जल अनिवायट है ।इसके वलए
अिैनतक कायट करिे की आवश्यकता िही ं है ।‘ इस प्रकार, उनकी राम भन्द्रक्त पे ट की
आग बुझाने िाली यानी जीवि के यथाथट संकटों का समाधाि करिे वाली है ; न वक केिल
आध्यान्द्रत्मक मुन्द्रक्त दे ने िाली| गरीबी की पीड़ा रावण के समाि र्दु खर्दायी हो गई है ।
तीसरे छं द )”धूत कहौ...“) में भन्द्रक्त की गहनता और सघनता में उपजे भक्तहृर्दय के
आत्मनवश्वास का सजीव नचत्णहै , वजससे समाज में व्ाप्त जातपााँ त और दु राग्रहों के -
वतरस्कार का साहस पैदा होता है । इस प्रकारभप्तक्त की रचिात्मक भूनमका का संकेत
यहााँ है , जो आज के भेर्दभाव मूलक युग में अनधक प्रासंनगक है |
मम वहत लावग तजेहु वपतु माता। सहे हु वबवपन वहम आतप बाता॥
जौं जनतेउाँ बन बंधु वबछोह। वपता बचन मनते उाँ नवहं ओह॥
जथा पंख वबनु खग अवत दीना। मवन वबनु फवन कररबर कर हीना॥
51
वनज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥
सौंपेवस मोवह तुम्हवह गवह पानी। सब वबवध सुखद परम वहत जानी॥
उतरु काह दै हउाँ तेवह जाई। उवठ वकन मोवह वसखािहु भाई॥“
उत्तर :- भाई के शोक में विगवलत राम का नवलाप धीरे - धीरे प्रलाप में बदल जाता है-,
वजसमें लक्ष्मण के प्रवत राम के अंतर में नछपे प्रेम के कई कोण सहसा अनािृत हो जाते
हैं । यह प्रसंग ईश्वर राम में मािव सुलभ गुणों का समन्वय कर दे ता है | िे मनुष्य की
भां वत विचवलत हो कर ऐसे िचन कहते हैं जो मानिीय प्रकृवत को ही शोभा दे ते हैं |
उत्तर :-राम के अनुसार धन ,पुत्र एिं नारी की हावन बड़ी हावन नहीं है क्ोंवक ये सब खो
जाने पर पुन: प्राप्त वकये जा सकते हैं पर एक बार सगे भाई के खो जाने पर उसे पुन:
प्राप्त नहीं वकया जा सकता |
प्रश्न४:- पंख के वबना पक्षी और सूंड के वबना हाथी की क्ा दशा होती है काव् प्रसंग में
इनका उल्लेख क्ों वकया गया है ?
उत्तर :- राम विलाप करते हुए अपनी भािी न्द्रथथवत का िणयन कर रहे हैं वक जैसे पंख
के वबना पक्षी और सूंड के वबना हाथी पीवड़त हो जाता है ,उनका अन्द्रस्तत्व नगण्य हो जाता
है िैसा ही असहनीय कष्ट राम को लक्ष्मण के न होने से होगा |
52
स ंर्दयट -बोध-संबंधी प्रश्न
दृष्टां त अलंकार - जथा पंख वबन खग अवत दीना।मवन वबनु फवन कररबर कर हीना।
53
उत्तर :- इस पद में 31. 31 िणों का चार चरणों िाला समिवणयक कवित्त छं द है
वजसमें 16 एिं 15 िणों पर विराम होता है ।
१. अनुप्रास अंलकार–
प्रश्न १:-‘ति प्रताप उर रान्द्रख प्रभु में वकसके प्रताप का उल्लेख वकया गया है ?’और क्ों ?
उत्तर :-इन पाँन्द्रक्तयों में भरत के प्रताप का उल्लेख वकया गया है । हनुमानजी उनके प्रताप
का िरण करते हुए अयोध्या के ऊपर से उड़ते हुए संजीिनी ले कर लंका की ओर चले जा
रहे हैं ।
प्रश्न२:- राम विलाप में लक्ष्मण की कौन सी विशेर्ताएाँ उद् घवटत हुई हैं ?
उत्तर :-लक्ष्मण का भ्ातृ प्रेम. त्यागमय जीिन इन पाँन्द्रक्तयों के माध्यम से उदघावटत हुआ है ।
उत्तर :-भगिान राम एक साधारण मनुष्य की तरह विलाप कर रहे हैं वकसी अितारी मनुष्य
की तरह नहीं। भ्ातृ प्रेम का वचत्रण वकया गया है ।तुलसीदास की मानिीय भािों पर सशक्त
पकड़ है ।दै िीय व्न्द्रक्तत्व का लीला रूप ईश्वर राम को मानिीय भािों से समन्द्रन्वत कर दे ता
है ।
प्रश्न४:- भाई के प्रवत राम के प्रे म की प्रगाढ़ता उनके वकन विचारों से व्क्त हुई है ?
जो जड़ दै ि वजआिै मोही।
54
प्रश्न५:- ‘बहुविवध सोचत सोचविमोचन’ का विरोधाभास स्पष्ट कीवजए।
उत्तर :-दीनजन को शोक से मुक्त करने िाले भगिान राम स्वयं बहुत प्रकार से सोच में
पड़कर दु खी हो रहे हैं ।
प्रश्न६:- हनुमान का आगमन करुणा में िीर रस का आना वकस प्रकार कहा जा सकता
है ?
उत्तर :-रुदन करते िानर समाज में हनुमान उत्साह का संचार करने िाले िीर रस के रूप
में आ गए। करुणा की नदी हनुमान द्वारा संजीिनी ले आने पर मंगलमयी हो उठती है ।
कनवत्त और सवैया
प्रश्न१:- पेट की भूख शां त करने के वलए लोग क्ा क्ा करते हैं ?
उत्तर :-पेट की आग बुझाने के वलए लोग अनै वतक कायय करते हैं ।
प्रश्न२:- तुलसीदास की दृवष्ट में सां साररक दु खों से वनिृवत्त का सिोत्तम उपाय क्ा है ?
उत्तर :- पेट की आग बुझाने के वलए राम कृपा रूपी िर्ाय का जल अवनिायय है ।इसके
वलए अनैवतक कायय करने की आिश्यकता नहीं है ।
उत्तर :- तुलसी के युग में प्राकृवतक और प्रशासवनक िैर्म्य के चलते उत्पन्न पीडा. दररद्रजन
के वलए रािण के समान दु खदायी हो गई है ।
प्रश्न४:- तुलसीदास की भन्द्रक्त का कौन सा स्वरूप प्रस्तुत कवित्तों में अवभव्क्त हुआ है ?
उत्तर :- तुलसीदास की भन्द्रक्त का दास्य भाि स्वरूप प्रस्तुत कवित्तों में अवभव्क्त हुआ है ।
9 रूबाइयााँ
नफ़राक गोरखपुरी
उदू य शायरी की ररिायत के विपरीत वफराक गोरखपुरी के सावहत्य में लोक जीिन एिं
प्रकृवत की झलक वमलती है । सामावजक संिेदना िैयन्द्रक्तक अनुभूवत बन कर उनकी रचनाओं
में व्क्त हुई है ।जीिन का कठोर यथाथय उनकी रचनाओं में थथान पाता है ।उन्होंने लोक भार्ा
के प्रतीकों का प्रयोग वकया है । लाक्षवणक प्रयोग उनकी भार्ा की विशेर्ता है ।विराक की
रुबाईयों में घरे लू वहं दी का रूप वदखता है |
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रुबाई उदू य और िारसी का एक छं द या लेखन शैली है वजसमें चार पंन्द्रक्तयााँ होती हैं |इसकी
पहली ,दू सरी और चौथी पंन्द्रक्त में तुक (काविया)वमलाया जाता है तथा तीसरी पंन्द्रक्त स्वच्छं द
होती है |
“भाई के है बााँ धती चमकती राखी।“- जैसे प्रयोग उनकी भार्ा की सशक्तता के नमूने के
तौर पर दे खे जा सकते हैं |
सार
रूबाइयााँ
रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है । रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर वबजली के लच्छे हैं । सािन में
रक्षाबंधन आता है । सािन का जो संबंध झीनी घटा से है , घटा का जो संबंध वबजली से है
िही संबंध भाई का बहन से होता है ।
गज़ल
पाठ में वफराक की एक गज़ल भी शावमल है । रूबाइयों की तरह ही वफराक की गजलों में
भी वहं दी समाज और उदू य शायरी की परं परा भरपूर है । इसका अद् भुत नमूना है यह गज़ल।
यह गज़ल कुछ इस तरह बोलती है वक वजसमें ददय भी है , एक शायर की ठसक भी है
और साथ ही है काव्-वशल्प की िह ऊाँचाई जो गज़ल की विशेर्ता मानी जाती है ।
उत्तर :-बच्चे को चााँ द का टु कड़ा कहा गया है जो मााँ के वलए बहुत यारा होता है ।
उत्तर :- जब मााँ बच्चे को बाहों में लेकर हिा में उछालती है इसे लोका दे ना कहते
हैं |छोटे बच्चों को यह खेल बहुत अच्छा लगता है
उत्तर :- हिा में उछालने ( लोका दे ने) से बच्चा मााँ का िात्सल्य पाकर प्रसन्न होता है और
न्द्रखलन्द्रखला कर हाँ स पड़ता है ।बच्चे की वकलकाररयााँ मााँ के आनंद को दु गना कर दे ती हैं |
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स ंर्दयट -बोध-संबंधी प्रश्न
उत्तर :- मााँ ने अपने बच्चे को वनमयल जल से नहलाया उसके उलझे बालों में कंघी की
|मााँ के स्पशय एिं नहाने के आनंद से बच्चा प्रसन्न हो कर बड़े प्रेम से मााँ को वनहारता है |
प्रवतवदन की एक स्वाभाविक वक्रया से कैसे मााँ -बच्चे का प्रेम विकवसत होता है और प्रगाढ़
होता चला जाता है इस भाि को इस रुबाई में बड़ी सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत वकया गया है |
२ ‘घुटनियों में लेके है नपन्हाती कपड़े ’- इस प्रयोग में मााँ की बच्चे के प्रवत सािधानी
,चंचल बच्चे को चोट पहुाँ चाए वबना उसे कपड़े पहनाने से मााँ के मातृत्व की कुशलता
वबंवबतहोती है |
३ “नकस प्यार से र्दे खता है बच्चा मुाँह को”- पंन्द्रक्त में मााँ –बच्चे का िात्सल्य वबंवबत हुआ
है | मााँ से यार –दु लार ,स्पशय –सुख, नहलाए जाने के आनंद को अनुभि करते हुए बच्चा
मााँ को यार भरी नजरों से दे ख कर उस सुख की अवभव्न्द्रक्त कर रहा है |यह सूक्ष्म भाि
अत्यंत मनोरम बन पड़ा है |संपूणय रुबाई में दृश्य वबंब है |
छलके –छलके –शब्द की पुनरािृवत्त से अभी –अभी नहलाए गए बच्चे के गीले शरीर का
वबंब
आवद विलक्षण प्रयोग रुबाइयों को विवशष्ट बना दे ते हैं | वहं दी,उदू य और लोकभार्ा के अनूठे
गठबंधन की झलक, वजसे गां धीजी वहं दुस्तानी के रूप में पल्लवित करना चाहते थे ,दे खने को
वमलती है |
58
नवषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्नोत्तर
रूबाइयााँ
प्रश्न १ :-काव् में प्रयु क्त वबंबों का िणयन अपने शब्दों में कीवजए?
उत्तर :-
दृश्य वबंब :-बच्चे को गोद में लेना , हिा में उछालना ,स्नान कराना ,घुटनों में
लेकर कपड़े पहनाना|
श्रव्वबंब :- बच्चे का न्द्रखलन्द्रखला कर हाँ स पड़ना।
स्पशय वबंब :-बच्चे को स्नान कराते हुए स्पशय करना |
प्रश्न २:-“आाँ गन में ठु नक रहा है वज़दयाया है ,बालक तो हई चााँ द पै ललचाया है ’- में
बालक की कौन सी विशेर्ता अवभव्क्त हुई है ?
उत्तर :- राखी के चमकीले तारों को लर्च्े कहा गया है । रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर
वबजली के लच्छे हैं । सािन में रक्षाबंधन आता है । सािन का जो संबंध झीनी घटा से है , घटा
का जो संबंध वबजली से है िही संबंध भाई का बहन से होता है |सािन में नबजली की
चमक की तरह राखी के चमकीले धागों की सुंर्दरता दे खते ही बनती है |
गज़ल
नफ़राक गोरखपुरी
प्रश्न१:- ‘नौरस’ विशेर्ण द्वारा कवि वकस अथय की व्ंजना करना चाहता है ?
उत्तर :नौरस अथाय त नया रस ! गुंचे अथाय त कवलयों में नया –नया रस भर आया है |
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प्रश्न२:- पंखवड़यों की नाज़ुक वगरहें खोलने का क्ा अवभप्राय है ?
उत्तर :- रस के भर जाने से कवलयााँ विकवसत हो रही हैं |धीरे -धीरे उनकी पंखुवड़यााँ अपनी
बंद गााँ ठें खोल रही हैं | कवि के शब्दों में निरस ही उनकी बंद गााँ ठें खोल रहा है |
प्रश्न३:- ‘रं गो- बू गुलशन में पर तौले हैं ’ – का अथय स्पष्ट कीवजए|
उत्तर :-रं ग और सुगंध दो पक्षी हैं जो कवलयों में बंद हैं तथा उड़ जाने के वलए अपने पंख
फड़फड़ा रहे हैं |यह न्द्रथथवत कवलयों के फूल बन जाने से पूिय की है जो फूल बन जाने की
प्रतीक्षा में हैं |’पर तौलना’ एक मुहािरा है जो उड़ान की क्षमता आाँ कने के वलए प्रयोग
वकया जाता है |
उत्तर :-कवलयों की नई-नई पंखुवड़यााँ न्द्रखलने लगी हैं उनमें से रस मानो टपकना ही चाहता
है | िय:संवध(वकशोरी)नावयका के प्रस्फुवटत होते सौंदयय का प्रतीकात्मक वचत्रण अत्यंत सुंदर
बन पड़ा है |
उत्तर :-मुहािरे के प्रयोग द्वारा व्ंजनात्मक अवभव्न्द्रक्त | परदा खोलना – भेद खोलना
,सच्चाई बयान करना|
उत्तर :- हम और वकित दोनों शब्द एक ही व्न्द्रक्त अथाय त विराक के वलए प्रयुक्त हैं |
हम और वकित में अभेद है यही विशेर्ता है |
60
नफ़राक गोरखपुरी
प्रश्न१:- तारे आाँ खें झपकािें हैं –का तात्पयय स्पष्ट कीवजए |
उत्तर:- रावत्र का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है ।इसवलए तारे पलकें झपका रहे हैं । वियोग की
न्द्रथथवत में प्रकृवत भी संिाद करती प्रतीत होती है |
प्रश्न२:- ‘हम हों या वकित हो हमारी’ में वकस भाि की अवभव्न्द्रक्त हुई है ?
उत्तर:- जीिन की विडं बना, वकित को रोना-मुहािरे के प्रयोग से , सटीक अवभव्न्द्रक्त प्राप्त
करती है । कवि जीिन से संतुष्ट नहीं है | भाग्य से वशकायत का भाि इन पंन्द्रक्तयों में
झलकता है |
उत्तर :-ईश्वर की प्रान्द्रप्त सियस्व लुटा दे ने पर होती है । प्रे म के संसार का भी यही वनयम
है |कवि के शब्दों में ,” वितरत का कायम है तिाज़ुन आलमे- हुस्नो –इश्क में भी
१ भाि –साम्य:- कबीर -‘सीस उतारे भुई धरे तब वमवलहै करतार।‘-अथाय त -स्वयं को खो
कर ही प्रेम प्रान्द्रप्त की जा सकती है ।
२ भाि साम्य- कबीर –वजन ढूाँढा वतन पाइयााँ ,गहरे पानी पैवठ|
प्रश्न४:- शराब की महवफल में शराबी को दे र रात क्ा बात याद आती है ?
उत्तर :- शराब की महवफल में शराबी को दे र रात याद आती है वक आसमान में मनुष्य
के पापों का लेखा-जोखा होता है । जैसे आधी रात के समय फररश्ते लोगों के पापों के
अध्याय खोलते हैं िैसे ही रात के समय शराब पीते हुए शायर को महबूबा की याद हो आती
है मानो महबूबा फररश्तों की तरह पाप थथल के आस पास ही है ।
उत्तर :-सदके विराक–––इन पंन्द्रक्तयों में विराक कहते हैं वक उनकी शायरी में मीर की
शायरी की उत्कृष्टता ध्ववनत हो रही है ।
उत्तर :-पाँखुवड़यों की नाजुक वगरह खोलना उनका धीरे -धीरे विकवसत होना है ।
61
िय:संवध(वकशोरी)नावयका के प्रस्फुवटत होते सौंदयय की ओर संकेत है |
उत्तर :-कवलयों की सुिास उड़ने के वलए मानो पर तौल रही हो।अथाय त खुशबू का झोंका
रह–रह कर उठता है ।
प्रश्न८:- कवि द्वारा िवणयत रावत्र के दृश्य का िणयन अपने शब्दों में कीवजए।
उत्तर :- रावत्र का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है ।इसवलए तारे पलकें झपका रहे हैं ।लगता है
वक प्रकृवत का कण-कण कुछ कह रहा है |
प्रश्न९:- कवि अपने िैयन्द्रक्तक अनुभि वकन पाँन्द्रक्तयों में व्क्त कर रहा है ैै?
जीिन की विडं बना,-‘वकित को रोना‘ मुहािरे के प्रयोग से, सटीक अवभव्न्द्रक्त प्राप्त
करती है ।
उत्तर :-शायर ने दु वनया के इस दस्तूर का िणय न वकया है वक लोग दू सरों को बदनाम करते
हैं परं तु िे नहीं जानते वक इस तरह िे अपनी दु ष्ट प्रकृवत को ही उद् घावटत करते हैं ।
उमाशंकर जोशी
(गुजराती कनव)।
62
उमाशंकर जोशी बीसिी ं सदी के गुजराती के मूधयन्य कवि संस्कृत िाङ्मय के विद्वान हैं ।उन्होंने
गुजराती कविता को प्रकृवत से जोड़ा।आम आदमी के जीिन की झलक उनकी रचनाओं में
वमलती है ।
सार
खेती के रूपक द्वारा काव्य रचिा– प्रनक्रया को स्पष्ट वकया गया हे ।काव् कृवत की रचिा
बीज– वपि से लेकर प धे के पुप्तित होिे के नवनभन्न चरणों से गुजरती है ।अंतर केिल
इतना है वक कनव कमट की िसल कालजयी, शाश्वत होती है ।उसका रस-क्षरण अक्षय होता
है ।कागज का पन्ना, वजस पर रचना शब्दबद्ध होती है , कवि को एक चौकोर खेत की तरह
लगता है । इस खेत में वकसी अाँधड़ (आशय भािनात्मक आाँ धी से होगा) के प्रभाि से वकसी
क्षण एक बीज बोया जाता है । यह बीज-रचना विचार और अवभव्न्द्रक्त का हो सकता है । यह
मूल रूप कल्पना का सहारा लेकर विकवसत होता है और प्रवक्रया में स्वयं विगवलत हो जाता
है । उससे शब्दों के अंकुर वनकलते हैं और अंततुः कृवत एक पूणय स्वरूप ग्रहण करती है , जो
कृवर्-कमय के वलहाज से पल्लवित -पुन्द्रित होने की न्द्रथथवत है । सावहन्द्रत्यक कृवत से जो
अलौवकक रस-धारा फूटती है , िह क्षण में होने िाली रोपाई का ही पररणाम है पर यह रस-
धारा अनंत काल तक चलने िाली कटाई है |
बगुलों के पंख
सार
बगुलों के पंख कविता एक चाक्षुर् वबंब की कविता है । सौंदयय का अपेवक्षत प्रभाि उत्पन्न
करने के वलए कवियों ने कई युन्द्रक्तयााँ अपनाई हैं , वजसमें से सबसे प्रचवलत युन्द्रक्त है -सौंदयय
के व्ौरों के वचत्रात्मक िणयन के साथ अपने मन पर पड़ने िाले उसके प्रभाि का िणयन और
आत्मगत के संयोग की यह युन्द्रक्त पाठक को उस मूल सौंदयय के काफी वनकट ले जाती है ।
जोशी जी की इस कविता में ऐसा ही है । कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंन्द्रक्त बनाकर
उड़ते सफेद बगुलों को दे खता है । िे कजरारे बादलों में अटका-सा रह जाता है । िह इस
माया से अपने को बचाने की गुहार लगाता हैं । क्ा यह सौंदयय से बााँ धने और विंधने की चरम
न्द्रथथवत को व्क्त करने का एक तरीका है ।
प्रकृवत का स्वतं त्र (आलंबन गत ) वचत्रण आधुवनक कविता की विशेर्ता है ।वचत्रात्मक िणयन
द्वारा कवि ने एक ओर काले बादलों पर उड़ती बगुलों की श्वेत पंन्द्रक्त का वचत्र अंवकत वकया
है तो दू सरी ओर इस अप्रवतम दृश्य के हृदय पर पड़ने िाले प्रभाि को वचवत्रत वकया है ।मंत्र
मुग्ध कवि इस दृश्य के प्रभाि से आत्म वििृवत की न्द्रथथवत तक पहुाँ च जाता है ।विर्य एिं
विर्यीगत सौन्दयय के दोनों रूप कविता में उद् घावटत हुए हैं ।
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“छोटा मेरा खेत चौकोना
कल्पना के रसायनों को पी
उत्तर :- प्रश्न२ ‘छोटा मेरा खेत’ काग़ज के उस पन्ने का प्रतीक है वजस पर कवि अपनी
कविता वलखता है ।
उत्तर :- खेती के रूपक द्वारा काव्य-रचिा–प्रनक्रया को स्पष्ट वकया गया हे ।काव् कृवत की
रचिा बीज– वपि से लेकर प धे के पुप्तित होिे के नवनभन्न चरणों से गुजरती है ।अंतर
केिल इतना है वक कनव कमट की िसल कालजयी, शाश्वत होती है ।उसका रस-क्षरण
अक्षय होता है ।
रस अलौवकक ,
रोपाई क्षण की ,
कटाई अनंतता की
64
रस का अक्षय पात्र सदा का
उत्तर ;- १ प्रतीकात्मकता
२ लाक्षवणकता -
कटाई –रसास्वादन
कनवता –
काव् कृवत की रचिा बीज– वपि से लेकर प धे के पुप्तित होिे के नवनभन्न चरणों से
गुजरती है ।
उत्तर :- कवि ने काले बादलों पर उड़ती बगुलों की श्वेत पंन्द्रक्त का वचत्रण वकया है |
उत्तर :- आाँ खें चुराने का आशय है –ध्यान पूरी तरह खींच लेना ,एकटक दे खना ,मंत्रमुग्ध
कर दे ना
प्रश्न३:-
हौले –हौले जाती मुझे बााँ ध वनज माया से |”- आशय स्पष्ट कीवजए |
उत्तर:- काले बादलों के बीच सााँ झ का सुरमई िातािरण बहुत सुंदर वदखता है | ऐसा
अप्रवतम सौंदयय अपने आकर्यण में कवि को बााँ ध लेता है |
प्रश्न ४ “उसे कोई तवनक रोक रक्खो |’- से कवि का क्ा अवभप्राय है ?
66
उत्तर :- बगुलों की पंन्द्रक्त आकाश में दू र तक उड़ती जा रही है कवि की मंत्रमुग्ध आाँ खें
उनका पीछा कर रही हैं | कवि उन बगुलों को रोक कर रखने की गुहार लगा रहा है वक
कहीं िे उसकी आाँ खें ही अपने साथ न ले जाएाँ |
उत्तर :-वचत्रात्मक िणयन द्वारा कवि ने एक ओर काले बादलों पर उड़ती बगुलों की श्वेत पंन्द्रक्त
का वचत्र अंवकत वकया है तथा इस अप्रवतम दृश्य के हृदय पर पड़ने िाले प्रभाि को वचवत्रत
वकया है । कवि के अनुसार यह दृश्य उनकी आाँ खें चुराए वलए जा रहा है |मंत्र मुग्ध कवि इस
दृश्य के प्रभाि से आत्म वििृवत की न्द्रथथवत तक पहुाँ च जाता है ।
उत्तर :- माया विश्व को अपने आकर्यण में बााँ ध लेने के वलए प्रवसद्ध है | कबीर ने भी
‘माया महा ठवगनी हम जानी’ कहकर माया की शन्द्रक्त को प्रवतपावदत वकया है | काले
बादलों में बगुलों की सुं दरता अपना माया जाल फैला कर कवि को अपने िश में कर रही है
|
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आरोह भाग-२, गद्य-भाग
प्रश्न-संख्या १०- गद्य खंड में वदए गए पवठत गद्यां श से अथयग्रहण संबंधी चार
प्रश्न पूछे जाएाँ गे, वजनके वलए वनधाय ररत अंक (२*४=८) हैं |
प्रश्न-संख्या ११- पाठों की विर्यिस्तु से संबंवधत पााँ च में से चार प्रश्नों के उत्तर
दे ने हैं , वजनके वलए वनधाय ररत अंक (३*४=१२) हैं |
परीक्षा में अर्च्े अंक प्राि करिे के नलए ध्याि र्दे िे योग्य बातें –
पाि 11 - भप्तक्ति
पाि का सारांश- भन्द्रक्तन वजसका िास्तविक नाम लक्ष्मी था,लेन्द्रखका ‘महादे िी िमाय ’ की
सेविका है | बचपन में ही भन्द्रक्तन की मााँ की मृत्यु हो गयी| सौते ली मााँ ने पााँ च िर्य की
आयु में वििाह तथा नौ िर्य की आयु में गौना कर भन्द्रक्तन को ससुराल भेज वदया| ससुराल
में भन्द्रक्तन ने तीन बेवटयों को जन्म वदया, वजस कारण उसे सास और वजठावनयों की उपेक्षा
सहनी पड़ती थी| सास और वजठावनयााँ आराम फरमाती थी और भन्द्रक्तन तथा उसकी नन्हीं
बेवटयों को घर और खेतों का सारा काम करना पडता था| भन्द्रक्तन का पवत उसे बहुत
चाहता था| अपने पवत के स्नेह के बल पर भन्द्रक्तन ने ससुराल िालों से अलगौझा कर अपना
अलग घर बसा वलया और सुख से रहने लगी, पर भन्द्रक्तन का दु भाय ग्य, अल्पायु में ही उसके
पवत की मृत्यु हो गई | ससुराल िाले भन्द्रक्तन की दू सरी शादी कर उसे घर से वनकालकर
उसकी संपवत्त हड़पने की सावजश करने लगे| ऐसी पररन्द्रथथवत में भन्द्रक्तन ने अपने केश मुंडा
वलए और संन्यावसन बन गई | भन्द्रक्तन स्वावभमानी, संघर्यशील, कमयठ और दृढ संकल्प िाली
स्त्री है जो वपतृसत्तात्मक मान्यताओं और छ्ल-कपट से भरे समाज में अपने और अपनी
बेवटयों के हक की लड़ाई लड़ती है ।घर गृहथथी साँभालने के वलए अपनी बड़ी बेटी दामाद को
बुला वलया पर दु भाय ग्य ने यहााँ भी भन्द्रक्तन का पीछा नहीं छोड़ा, अचानक उसके दामाद की
भी मृत्यु हो गयी| भन्द्रक्तन के जेठ-वजठौत ने सावजश रचकर भन्द्रक्तन की विधिा बेटी का
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वििाह जबरदस्ती अपने तीतरबाज साले से कर वदया| पंचायत द्वारा कराया गया यह सं बंध
दु खदायी रहा | दोनों मााँ -बेटी का मन घर-गृहथथी से उचट गया, वनधयनता आ गयी, लगान
न चुका पाने के कारण जमींदार ने भन्द्रक्तन को वदन भर धूप में खड़ा रखा| अपमावनत
भन्द्रक्तन पैसा कमाने के वलए गााँ ि छोड़कर शहर आ जाती है और महादे िी की सेविका बन
जाती है | भन्द्रक्तन के मन में महादे िी के प्रवत बहुत आदर, समपय ण और अवभभािक के
समान अवधकार भाि है | िह छाया के समान महादे िी के साथ रहती है | िह रात-रात भर
जागकर वचत्रकारी या लेखन जैसे कायय में व्स्त अपनी मालवकन की सेिा का अिसर ढूाँढ
लेती है | महादे िी, भन्द्रक्तन को नहीं बदल पायी पर भन्द्रक्तन ने महादे िी को बदल वदया|
भन्द्रक्तन के हाथ का मोटा-दे हाती खाना खाते -खाते महादे िी का स्वाद बदल गया, भन्द्रक्तन ने
महादे िी को दे हात के वकस्से -कहावनयााँ , वकंिदं वतयााँ कंठथथ करा दी| स्वभाि से महाकंजूस
होने पर भी भन्द्रक्तन, पाई-पाई कर जोडी हुई १०५ रुपयों की रावश को सहर्य महादे िी को
समवपयत कर दे ती है | जे ल के नाम से थर-थर कााँ पने िाली भन्द्रक्तन अपनी मालवकन के साथ
जेल जाने के वलए बड़े लाट साहब तक से लड़ने को भी तैयार हो जाती है | भन्द्रक्तन,
महादे िी के जीिन पर छा जाने िाली एक ऐसी सेविका है वजसे लेन्द्रखका नहीं खोना चाहती।
नोट- उत्तर में वनवहत रे खां वकत िाक्, मुख्य सं केत वबंदु हैं |
प्रश्न 1-भप्तक्ति का वास्तनवक िाम क्या था, वह अपिे िाम को क्यों छु पािा चाहती थी?
उत्तर-घुटा हुआ वसर, गले में कंठी माला और भक्तों की तरह सादगीपूणय िेशभूर्ा दे खकर
महादे िी िमाय ने लक्ष्मी का नाम भन्द्रक्तन रख वदया | यह नाम उसके व्न्द्रक्तत्व से पूणयत: मेल
खाता था |
प्रश्न 3-भप्तक्ति के जीवि को नकतिे पररर्च्े र्दों में नवभानजत नकया गया है ?
पहला पररर्च्े र्द-भन्द्रक्तन का बचपन, मााँ की मृत्यु, विमाता के द्वारा भन्द्रक्तन का बाल-
वििाह करा दे ना ।
नद्वतीय पररर्च्े र्द-भन्द्रक्तन का िैिावहक जीिन, सास तथा वजठावनयों का अन्यायपूणय
व्िहार, पररिार से अलगौझा कर लेना ।
तृतीय पररर्च्े र्द- पवत की मृत्यु, विधिा के रूप में संघर्यशील जीिन।
चतुथट पररर्च्े र्द- महादे िी िमाय की सेविका के रूप में ।
प्रश्न 4- भप्तक्ति पाि के आधार पर भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़नकयों में नकये
जािे वाले भेर्दभाव का उल्लेख कीनजए |
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भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़वकयों में भेदभाि वकया जाता है | लड़वकयों को खोटा
वसक्का या पराया धन माना जाता है | भन्द्रक्तन ने तीन बेवटयों को जन्म वदया, वजस कारण
उसे सास और वजठावनयों की उपेक्षा सहनी पड़ती थी| सास और वजठावनयााँ आराम फरमाती
थी क्ोंवक उन्होंने लड़के पैदा वकए थे और भन्द्रक्तन तथा उसकी नन्हीं बेवटयों को घर और
खेतों का सारा काम करना पडता था| भन्द्रक्तन और उसकी बेवटयों को रूखा-सूखा मोटा
अनाज खाने को वमलता था जबवक उसकी वजठावनयााँ और उनके काले-कलूटे बेटे दू ध-मलाई
राब-चािल की दाित उड़ाते थे
भन्द्रक्तन की बेटी के सन्दभय में पंचायत द्वारा वकया गया न्याय, तकयहीन और अंधे कानून पर
आधाररतहै | भन्द्रक्तन के वजठौत ने संपवत्त के लालच में र्डयंत्र कर भोली बच्ची को धोखे से
जाल में फंसाया| पंचायत ने वनदोर् लड़की की कोई बात नहीं सुनी और एक तरिा फैसला
दे कर उसका वििाह जबरदस्ती वजठौत के वनकम्मे तीतरबाज साले से कर वदया | पंचायत के
अंधे कानून से दु ष्टों को लाभ हुआ और वनदोर् को दं ड वमला |
भन्द्रक्तन को ठे ठ दे हाती, सादा भोजन पसंद था | रसोई में िह पाक छूत को बहुत महत्त्
दे ती थी | सुबह-सिेरे नहा-धोकर चौके की सफाई करके िह द्वार पर कोयले की मोटी
रे खा खींच दे ती थी| वकसी को रसोईघर में प्रिेश करने नहीं दे ती थी| उसे अपने बनाए
भोजन पर बड़ा अवभमान था| िह अपने बनाए भोजन का वतरस्कार नहीं सह सकती थी |
भन्द्रक्तन तकयपटु थी | केश मुाँडाने से मना वकए जाने पर िह शास्त्रों का हिाला दे ते हुए
कहती है ‘तीरथ गए मुाँडाए वसद्ध’ | घर में इधर-उधर रखे गए पैसों को िह चुपचाप उठा
कर छु पा लेती है , टोके जानेपर िह िह इसे चोरी नही मानती बन्द्रल्क िह इसे अपने घर में
पड़े पैसों को साँभालकर रखना कहती है | पढाई-वलखाई से बचने के वलए भी िह अचूक
तकय दे ती है वक अगर मैं भी पढ़ने लगूाँ तो घर का काम कौन दे खेगा?
प्रश्न 8-भप्तक्ति का र्दु भाटग्य भी कम हिी िही था, लेप्तखका िे ऐसा क्यों कहा है?
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7- दामाद का वनधन और पंचायत के द्वारा वनकम्मे तीतरबाज युिक से भन्द्रक्तन की विधिा
बेटी का जबरन वििाह ।
8- लगान न चुका पाने पर जमींदार के द्वारा भन्द्रक्तन का अपमान।
उत्तर- भन्द्रक्तन के साथ रहकर महादे िी की जीिन-शैली सरल हो गयी, िे अपनी सुविधाओं
की चाह को वछपाने लगीं और असुविधाओं को सहने लगीं। भन्द्रक्तन ने उन्हें दे हाती भोजन
न्द्रखलाकर उनका स्वाद बदल वदया। भन्द्रक्तन मात्र एक सेविका न होकर महादे िी की
अवभभािक और आत्मीय बन गयी।भन्द्रक्तन, महादे िी के जीिन पर छा जाने िाली एक ऐसी
सेविका है वजसे लेन्द्रखका नहीं खोना चाहती।
उत्तर- महादे िी िमाय की सेविका भन्द्रक्तन के व्न्द्रक्तत्व की विशेर्ताएं वनम्नां वकत हैं -
समवपयत सेविका
स्वावभमानी
तकयशीला
पररश्रमी
संघर्यशील
प्रश्न 11-भप्तक्ति के र्दु गुटणों का उल्लेख करें ।
खोटे नसक्कों की टकसाल जैसी पत्नी- आज भी अवशवक्षत ग्रामीण समाज में बेवटयों
को खोटा वसक्का कहा जाता है । भन्द्रक्तन ने एक के बाद एक तीन बेवटयााँ पैदा कर
दी इसवलए उसे खोटे वसक्के को ढालने िाली मशीन कहा गया।
प्रश्न 13-भप्तक्ति पाि में लेप्तखका िे समाज की नकि समस्याओं का उल्लेख नकया है?
उत्तर- भन्द्रक्तन पाठ के माध्यम से लेन्द्रखका ने भारतीय ग्रामीण समाज की अनेक समस्याओं
का उल्लेख वकया है -
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1. लड़के-लड़वकयों में वकया जाने िाला भेदभाि
2. विधिाओं की समस्या
3. न्याय के नाम पर पंचायतों के द्वारा न्द्रस्त्रयों के मानिावधकार को कुचलना
4. अवशक्षा और अंधविश्वास
गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण संबंनधत प्रश्नोत्तर
पररिार और पररन्द्रथथवतयों के कारण स्वभाि में जो विर्मताएाँ उत्पन्न हो गई हैं , उनके भीतर
से एक स्नेह और सहानु भूवत की आभा फूटती रहती है , इसी से उसके संपकय में आनेिाले
व्न्द्रक्त उसमें जीिन की सहज मावमयकता ही पाते हैं । छात्रािास की बावलकाओं में से कोई
अपनी चाय बनिाने के वलए दे हली पर बैठी रहती हैं , कोई बाहर खडी मेरे वलए नाश्ते को
चखकर उसके स्वाद की वििेचना करती रहती है । मेरे बाहर वनकलते ही सब वचवड़यों के
समान उड़ जाती हैं और भीतर आते ही यथाथथान विराजमान हो जाती है । इन्हें आने में
रूकािट न हो, संभितुः इसी से भन्द्रक्तन अपना दोनों जून का भोजन सिेरे ही बनाकर ऊपर
के आले में रख दे ती है और खाते समय चौके का एक कोना धोकर पाक–छूत के सनातन
वनयम से समझौता कर लेती है ।
उत्तर- भन्द्रक्तन के पास कोई छात्रा अपनी चाय बनिाने आती है और दे हली पर बैठी रहती
है , कोई महादे िी जी के वलए बने नाश्ते को चखकर उसके स्वाद की वििेचना करती रहती
है । महादे िी को दे खते ही सब छात्राएाँ भाग जाती हैं , उनके जाते ही वफर िापस आ जातीं हैं
भन्द्रक्तन का सहज-स्नेह पाकर वचवड़यों की तरह चहचहाने लगती हैं |
(ग) छात्ाओं के आिे में रुकावट ि िालिे के नलए भप्तक्ति िे क्या उपाय नकया ?
उत्तर- छात्राओं के आने में रुकािट न डालने के वलए भन्द्रक्तन ने अपने पाक-छूत के वनयम
से समझौता कर वलया | भन्द्रक्तन अपना दोनों िक्त का खाना बनाकर सुबह ही आले में रख
दे ती और खाते समय चौके का एक कोना धोकर िहााँ बैठकर खा वलया करती थी तावक
छात्राएाँ वबना रोक-टोक के उसके पास आ सकें।
उत्तर-भन्द्रक्तन महादे िी के सावहन्द्रत्यक वमत्र के प्रवत सद्भाि रखती थी वजसके प्रवत महादे िी स्वयं
सद्भाि रखती थी | िह सभी से पररवचत है पर उनके प्रवत सम्मान की मात्रा महादे िी जी के
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सम्मान की मात्रा पर वनभयर करती है । िह एक अद् भुत ढं ग से जान लेती थी वक कौन
वकतना सम्मान करता है । उसी अनुपात में उसका प्राय उसे दे ती थी।
12 बाजार-र्दशटि
प्रश्न१ - पचेनजंग पावर नकसे कहा गया है , बाजार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर- पचेवजंग पािर का अथय है खरीदने की शन्द्रक्त। पचेवजंग पािर के घमंड में व्न्द्रक्त
वदखािे के वलए आिश्यकता से अवधक खरीदारीकरता है और बाजार को शैतानी व्ंग्य-शन्द्रक्त
दे ता है । ऐसे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं ।
प्रश्न२ -लेखक िे बाजार का जार्दू नकसे कहा है , इसका क्या प्रभाव पड़ता है ?
मन खाली होना
मन भरा होना
मन बंद होना
उत्तर-मि खाली होिा- मन में कोई वनवित िस्तु खरीदने का लक्ष्य न होना। वनरुद्दे श्य
बाजार जाना और व्थय की चीजों को खरीदकर लाना।
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मि भरा होिा- मन लक्ष्य से भरा होना। वजसका मन भरा हो िह भलीभााँ वत जानता है वक
उसे बाजार से कौन सी िस्तु खरीदनी है , अपनी आिश्यकता की चीज खरीदकर िह बाजार
को साथयकता प्रदान करता है ।
मि बंर्द होिा-मन में वकसी भी प्रकार की इच्छा न होना अथाय त अपने मन को शून्य कर
दे ना।
प्रश्न४ - ‘जहााँ तृष्णा है , बटोर रखिे की स्पृहा है , वहााँ उस बल का बीज िही ं है।’
यहां नकस बल की चचाट की गयी है ?
उत्तर- लेखक ने संतोर्ी स्वभाि के व्न्द्रक्त के आत्मबलकी चचाय की है । दू सरे शब्दों में यवद
मन में संतोर् हो तो व्न्द्रक्त वदखािे और ईष्याय की भािना से दू र रहता है उसमें संचय करने
की प्रिृवत्त नहीं होती।
उत्तर- जब बाजार में कपट और शोर्ण बढ़ने लगे, खरीददार अपनी पचेवचंग पािर के
घमंड में वदखािे के वलए खरीददारी करें | मनुष्यों में परस्पर भाईचारा समाप्त हो जाए|
खरीददार और दु कानदार एक दू सरे को ठगने की घात में लगे रहें , एक की हावन में दू सरे
को अपना लाभ वदखाई दे तो बाजार का अथयशास्त्र, अनीवतशास्त्र बन जाता है । ऐसे बाजार
मानिता के वलए विडं बना है ।
उत्तर- भगतजी के मन में सां साररक आकर्यणों के वलए कोई तृर्ष्णा नहीं है । िे सं चय, लालच
और वदखािे से दू र रहते हैं । बाजार और व्ापार उनके वलए आिश्यकताओं की पूवतय का
साधन मात्र है । भगतजी के मन का संतोर् और वनस्पृह भाि, उनको श्रेष्ठ उपभोक्ता और
विक्रेता बनाते हैं ।
उत्तर-वनम्नां वकत वबंदु उनके व्न्द्रक्तत्व के सशक्त पहलू को उजागर करते हैं ।
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विक्रेता, ग्राहकों का शोर्ण नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लुभाने का प्रयास नही
करते िे भी बाजार को साथयक बनाते हैं ।
उत्तर- बाजार के रूप का जादू आाँ खों की राह से काम करता हुआ हमें आकवर्यत करता है ।
बाजार का जादू ऐसे चलता है जैसे लोहे के ऊपर चुंबक का जादू चलता है । चमचमाती
रोशनी में सजी फैंसी चींजें ग्राहक को अपनी ओर आकवर्यत करती हैं | इसी चुम्बकीय शन्द्रक्त
के कारण व्न्द्रक्त वफजूल सामान को भी खरीद लेता है |
उत्तर- जेब भरी हो और मन खाली हो तो हमारे ऊपर बाजार का जादू खूब असर करता
है । मन, खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का वनमंत्रण मन तक पहुाँ च जाता है और
उस समय यवद जेब भरी हो तो मन हमारे वनयं त्रण में नहीं रहता।
उत्तर- फैंसी चीजें आराम की जगह आराम में व्िधान ही डालती है । थोड़ी दे र को अवभमान
को जरूर सेंक वमल जाती है पर वदखािे की प्रिृवत्त में िृन्द्रद्ध होती है ।
लेखक-धमटवीर भारती
पाि का सारांश -‘काले मेघा पानी दे ’ वनबंध, लोकजीिन के विश्वास और विज्ञान के तकय
पर आधाररत है । जब भीर्ण गमी के कारण व्ाकुल लोग िर्ाय कराने के वलए पूजा-पाठ और
कथा-विधान कर थक–हार जाते हैं तब िर्ाय कराने के वलए अंवतम उपाय के रूप में इन्दर
सेना वनकलती है | इन्दर सेना, नंग-धड़ं ग बच्चों की टोली है जो कीचड़ में लथपथ होकर
गली-मोहल्ले में पानी मााँ गने वनकलती है | लोग अपने घर की छतों-न्द्रखड़वकयों से इन्दर सेना
पर पानी डालते हैं | लोगों की मान्यता है वक इन्द्र, बादलों के स्वामी और िर्ाय के दे िता
हैं | इन्द्र की सेना पर पानी डालने से इन्द्र भगिान प्रसन्न होकर पानी बरसाएं गे | लेखक का
तकय है वक जब पानी की इतनी कमी है तो लोग मुन्द्रश्कल से जमा वकए पानी को बाल्टी
भर-भरकर इन्दर सेना पर डालकर पानी को क्ों बबाय द करते है ? आययसमाजी विचारधारा
िाला लेखक इसे अंधविश्वास मानता है | इसके विपरीत लेखक की जीजी उसे समझाती है
वक यह पानी की बबाय दी नहीं बन्द्रल्क पानी की बुिाई है | कुछ पाने के वलए कुछ दे ना
पड़ता है | त्याग के वबना दान नहीं होता| प्रस्तुत वनबंध में लेखक ने भ्ष्टाचार की समस्या
को उठाते हुए कहा है वक जीिन में कुछ पाने के वलए त्याग आिश्यक है । जो लोग त्याग
और दान की महत्ता को नहीं मानते, िे ही भ्ष्टाचार में वलप्त रहकर दे श और समाज को
लूटते हैं | जीजी की आथथा, भािनात्मक सच्चाई को पुष्ट करती है और तकय केिल िैज्ञावनक
तथ्य को सत्य मानता है । जहााँ तकय, यथाथय के कठोर धरातल पर सच्चाई को परखता है तो
िहीं आथथा, अनहोनी बात को भी स्वीकार कर मन को संस्काररत करती है । भारत की
स्वतंत्रता के ५० साल बाद भी दे श में व्ाप्त भष्टाचार और स्वाथय की भािना को दे खकर
लेखक दु खी है | सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएाँ गरीबों तक क्ों नहीं पहुाँ च पा रहीं
हैं ? काले मेघा के दल उमड़ रहे हैं पर आज भी गरीब की गगरी फूटी हुई क्ों है ?
लेखक ने यह प्रश्न पाठकों के वलए छोड़ वदया है |
उत्तर- गााँ ि के लोग बाररश के वलए भगिान इं द्र से प्राथयना वकया करते थे। जब पूजा-
पाठ,व्रत आवद उपाय असिल हो जाते थे तो भगिान इं द्र को प्रसन्न करने के वलए गााँ ि के
वकशोर, बच्चे कीचड़ में लथपथ होकर गली-गली घूमकर लोगों से पानी मााँ गते थे।
उत्तर- जीजी ने लेखक को यार से लड् डू-मठरी न्द्रखलाते हुए वनम्न तकय वदए-
उत्तर- गंगा भारतीय समाज में सबसे पूज्य सदानीरा नदी है । वजसका भारतीय इवतहास में
धावमयक, पौरावणक और सां स्कृवतक महत्व है | िह भारतीयों के वलए केिल एक नदी नहीं
अवपतु मााँ है , स्वगय की सीढ़ी है , मोक्षदावयनी है । उसमें पानी नहीं अवपतु अमृत तुल्य जल
बहता है । भारतीय सं स्कृवत में नवदयों के वकनारे मानि सभ्यताएाँ फली-फूली हैं | बड़े -बड़े
नगर, तीथयथथान नवदयों के वकनारे ही न्द्रथथत हैं ऐसे पररिेश मेंभारतिासी सबसे पहले गंगा मैया
की जय ही बोलेंगे। नवदयााँ हमारे जीिन का आधार हैं , हमारा दे श कृवर् प्रधान है । नवदयों के
जल से ही भारत भूवम हरी-भरी है । नवदयों के वबना जीिन की कल्पना नहीं कर सकते ,
यही कारण है वक हम भारतीय नवदयों की पूजा करते हैं |
उत्तर- आजादी के पचास िर्ों बाद भी भारतीयों की सोच में सकारात्मक बदलाि न दे खकर
लेखक दु खी है । उसके मन में कई प्रश्न उठ रहे हैं -
4. हम स्वाथय और भ्ष्टाचार में वलप्त रहते हैं , त्याग में विश्वास क्ों नहीं करते ?
5. सरकार द्वारा चलाई जा रही सुधारिादी योजनाएाँ गरीबों तक क्ों नहीं पहुाँ चती है ?
78
प्रश्न१- वषाट ि होिे पर लोगों की क्या प्तस्थनत हो गयी थी ?
उत्तर - िर्ाय न होने पर गरमी के कारण लोग लू लगने से बेहोश होने लगे | गााँ ि-शहर
सभी जगह पानी का अभाि हो गया| कुएाँ सूख गए, खेतों की वमट्टी सू खकर पत्थर के समान
कठोर होकर फट गयी| घरों में नलों में पानी बहुत कम आता था | पशु यास के मारे
मरने लगे थे |
प्रश्न२- वषाट के र्दे वता क ि हैं उिको प्रसन्न करिे के नलए क्या उपाय नकए जाते थे ?
उत्तर -िर्ाय के दे िता भगिान इन्द्र हैं | उनको प्रसन्न करने के वलए पूजा–पाठ, कथा-विधान
कराए जाते थे | तावक इन्द्र दे ि प्रसन्न होकर बादलों की सेना भेजकर झमाझम बाररश कराएाँ
और लोगों के कष्ट दू र हों |
प्रश्न३- वषाट करािे के अंनतम उपाय के रूप में क्या नकया जाता था?
उत्तर –जब पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग हार जाते थे तब अंवतम उपाय के रूप में
इन्दर सेना आती थी | नंग-धडं ग, कीचड़ में लथपथ, ‘काले मेघा पािी र्दे पािी र्दे
गुड़धािी र्दे ’ की टे र लगाकर यास से सूखते गलों और सूखते खेतों के वलए मेघों को
पुकारती हुई टोली बनाकर वनकल पड़ती थी|
आशय- जेठ का महीना है , भीर्ण गरमी है | तपते हुए दस वदन बीत कर आर्ाढ का
महीना भी आधा बीत गया, पर पानी के वलए तड़पते , िर्ाय की आशा में आसमान की ओर
ताकते लोगों को कहीं बादल नजर नहीं आ रहे |
14 पहलवाि की ढोलक
फ़णीश्वरिाथ रे णु
पाि का सारांश –आं चवलक कथाकार िणीश्वरनाथ रे णु की कहानी पहलिान की ढोलक में
कहानी के मुख्य पात्र लुट्टन के माता-वपता का दे हां त उसके बचपन में ही हो गया था |
अनाथ लुट्टन को उसकी विधिा सास ने पाल-पोसकर बड़ा वकया | उसकी सास को गााँ ि
िाले सताते थे | लोगों से बदला लेने के वलए कुश्ती के दााँ िपेंच सीखकर कसरत करके
लुट्टन पहलिान बन गया |
एक बार लुट्टन श्यामनगर मेला दे खने गया जहााँ ढोल की आिाज और कुश्ती के दााँ िपेंच
दे खकर उसने जोश में आकर नामी पहलिान चााँ दवसंह को चुनौती दे दी | ढोल की आिाज
से प्रेरणा पाकर लुट्टन ने दााँ ि लगाकर चााँ द वसं ह को पटककर हरा वदया और राज पहलिान
बन गया | उसकी ख्यावत दू र-दू र तक िैल गयी| १५ िर्ों तक पहलिान अजेय बना रहा|
उसके दो पु त्र थे | लुट्टन ने दोनों बेटों को भी पहलिानी के गुर वसखाए| राजा की मृत्यु के
बाद नए राजकुमार ने गद्दी संभाली। राजकुमार को घोड़ों की रे स का शौक था । मैनेजर ने
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नये राजा को भड़काया, पहलिान और उसके दोनों बेटों के भोजनखचय को भयानक और
विजूलखचय बताया, िलस्वरूप नए राजा ने कुश्ती को बंद करिा वदया और पहलिान
लुट्टनवसंह को उसके दोनों बेटों के साथ महल से वनकाल वदया।
राजदरबार से वनकाल वदए जाने के बाद लुट्टन वसंह अपने दोनों बेटों के साथ
गााँ ि में झोपड़ी बनाकर रहने लगा और गााँ ि के लड़कों को कुश्ती वसखाने लगा| लुट्टन का
स्कूल ज्यादा वदन नहीं चला और जीविकोपाजयन के वलए उसके दोनों बेटों को मजदू री करनी
पड़ी| इसी दौरान गााँ ि में अकाल और महामारी के कारण प्रवतवदन लाशें उठने लगी|
पहलिान महामारी से डरे हुए लोगों को ढोलक बजाकर बीमारी से लड़ने की संजीिनी ताकत
दे ता था| एक वदन पहलिान के दोनों बेटे भी महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस
रात भी पहलिान ढोलक बजाकर लोगों को वहम्मत बंधा रहा था | इस घटना के चार-
पााँ च वदन बाद पहलिान की भी मौत हो जाती है |
प्रश्न2- रात के भयािक सन्नाटे में लुट्टि की ढोलक क्या कररश्मा करती थी?
उत्तर- रात के भयानक सन्नाटे मेंलुट्टन की ढोलक महामारी से जूझते लोगों को वहम्मत बाँधाती
थी | ढोलक की आिाज से रात की विभीवर्का और सन्नाटा कम होता था| महामारी से
पीवड़त लोगों की नसों में वबजली सी दौड़ जाती थी, उनकी आाँ खों के सामने दं गल का दृश्य
साकार हो जाता था और िे अपनी पीड़ा भूल खुशी-खुशी मौत को गले लगा लेते थे। इस
प्रकार ढोल की आिाज, बीमार-मृतप्राय गााँ ििालों की नसों में संजीिनी शन्द्रक्त को भर बीमारी
से लड़ने की प्रेरणा दे ती थी।
उत्तर- लुट्टन वसंह ने सिाय वधक वहम्मत तब वदखाई जब दोनों बेटों की मृत्यु पर िह रोया
नहीं बन्द्रल्क वहम्मत से काम लेकर अकेले उनका अंवतम संस्कार वकया| यही नहीं, वजस वदन
पहलिान के दोनों बेटे महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात को भी पहलिान
ढोलक बजाकर लोगों को वहम्मत बाँधा रहा था| श्यामनगर के दं गल में पूरा जनसमुदाय
चााँ द वसंह के पक्ष में था चााँ द वसंह को हराते समय लुट्टन ने वहम्मत वदखाई और वबना
हताश हुए दं गल में चााँ द वसंह को वचत कर वदया |
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प्रश्न4- लुट्टि नसंह राज पहलवाि कैसे बिा?
उत्तर- श्यामनगर के राजा कुश्ती के शौकीन थे। उन्होंने दं गल का आयोजन वकया। पहलिान
लुट्टन वसंह भी दं गल दे खने पहुाँ चा । चां दवसंह नामक पहलिान जो शेर के बच्चे के नाम से
प्रवसद्ध था, कोई भी पहलिान उससे वभड़ने की वहम्मत नहीं करता था। चााँ दवसंह अखाड़े में
अकेला गरज रहा था। लुट्टन वसंह ने चााँ दवसंह को चुनौती दे दी और चााँ दवसंह से वभड़
गया।ढ़ोल की आिाज सु नकर लुट्टन की नस-नस में जोश भर गया।उसने चााँ दवसंह को चारों
खाने वचत कर वदया। राजासाहब ने लुट्टन की िीरता से प्रभावित होकर उसे राजपहलिान बना
वदया।
उत्तर- पहलिान की अंवतम इच्छा थी वक उसे वचता पर पेट के बल वलटाया जाए क्ोंवक िह
वजंदगी में कभी वचत नहीं हुआ था| उसकी दू सरी इच्छा थी वक उसकी वचता को आग दे ते
समय ढोल अिश्य बजाया जाए |
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थी| आकाश से टू ट कर यवद कोई भािुक तारा पृथ्वी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योवत
और शन्द्रक्त रास्ते में ही शेर् हो जाती थी |
(ग) रात की निस्तब्धता को क ि भंग करता था ?
उत्तर– वसयारों की चीख-पुकार, पेचक की डरािनी आिाजें और कुत्तों का सामूवहक रुदन
वमलकर रात के सन्नाटे को भंग करते थे |
(घ) झोपनड़यों से कैसी आवाजें आ रही हैं और क्यों?
उत्तर– झोपवड़यों से रोवगयों के कराहने , कै करने और रोने की आिाजें आ रही हैं क्ोंवक
गााँ ि के लोग मलेररया और है जे से पीवड़त थे | अकाल के कारण अन्न की कमी हो गयी
थी| और्वध और पथ्य न वमलने के कारण लोगों की हालत इतनी बुरी थी वक कोई भगिान
को पुकार लगाता था तो कोई दु बयल कंठ से मााँ –मााँ पुकारता था |
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15 चाली चैप्तप्लि यािी हम सब
लेखक-नवष्णु खरे
पाि का सारांश –चाली चैन्द्रप्लन ने हास्य कलाकार के रूप में पूरी दु वनया के बहुत बड़े
दशयक िगय को हाँ साया है | उनकी वफल्ों ने वफल् कला को लोकतां वत्रक बनाने के साथ-
साथ दशकों की िगय और िणय -व्िथथा को भी तोड़ा | चाली ने कला में बुन्द्रद्ध की अपेक्षा
भािना को महत्त् वदया है | बचपन के संघर्ों ने चाली के भािी वफल्ों की भूवम तैयार कर
दी थी| भारतीय कला और सौंदययशास्त्र में करुणा का हास्य में पररितय न भारतीय परम्परा में
नहीं वमलता लेवकन चाली एक ऐसा जादु ई व्न्द्रक्तत्व है जो हर दे श, सं स्कृवत और सभ्यता को
अपना सा लगता हैं | भारतीय जनता ने भी उन्हें सहज भाि से स्वीकार वकया है | स्वयं पर
हाँ सना चाली ने ही वसखाया| भारतीय वसनेमा जगत के सुप्रवसद्ध कलाकार राजकपूर को चाली
का भारतीयकरण कहा गया है | चाली की अवधकां श विल्ें मूक हैं इसवलए उन्हें अवधक
मानिीय होना पड़ा | पाठ में हास्य वफल्ों के महान अवभनेता ‘चाली चैन्द्रप्लन’ की जादु ई
विशेर्ताओं का उल्लेख वकया गया है वजसमें उसने करुणा और हास्य में सामंजस्य थथावपत
कर विल्ों को साियभौवमक रूप प्रदान वकया।
उत्तर- चाली के जीिन में दो ऐसी घटनाएाँ घटीं वजन्होंने उनके भािी जीिन पर बहुत प्रभाि
डाला |
पहली घटना - जब चाली बीमार थे उनकी मााँ उन्हें ईसा मसीह की जीिनी पढ़कर सुना रही
थी | ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रसं ग तक आते -आते मााँ -बेटा दोनों ही रोने लगे| इस
घटना ने चाली को स्नेह, करुणा और मानिता जैसे उच्च जीिन मूल्य वदए |
दू सरी घटना है – बालक चाली कसाईखाने के पास रहता था| िहााँ सैकड़ों जानिरों को रोज
मारा जाता था| एक वदन एक भेड़ िहााँ से भाग वनकली| भेड़ को पकड़ने की कोवशश में
कसाई कई बार वफसला| वजसे दे खकर लोग हं सने लगे, ठहाके लगाने लगे| जब भेड़ को
कसाई ने पकड़ वलया तो बालक चाली रोने लगा| इस घटना ने उसके भािी वफल्ों में
त्रासदी और हास्योत्पादक तत्वों की भूवमका तय कर दी |
चैप्तप्लि िे नसिट निल्मकला को ही लोकतांनत्क िही बिाया बप्ति र्दशटकों की वगट तथा
वणट -व्यवस्था को भी तोड़ा|
उत्तर- लोकतां वत्रक बनाने का अथय है वक वफल् कला को सभी के वलए लोकवप्रय बनाना और
िगय और िणय -व्िथथा को तोड़ने का आशय है - समाज में प्रचवलत अमीर-गरीब, िणय ,
जावतधमय के भेदभाि को समाप्त करना |चैन्द्रप्लन का चमत्कार यह है वक उन्होंने वफल्कला
को वबना वकसी भेदभाि के सभी लोगों तक पहुाँ चाया| उनकी वफल्ों ने समय भूगोल और
संस्कृवतयों की सीमाओं को लााँ घ कर साियभौवमक लोकवप्रयता हावसल की | चाली ने यह वसद्ध
कर वदया वक कला स्वतन्त्र होती है , अपने वसद्धां त स्वयं बनाती है |
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प्रश्न३– चाली चैप्तप्लि की निल्मों में निनहत त्ासर्दी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय
कला और स र्द ं यटशास्त्र की पररनध में क्यों िही ं आता?
उत्तर- चाली चैन्द्रप्लन की वफल्ों में वनवहत त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला
और सौंदययशास्त्र की पररवध में नहीं आताक्ोंवक भारतीय रस-वसद्धां त में करुणा और हास्य का
मेल नहीं वदखाया जाता क्ोंवक भारतीय सौंदयय शास्त्र में करुणरस और हास्य रस को परस्पर
विरोधी माना गया है अथाय त जहां करुणा है िहााँ हास्य नहीं हो सकता। भारत में स्वयं पर
हाँ सने की परं परा नहीं है परं तु चाली के पात्र अपने पर हाँ सते –हाँ साते हैं । चाली की विल्ों के
दृश्य हाँ साते -हाँ साते रुला दे ते हैं तो कभी करुण दृश्य के बाद अचानक ही हाँ सने पर मजबूर
कर दे ते हैं ।
उत्तर- चाली की विल्ों में हास्य और करुणा का अद् भुत सामंजस्य है । उनकी विल्ों में
भार्ा का प्रयोग बहुत कम है । चाली की विल्ों में बुन्द्रद्ध की अपेक्षा भािना का महत्त्
अवधक है । उनकी विल्ों में साियभौवमकता है । चाली वकसी भी सं स्कृवत को विदे शी नही
लगते । चाली सबको अपने लगते है । चाली ने विल्ों को लोकतां वत्रक बनाया और विल्ों में
िगय तथािणय-व्िथथा को तोड़ा। अपनी वफल्ों में चाली सदै ि वचर युिा वदखता है ।
प्रश्न (क)-नवकासशील र्दे शों में चैप्तप्लि क्यों मशहर हो रहे हैं ?
उत्तर - विकासशील दे शों में जैसे-जैसे टे लीविजन और िीवडयो का प्रसार हो रहा है , लोगों
को उनकी वफल्ों को दे खने का अिसर वमल रहा है |एक बहुत बड़ा िगय नए वसरे से चाली
को घड़ी सुधारते और जूते खाने की कोवशश करते दे ख रहा है , इसीवलए चाली विकासशील
दे शों में लोकवप्रय हो रहे हैं |
उत्तर - पविम में चाली की वफल्ों का प्रदशयन होता रहता है | उनकी कला से प्रेरणा पाकर
हास्य विल्ें बनती रहती हैं | उनके द्वारा वनभाए वकरदारों की नकल, अन्य कलाकार करते
हैं | पविम में चाली का पुनजीिन होता रहता है |
उत्तर –हास्य कलाकार के रूप में लोग चाली को बुढ़ापे तक याद रखेंगे क्ोंवक उनकी कला
समय, भूगोल और सं स्कृवतयों की सीमाओं को लााँ घकर लाखों लोगों को हाँ सा रही है |
84
(घ)- चाली की निल्मों के बारे में कािी कुछ कहा जािा क्यों बाक़ी है ?
उत्तर –चैन्द्रप्लन की ऐसी कुछ विल्ें या इस्तेमाल न की गयी रीलें वमली हैं वजनके बारे में
कोई नहीं जानता था | चाली की भािनाप्रधान हास्य वफल्ों ने कला के नए प्रवतमान थथावपत
वकए हैं अत: चाली की वफल्ों के बारे में अभी काफी कुछ कहा जाना बाक़ी है |
16 िमक
प्रश्न1- ‘िमक’ पाि के आधार पर बताइए नक सनिया और उसके भाई के नवचारों में
क्या अंतर था?
उत्तर-सवफया सैयद मुसलमान थी जो हर हाल में अपना िायदा वनभाते हैं | पावकस्तान से
लाहौरी नमक ले जाकर िह अपना िायदा पूरा करना चाहती थी परन्तु जब उसे पता चला
वक कस्टम के वनयमों के अनुसार सीमापार नमक ले जाना िवजयत है तो िह दु विधा में पड़
गई | सविया का द्वं द्व यह था वक िह अपनी वसख मााँ के वलए नमक, कस्टम अवधकाररयों
को बताकरले जाए या वछपाकर|
उत्तर संकेत –
१- भािुक
२- ईमानदार
३- दृढ़वनियी
85
४- वनडर
५- िायदे को वनभाने िाली
६- मानिीय मूल्यों को सिोपरर मानने िाली सावहत्यकार
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गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण संबंनधत प्रश्नोत्तर
17 नशरीष के िूल
सारांश –‘आचायय हजारी प्रसाद वद्विेदी’ वशरीर् को अद् भुत अिधूत मानते हैं , क्ोंवक
संन्यासी की भााँ वत िह सुख-दु ख की वचंता नहीं करता। गमी, लू, िर्ाय और आाँ धी में भी
अविचल खड़ा रहता है । वशरीर् के िूल के माध्यम से मनुष्य की अजेय वजजीविर्ा,
धैययशीलता और कतयव्वनष्ठ बने रहने के मानिीय मूल्यों को थथावपत वकया गया है ।लेखक ने
वशरीर् के कोमल फूलों और कठोर फलों के द्वारा स्पष्ट वकया है वक हृदय की कोमलता
बचाने के वलए कभी-कभी व्िहार की कठोरता भी आिश्यक हो जाती है | महान कवि
कावलदास और कबीर भी वशरीर् की तरह बेपरिाह, अनासक्त और सरस थे तभी उन्होंने
इतनी सुन्दर रचनाएाँ संसार को दीं| गााँ धीजी के व्न्द्रक्तत्व में भी कोमलता और कठोरता का
अद् भुत संगम था | लेखक सोचता है वक हमारे दे श में जो मार-काट, अवग्नदाह, लूट-पाट,
खून-खच्चर का बिंडर है , क्ा िह दे श को न्द्रथथर नहीं रहने दे गा? गुलामी, अशां वत और
विरोधी िातािरण के बीच अपने वसद्धां तों की रक्षा करते हुए गााँ धीजी जी न्द्रथथर रह सके थे तो
दे श भी रह सकता है । जीने की प्रबल अवभलार्ा के कारण विर्म पररन्द्रथथतयों मे भी यवद
वशरीर् न्द्रखल सकता है तो हमारा दे श भी विर्म पररन्द्रथथवतयों में न्द्रथथर रह कर विकास कर
सकता है ।
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उत्तर- वशरीर् कालजयी अिधूत की भााँ वत जीिन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है |
जब पृथ्वी अवग्न के समान तप रही होती है िह तब भी कोमल फूलों से लदा लहलहाता रहता
है |बाहरी गरमी, धूप, िर्ाय आाँ धी, लू उसे प्रभावित नहीं करती। इतना ही नहीं िह लंबे
समय तक न्द्रखला रहता है | वशरीर् विपरीत पररन्द्रथथवतयों में भी धैययशील रहने तथा अपनी
अजेय वजजीविर्ा के साथ वनस्पृह भाि से प्रचंड गरमी में भी अविचल खड़ा रहता है ।
उत्तर- वशरीर् के फूल भयंकर गरमी में न्द्रखलते हैं और आर्ाढ़ तक न्द्रखलते रहते हैं जबवक
अमलतास का फूल केिल पन्द्रह-बीस वदनों के वलए न्द्रखलता है | उसके बाद अमलतास के
फूल झड़ जाते हैं और पेड़ वफर से ठूाँठ का ठूाँठ हो जाता है | अमलतास अल्पजीिी है |
विपरीत पररन्द्रथथवतयों को झेलता हुआ ऊर्ष्ण िातािरण को हाँ सकर झेलता हुआ वशरीर् दीघयजीिी
रहता है | यही कारण है वक वशरीर् की तुलना अमलतास से नहीं की जा सकती |
उत्तर- वशरीर् के फल उन बूढ़े, ढीठ और पुराने राजनेताओं के प्रतीक हैं जो अपनी कुसी
नहीं छोड़ना चाहते | अपनी अवधकार-वलप्सा के वलए नए युिा नेताओं को आगे नहीं आने
दे ते | वशरीर् के नए फलों को जबरदस्ती पुराने फलों को धवकयाना पड़ता है | राजनीवत में
भी नई युिा पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी को हराकर स्वयं सत्ता साँभाल लेती है |
प्रश्न४- काल र्दे वता की मार से बचिे का क्या उपाय बताया गया है ?
उत्तर- काल दे िता वक मार से बचने का अथय है – मृत्यु से बचना | इसका एकमात्र उपाय
यह है वक मनुष्य न्द्रथथर न हो| गवतशील, पररितयनशील रहे | लेखक के अनुसार वजनकी
चेतना सदा ऊध्वयमुखी (आध्यात्म की ओर) रहती है , िे वटक जाते हैं |
उत्तर- वजस प्रकार वशरीर् वचलवचलाती धूप, लू, िर्ाय और आाँ धी में भी अविचल खड़ा रहता
है , अनासक्त रहकर अपने िातािरण से रस खींचकर सरस, कोमल बना रहता है , उसी
प्रकार गााँ धी जी ने भी अपनी आाँ खों के सामने आजादी के संग्राम में अन्याय, भेदभाि और
वहं सा को झेला | उनके कोमल मन में एक ओर वनरीह जनता के प्रवत असीम करुणा
जागी िहीं िे अन्यायी शासन के विरोध में डटकर खड़े हो गए |
कावलदास सौंदयय के
................................................................
..............................................िह इशारा है |
(क ) कानलर्दास की स र्द
ं यट –दृनष्ट की क्या नवशेषता थी ?
88
उत्तर-कावलदास की सौंदयय –दृवष्ट बहुत सूक्ष्म, अंतभेदी और संपूणय थी| िे केिल बाहरी रूप-
रं ग और आकार को ही नहीं दे खते थे बन्द्रल्क अंतमयन की सुंदरता के भी पारखी थे |
कावलदास की सौंदयय शारीररक और मानवसक दोनों विशेर्ताओं से यु क्त था |
( ख) अिासप्तक्त का क्या आशय है?
उत्तर- अनासन्द्रक्त का आशय है - व्न्द्रक्तगत सुख-दु ुःख और राग-द्वे र् से परे रहकर सौंदयय
के िास्तविक ममय को जानना |
(ग) कानलर्दास, पंत और रवी ंििाथ टै गोर में क ि सा गुण समाि था?
महाकवि कावलदास, सुवमत्रानंदन पंत और गुरुदे ि रिींद्रनाथ टै गोर तीनों न्द्रथथरप्रज्ञ और
अनासक्त कवि थे | िे वशरीर् के समान सरस और मस्त अिधूत थे |
(घ) रवी ंििाथ राजोद्याि के नसंहद्वार के बारे में क्या संर्देश र्दे ते हैं ?
राजोद्यान के बारे में रिींद्रनाथ कहते हैं राजोद्यान का वसंहद्वार वकतना ही सुंदर और गगनचुम्बी
क्ों ना हो, िह अंवतम पड़ाि नहीं है | उसका सौंदयय वकसी और उच्चतम सौंदयय की ओर
वकया गया संकेत मात्र है वक असली सौंदयय इसे पार करने के बाद है अत: राजोद्यान का
वसंहद्वार हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे ता है |
18श्रम-नवभाजि और जानत-प्रथा
सारां श – इस पाठ में लेखक ने जावतिाद के आधार पर वकए जाने िाले भेदभाि को सभ्य
समाज के वलए हावनकारक बताया है | जावत आधाररत श्रम विभाजन को अस्वाभाविक और
मानिता विरोधी बताया गया है । यह सामावजक भेदभाि को बढ़ाता है । जावतप्रथा आधाररत श्रम
विभाजन में व्न्द्रक्त की रुवच को महत्त् नहीं वदया जाता फलस्वरूप वििशता के साथ अपनाए
गए पे शे में कायय -कुशलता नहीं आ पाती | लापरिाही से वकए गए कायय में गुणित्ता नहीं
आ पाती और आवथयक विकास बुरी तरह प्रभावित होता है | आदशय समाज की नींि समता,
स्वतंत्रता और बंधुत्व पर वटकी होती है । समाज के सभी सदस्यों से अवधकतम उपयोवगता प्राप्त
करने के वलए सबको अपनी क्षमता को विकवसत करने तथा रुवच के अनुरूप व्िसाय
चुनने की स्वतंत्रता होनी चावहए| राजनीवतज्ञ को अपने व्िहार में एक व्िहायय वसद्धां त की
आिश्यकता रहती है और यह व्िहायय वसद्धां त यही होता है वक सब मनुष्यों के साथ समान
व्िहार वकया जाए।
प्रश्न1-िॉ० भीमराव अंबेिकर जानतप्रथा को श्रम-नवभाजि का ही रूप क्यों िही ं मािते हैं
?
उत्तर –
उत्तर – दासता केिल कानूनी पराधीनता नहीं है | सामावजक दासता की न्द्रथथवत में कुछ
व्न्द्रक्तयों को दू सरे लोगों के द्वारा तय वकए गए व्िहार और कतयव्ों का पालन करने को
वििश होना पड़ता है | अपनी इच्छा के विरुद्ध पैतृक पेशे अपनाने पड़ते हैं |
प्रश्न४- समता का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए नक राजिीनतज्ञ पुरूष के संर्दभट में
समता को कैसे स्पष्ट नकया गया है ?
जावत, धमय, संप्रदाय से ऊपर उठकर मानिता अथाय त् मानि मात्र के प्रवत समान व्िहार ही
समता है । राजनेता के पास असंख्य लोग आते हैं , उसके पास पयाय प्त जानकारी नहीं होती
सबकी सामावजक पृष्ठभूवम क्षमताएाँ , आिश्यकताएाँ जान पाना उसके वलए संभि नहीं होता अतुः
उसे समता और मानिता के आधार पर व्िहार के प्रयास करने चावहए ।
उत्तर: श्रम विभाजन का अथय है – मानिोपयोगी कायों का िगीकरण करना| प्रत्येक कायय को
कुशलता से करने के वलए योग्यता के अनुसार विवभन्न कामों को आपस में बााँ ट लेना | कमय
और मानि-क्षमता पर आधाररत यह विभाजन सभ्य समाज के वलए आिश्यक है |
उत्तर- श्रम विभाजन में क्षमता और कायय -कुशलता के आधार पर काम का बाँटिारा होता है ,
जबवक श्रवमक विभाजन में लोगों को जन्म के आधार पर बााँ टकर पैतृक पेशे को अपनाने के
वलए बाध्य वकया जाता है | श्रम-विभाजन में व्न्द्रक्त अपनी रुवच के अनुरूप व्िसाय का
चयन करता है | श्रवमक-विभाजन में व्िसाय का चयन और व्िसाय-पररितयन की भी
90
अनुमवत नहीं होती, वजससे समाज में ऊाँच नीच का भेदभाि पैदा करता है , यह अस्वाभाविक
विभाजन है |
उत्तर : लेखक कहते हैं वक आज के िैज्ञावनक युग में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो जावतिाद
का समथयन करते हैं और उसको सभ्य समाज के वलए उवचत मानकर उसका पोर्ण करते
हैं | यह बात आधुवनक सभ्य और लोकतान्द्रन्त्रक समाज के वलए विडम्बना है |
प्रश्न ४ : भारत में ऎसी क ि-सी व्यवस्था है जो पूरे नवश्व में और कही ं िही ं है ?
अध्ययि सामग्री
नवताि भाग -२ पुस्तक में से प्रश्नपत् में तीि प्रकार के प्रश्न पूछे जाएाँ गे -
प्रश्न १२. अनत लघूत्तरात्मक तीि प्रश्नों में से र्दो के उत्तर र्दे िे हैं | निधाटररत अंक - २ *
२ = ४
प्रश्न १३. र्दो निबंधात्मक प्रश्नों में से एक प्रश्न का उत्तर| निधाटररत अंक – ५
प्रश्न १४. तीि लघूत्तरात्मक प्रश्नों में से र्दो प्रश्नों के उत्तर| निधाटररत अंक – ३ * २ = ६
१. पूरा पाठ पढ़ें तथा पाठ की विर्यिस्तु , प्रमुख पात्र तथा संदेश की ओर अिश्य ध्यान
दें |
२. प्रश्नों के उत्तर दे ते समय अनािश्यक न वलखें | प्रश्न को ध्यानपूियक पढ़कर, उसका
सटीक उत्तर दें |
३. शब्दसीमा का ध्यान रखें |
४. अंकों के अनुसार उत्तर वलखें |
५. पां च अंक िाले उत्तरों में विवभन्न वबंदुओं को उदाहरण सवहत प्रस्तुत करें |
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पाि का सार-वसल्वर िेवडं ग’ कहानी की रचना मिोहर श्याम जोशी ने की है | इस पाठ
के माध्यम से पीिी के अंतराल का मानमटक नचत्ण वकया गया है | आधुवनकता के दौर में,
यशोधर बाबूपरं परागत मूल्यों को हर हाल में जीवित रखना चाहते हैं | उनका उसूलपसंर्द
होना दफ्तर एिम घर के लोगों के वलए सरददय बन गया था | यशोधर बाबू को वदल्ली में
अपने पााँ ि जमाने में नकशिर्दा ने मदद की थी, अतुः िे उनके आदशय बन गए|
दफ्तर में वििाह की पच्चीसिीं सालवगरह के वदन ,दफ्तर के कमयचारी, मेनन और चड्ढा उनसे
जलपान के वलए पैसे मााँ गते हैं | जो िे बड़े अनमने ढं ग से दे ते हैं क्ोंवक उन्हें निजूलखची
पसंर्द िही ं |यशोधर
बाबू के तीन बेटे हैं | बड़ा बेटा भूर्ण, विज्ञापन कम्पनी में काम करता है | दू सरा बेटा
आई. ए. एस. की तैयारी कर रहा है और तीसरा छात्रिृवत के साथ अमेररका जा चुका है |
बेटी भी डाक्ट्री की पढ़ाईं के वलए अमेररका जाना चाहती है , िह वििाह हे तु वकसी भी िर
को पसंद नहीं करती| यशोधर बाबूबच्चों की तरक्की से खुश हैं नकंतु परं परागत संस्कारों
के कारण वे र्दु नवधा में हैं | उनकी पत्नी ने स्वयं को बच्चों की सोच के साथ ढाल वलया है |
आधुवनक न होते हुए भी, बच्चों के ज़ोर दे ने पर िे अवधक माडनय बन गई है |
बच्चे घर पर वसल्वर िेवडं ग की पाटी रखते हैं , जो यशोधर बाबू के उसूलों के न्द्रखलाफ था|
उनका बेटा उन्हें डरेवसंग गाउन भेंट करता है तथा सुबह दू ध लेने जाते समय उसे ही पहन
कर जाने को कहता है , जो उन्हें अच्छा नहीं लगता| बेटे का ज़रूरत से ज़्यादा तनख्वाह
पाना, तनख्वाह की रकम स्वयं खचय करना, उनसे वकसी भी बात पर सलाह न मााँ गना और
दू ध लाने का वजम्मा स्वयं न लेकर उन्हें डरेवसंग गाउन पहनकर दू ध लेने जाने की बात
कहना जैसी बातें , यशोधर बाबू को बुरी लगती है | जीिन के इस मोड़ पर वे स्वयं को
अपिे उसूलों के साथ अकेले पाते हैं |
प्रश्नोत्तर -
काबू में रखते थे और अवधक वजम्मेदार होते थे। अपने से बड़ों का आदर करते थे और
परं पराओं के अिुसार चलते थे। आधुवनक पररिेश के युिा बड़े -बूढ़ों के साथ बहुत कम
समय व्तीत करते हैं इसवलए सोच एिं दृवष्टकोण में अवधक अन्तर आ गया है । इसी अन्तर
को ‘पीढ़ी का अन्तर’ कहते हैं । युिा पीढ़ी की यही नई सोच बुजुगों को अच्छी नहीं लगती।
२. यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है ,लेवकन यशोधर
बाबू असफल रहते हैं ,ऐसा क्ों ?
३.’वसल्वर िैवडं ग’कहानी के आधार पर पीढ़ी के अंतराल से होने िाले पाररिाररक अलगाि
पर अपने विचार प्रकट कीवजए।
उत्तरुः सां स्कृवतक संरक्षण के वलए स्वस्थ परं पराओं की सुरक्षा आवश्यक है , वकंतु
बर्दलते समय और पररवेश से सामंजस्य की भी उपेक्षा िही ं की जानी चावहए, अन्यथा
वसल्वर िैवडं ग के पात्रों की तरह वबखराि होने लगता है ।
४.’वसल्वर िैंवडग’कहानी को ध्यान में रखते हुए परं पराओं और सां स्कृवतक संरक्षकों की
ितयमान में उपादे यता पर अपने विचार प्रकट कीवजए।
५.“नसल्वर वैनिं गके कथानायक यशोधर बाबू एक आदशय व्न्द्रक्त हैं और नई पीढ़ी द्वारा
उनके विचारों को अपनाना ही उवचत है |”इस कथन के पक्ष-विपक्ष में तकय दीवजए।
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उत्तरुः- पक्षुः नयी पीढ़ी के युिा उिकी सार्दगी और व्यप्तक्तत्व के कुछे क प्रेरक
पहलुओ ं को लेकर सफल ि संस्कारी नागररक बन सकते हैं अन्यथा िे अपनी पहचान खो
बैठेंगे।
४. परोपकारी व्न्द्रक्त |
८ .‘वसल्वर िैवडं ग’कहानी का प्रमुख पात्र बार-बार वकशनदा को क्ों याद करता है ?इसे
आप क्ा मानते हैं उसकी सामथ्यय या कमजोरी?औरक्ों ?
उत्तरुः सामथ्यय मानते हैं , िे उिके प्रेरक थे, उनसे अलग अपने को सोचना भी
यशोधर बाबू के वलए मुन्द्रश्कल था। जीिन का प्रेरणा-स्रोत तो सदा शप्तक्त एवं सामथ्यट का
सजयक होता है ।
९ . पाठ में ‘जो हुआ होगा’ िाक् की वकतनी अथय छवियााँ आप खोज सकते हैं ?
उत्तरुः यशोधर बाबू यही विचार करते हैं वक वजनके बाल-बच्चे ही नहीं होते ,िे व्न्द्रक्त
अकेलेपि के कारण स्वस्थ नर्दखिे के बार्द भी बीमार-से हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो
जाती है | वजसप्रकार यशोधर बाबू अपने आपको पररिार से कटा और अकेला पाते हैं
उसीप्रकार अकेलेपि से ग्रस्त होकर उनकी मृत्यु हुई होगी। यह भी कारण हो सकता है वक
उनकी नबरार्दरी से घोर उपेक्षा नमली, इस कारण िे सूख-सूख कर मर गए | वकशनदा की
मृत्यु के सही कारणों का पता नहीं चल सका। बस यशोधर बाबू यही सोचते रह गए वक
वकशनदा की मृत्यु कैसे हुई?वजसका उत्तर वकसी के पास नहीं था।
१० .ितयमान समय में पररिार की संरचना,स्वरूप से जुड़े आपके अनुभि इस कहानी से कहााँ
तक सामंजस्य वबठा पाते हैं ?
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उत्तरुः यशोधर बाबू और उिके बच्चों की सोच में पीिीजन्य अंतराल आ
गया है । यशोधर सं स्कारों से जुड़िा चाहते हैं और सं युक्त पररिार की संिेदनाओं को
अनुभि करते हैं जबवक उिके बच्चे अपिे आप में जीिा चाहते हैं । अतुः जरूरत इस बात
की है वक यशोधर बाबू को अपिे बच्चों की सकारात्मक िई सोच का स्वागत करना
चावहए,परन्तु यह भी अवनिायय है वक आधुवनक पीढ़ी के युवा भी वतटमाि बेतुके संस्कार
और जीवि मूल्यों के प्रनत आकनषटत ि हों तथा पुरानी पीढीा़ की अच्छाइयों को ग्रहण करें ।
यह शुरूआत दोनों तरफ से होनी चावहए तावक एक नए एिं संस्कारी समाज की थथापना
की जा सके।
उत्तरुः1. कमटि एवं पररश्रमी –सेक्शि ऑनिसर होने के बािजूद दफ्तर में दे र तक काम
करते थे | िे अन्य कमयचाररयों से अवधक कायय करते थे |
१२ . यशोधर बाबू जैसे लोग समय के साथ ढ़लने में असफल क्ों होते हैं ?
उत्तरुः ऐसे लोग साधारणतया वकसी न वकसी से प्रभावित होते हैं , जैसे यशोधर बाबू
नकशि र्दा से। ये परं परागत ढरे पर चलना पसन्द करते हैं तथा बदलाि पसन्द नहीं करते ।
अतुः समय के साथ ढ़लने में असफल होते हैं ।
१३ . भरे -पूरे पररिार में यशोधर बाबू स्वयं को अधूरा-सा क्ों अनुभि करते हैं ?
उत्तरुःसंकेत वबन्दु - अपने प्राचीन दायरे से बाहर न वनकल सकने के कारण िे स्वयं
को अधूरा अनुभि करते हैं ।
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१४.‘‘अभी तुम्हारे अब्बा की इतनी साख है वक सौ रुपए उधार ले सकें।’’ वकन
पररन्द्रथथवतयों में यशोधर बाबू को यह कहना पड़ा?
उत्तरुःसं केत वबन्दु - पुत्र द्वारा उनके वनकट संबंधी की आवथयक सहायता के वलए मनाही
से आहत होकर ऐसा कहना पड़ा।
उत्तरुः संकेत वबन्दु - पीढ़ी के अंतराल को उजागर कर, ितयमान समाज की इस प्रकार की
सच्चाई से पदाय उठाया गया है ।
१६.अपने बच्चों की तरक्की से खुश होने के बाद भी यशोधर बाबू क्ामहसूस करते हैं ?
उत्तरुः उनके बच्चे गरीब ररश्तेदारों के प्रवत उपेक्षा का भाि रखते हैं । उनकी यह
खुशहाली अपनों के बीच परायापन पैदा कर रही है , जो उन्हें अच्छा नहीं लगता।
१७.आजकल वकशनदा जैसी जीिन-शैली अपनाने िाले बहुत कम लोग वमलते हैं , क्ों ?
उत्तर: वकशन दा जैसे लोग मस्ती से जीते हैं , वनुःस्वाथय दू सरों की सहायता करते हैं ,
जबवक आजकल सभी सहायता के बदले कुछ न कुछ पाने की आशा रखते हैं , वबना कुछ
पाने की आशा रखे सहायता करने िाले वबरले ही होते हैं ।
१८ . यशोधर बाबू के बच्चों की कौन-सी बातें प्रशंसनीय हैं और कौन-सा पक्ष आपवत्तजनक
है ?
उत्तर- प्रशंसिीय बातें- १) महत्वाकां क्षी और प्रगवतशील होना | २)जीिन में उन्नवत करना
|
१९.आपकी दृवष्ट में(पाठ से अलग) वसल्वर िैवडं ग मनाने के और कौन से तरीके हो सकते हैं
जो यशोधर बाबू को अच्छे लगते?
उत्तरुः यह एक प्रतीकात्मक प्रयोग है वजसे यशोधर बाबू अपनी पत्नी के वलए प्रयोग
करते हैं । उनकी पत्नी पु रानी परं पराओं को छोड़ आधुवनकता में ढ़ल गई है , स्वयं को मॉडनय
समझती है , इसवलए यशोधर बाबू ने उन्हें यह नाम वदया है । िे उन्हें ‘शानयल बुवढ़या’ तथा
‘बूढ़ी मुाँह मुहााँ से, लोग करें तमासे ’ कह कर भी वचढ़ाते हैं ।
२१. यशोधर बाबू पररिार के बािजूद स्वयं को अधूरा क्ों मानते हैं ?
उत्तर - यशोधर बाबू पुरानी परं पराओं को माननेिाले हैं , जबवक उनका सारा पररिार
आधुवनक विचारधारा का है । पीिीगत अंतराल के कारण पररवार के साथ ताल-मेल ि
नबिा पािे के कारण िे स्वयं को अधूरा समझते हैं ।
1. दफ्तर में यशोधर बाबू से कमयचारी क्ों परे शान रहते थे?
5. यशोधर बाबू तवकया कलाम के रूप में वकस िाक् का प्रयोग करते थे ?इस तवकया
कलाम का उनके व्न्द्रक्तत्व तथा कहानी के कथ्य से क्ा संबंध है ?
पाि का सार –‘जूझ’ पाठ आनंद यादि द्वारा रवचत स्वयं के जीिन–संघर्य की कहानी है |
पढ़ाई पूरी न कर पाने के कारण, उसका मन उसे कचोटता रहता था |दादा ने अपने स्वाथों
के कारण उसकी पढ़ाई छु ड़िा दी थी |िह जानता था वक दादा उसे पाठशाला नहीं भेजेंगे |
आनंद जीिन में आगे बढ़ना चाहता था | िह जनता था वक खेती से कुछ वमलने िाला नहीं
|िह पढ़े गा-वलखेगा तो बवढ़या-सी नौकरी वमल जाएगी |
प्रश्नोत्तर-
‘विर्म पररन्द्रथथवतयों में भी विकास संभि है ।’‘जूझ’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीवजए|
उत्तरुः इस कहानी का मुख्य उद्दे श्य है वक मिुष्य को संघषट करते रहिा चानहए|
कहानी में लेखक के जीिन के संघर्य को, उसके पररिेश के साथ वदखलाया गया है । लेखक
का वशक्षा-प्रान्द्रप्त हे तु नपता से संघषट ,कक्षा में संघषट ,खेती में संघषट और अंत में उसकी
सिलता कहानी के उद्दे श्य को स्पष्ट करते हैं । अतुः समस्याओं से भागना नहीं चावहए| पूरे
आत्मविश्वास से उनका मुकाबला करना चावहए| संघर्य करने िाले को सफलता अिश्य वमलती
है |
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४ . ‘जूझ’ कहानी के आधार पर आं नदा के चररत्र की विशेर्ताएाँ बताइए। अथिा
उत्तरुः 1. पििे की लालसा- आनंदा वपता के साथ खेती का काम साँभालता था| लेवकन
पढ़ने की तीव्र इच्छा ने उसे जीिन का एक उद्दे श्य दे वदया और िह अपने भविष्य को एक
सही वदशा दे ने में सफल होता है |
उत्तरुः अवधकतर लोग अनशनक्षत होिे के कारण वशक्षा के महत्त् को नहीं समझते |
अनधक बच्चे , कम आमर्दिी, र्दो अनतररक्त हाथों से कमाई की लालसा आवद इसके
प्रमुख कारण हैं । उन्हें प्रे ररत करने हे तु उन्हें जागरूक करना, वशक्षा का महत्त् बताना,वशवक्षत
होकर जीिन स्तर में सुधार के वलए प्रोत्सावहत वकया जा सकता है ।
उत्तरुः लेखक ने पढ़ाई में स्वयं को वपछड़ता हुआ पाया| वकंतु वशक्षक सौदं लगेकर से प्रेररत
होकर लेखक कुछ तुकबंदी करने लगा| धीरे –धीरे उसमें आत्मविश्वास बढ़ने लगा|
सृजनात्मकता ने उसके जीिन को नया मोड़ वदया| अतुः लेखक के द्वारा कनवता रच लेिे
से उसमें आत्मनवश्वास का सृजि हुआ।
उत्तरुः स्वयं से कम आयु के छात्रों के साथ बैठना पड़ा,िह अन्य छात्रों की हाँ सी का
पात्र बना तथा उसे वपता की इच्छा के कारण घर ि स्कूल दोनों में वनरं तर काम करना
पड़ा।
उत्तरुः मानीटर बसंत पानटल ने उसे सिाय वधक प्रभावित वकया|िह शांत व
अध्ययिशील छात्र था। आनंदा उसकी नकल कर हर काम करने लगा,धीरे -धीरे एकाग्रवचत ि
अध्ययनशील बनकर आनन्दा भी कक्षा में सम्मान का पात्र बन गया।
१० . आपके दृवष्ट से पढ़ाई-वलखाई के सम्बन् में लेखक और दत्ता जी राि का रिैया सही
था या लेखक के वपता का?तकय सवहत उतर दीवजए।
१. जूझ पाठ के आधार पर बताइए वक कौन, वकससे , कहााँ जूझ रहा है तथा अपनी जूझ
में कौन सफल होता है ?
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२. आनंदा का वपता कोल्ब्ह जल्दी क्ों चलिाता था?
४. दत्ता राि के सामने रतनप्पा ने आनंदा को स्कूल न भेजने का क्ा कारण बताया ?
नगर में चालीस फुट लम्बा ओर पच्चीस फुट चौड़ा एक महाकंु ि भी है |इसकी दीिारें ओर
तल पक्की ईंटों से बने हैं | कुंड के पास आि स्नािागार हैं | कुंड में बाहर के अशु द्ध
पानी को न आने दे ने का ध्यान रखा गया | कुंड में पानी की व्िथथा के वलए कुंआ है |
एक नवशाल कोिार भी है वजसमें अनाज रखा जाता था |उन्नत खेती के भी वनशान वदखते
हैं -कपास, गेहं, जौ, सरसों, बाजरा आवद के प्रमाण वमले हैं |
वसंधु घाटी सभ्यता में ि तो भव्य राजमहल नमलें हैं ओर ही भव्य मंनर्दर|
नरे श के सर पर रखा मुकुट भी छोटा है | मुअनजो-दड़ो वसंधु घाटी का सबसे बड़ा नगर है
वफर भी इसमें भव्ता ि आडम्बर का अभाि रहा है | उस समय के लोगों ने कला ओर
सुरुवच को महत्त् वदया| नगर-वनयोजन, धातु एिं पत्थर की मूवतययााँ , मृद-भां ड ,उन पर
वचवत्रत मानि ओर अन्य आकृवतयााँ ,मुहरें , उन पर बारीकी से की गई वचत्रकारी| एक
पुरातत्त्िेत्ता के मुतावबक वसंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदयय -बोध है जो ”राजपोवर्त या
धमयपोवर्त न होकर समाजपोवर्त था|”
प्रश्नोत्तर–
१. ‘वसन्ु सभ्यता साधन सम्पन्न थी, पर उसमें भव्ता का आडं बर नहीं था |’ प्रस्तुत
कथन से आप कहााँ तक सहमत हैं ?
101
उत्तरुः दू सरी सभ्यताएाँ राजतंत्र और धमयतंत्र द्वारा संचावलत थी । िहााँ बड़े -बड़े सुन्दर
महल, पूजा थथल, भव् मूवतययााँ , वपरावमड और मन्द्रन्दर वमले हैं । राजाओं, धमाय चायों
की समावधयााँ भी मौजू द हैं । वकंतु वसन्ु सभ्यता, एक साधि-सम्पन्न सभ्यता थी
परन्तु उसमें राजसत्ता या धमटसत्ताके नचह्न िही ं नमलते। िहााँ की नगर
योजना,िास्तुकला,मुहरों,ठप्पों,जल-व्िथथा,साफ-सफाई और सामावजक व्िथथा आवद
की एकरूपताद्वारा उनमें अनुशासन दे खा जा सकता है |सां स्कृवतक धरातलपर यह
तथ्य सामने आता है वक वसन्ु घाटी की सभ्यता, र्दूसरीसभ्यताओं से अलग एवं
स्वाभानवक, वकसी प्रकार की कृनत्मता एवं आिं बररनहतथी जबवक अन्य सभ्यताओं में
राजतंत्र और धमयतंत्र की ताकत को वदखाते हुए भव् महल , मंवदर ओर मूवतययााँ बनाई
गईं वकंतु वसन्ु घाटी सभ्यता की खुर्दाई में छोटी-छोटी मूनतटयााँ , प्तखल िे, मृर्द-
भांि, िावें नमली हैं । इस प्रकार यह स्पष्ट है वक वसन्ु सभ्यता सम्पन्न थी परन्तु
उसमें भव्ता का आडं बर नहीं था।
उत्तरुः वसन्ु सभ्यता में औजार तो बहुत नमलेहैं,परं तु हनथयारों का भी प्रयोग होता
रहा होगा , इसका कोई प्रमाण िही ंहै । िे लोग अनुशासनवप्रय थे परन्तु यह अनुशासन
वकसी ताकत के बल के द्वारा कायम नहीं वकया गया,बन्द्रल्क लोग अपिे मि और कमट से
ही अिुशासि नप्रय थे। मुअनजो-दड़ो की खुदाई में एक दाढ़ी िाले नरे श की छोटी मूवतय
वमली है परन्तु यह मूवतय वकसी राजतंत्र या धमयतंत्र का प्रमाण नहीं कही जा सकती। विश्व की
अन्य सभ्यताओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन से भी यही अनुमान लगाया जा सकता है वक
वसन्ु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दययबोध है जो वक समाज पोवर्त है , राजपोवर्त या
धमयपोवर्त नहीं है ।
६. ‘वसन्ु सभ्यता ताकत से शावसत होने की अपे क्षा समझ से अनुशावसत सभ्यता थी’-
स्पष्ट कीवजए।
उत्तरुःसंकेत नबंर्दु - खुदाई से प्राप्त अिशेर्ों में औजार तो वमले हैं वकंतु हवथयार
नहीं| कोई खड् ग ,भाला, धनुर्-बाण नहीं वमला|
तथा भव् महलों ि समावधयों के न होने से कह सकते हैं वक वसन्ु सभ्यता ताकत से
नहीं समझ से अनुशावसत थी।
७. संसार की मुख्य प्राचीन सभ्यताएाँ कौन-कौन सी हैं ?प्राचीनतम सभ्यता कौन-सी है उसकी
प्रमावणकता का आधार क्ा है ?
103
मुअनजो-दड़ोनगरों के अिशेर्। ये नगर ईसा पूिय के हैं ।
१० . वसन्ु सभ्यता ि आजकल की नगर वनमाय ण योजनाओं में साम्य ि अन्तर बताइए।
उत्तरुः कुलधरा जैसलमेर के मुहािे पर पीले पत्थरों से बिे घरों वाला सुन्दर गााँव है ।
कुलधरा के वनिासी 150 िर्य पूिय राजा से तकरार होिे पर गााँव खाली करके चले गए।
उिके घर अब खण्डहर बि चुके हैं , परं तु ढ़हे नहीं |घरों की दीिारें और न्द्रखड़वकयााँ ऐसी
हैं मानो सुबह लोग काम पर गए हैं और सााँ झ होते ही लौट आएं गें |मुअनजो-दड़ोके
खण्डहरों को दे खकर कुछ ऐसा ही आभास होता है िहााँ घरों के खण्डहरों में घूमते समय
वकसी अजनबी घर में अनवधकार चहल-कदमी का अपराधबोध होता है | पुरातान्द्रत्वक खुदाई
अवभयान की यह खूबी रही है वक सभी िस्तुओं को बड़े सहे ज कर रखा गया | अतुः
कुलधरा की बस्ती और मुअनजो-दड़ोके खण्डहर अपने काल के इवतहास का दशयन कराते हैं ।
३.आज जल संकट एक बड़ी समस्या है | ऐसे में वसन्ु सभ्यता के महानगर मुअनजो-दड़ो
की जल व्िथथा से क्ा प्रेरणा लीजा सकती है ? भािी जल संकट से वनपटने के वलए आप
क्ा सुझाि दें गे ?
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४.मुअनजो-दड़ोके अजायबघर में कौन-कोन सी िस्तुएाँ प्रदवशयत थीं ?
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पाि का सार – ‘डायरी के पन्ने’ पाठ में ‘र्द िायरी ऑि ए यंग गलट ’ नामक ऐि
फ्रैंक की डायरी के कुछ अंश वदए गए हैं | ‘द डायरी ऑफ ए यंग गलय’ ऐि फ्रैंक द्वारा
दो साल अज्ञातिास के दरम्यान वलखी गई थी| १९३३ में फ्रैंकफटय के नगरवनगम चुनाि में
नहटलर की िाजी पाटी जीत गई| तत्पिात यहर्दी-नवरोधी प्रर्दशटि बढ़ने लगे | ऐि फ्रैंक
का पररवार असुरवक्षत महसूस करते हुए िीर्दरलैंि के एम्सटिट म शहर में जा बसा |वद्वतीय
विश्वयुद्ध की शुरुआत तक(१९३९) तो सब ठीक था| परं तु १९४० में नीदरलैंड पर जमयनी का
कब्ज़ा हो गया ओर यहवदयों के उत्पीड़न का दौर शुरु हो गया| इन पररन्द्रथथवतयों के कारण
१९४२ के जुलाई मास में फ्रैंक पररवारवजसमें माता-वपता,तेरह िर्य की ऐन ,उसकी बड़ी
बहन मागोट तथा दू सरा पररिार –वािर्दाि पररवार ओर उनका बेटा पीटरतथा इनके साथ
एक अन्य व्न्द्रक्त नमस्टर िसेल दो साल तक गुप्त आिास में रहे | गुप्त आिास में इनकी
सहायता उन कमयचाररयों ने की जो कभी वमस्टर फ्रैंक के दफ्तर में काम करते थे ||‘द
डायरी ऑफ ए यंग गलय’ ऐि फ्रैंक द्वारा उस दो साल अज्ञातिास के दरम्यान वलखी गई
थी|अज्ञातिास उनके वपता नमस्टर ऑटो फ्रैंक का र्दफ्तर ही था| ऐन फ्रैंक को तेरहिें
जन्मवदन पर एक डायरी उपहार में वमली थी ओर उसमें उसने अपनी एक गुवड़या-वकट्टी को
सम्बोवधत वकया है |
ऐनअज्ञातवास में पूरा नर्दि– पहे वलयााँ बुझाती, अंग्रेज़ी ि फ्रेंच बोलती, वकताबों की समीक्षा
करती, राजसी पररिारों की िंशािली दे खती, वसनेमा ओर वथएटर की पवत्रका पढ़ती और
उनमें से नायक-नावयकाओं के वचत्र काटतेवबताती थी| िह वमसेज िानदान की हर कहानी को
बार-बार सुनकर बोर हो जाती थी ओर वम. डसेल भी पुरानी बातें – घोड़ों की दौड़, लीक
करती नािें , चार बरस की उम्र में तैर सकने िाले बच्चे आवद सुनाते रहते |
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उसने युद्ध संबंधी जानकारी भी दी है - कैवबनेट मंत्री नम. बोिे स्टीि ने लंदन से डच
प्रसारण में यह घोषणा की थी नक युद्ध के बार्द युद्ध के र्द राि नलखी गईं िायररयों का
संग्रह वकया जाएगा, िायुयानों से तेज़ गोलाबारी, हज़ार नगल्डर के िोट अवैध घोवर्त वकए
गए | वहटलर के घायल सैनिकों में नहटलर से हाथ नमलािे का जोश , अराजकता का
माहौल- कार, साईवकल की चोरी, घरों की न्द्रखड़की तोड़ कर चोरी, गवलयों में लगी वबजली
से चलने िाली घवड़यााँ , साियजवनक टे लीफोन चोरी कर वलए गए|
ऐन फ्रैंक की डायरी के द्वारा नद्वतीय नवश्वयुद्ध की नवभीनषका, नहटलर एवं िानजयों द्वारा
यहनर्दयों का उत्पीड़ि, िर, भुखमरी, गरीबी, आतंक, मािवीय संवेर्दिाएाँ , प्रेम, घृणा,
तेरह साल की उम्र के सपिे, कििाएाँ , बाहरी र्दु निया से अलग-थलग पड़ जािे की
पीड़ा, मािनसक ओर शारीररक जरूरतें, हाँसी-मज़ाक, अकेलापि आवद का जीिंत रूप
दे खने को वमलता है |
प्रश्नोत्तर –
सुख-दु ुःख और भािनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पृष्ठों में दोनों का फकय वमट गया है ।
’’ इस कथन पर विचार करते हुए अपनी सहमवत या असहमवत तकयपू ियक व्क्त करें ।
२. ‘‘यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने िाली एक आिाज है । एक ऐसी आिाज जो
वकसी सन्त या कवि की नहीं, बन्द्रल्क एक साधारण-सी लड़की की है ।’’ इल्या इहरनबुगय की
इस वटप्पणी के संदभय में ऐन फ्रैंक की डायरी के पवठत अंशों पर विचार करें ।
उत्तरुः उस समय यूरोप में लगभग साठ लाख यहदीथे।नद्वतीय नवश्वयुद्ध में िीर्दरलैंि
पर जमटिी का कब्ज़ा हो गया और नहटलर की िाजी ि ज िे यहवदयों को विवभन्न प्रकार
से यंत्रणाएं दे ने लगे | उन्हें तरह-तरह के भे र्दभाव पूणट ओर अपमािजिक नियम-कायर्दों
को माििे के नलए बाध्य वकया जाने लगा |गेस्टापो (वहटलर की खुवफया पुवलस) छापे
मारकर यहवदयों को अज्ञातिास से ढूाँढ़ वनकालती ओर यातिागृह में भेज दे ती| अतुः चारों
तरफ अराजकता फैली हुई थी। यहर्दी अज्ञातवास में निरं तर अंधेरे कमरों में जीिे को
मजबूरथे।उन्हें एक अमानिीय जीिन जीने को बाध्य होना पड़ा|नहटलर की िाजी ि जका
खौफ उन्हें हरिक्त आतं वकत करता रहता था | ऐन ने डायरी के माध्यम से न केिलवनजी
सुख-दु ुःख और भािनाओं को व्क्त वकया,बन्द्रल्क लगभग साठ लाख यहदी समुदाय की दु ख
भरी वजन्दगी को वलवपबद्ध वकया है । इसवलए इल्या इहरनबुगय की यह वटप्पणी वक ‘‘यह साठ
लाख लोगों की तरफ से बोलने िाली एक आिाज है । एक ऐसी आिाज जो वकसी संत या
कवि की नहीं, बन्द्रल्क एक साधारण-सी लड़की की है ।’सियमान्य एिं सत्य है ।
३. ऐन फ्रैंक कौन थी?उसने अपनी डायरी में वकस काल की घटनाओं का वचत्रण वकया
है ?यह क्ों महत्वपूणय है ?
उत्तर:. ऐन फ्रैंक एक यहदी लड़की थी। उसने अपनी डायरी में वद्वतीय विश्वयुद्ध
(1939-1945) के दौरान नहटलर की िाजी ि ज िे यहवदयों को विवभन्न प्रकार से यंत्रणाएं
दीं| यह डायरी युद्ध के दौरान फैली अराजकता और राजनेवतक पररदृश्य को दशाय ती है | यह
नावजयों द्वारा यहवदयों पर वकए गए जुल्ों का एक प्रामावणक दस्तािेज है और साथ ही साथ
एक तेरह िर्ीय वकशोरी की भािनाएाँ और मानवसकता को समझाने में सहायक है ।
४. डायरी के पन्ने पाठ में वम. डसेल एिं पीटर का नाम कई बार आया है । इन दोनों का
वििरणात्मक पररचय दें ।
107
जन्मवदन पर पीटर ने उसे फूलों का गुलदस्ता भेंट वकया था| वकंतु पीटर सबके सामने प्रे म
उजागर करने से डरता था| िह साधारणतया शां वतवप्रय, सहज ि आत्मीय व्िहार करने िाला
था।
उत्तरुः ‘वकट्टी’ऐि फ्रैंक की गुनड़या थी। गुवड़या को वमत्र की भााँ वत संबोवधत करने से
गोपिीयता भंग होिे का िर ि था।अन्यथा नावजयों द्वारा अत्याचार बढ़ने का डर ि उन्हें
अज्ञातिास का पता लग सकता था।| ऐन ने स्वयं (एक तेरह वषीय नकशोरी) के मि की
बेचैिी को भी व्क्त करने का ज़ररया वकट्टी को बनाया |िह हृदय में उठ रही कई
भािनाओं को दू सरों के साथ बााँ टना चाहती थी वकंतु अज्ञातिास में उसके वलए वकसी के पास
समय नहीं था| वम. डसेल की ड़ााँ ट-फटकार ओर उबाऊ भार्ण ,दू सरों के द्वारा उसके बारे
में सुनकर मम्मी (वमसेज फ्रैंक) का उसेड़ााँ टना ओर उस पर अविश्वास करना, बड़ों का उसे
लापरवाह और तुिकनमजाज मानना और उसे छोटी समझकर उसके विचारों को महत्त् न
दे ना , उसके ह्रदय को कचोटता था |अतुः उसने वकट्टी को अपना हमराज़ बनाकर डायरी में
उसे ही संबोवधत वकया|
६ ‘ऐन फ्रैंक की डायरी यहवदयों पर हुए जु ल्ों का जीिंत दस्तािेज है ’पाठ के आधार पर
यहवदयों पर हुए अत्याचारों का वििरण दें ।
उत्तरुः यह पाठ ऐनफ्रैंक द्वारा डच भार्ा में वलखी गई ‘र्द िायरी ऑि ए यंग गलट ’
नामक पुस्तक से वलया गया है । यह १९४७ में ऐन फ्रैंक की मृत्यु के बाद उसके नपता
नमस्टर ऑटो फ्रैंक ने प्रकावशत कराई।
१.“काश, कोई तो होता जो मेरी भािनाओं को गंभीरता से समझ पाता| अफसोस, ऐसा
व्न्द्रक्त मुझे अब तक नहीं वमला.... ”| क्ा आपको लगता है वकऐन के इस कथन में
उसके डायरी लेखन का कारण छु पा हुआ है ?
२. अज्ञातिास में उबाऊपन दू र करने के वलए ऐन फ्रैंक ि िान पररिार क्ा करते थे ?
108
३. डच मंत्री वक वकस घोर्णा से ऐन रोमां वचत हो उठी?
६. ‘प्रकृवत ही तो एक ऐसा िरदान है , वजसका कोई सानी नहीं है ।’ऐसा क्ों कहा गया
है ?
109
प्रवतदशय प्रश्व्व्न-पत्र
कक्षा : १२
विर्य:वहन्दी (केंवद्रक)
खण्ड क
.वनम्नवलन्द्रखत
१ गद्यां श को ध्यान पूियक पवढ़ए तथा पूछे गए प्रश्नों के संवक्षप्त उत्तर वलन्द्रखए :
लेखक का काम काफी हद तक मधुमन्द्रक्खयों के काम से वमलता-जुलता है |
मधुमन्द्रक्खयााँ मकरं द- सं ग्रह करने के वलए कोसों दू र तक चक्कर लगाती हैं | िे सुंदर
और अच्छे फूलों का रसपान करती हैं |तभी तो उनके मधु में सं सार का सियश्रेष्ठ
माधुयय रहता है | यवद आप अच्छा लेखक बनना चाहते हैं तो आपको भी यही िृवत्त
अपनानी होगी | अच्छे ग्रंथों का खूब अध्ययन करना होगा और उनके विचारों का
मनन करना होगा | वफर आपकी रचनाओं में मधु का-सा माधुयय आने लगेगा | कोई
अच्छी उन्द्रक्त, कोई अच्छा विचार भले ही दू सरों से ग्रहण वकया गया हो, लेवकन उस
पर यथेष्ट मनन कर आप उसे अपनी रचना में थथान दें गे, तो िह आपका ही हो
जाएगा | मननपूियक वलखी हुई िस्तु के संबंध में वकसी को यह कहने का साहस
नहीं होगा वक िह अमुक थथान से ली गई है या उन्द्रच्छष्ट है | जो बात आप अच्छी
तरह आत्मसात कर लेंगे, िह मौवलक हो जाएगी |
(क) अच्छा लेखक बनने के वलए क्ा करना चावहए ?
३
(ख) मधुमक्खी एिं अच्छे लेखक में क्ा समानताएाँ होती हैं ?
३
(ग) लेखक अपनी रचनाओं में माधुयय कैसे ला सकता है ?
३
(घ) कोई भी बात मौवलक कैसे बनती है ?
२
(ङ) मधुमन्द्रक्खयों के मधु में संसार की सिय श्रे ष्ठ मधुरता कैसे आती है ?
२
(च) यथेष्ट तथा उन्द्रच्छष्ट शब्दों के अथय वलन्द्रखए |
१
(छ) उपयुयक्त गद्यां श का उपयुक्त शीर्यक वलन्द्रखए |
१
२ . वनम्नवलन्द्रखत काव्ां श को ध्यान पूियक पढ़कर पू छे गए प्रश्नों के उत्तर वलन्द्रखए: १*५=५
साक्षी है इवतहास हमीं पहले जागे हैं ,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं ,
शत्रु हमारे कहााँ नहीं भय से भागे?
कायरता से कहााँ प्राण हमने त्यागे हैं ?
हैं हमीं प्रकन्द्रम्पत कर चु के, सुरपवत तक का भी हृदय
110
वफर एक बार हे विश्व गाओ तुम भारत की विजय !
कहााँ प्रकावशत नहीं रहा है तेज हमारा,
दवलत कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा,
बतलाओ तुम, कौन नहीं जो हम से हारा,
पर शरणागत हुआ कहााँ , कब हमें न यारा
बस युद्ध मात्र को छोड़कर, कहााँ नहीं हैं हम सदय !
वफर एक बार हे विश्व! तुम गाओ भारत की विजय !
(क) ‘हमीं पहले जागे हैं ’ से क्ा अवभप्राय है ?
(ख) ‘हैं हमीं प्रकन्द्रम्पत कर चुके, सुरपवत तक का भी भी हृदय’ से भारतिावसयों
की वकस विशेर्ता का पता लगता है ?
(ग) हमारी दयालुता का िणयन कविता की वकन पंन्द्रक्तयों में वकया गया है ?
(घ) वकसके जयघोर् करने के वलए कहा गया है ?
(ङ) सुरपनत तथा शरणागत शब्दों के अथय वलन्द्रखए |
खण्ड ख
३. वनम्नवलन्द्रखत विर्यों में से वकसी एक पर वनबंध वलन्द्रखए :
५
(क) संचार-क्रां वत और भारत
(ख) पररश्रम : सफलता की कुंजी
(ग) महाँ गाई की समस्या
(घ) पराधीन सपनेहुाँ सुख नाहीं
४ . स्विृत्त (बायोडाटा) प्रस्तुत करते हुए केन्द्रीय विद्यालय विकासपुरी नई वदल्ली के प्राचायय
को पुस्तकालय सहायक के पद हे तु आिेदन-पत्र वलन्द्रखए | ५
अथिा
दू रदशयन के केन्द्र वनदे शक को वकसी विशेर् काययक्रम की सराहना करते हुए पत्र वलन्द्रखए
।
५ . (क) वनम्न प्रश्नों के संवक्षप्त उत्तर वलन्द्रखए-
५
(i) िीडबैक क्ा है ?
(ii) जनसंचार के प्रमुख माध्यम कौन –कौन से हैं ?
(iii) पत्रकारीय लेखन से आप क्ा समझते है ?
(iv) समाचार के प्रमुख तत्त् वलन्द्रखए |
(v) पीत पत्रकाररता से क्ा अवभप्राय है ?
(ख) ”एक वदिसीय हररद्वार यात्रा’ अथिा ”बेकार पदाथों से उपयोगी िस्तुएाँ’ विर्य पर
प्रवतिेदन
वलन्द्रखए ।
खण्ड ग
111
७ . वनम्नवलन्द्रखत में से वकसी काव्ां श को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर वलन्द्रखए-
२*४ =८
मैं वनज उर के उद्गार वलये विरता हाँ ,
मैं वनज उर के उपहार वलये विरता हाँ ,
यह अपूणय संसार न मुझको भाता ,
मैं स्वप्नों का संसार वलये विरता हाँ ।
मैं जला हृदय में अवग्न, दहा करता हाँ ,
सुख-दु ख दोनों में मग्न रहा करता हाँ ,
जग भि सागर तरने को नाि बनाए,
मैं भि मौजों पर मस्त बहा करता हाँ ।
(क) ’वनज उर के उद् ्गार ि
उपहार’- से कवि का क्ा तात्पयय है ?
(ख) कवि ने संसार को अपूणय क्ों कहा?
(ग) कवि को संसार अच्छा क्ों
नहीं लगता?
(घ) संसार में कष्टों को सह कर भी
खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता है ?
अथिा
वकसबी वकसान-कुल, बवनक, वभखारर, भाट
चाकर, चपल नट,चोर, चार, चेटकी ।
पेट को पढत,गुन गढत ,चढत वगरर
अटत गहन िन , अहन अखेटकी ।
ऊाँचे -नीचे करम,धरम अधरम करर
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी ।
‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनश्याम ही तें ,
आवग बडिावगतें बड़ी हैं आवग पेटकी ||
(क) पेट भरने के वलए क्ा – क्ा
करते हैं ?
(ख) कवि ने वकन – वकन लोगों का िणयन वकया हैं ?
(ग) कवि के अनुसार पेट की आग
कौन बुझा सकता है ?
(घ) पेट की आग को बडिावग्न से
भी बड़ा क्ों बताया गया है ?
८ . वनम्नवलन्द्रखत काव्ां श पर पूछे
गए प्रश्नों के उत्तर वलन्द्रखए – २*३=६
आन्द्रखरकार िही हुआ वजसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और िह भार्ा में बेकार घूमने लगी !
हार कर मैंने उसे कील की तरह
112
उसी जगह ठोंक वदया |
(क) बात की चू ड़ी मर जाने ि बेकार घू मने से कवि का क्ा आशय है ?
(ख) काव्ां श में प्रयु क्त दोनों उपमाओं के प्रयोग सौंदयय पर वटप्पणी कीवजए |
(ग) रचनाकार के सामने कथ्य और माध्यम की क्ा समस्या थी?
अथिा
आं गन में ठु नक रहा है वजदयाया है
बालक तो हई चााँ द पे ललचाया है ,
दपयण उसे दे के कह रही है मााँ
दे ख आइने में चााँ द उतर आया है ।
(क) काव्ां श की भार्ा की दो विशेर्ताओं का उल्ले ख कीवजए।
(ख) यह काव्ां श वकस छं द में वलखा गया है तथा उसकी क्ा विशेर्ता है ?
(ग) ’दे ख आइने में चााँ द उतर आया है ’-कथन के सौंदयय को स्पष्ट कीवजए ।
९ . वकन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीवजए –३*२=६
(क) क्रान्द्रन्त की गरजना का शोर्क-िगय पर क्ा प्रभाि पड़ता है ? उनका मुख ढााँ पना
वकस मानवसकता का द्योतक है ?
(ख) विराक की रुबाइयों में उभरे घरे लू जीिन के वबंबों का सौंदयय स्पष्ट कीवजए ।
(ग) कैमरे में बंद कविता में वनवहत व्ंग्य को उजागर कीवजए ।
१० . गद्यां श को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीवजए – २*४=८
पर उस जादू की जकड़ से बचने का सीधा – सा उपाय है | िह यह वक बाजार
जाओ तो खाली मन न हो | मन खाली हो, तब बाजार न जाओ | कहते हैं लू में
जाना हो तो पानी पीकर जाना चावहए | पानी भीतर हो, लू का लू-पन व्थय हो जाता
है | मन लक्ष्य में भरा हो तो बाजार भी फैला –का- फैला ही रह जाएगा | तब िह
घाि वबल्कुल नहीं दे सकेगा , बन्द्रल्क कुछ आनंद ही दे गा | तब बाजार तुमसे कृताथय
होगा , क्ोंवक तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे | बाजार की असली कृताथयता है
आिश्यकता के साथ काम आना |
(क) बाजार के जादू की पकड़ से बचने का सीधा – सा उपाय क्ा है ?
(ख) बाजार कब नहीं जाना चावहए और क्ों ?
(ग) बाजार की साथयकता वकसमें है ?
(घ) बाजार से कब आनंद वमलता है ?
अथिा
एक बार मुझे मालूम होता है वक यह वशरीर् एक अदभुत अिधूत है | दु ुःख हो
या सुख,िह हार नहीं मानता | न ऊधो का लेना, न माधो का दे ना | जब धरती
और आसमान जलते रहते हैं , तब भी यह हजरत न जाने कहााँ से अपना रस
खींचते रहते हैं | मौज में आठों याम मस्त रहते हैं | एक िनस्पवतशास्त्री ने मुझे
बताया है वक यह उस श्रेणी का पेड़ है जो िायुमंडल से अपना रस खींचता है |
जरुर खींचता होगा | नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल तंतुजाल और ऐसे
सुकुमार केसर को कैसे उगा सकता था? अिधूतों के मुाँह से ही संसार की सबसे
सरस रचनाएाँ वनकली हैं | कबीर बहुत कुछ इस वशरीर् के समान थे , मस्त और
बेपरिा, पर सरस और मादक | कावलदास भी अनासक्त योगी रहे होंगे | वशरीर्
के फूल फक्कड़ाना मस्ती से ही उपज सकते हैं और ‘मेघदू त‘ का काव् उसी
113
प्रकार के अनासक्त, अनाविल, उन्मुक्त हृदय में उमड़ सकता है | जो कवि
अनासक्त नहीं रह सका, जोफक्कड़ नहीं बन सका, जो वकए – वकराए का
लेखा- जोखा वमलाने में उलझ गया, िह क्ा कवि है ?
(क) लेखक ने वशरीर् को क्ा संज्ञा दी है तथा क्ों ?
(ख) िनस्पवतशास्त्री के अनुसार वशरीर् कैसे जीवित रहता है ?
(ग) ‘अिधूतों के मुहाँ से ही संसार की सबसे सरस रचनाएाँ वनकली हैं ’-
आशय स्पष्ट करें |
(घ) लेखक ने सच्चे कवि के बारे में क्ा बताया है ?
.
११ वकन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीवजए –३*४=१२
(क) चाली चैन्द्रप्लन कौन था ? उसके भारतीयकरण से लेखक का क्ा आशय है ?
(ख) भन्द्रक्तन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्ा उदाहरण
लेन्द्रखका ने वदया है ?
(ग) ‘गगरी फूटी बैल वपयासा’ इन्दर सेना के इस खेलगीत में बैलों को यासा रहने
की बात क्ों मुखररत हुई है ?
(घ) लुट्टन के राजपहलिान लुट्टन वसंह बन जाने के बाद की वदनचयाय पर प्रकश
डावलए ।
(ङ) आदशय समाज के तीन तत्त्ों में से एक भ्ातृता को रखकर लेखक ने अपने
आदशय समाज म्रें न्द्रस्त्रयों को भी सन्द्रम्मवलत वकया है अथिा नहीं ? आप इस भ्ातृता
शब्द से कहााँ तक सहमत हैं ?
१२ . वकन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीवजए – ३*२=६
(क) ”डायरी के पन्ने’ के आधार पर मवहलाओं के बारे में ऐन के विचारों पर
वटप्पणी कीवजए।
(ख) अपने घर में अपनी ’वसल्वर िैवडं ग’ के आयोजन में भी यशोधर बाबू की
अनेक बातें ’सम हाउ इं प्रोपर’ लग रही थीं , ऐसा क्ों ?
(ग) ‘जूझ’ शीर्यक को उपयु क्त ठहराने के वलए तीन तकय दीवजए ।
१३ . वकन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीवजए-२*२=४
(क) वसन्ु-सभ्यता के सबसे बड़े शहर मुअन-जोदड़ो की नगर-योजना दशयकों को
अवभभूत क्ों करती है ? स्पष्ट कीवजए ।
(ख) ’जूझ’ कहानी में दे साई सरकार की भूवमका पर प्रकश डावलए ।
(ग) ऐसी दो विशेर्ताओं का उल्लेख कीवजए जो सेक्सन ऑवफसर िाई.डी. पंत को
अपने रोल मॉडल वकसन दा से उत्तरावधकार में वमली थी ।
१४ . ‘मुअनजोदड़ो’ के खनन से प्राप्त जानकाररयों के आधार पर वसन्ु-सभ्यता की
विशेर्ताओं पर एक लेख वलन्द्रखए । ५
अथिा
’वसल्वर िैवडं ग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू के व्न्द्रक्तत्व की चार विशेर्ताओं पर
सोदाहरण प्रकश डावलए ।
114
प्रनतर्दशट प्रश्न-पत्-२
कक्षा: बारहवी ं
नवषय- नहन्दी(केप्तिक)
खण्ड-क
(1*5=5)
तूफानों की ओर घुमा दो
तूफानों की ओर घुमा दो
115
तूफानों को यार ।
तूफानों की ओर घुमा दो
सागर भी तो यह पहचाने
जीिन की सत्संगवत ि सत्कमों की अवजयत संपवत्त है और सत्संगवत ितय मान जीिन की दु लयभ
विभूवत है ।वजस प्रकार कुधातु की कठोरता और कावलख, पारस के स्पशय मात्र से कोमलता
और कमनीयता में बदल जाती है ,ठीक उसी प्रकार कुमागी का कालुस्य सत्संगवत से स्ववणय म
आभा में पररिवतयत हो जाता है ।सतत सत्संगवत से विचारों को नई वदशा वमलती है और अच्छे
विचार मनुष्य को अच्छे कायों में प्रेररत करते हैं ।पररणामत: सुचररत्र का वनमाय ण होता है ।
आचायय हजारी प्रसाद वद्विेदी ने वलखा है -“ महाकवि टै गोर के पास बैठने मात्र से ऐसा प्रतीत
बनता है । विदु रजी की उन्द्रक्त अक्षरश: सत्य है वक सुचररत्र के बीज हमें भले ही िंश-परं परा
116
से प्राप्त हो सकते हैं पर चररत्र-वनमाय ण व्न्द्रक्त के अपने बलबूते पर वनभयर है । आनुिंवशक
परं परा,पररिेश और पररन्द्रथथवत उसे केिल प्रेरणा दे सकते हैं पर उसका अजयन नहीं कर
बात करते हैं , तब िे स्वयं उस राष्टर के एक आचरक घटक हैं - इस बात को वििृत कर
दे ते हैं ।
5. संगवतकेसंदभयमेंपारसकेउल्लेखसेलेखकक्ाप्रवतपावदतकरनाचाहताहै ?(2)
7. आचरणउच्चबनानेकेवलएव्न्द्रक्तकोक्ाप्रयासकरनाचावहए? (1)
9. ’सु ’और’कु’उपसगोंसेएक-एकशब्दबनाइए।
(1)
खण्ड- ख
(5)
117
(घ) बढता प्रदू र्ण और जन-स्वास्थ्य
(5)
अथिा
रे ल यात्रा के दौरान साधारण श्रेणी के यावत्रयों को स्टे शनों एिं चलती गावडयों
(1)
(ख) ‘िॉचडॉग’पत्रकाररतासेक्ाआशयहै ?
(1)
(1)
(1)
(5)
(क) खेतीकी जमीन पर फैक्ट्री लगाने को लेकर चलने िाली बहस में भाग लेते हुए आलेख
वलन्द्रखए ।
(ख) आजादी के साठ सालों में गणतां वत्रक मूल्यों का ह्रास हुआ है । भ्ष्टाचार ने हर क्षे त्र
118
प्रश्न-6. ‘ओलन्द्रम्पक खेल’अथिा ‘महानगरों में बढ़ते अपराध की समस्या’ पर लगभग
(5)
119
खण्ड-ग
दीवजए- (२*4=8)
(2)
(2)
(2)
अथिा
(२*3=6)
भोर का नभ
वक जैसे धुल गई हो
मल दी हो वकसी ने ।
121
(ग)उपयुयक्त काव्ां श की भार्ा की दो विशेर्ताएं बताइए।
अथिा
(ग) ‘कैमरे में बंद अपावहज’ करुणा के मुखौटे में वछपी क्रूरता की कविता है –
विचार कीवजए।
प्रश्न-10. निम्ननलप्तखत में से नकसी एक गद्यांश को पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर र्दीनजए
--
(२*4=8)
बाजार में एक जादू है ।िह जादू आाँ ख की राह काम करता है िह रुप का
मयाय दा है ।जे ब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालात में जादू का असर खूब होता
का असर है ।जादू की सिारी उतरी वक फैंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं
अथिा
चाली की अवधकां श वफल्ें भार्ा का इस्तेमाल नहीं करती इसवलए उन्हें ज्यादा से
ज्यादा मानिीय होना पडा।सिाक् वचत्रपट पर कई बडे -बडे कॉमेवडयन हुए हैं , लेवकन िे
चैन्द्रप्लन की साियभौवमकता तक क्ों नहीं पहुाँ च पाए इसकी पड़ताल अभी होने को है ।
आसपास जो भी चीजें ,अड़ं गें, खलनायक, दु ष्ट औरतें आवद रहते हैं िे एक सतत
‘विदे श’ या ‘परदे श’ बन जाते हैं और चैन्द्रप्लन ‘हम’ बन जाते हैं । चाली के सारे
संकटों में हमें यह भी लगता है वक यह ‘मै’ भी हो सकता हाँ , लेवकन ‘मै’ से ज्यादा
चाली हमें ‘हम’ लगतेहैं। यह संभि है वक कुछ अथों में ‘बस्टर कीटन’ चाली चैन्द्रप्लन से
बड़ी हास्य-प्रवतभा हो लेवकन कीटन हास्य का काफ्का है जबवक चैन्द्रप्लन प्रेमचंद के ज्यादा
नजदीक हैं ।
(घ) चाली के कारनामें हमें ‘मैं’ न लगकर ‘हम’ क्ों लगते हैं ?
123
(क)भन्द्रक्तन और लेन्द्रखका के बीच कैसा संबंध था ?‘भन्द्रक्तन’ पाठ के आधार पर
बताइए ।
(ग)लुट्टन पहलिान ने ऐसा क्ों कहा होगा वक मेरा गुरु कोई पहलिान नहीं, यही
ढ़ोल है ?
(3+3=6)
(2+2=4)
(ग़)ऐन ने 13जून, 1944 के वदन वलखी अपनी डायरी में क्ा बताया है ?
124
अथिा
डावलए ।
125
प्रनतर्दशट प्रश्न-पत्-३
नहन्दी (केप्तिक)
कक्षा-बारह
वनदे शुः-इस प्रश्न पत्र में तीन खंड हैं - क ख और ग। सभी खंडों के उत्तर वलखना अवनिायय
है । कृपया प्रश्न का उत्तर वलखना शुरू करने से पहले, प्रश्न का क्रमां क अिश्य वलखें।
खण्ड-क
क) प्रथम चार पंन्द्रक्तयों में भारत की वकन राजनीवतक और सामावजक न्द्रथथवत का िणयन है 1
भारत में ही नहीं िरन् संसार के अन्य धमों में भी अवहं सा के वसद्धान्त को महत्त् प्रदान
वकया गया है । इस्लाम धमय के प्रितयक हजरत मुहम्मद साहब के उपदे शों में अवहं सा के पालन
का आग्रह है । यहवदयों के धमयग्रन्थों का महत्त्पू णय थथान रहा है । ईसा मसीह का संपूणय जीिन
अवहं सा का अवभव्क्तीकरण है । सु करात के अवहं सा पालन का उदाहरण अवििरणीय है ।
अतुः स्पष्ट है वक अवहं सा का वसद्धां त अवपतु इवतहास में उसके सं दभय की कहानी बहुत
प्राचीन और विस्तृत है ।
यद्यवप अवहं सा भारतीय दशयन ि धमय के वलए अवत प्राचीन है परन्तु गां धी की
विशेर्ता इस तथ्य में है वक उन्होंने अवहं सा के परम्परागत वसद्धां त को आत्मसात् कर अपने
अनुभि से उसकी िृवतयों को नया आयाम वदया। उन्होंने अवहं सा को व्न्द्रक्तगत जीिन का ही
नहीं िरन् सामावजक जीिन का वनयम बनाकर उसका व्ािहाररक प्रयोग वकया।
क) ‘आज’से यहााँ क्ा तात्पयय है ?गां धी वचंतन ’से आप क्ा समझते हैं ? 2
घ) गद्यां श के दू सरे अनुच्छेद को पढ़कर अवहं सा के वसद्धां त के बारे में आपकी क्ा
धारणा बनती है ? 2
ङ) गां धी जी के अवहं सा वसद्धान्त की क्ा विशेर्ता है ?जो परं परागत तरीकों से हटकर है ।
2
अवहं सा,सामावजक 1
ङ) विशेर्ण बनाइए-
127
शाश्वतता, प्रासंवगकता 1
खण्ड-ख
प्र0-3 विद्यालय में खेल सामवग्रयों की कमी की वशकायत करते हुए प्राचायय को पत्र वलन्द्रखए।
अथिा
विद्यालय के चौराहे पर अराजक तत्वों की भीड़ की वशकायत करते हुए पुवलस अधीक्षक को
पत्र वलन्द्रखए। 5
ग) साम्प्रादावयकता: एक अवभशाप
घ) कम्प्यूटर का महत्व
प्र0-5(अ) गंगा प्रदू र्ण के प्रवत जागरूकता पैदा करने के वलए वकसी दै वनक समाचार पत्र
के वलए संपादकीय तैयार कीवजए।
अथिा
प्र0-6 िररष्ठ नागररकों के प्रवत वजम्मेदारी विर्य पर फीचर आलेख तैयार कीवजए।
अथिा
128
खण्ड-ग
तोड़ा मरोड़ा,
घुमाया वफराया
वक बात या तो बने ,
अथिा
129
डाल की तरह लचीले िे ग से अकसर।।
मंवजल भी है तो दू र नहीं
(ख) पथ शब्द एिं मंवजल शब्द का प्रयोग वकस रूप में वकया गया है ?
अथिा
भोजन के समय जब मैंने अपनी वनवित सीमा के भीतर वनवदय ष्ट थथान ग्रहण कर वलया,
तब भन्द्रक्तन ने प्रसन्नता से लबालब दृवष्ट और आत्मतुवष्ट से आप्लावित मुस्कराहट के साथ मेरी
फूल की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली वचत्तीदार चार रोवटयााँ रखकर उसे टे ढ़ी
कर गाढ़ी दाल परोस दी। पर जब उसके उत्साह पर तुर्ारापात करते हुए मैंने रुआाँ से भाि से
कहा- यह क्ा बनाया है ?तब हो िह हतबुन्द्रद्ध हो रही।
130
(क) लेन्द्रखका की थाली में कैसी रोवटयााँ थीं? रोवटयों के वचत्तीदार होने के क्ा कारण हो
सकते हैं ?
(ख) भन्द्रक्तन की प्रसन्नता से लबालब दृवष्ट एिं आत्मतुवष्ट के क्ा कारण हो सकते हैं ?
अथिा
अब तक सवफया का गुस्सा उतर चुका था। भािना के थथान पर बुन्द्रद्ध धीरे -धीरे उस थथान
पर हािी हो रही थीं नमक की पुवड़या तो ले जानी है , पर कैसे ? अच्छा, अगर इसे हाथ में
ले लें और कस्टम िालों के सामने सबसे पहले इसी को रख दें ?लेवकन अगर कस्टमिालों ने
न जाने वदया! तो मजबूरी है , छोड़ दें गें। लेवकन वफर उस िायदे का क्ा होगा जो हमने
अपनी मााँ से वकया था?हम अपने को सै यद कहते हैं । वफर िायदा करके झुठलाने के क्ा
मायने ? जान दे कर भी िायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे ?अच्छा! अगर इसे कीनुओं की
टोकरी में सबसे नीचे रख वलया जाए तो इतने कीनुओं के ढे र में भला कौन इसे दे खेगा?
और अगर दे ख वलया? नहीं जी,फलों की टोकररयााँ तो आते िक्त भी वकसी की नहीं दे खी
जा रही थीं। इधर से केले, इधर से कीनू सब ही ला रहे थे , ले जा रहे थे। यही ठीक
है ,वफर दे खा जाएगा।
(ख) सवफया की क्ा भािना थी और िह उसकी बुन्द्रद्ध के सामने वकस प्रकार परास्त हो
गई?
(घ) सवफया ने वकस िायदे को पूरा करने की बात की है ?उसे उसने वकस प्रकार पूरा
वकया।
(क) लेखक ने वकस उद्दे श्य से भगत जी का उल्लेख वकया है ?उनका कौन-सा व्न्द्रक्तत्व
उभरकर हमारे सामने आया है ?
(ख) इन्दर सेना सबसे पहले गंगा भैया की जय क्ों बोलती है ?नवदयों का भारतीय
सामावजक,सां स्कृवतक,पररिेश में क्ा महत्व है ?
131
(घ) लेखक ने वशरीर् के पेड़ को कालजयी अिधूत की तरह क्ों माना है ?
(ङ) लेखक वकन तकों के आधार पर जावत प्रथा को अमानिीय एिं अलोकतां वत्रक बताया
है ?
(ग) ‘वसल्वर िैवडं ग’ कहानी के आधार पर वसद्ध कीवजए वक वकशन दा की परं परा वनभाते
हुए यशोधर पंत ितय मान के साथ नहीं चल पाए।
अथिा
(क) ‘वसल्वर िेवडं ग’के आधार पर यशोधर बाबू के सामने आई वकन्हीं दो ‘समहाि
इं प्रॉपर’न्द्रथथवतयों का उल्लेख कीवजए।
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