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दे वनागरी

दे वनागरी एक भारतीय लिलि है लिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई लवदे शी भाषाएँ लिखी िाती हैं ।
अलिकतर भाषाओं की तरह दे वनागरी भी बायें से दायें लिखी िाती है । प्रत्ये क शब्द के ऊिर एक रे खा खखंची होती है
(कुछ वर्णों के ऊिर रे खा नहीं होती है ) इसे लशरोरे खा कहते हैं। दे वनागरी का लवकास ब्राह्मी लिलि से हुआ है । यह
एक ध्वन्यात्मक लिलि है िो प्रचलित लिलियों (रोमन, अरबी, चीनी आलद) में सबसे अलिक वै ज्ञालनक है ।
इससे वै ज्ञालनक और व्यािक लिलि शायद केवि अध्वव लिलि है। भारत की कई लिलियाँ दे वनागरी से बहुत अलिक
लमिती-िुिती हैं , िै से- बां ग्ला, गु िराती, गुरुमुखी आलद। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिलियों को िरस्पर
िररवतत न बहुत आसान हो गया है ।

भारतीय भाषाओं के लकसी भी शब्द या ध्वलन को दे वनागरी लिलि में ज्ों का त्यों लिखा िा सकता है और लिर लिखे िाठ
को िगभग 'हू-ब-हू' उच्चारर्ण लकया िा सकता है , िो लक रोमन लिलि और अन्य कई लिलियों में सम्भव नहीं है , िब तक
लक उनका लवशे ष मानकीकरर्ण न लकया िाये ।

इसमें कुि ५२ अक्षर हैं , लिसमें १४ स्वर और ३८ व्यं िन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (लवन्यास) भी बहुत ही वै ज्ञालनक है ।
स्वर-व्यं िन, कोमि-कठोर, अल्पप्रार्ण-महाप्रार्ण, अनुनालसक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यालद वगीकरर्ण भी वै ज्ञालनक हैं। एक मत
के अनुसार दे वनगर (काशी) मे प्रचिन के कारर्ण इसका नाम दे वनागरी िडा।
दे वनागरी िे खन की दृलि से सरि, सौन्दयत की दृलि से सुन्दर और वाचन की दृलि से सुिाठ्य है ।
भारतीय अंकों को उनकी वै ज्ञालनकता के कारर्ण लवश्व ने सहषत स्वीकार कर लिया है।
कहा जा सकता है कक इस किकि की वर्णमािा तत्वत: ध्वन्यात्मक है , अक्षरात्मक नही ीं।

दे वनागरी वर्णतमािा[संिालदत करें ]


दे वनागरी की वर्णतमािा में १२ स्वर और ३४ व्यंिन हैं । शून्य या एक या अलिक व्यंिनों और एक स्वर के मेि से
एक अक्षर बनता है ।

स्वर
लनम्नलिखखत स्वर आिुलनक लहन्दी (खडी बोिी) के लिये लदये गये हैं । संस्कृत में इनके उच्चारर्ण थोडे अिग होते हैं ।

वर्ाणक्षर









संस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्म होता है और "अ-इ" या "आ-इ" की तरह बोिा िाता है । इसी तरह औ "अ-उ" या "आ-उ"
की तरह बोिा िाता है ।
इसके अिावा लहन्दी और संस्कृत में ये वर्णात क्षर भी स्वर माने िाते हैं :

 ऋ -- आिु लनक लहन्दी में "रर" की तरह


 ॠ -- केवि संस्कृत में
 ऌ -- केवि संस्कृत में
 ॡ -- केवि संस्कृत में
 अीं -- आिे न्, म्, ंं , ंं , र्ण् के लिये या स्वर का नालसकीकरर्ण करने के लिये
 अँ -- स्वर का नालसकीकरर्ण करने के लिये
 अः -- अघोष "ह्" (लनिःश्वास) के लिये
 ऍ और ऑ -- इनका उियोग मराठी और और कभी-कभी लहन्दी में अंग्रेिी शब्दों का लनकटतम उच्चारर्ण तथा िे खन
करने के लिये लकया िाता है ।
व्यींजन
िब लकसी स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ िर 'अ' (अथात त श्वा का स्वर) माना िाता है । स्वर के न होने को हिन्त्
अथवा लवराम से दशातया िाता है । िै से लक क् ख् ग् घ्।

स्पर्ण (Plosives)

अल्पप्रार् महाप्रार् अल्पप्रार् महाप्रार्


नाकसक्य
अघोष अघोष घोष घोष

कण्ठ्ठ्य क / kə / ख / khə / ग / gə / घ / gɦə / ङ / ŋə /

झ / ɟɦə / या / dʒɦə
तािव्य च / cə / या / tʃə / छ / chə / या /tʃhə/ ज / ɟə / या / dʒə / ञ / ɲə /
/

मूितन्य ट / ʈə / ठ / ʈhə / ड / ɖə / ढ / ɖɦə / र् / ɳə /

दन्त्य त / t̪ ə / थ / t̪ hə / द / d̪ə / ध / d̪ɦə / न / nə /

ओष्ठ्ठ्य ि / pə / फ / phə / ब / bə / भ / bɦə / म / mə /


स्पर्ण रकहत (Non-Plosives)

दन्त्य/ कण्ठोष्ठ्य/
तािव्य मूधणन्य
वर्त्स्ण काकल्य

अन्तस्थ य / jə / र / rə / ि / lə / व / ʋə /

ऊष्म/
र् / ʃə / ष / ʂə / स / sə / ह / ɦə / या / hə /
संघषी

नोट करें -

 इनमें से ळ (मूितन्य िालवत क अन्तस्थ) एक अलतररक्त व्यं िन है लिसका प्रयोग लहन्दी में नहीं होता है । मराठी, वै लदक
संस्कृत, कोंकर्णी, मेवाडी, इत्यालद में सभी का प्रयोग लकया िाता है ।

 संस्कृत में ष का उच्चारर्ण ऐसे होता था : िीभ की नोक को मूिात (मुँह की छत) की ओर उठाकर र् िै सी आवाज़
करना। शु क्ल यिु वेद की माध्यंलदलन शाखा में कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारर्ण ख की तरह करना मान्य था।
आिु लनक लहन्दी में ष का उच्चारर्ण िूरी तरह र् की तरह होता है ।

 लहन्दी में र् का उच्चारर्ण ज़्यादातर डँ की तरह होता है , यालन लक िीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती
है । लहन्दी में क्षकर्क और क्शकडीं क में कोई फ़कत नहीं। िर संस्कृत में र्ण का उच्चारर्ण न की तरह लबना ठोकर मारे
होता था, अन्तर केवि इतना लक िीभ र् के समय मुँह की छत को छूती है ।
नुक़्ता वािे व्यींजन[सं िालदत करें ]
लहन्दी भाषा में मुख्यत: अरबी और फ़ारसी भाषाओं से आये शब्दों को दे वनागरी में लिखने के लिये कुछ वर्णों के नीचे
नुक्ता (लबन्दु ) िगे वर्णों का प्रयोग लकया िाता है (िै से क़, ज़ आलद)। लकन्तु लहन्दी में भी अलिकां श िोग नुक्तों का प्रयोग
नहीं करते । इसके अिावा संस्कृत, मराठी, नेिािी एवं अन्य भाषाओं को दे वनागरी में लिखने में भी नुक्तों का प्रयोग नहीं
लकया िाता है।

वर्णात क्षर ग़ित


उदाहरर्ण वर्णतन अंग्रेज़ी में वर्णतन
(IPA उच्चारर्ण) उच्चारर्ण
क़ (/ q /) क़त्ल अघोष अलिलिह्वीय स्पशत Voiceless uvular stop क (/ k /)
अघोष अलिलिह्वीय या कण्ठ्ठ्य Voiceless uvular or velar
ख़ (/ x or χ /) ख़ास ख (/ kh /)
संघषी fricative
ग़ (/ ɣ or ʁ /) ग़ै र घोष अलिलिह्वीय या कण्ठ्ठ्य संघषी Voiced uvular or velar fricative ग (/ g /)
फ़ (/ f /) फ़कत अघोष दन्त्यौष्ठ्ठ्य संघषी Voiceless labio-dental fricative ि (/ ph /)
ज़ (/ z /) ज़ालिम घोष वर्त्स्त संघषी Voiced alveolar fricative ि (/ dʒ /)
झ़ (/ ʒ /) टे िेवीझ़न घोष तािव्य संघषी Voiced palatal fricative ि (/ dʒ /)
थ़ (/ θ /) अथ़ू अघोष दन्त्य संघषी Voiceless dental fricative थ (/ t̪ h /)
ड (/ ɽ /) िेड अल्पप्रार्ण मूितन्य उखिप्त Unaspirated retroflex flap -
ढ़ (/ ɽh /) िढ़ना महाप्रार्ण मूितन्य उखिप्त Aspirated retroflex flap -

थ़ का प्रयोग मुख्यतिः िहाडी भाषाओँ में होता है िै से की डोगरी (की उत्तरी उिभाषाओं) में "आं सू" के लिए शब्द है "अथ़ू"।
लहन्दी में ड और ढ़ व्यंिन फ़ारसी या अरबी से नहीं लिये गये हैं, न ही ये संस्कृत में िाये िाये हैं। असि में ये संस्कृत के
सािारर्ण ड और ढ के बदिे हुए रूि हैं ।

कवराम-कचह्न, वैकदक कचह्न आकद[संिालदत करें ]


प्रतीक नाम कायण
। डण्डा / खडी िाई / िूर्णत लवराम वाक्य का अन्त बताने के लिये
॥ दोहरा डण्डा
॰ संलक्षप्तीकरर्ण के लिये , िै से मो॰ क॰ गाँिी
ॐ प्रर्णव , ओम लहन्दू िमत का शु भ शब्द
ि॑ उदात्त उच्चारर्ण बताने के लिये वै लदक संस्कृत के कुछ ग्रन्ों में प्रयु क्त
ि॒ अनुदात्त उच्चारर्ण बताने के लिये वै लदक संस्कृत के कुछ ग्रन्ों में प्रयु क्त

दे वनागरी अींक[संिालदत करें ]


दे वनागरी अंक लनम्न रूि में लिखे िाते हैं :

० १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९

दे वनागरी सींयुक्ताक्षर[सं िालदत करें ]


दे वनागरी लिलि में दो व्यंिन का संयुक्ताक्षर लनम्न रूि में लिखा िाता है :
1233464324

क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ र् त थ द ध न ि फ ब भ म य र ि व र् ष स ह ळ

क क्कक्खक्गक्घक्ङक्चक्छक्जक्झक्ञक्ट क्ठक्डक्ढक्ण क्थक्दक्िक्न क्पक्फक्बक्भक्मक्यक्र क्लक्व क्श क्सक्ह क्ळ


क्त क्ष

ख ख्कख्खख्गख्घख्ङख्चख्छख्िख्झख्ञख्टख्ठख्डख्ढख्र्णख्तख्थख्दख्िख्न ख्िख्िख्बख्भख्मख्यख्र ख्िख्वख्शख्षख्सख्हख्ळ

ग ग्क ग्ख ग्ग ग्घ ग्ङ ग्च ग्छ ग्ज ग्झ ग्ञ ग्ट ग्ठ ग्ड ग्ढ ग्ण ग्त ग्थ ग्द ग्ध ग्न ग्ि ग्ि ग्ब ग्भ ग्म ग्य ग्र ग्ल ग्व ग्श ग्ष ग्स ग्ह ग्ळ
घ घ्कघ्खघ्ग घ्घ घ्ङ घ्च घ्छ घ्ि घ्झ घ्ञ घ्ट घ्ठ घ्ड घ्ढ घ्र्ण घ्त घ्थ घ्द घ्ि घ्न घ्ि घ्िघ्ब घ्भ घ्म घ्य घ्र घ्ि घ्व घ्श घ्ष घ्स घ्ह घ्ळ

ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं

क ख ग घ ङ च छ ि झ ञ ट ठ ड ढ र्ण त थ द ि न ि ि ब भ म य र ि व श ष स ह ळ

च च्कच्खच्ग च्घ च्ङच्च च्छ च्ि च्झ च्ञ च्ट च्ठ च्ड च्ढ च्र्ण च्त च्थ च्द च्ि च्न च्ि च्िच्ब च्भ च्म च्य च्र च्ि च्व च्श च्ष च्स च्ह च्ळ

छ छ्कछ्खछ्गछ्घछ्ङछ्चछ्छछ्िछ्झछ्ञछ्टछ्ठछ्डछ्ढछ्र्णछ्तछ्थछ्दछ्िछ्नछ्िछ्िछ्बछ्भछ्मछ्यछर छ्िछ्व छ्शछ्षछ्सछ्हछ्ळ

ज ज्कज्खज्गज्घज्ङज्चज्छज्ज ज्झ ज्ट ज्ठज्ड ज्ढज्र्णज्त ज्थज्द ज्िज्न ज्ि ज्िज्बज्भज्मज् ज्र ज्िज्व ज्शज्षज्सज्ह ज्ळ
ज्ञ

झ झ्कझ्खझ्ग झ्घ झ्ङझ्चझ्छझ्िझ्झझ्ञझ्ट झ्ठझ्डझ्ढ झ्र्णझ्त झ्थ झ्द झ्ि झ्न झ्ि झ्िझ्ब झ्भझ्मझ्यझ्र झ्िझ्व झ्शझ्ष झ्सझ्ह झ्ळ

ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं ंं

क ख ग घ ङ च छ ि झ ञ ट ठ ड ढ र्ण त थ द ि न ि ि ब भ म य र ि व श ष स ह ळ

ट ट् कट् खट् गट् घट् ङट् चट् छट् िट् झट् ञट्ट ट्ठ ट् डट् ढट् र्णट् तट् थट् दट् िट् नट् िट् िट् बट् भट् मट्य टर ट् िट्व ट् शट् षट् सट् हट् ळ

ठ ठ् कठ् खठ् गठ् घठ् ङठ् चठ् छठ् िठ् झठ् ञठ् टठ्ठ ठ् डठ् ढठ् र्णठ् तठ् थठ् दठ् िठ् नठ् िठ् िठ् बठ् भठ् मठ्यठर ठ् िठ् वठ् शठ् षठ् सठ् हठ् ळ

ड ड् कड् खड् गड् घड् ङड् चड् छड् िड् झड् ञड् टड् ठड्ड ड्ढ ड् र्णड् तड् थड् दड् िड् नड् िड् िड् बड् भड् मड्यडर ड् िड् वड् शड् षड् सड् हड् ळ

ढ ढ् कढ् खढ् गढ् घढ् ङढ् चढ् छढ् िढ् झढ् ञढ् टढ् ठढ् डढ्ढ ढ् र्णढ् तढ् थढ् दढ् िढ् नढ् िढ् िढ् बढ् भढ् मढ्यढर ढ् िढ् वढ् शढ् षढ् सढ् हढ् ळ

र् ण्ठ्कण्ठ्खण्ठ्ग ण्ठ्घ ण्ठ्ङण्ठ्च ण्ठ्छण्ठ्िण्ठ्झण्ठ्ञण्ट ण्ठ ण्डण्ढ ण्णण्ठ्त ण्ठ्थ ण्ठ्द ण्ठ्ि ण्ठ्न ण्ठ्ि ण्ठ्िण्ठ्ब ण्ठ्भण्म ण्य ण्र ण्ठ्िण्व ण्ठ्शण्ठ्ष ण्ठ्सण्ठ्ह ण्ठ्ळ

त त्क त्ख त्ग त्घ त्ङ त्च त्छ त्ि त्झ त्ञ त्ट त्ठ त्ड त्ढ त्र्ण त्थ त्द त्ि त्न त्प त्फ त्ब त्भ त्म त्य त्र त्ल त्व त्श त्ष त्स त्ह त्ळ
त्त
थ थ्कथ्खथ्ग थ्घ थ्ङ थ्च थ्छ थ्ि थ्झ थ्ञ थ्ट थ्ठ थ्ड थ्ढ थ्र्ण थ्त थ्थ थ्द थ्ि थ्न थ्ि थ्िथ्ब थ्भ थ्म थ्य थ्र थ्ि थ्व थ्श थ्ष थ्स थ्ह थ्ळ

द द् कद् खद्ग द् घद् ङद् चद् छद् िद् झद् ञद् टद् ठद् डद् ढद् र्णद् तद् थ द्न द् िद् ि द्र द् ि द् शद् षद् सद् हद् ळ
द्द द्ध द्ब द्भ द्म द्य द्व

ध ध्कध्ख ध्ग ध्घ ध्ङ ध्च ध्छ ध्ि ध्झ ध्ञ ध्ट ध्ठ ध्ड ध्ढ ध्र्ण ध्त ध्थ ध्द ध्ि ध्न ध्ि ध्िध्ब ध्भ ध्म ध्य ध्र ध्ि ध्व ध्श ध्ष ध्स ध्ह ध्ळ

न न्क न्ख न्ग न्घ न्ङ न्च न्छ न्ि न्झ न्ञ न्ट न्ठ न्ड न्ढ न्र्ण न्त न् न्द न्ध न्न न्प न्फ न्ब न्भ न्म न्य न्र न्ि न्व न्श न्ष न्स न्ह न्ळ

ि प्क प्ख प्ग प्घ प्ङ प्च प्छ प्ि प्झ प्ञ प्ट प्ठ प्ड प्ढ प्र्ण प्त प्थ प्द प्ि प्न प्प प्फ प्ब प्भ प्म य प्र प्ल प्व प्श प्ष प्स प्ह प्ळ

फ फ्कफ्खफ्गफ्घफ्ङफ्चफ्छफ्जफ्झफ्ञफ्टफ्ठफ्डफ्ढफ्र्णफ्तफ्थफ्दफ्िफ्नफ्पफ्फफ्बफ्भफ्मफ्यफ्र फ्लफ्वफ्शफ्षफ्सफ्हफ्ळ

ब ब्कब्खब्ग ब्घ ब्ङब्च ब्छ ब्ज ब्झ ब्ञ ब्ट ब्ठ ब्ड ब्ढ ब्र्ण ब्त ब्थ ब्द ब्ध ब्न ब्ि ब्िब्ब ब्भ ब्म ब्य ब्र ब्ल ब्व ब्शब्ष ब्स ब्ह ब्ळ

भ भ्कभ्खभ्ग भ्घ भ्ङभ्च भ्छ भ्ि भ्झ भ्ञ भ्ट भ्ठ भ्ड भ्ढ भ्र्ण भ्त भ्थ भ्द भ्ि भ्न भ्ि भ्िभ्ब भ्भ भ्म भ्य भ्र भ्ि भ्व भ्श भ्ष भ्स भ्ह भ्ळ

म म्प्कम्प्खम्प्ग म्प्घ म्प्ङ म्प्च म्प्छ म्प्ि म्प्झ म्प्ञ म्प्ट म्प्ठ म्प्ड म्प्ढ म्प्र्ण म्त म्प्थ म्द म्प्ि म्न म्प म्प्िम्ब म्भ म्म म्य म्र म्ल म्व म्श म्प्ष म्स म्ह म्प्ळ

य य्क य्ख य्ग य्घ य्ङ य्च य्छ य्ि य्झ य्ञ य्ट य्ठ य्ड य्ढ य्र्ण य्त य्थ य्द य्ि य्न य्ि य्ि य्ब य्भ य्म य्य य्र य्ि य्व य्श य्ष य्स य्ह य्ळ

र कत खत गत घत ङत चत छत ित झत ञत टत ठत डत ढत र्णत तत थत दत ित नत ित ित बत भत मत यत रत ित वत शत षत सत हत ळत

ि ल्कल्खल्ग ल्घ ल्ङल्च ल्छल्जल्झल्ञल्ट ल्ठ ल्ड ल्ढ ल्र्णल्त ल्थ ल्द ल्ि ल्न ल्प ल्फल्ब ल्भ ल्म ल्य िर ल्ल ल्व ल्शल्ष ल्स ल्ह ल्ळ

व व्कव्खव्ग व्घ व्ङव्च व्छ व्ि व्झ व्ञ व्ट व्ठ व्ड व्ढ व्र्ण व्त व्थ व्द व्ि व्न व्ि व्िव्ब व्भ व्म व्य व्र व्ल व्व व्श व्ष व्स व्ह व्ळ

र् श्कश्खश्गश्घश्ङश्च श्छश्िश्झश्ञश्ट श्ठश्डश्ढश्र्णश्त श्थश्द श्िश्न श्ि श्िश्ब श्भश्मश्य श्लश्व श्शश्ष श्सश्ह श्ळ
श्र
ष ष्कष्ठ्ख ष्ठ्ग ष्ठ्घ ष्ठ्ङ ष्ठ्च ष्ठ्छ ष्ठ्ि ष्ठ्झ ष्ठ्ञ ि ष्ठ ष्ठ्ड ष्ठ्ढ ष्ण ष्ठ्त ष्ठ्थ ष्ठ्द ष्ठ्ि ष्ठ्न ष्प ष्फ ष्ठ्ब ष्ठ्भ ष्म ष्य ष्र ष्ठ्ि ष्व ष्ठ्श ष्ष ष्ठ्स ष्ठ्ह ष्ठ्ळ

स स्कस्खस्ग स्घ स्ङस्च स्छस्जस्झस्ञस्ट स्ठ स्ड स्ढ स्र्णस्त स्थ स्द स्ि स्न स्प स्फस्ब स्भ स्म स्य स्र स्ल स्व स्शस्ष स्स स्ह स्ळ

ह ह्कह्खह्गह्घह्ङह्चह्छह्िह्झह्ञह्टह्ठह्डह्ढह्ण ह्तह्थह्दह्िह्न ह्िह्िह्बह्भ ह्र ह्ल ह्व ह्शह्षह्सह्हह्ळ


ह्म ह्य

ळ ळ्कळ्खळ्गळ्घळ्ङळ्चळ्छळ्िळ्झळ्ञळ्टळ्ठळ्डळ्ढळ्र्णळ्तळ्थळ्दळ्िळ्नळ्िळ्िळ्बळ्भळ्मळ्यळर ळ्िळ्वळ्शळ्षळ्सळ्हळ्ळ

ब्राह्मी िररवार की लिलियों में दे वनागरी लिलि सबसे अलिक संयुक्ताक्षरों को समथतन दे ती है। दे वनागरी २ से अलिक व्यं िनों
के संयुक्ताक्षर को भी समथतन दे ती है । छन्दस िॉण्ट दे वनागरी में बहुत संयुक्ताक्षरों को समथतन दे ता है ।

द् +ि्+र् +य्+अ संयुक्ताक्षर

िुरानी दे वनागरी[संिालदत करें ]


िुराने समय में प्रयुक्त हुई िाने वािी दे वनागरी के कुछ वर्णत आिु लनक दे वनागरी से लभन्न हैं ।

आधुकनक दे वनागरी िुरानी दे वनागरी


दे वनागरी लिलि के गु र्ण[संिालदत करें ]
दे वनागरी के वर्णों के वगीकरर्ण की तालिका

 भारतीय भाषाओं के लिये वर्णों की िूर्णतता एवं सम्पन्नता (५२ वर्णत, न बहुत अलिक न बहुत कम)।

 एक ध्वकन के किये एक साींकेकतक कचह्न -- िै सा बोिें वै सा लिखें।

 एक साींकेकतक कचह्न द्वारा केवि एक ध्वकन का कनरूिर् -- िै सा लिखें वै सा िढ़ें ।


उिरोक्त दोनों गु र्णों के कारर्ण ब्राह्मी लिलि का उियोग करने वािी सभी भारतीय भाषाएँ 'स्पेलिंग की समस्या' से
मुक्त हैं ।

 स्वर और व्यींजन में तकणसींगत एवीं वैज्ञाकनक क्रम-कवन्यास - दे वनागरी के वर्णों का क्रमलवन्यास उनके
उच्चारर्ण के स्थान (ओष्ठ्ठ्य, दन्त्य, तािव्य, मूितन्य आलद) को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है । इसके अलतररक्त
वर्णत-क्रम के लनिात रर्ण में भाषा-लवज्ञान के कई अन्य िहिु ओ का भी ध्यान रखा गया है । दे वनागरी की वर्णतमािा
(वास्तव में, ब्राह्मी से उत्पन्न सभी लिलियों की वर्णतमािाएँ ) एक अत्यन्त तकतिूर्णत ध्वन्यात्मक क्रम (phonetic
order) में व्यवखस्थत है । यह क्रम इतना तकतिूर्णत है लक अन्तररािरीय ध्वन्यात्मक संघ (IPA) ने अन्तरात िरीय
ध्वन्यात्मक वर्णतमािा के लनमात र्ण के लिये मामूिी िररवतत नों के साथ इसी क्रम को अंगीकार कर लिया।

 वर्ों का प्रत्याहार रूि में उियोग : माहे श्वर सूत्र में दे वनागरी वर्णों को एक लवलशि क्रम में सिाया गया है ।
इसमें से लकसी वर्णत से आरम्भ करके लकसी दू सरे वर्णत तक के वर्णतसमूह को दो अक्षर का एक छोटा नाम दे लदया
िाता है लिसे 'प्रत्याहार' कहते हैं । प्रत्याहार का प्रयोग करते हुए सखन्ध आलद के लनयम अत्यन्त सरि और संलक्षप्त
ढं ग से लदए गये हैं (िै से, आद् गुर्णिः)

 दे वनागरी लिलि के वर्णों का उियोग संख्याओं को लनरूलित करने के लिये लकया िाता रहा है ।
(दे खखये कटियालद, भूतसंख्या तथा आयत भट्ट की संख्यािद्धलत)

 मात्राओीं की सींख्या के आधार िर छन्ोीं का वगीकरर् : यह भारतीय लिलियों की अद् भुत लवशे षता है लक
लकसी िद्य के लिखखत रूि से मात्राओं और उनके क्रम को लगनकर बताया िा सकता है लक कौन सा छन्द है ।
रोमन, अरबी एवं अन्य में यह गुर्ण अप्राय है ।

 उच्चारर् और िेखन में एकरुिता

 किकि कचह्नोीं के नाम और ध्वकन मे कोई अन्तर नही ीं (िै से रोमन में अक्षर का नाम “बी” है और ध्वलन “ब” है)

 िेखन और मुद्रर् मे एकरूिता (रोमन, अरबी और फ़ारसी मे हस्तलिखखत और मुलद्रत रूि अिग-अिग हैं )

 दे वनागरी, 'स्माि िेटर" और 'कैलिटि िेटर' की अवै ज्ञालनक व्यवस्था से मुक्त है ।

 मात्राओीं का प्रयोग
क के उिर लवलभन्न मात्राएं िगाने के बाद का स्वरूि

 अधण-अक्षर के रूि की सुगमता : खडी िाई को हटाकर - दायें से बायें क्रम में लिखकर तथा अद्धत अक्षर को
ऊिर तथा उसके नीचे िूर्णत अक्षर को लिखकर - ऊिर नीचे क्रम में संयुक्ताक्षर बनाने की दो प्रकार की रीलत
प्रचलित है ।

 अन्य - बायें से दायें , लशरोरे खा, संयुक्ताक्षरों का प्रयोग, अलिकांश वर्णों में एक उध्वत-रे खा की प्रिानता, अनेक
ध्वलनयों को लनरूलित करने की क्षमता आलद।[1]

 भारतवषत के सालहत्य में कुछ ऐसे रूि लवकलसत हुए हैं िो दायें-से-बायें अथवा बाये -से-दायें िढ़ने िर समान रहते
हैं । उदाहरर्णस्वरूि केशवदास का एक सवैया िीलिये :
मां सस मोह सिै बन बीन, नवीन बिै सह मोस समा।
मार ितालन बनावलत सारर, ररसालत वनाबलन ताि रमा ॥
मानव ही रलह मोरद मोद, दमोदर मोलह रही वनमा।
माि बनी बि केसबदास, सदा बसकेि बनी बिमा ॥
इस सवै या की लकसी भी िंखक्त को लकसी ओर से भी िलढये , कोई अंतर नही िडे गा।
सदा सीि तु म सरद के दरस हर तरह खास।
सखा हर तरह सरद के सर सम तु िसीदास॥

दे वनागरी लिलि के दोष[संिालदत करें ]


1.कुि लमिाकर 403 टाइि होने के कारर्ण टं कर्ण, मुंद्रर्ण में कलठनाई।
2.लशरोरे खा का प्रयोग अनावश्यक अिंकरर्ण के लिए।
3.अनावश्यक वर्णत (ऋ, ॠ, िृ , ॡ, ंं , ंं , ष)— आि इन्हें कोई शु द्ध उच्चारर्ण के साथ उच्चाररत
नहीं कर िाता।
4.लिरूि वर्णत (ंं प्र अ, ज्ञ, क्ष, त, त्र, छ, झ, रा र्ण, श)
5.समरूि वर्णत (ख में र व का, घ में ि का, म में भ का भ्रम होना)।
6.वर्णों के संयुक्त करने की कोई लनलश्चत व्यवस्था नहीं।
7.अनुस्वार एवं अनुनालसकता के प्रयोग में एकरूिता का अभाव।
.त्वरािूर्णत िे खन नहीं क्योंलक िेखन में हाथ बार–बार उठाना िडता है।
9.वर्णों के संयुक्तीकरर्ण में र के प्रयोग को िे कर भ्रम की खस्थलत।
10.इ की मात्रा (लं) का िे खन वर्णत के िहिे िर उच्चारर्ण वर्णत के बाद।

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